सोमवार, 6 मई 2019

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : भरत और बुजुर्ग


भरत बचपन से ही बहुत होशियार था | स्वभाव से सीधा और सरल व उदार हृदय वाला किशोर था |
    सातवीं कक्षा का छात्र था भरत |
सभी छात्रों से उसका दोस्ताना व्यवहार था |
      कक्षा मे किसी को किसी चीज की जरूरत होती जैसे पेन्सिल, रबर, स्केल आदि तुरत दे दिया करता |
इसलिये वह क्या स्कूल, क्या घर सभी जगह सबका चहेता बन गया था|
    |  भरत नियम से रोज सुबह टहलने जाया करता था |
    सर्दी के दिन थे | भरत हरबार की तरह सुबह टहलने निकला | उसने देखा सड़क  के किनार बैठा  एक बुज़ुर्ग आदमी  पतली सी चादर ओढ़े ठंड से कांप रहा है | उधर से गुजरने वाला हर राहगीर उसके कटोरे मे पैसे डाल देता है  |
     भरत ने सोचा इस वक्त वह बुज़ुर्ग पैसे लेकर क्या करेगा? ये ख्याल आते ही भरत दौड़ के घर गया| अपनी गुल्लक से पैसे निकाले और बाजार की तरफ भागा | उसने एक शर्ट ,पैजामा व शॉल खरीदा और उस बुज़ुर्ग को लाकर दिया |  वह बहुत खुश हुआ| कपड़े पहने और शॉल ओढ़ लिया |
   भरत ने उसे भोजन भी कराया|
बुज़ुर्ग बहुत खुश  |
भरत के माता पिता भरत के इस कार्य से बहुत ज्यादा खुश थे |
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बच्चों , एक बात याद रखना कि किसी भी जरूरत मंद की सहायता के लिये हर समय हमेशा तैयार  रहो |  अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है |
























मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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