शुक्रवार, 6 मार्च 2020

आग तापकर देह तपानी : प्रभु दयाल श्रीवास्तव




  बिछा बिछौना हरी दूब का,
  उस पर लेटी धूप सुहानी।
       ठंडी हवा चली जब सर- सर,
       धूप परी भी थर- थर कांपी।
       मौसम के थर्मामीटर ने,
       कड़क ठंड की डिग्री मापी।
       सतह ऊपरी बर्फ बन गई,
       रखा बाल्टियों में जो पानी।
  जब तब कुछ बादल हर कारे
  बन चादर सूरज ढक लेते।
  छू मंतर की दाई बोलकर,
  धूप तुरत गायब कर देते।
  शीत लहर की नटनी करती,
  बच्चों जैसी कारिस्तनी।
           घर के सारे बच्चे बूढ़े,
           छुपे रजाई में बैठे हैं,
           कोयले भरी अंगीठी के तो,
           मां ने कान अभी ऐंठे हैं।
           आग तापके पापाजी को,
           शायद अपनी देह तपा नी।   

  


प्रभु दयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुंदरम नगर
  छिन्दवाड़ा म प्र

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