ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 5 अक्टूबर 2020






मेरे भी कई ख़्वाब थे ,

पर परिस्थितियों ने तोड़कर रख दिया ।

पर हिम्मत को कभी टूटने नही दिया मैंने ...

पहले बेहतर शिक्षा , फिर बेहतर काम पाने 

हर कदम पर निरन्तर जूझता रहा ...

सुविधाविहीन गांव से शुरू हुआ सफर , 

मेट्रो शहर दिखा गया ...

जो देखा ख़्वाब था , वो पूरा तो ना हुआ 

पर जीने का दूसरा मकसद सीखा गया ...

हालाँकि अभी भी प्रयास को , जारी रखा है मैंने

उम्मीद का परिंदा हूँ , उड़ने की ज़िद को 

जिंदा रखा है मैंने ...




✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर 


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