मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

महेन्द्र देवांगन "माटी की रचना : बहार कहा से आये



जब कट गये हैं पेड़ सारे ।

मौसम में बहार कहां से आये ।

नहीं दिखती कोयल अब , नहीं दिखते मोर ।

अमराई ही गायब है , कहां मचाये पक्षी शोर ।

ठूंठ पड़े हैं पेड़ सारे , सूख गई है धरती ।

सूख गई हैं नदियाँ सारे , तिल तिल कुएँ मरती ।

बसंत ऋतु में ओ खुमारी , अब कहां से लायें ।




मौसम में बहार कहां से आये ।

बाग बगीचे सुने हो गए , सुनी पड़ी हैं गलियां ।

बच्चे खेलना छोड़ दिए , अब तो मोबाइल ही दुनियां ।

खोज रहे हैं इंटरनेट पर , तरह तरह के खेल ।

घर में दुबके बैठे हैं , जैसे काट रहे हों जेल ।

भूल गये सब गिल्ली डंडा ,वो  दिन कहां से लायें ।

अब बताओ मौसम में बहार कहां से आये ।







महेन्द्र देवांगन "माटी"

पंडरिया  (कवर्धा )

छत्तीसगढ़ 

8602407353

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