मेरे भी कई ख़्वाब थे ,
पर परिस्थितियों ने तोड़कर रख दिया ।
पर हिम्मत को कभी टूटने नही दिया मैंने ...
पहले बेहतर शिक्षा , फिर बेहतर काम पाने
हर कदम पर निरन्तर जूझता रहा ...
सुविधाविहीन गांव से शुरू हुआ सफर ,
मेट्रो शहर दिखा गया ...
जो देखा ख़्वाब था , वो पूरा तो ना हुआ
पर जीने का दूसरा मकसद सीखा गया ...
हालाँकि अभी भी प्रयास को , जारी रखा है मैंने
उम्मीद का परिंदा हूँ , उड़ने की ज़िद को
जिंदा रखा है मैंने ...
✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर
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