चींटी रानी चली सैर को,
सखी सहेलियों के साथ।
घूमते फिरते पहुँच गईं एक पर्वत के पास
सबकी सब सोच मे पड़ गई,
कैसे करें पर्वत को पार।
रानी चीटीं सबसे बोली,
है न कोई डरने की बात।
हम सब मिलकर चढ़ेंगे इस पर्वत पर,
,
और उतरेंगे पर्वत के उस पार।
सबको बात समझ मे आई,
शुरू किया अपना अभियान ।
कुछ ही दूर चली थी चींटियाँ,
उनमें से कुछ गिर पड़ीं धरा पर।
फिर उठीं, फिर चलीं, फिर गिरीं
पर किसीने हार न मानी।
कोशिश करते करते आखिर,
पहुँच गई अपनी मंज़िल पर,
अपनी सफलता का जश्न मनाया,
एक दूसरे को गले लगाया।
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बच्चों , असफलता से कभी निराश न हों, कोशिश करते रहिये जबतक सफलता न मिले। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
मंजू श्रीवास्तव
हरिद्वार
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