जब कट गये हैं पेड़ सारे ।
मौसम में बहार कहां से आये ।
नहीं दिखती कोयल अब , नहीं दिखते मोर ।
अमराई ही गायब है , कहां मचाये पक्षी शोर ।
ठूंठ पड़े हैं पेड़ सारे , सूख गई है धरती ।
सूख गई हैं नदियाँ सारे , तिल तिल कुएँ मरती ।
बसंत ऋतु में ओ खुमारी , अब कहां से लायें ।
मौसम में बहार कहां से आये ।
बाग बगीचे सुने हो गए , सुनी पड़ी हैं गलियां ।
बच्चे खेलना छोड़ दिए , अब तो मोबाइल ही दुनियां ।
खोज रहे हैं इंटरनेट पर , तरह तरह के खेल ।
घर में दुबके बैठे हैं , जैसे काट रहे हों जेल ।
भूल गये सब गिल्ली डंडा ,वो दिन कहां से लायें ।
अब बताओ मौसम में बहार कहां से आये ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
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