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शनिवार, 26 अगस्त 2017

सिया राम शर्मा की कहानी : गरीबी चली गयी





बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक बहुत गरीब बालक रामू अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक झोपडी में रहता था । उसकी माँ जैसे तैसे दूसरों के खेतों पर मजदूरी करके गुजारा करती । रामू अपनी माँ का बहुत  ख्याल रखता । वह सोचता रहता कि उसके पास  भी अपना खेत होता तो वो भी खेती करते । माँ को इस तरह भटकना नहीं पड़ता । जब भी वो माँ के साथ काम पर जाने की जिद करता तो माँ मना कर देती ," बेटा तुम अभी छोटे हो । बड़े हो जाओगे तो शहर जाकर कुछ काम ढूँढ लेना ।" 
   एक दिन गाँव में चौपाल पर उसने सुना की हरितपुर की पहाड़ी के पास रामगंगा नदी के किनारे हरिपुरूष नामक योगी रहते हैं । उनके पास दूर दूर से लोग पहुँच कर अपने प्रश्नों को पूछने जाते हैं । वो सुबह होते ही सबके सामने समस्या का हल सुझाते हैं । रामू के मन में आया कि वह भी योगी महाराज से अपनी गरीबी दूर करने का उपाय पूछेगा । 
     अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर वह माँ से बोला, "माँ में योगी महाराज के पास गरीबी दूर करने के बारे में पूछने जा रहा हूँ । " माँ के चरण छूकर वह रवाना होगया रास्ते में एक सेठ का घर पड़ा । उसने रामू से कहा आज सवेरे सवेरे कहाँ जा रहे हो । रामू ने कहा मैं योगी महाराज के पास जा रहा हूँ  । सेठ बोला जा रहे हो तो  मेरे बेटी के बारे में पूछना कि वह कब बोलना शुरू करेगी । जन्म से ही वो नहीं बोल पा रही है । रामू ने कहा जरूर मैं आपका प्रश्न पूंछूंगा । आगे चला तो एक किसान खेत जोत रहा था । उसने पूछा, " आज सुबह सुबह कहाँ जा रहे हो । " रामू ने कहा योगी महाराज के पास तो किसान ने कहा ,"जा रहे हो तो मेरा प्रश्न भी पूछ लेना कि मेरे खेत में इतनी मेहनत करने पर भी पैदावार बहुत कम होती है?  इसका क्या कारण है । " रामू ने किसान से कहा, "हाँ!  जरूूर! " 
आगे चला तो शाम होगई । एक मंदिर के पास पहुँच कर वो आराम करने के के लिए रूक गया । सुबह उठ कर दर्शन करने गया तो मंदिर में  बैठे संत  ने पूूछा कि  कहाँ से आए हो और कहाँ जा रहे हो ? रामू ने सारी बात बतादी ।  संत ने कहा कि बेटा योगी से पूछना मैं भगवान की इतनी भक्ति करता हूँ फिर भी अभी तक सिद्धि नहीं मिली?  कब तक मुझे साधना काफल मिलेगा । रामू ने साधू को भी  कहा कि वो जरूर पूछकर आयेगा । 
यात्रा करते करते आखिर वह रामगंगा के किनारे वट वृक्ष के नीचे बैठे योगी महाराज के पास पहुँच कर दणडवत प्रणाम कर बैठ गया । योगी महाराज ने पूछा, "कहो, बालक कैसे आना हुआ?  " रामू ने कहा कि मेरे कुछ प्रश्न हैं उनके उत्तर जानने आया हूँ । " 
योगी ने कहा  ",बेटा मैं तीन प्रश्नों के उत्तर ही दे सकता हूँ ,पूछो क्या पूछना है ।" रामू ने कहा, महाराज मेरे चार प्रश्न हैं, एक तो मेरा है और तीन अन्य लोगों के हैं ।" योगी ने कहा कि मेरा नियम है तीन से अधिक का जवाब नहीं दे सकता । रामू सोच में पड़ गया और उसने मन में सोचा मुझे उन सबकी समस्या हल करनी चाहिए, क्योंकि वो सब बहुत दुखी हैं ।मैं तो फिर कभी भी आ सकता हूँ । उसने एक एक कर सबके प्रश्न पूछे और बापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा । लौटते समय साधू के पास रूका और योगी ने जो उससे कहा था बताया कि उसने एक बहुमूल्य हीरा गांठ में छिपा रखा है, जबतक उसका परित्याग नहीं करता सिद्धि नहीं मिलने वाली । साधू को बहुत अचरज हुआ कि योगी महाराज ने उसके छिपा कर रखे हीरे की बात जान ली, मुझे अवश्य ही इसका त्याग तुरंत करना चाहिए । उसने रामू को हीरा देकर कहा कि तुम्हारा बहुत उपकार होगा तुम इसे स्वीकार कर मुझे मुक्ति दिलादो । रामू हीरा लेकर आगे चला तो किसान  खेत पर मिला उसने पूछा कि योगी ने क्या बताया । रामू ने कहा कि उत्तर दिशा में बाड़े के पास खेजड़ी के पेड़ के नीचे एक पात्र है इसे बाहर निकालने पर तुम्हारे खेत में अच्छी पैदावार होगी । किसान ने वैसे ही किया । पात्र में बहुत सारा स्वर्ण निकला । किसान ने आधा धन उसे दे दिया । आगे सेठ काघर पड़ा उसने पूछा योगी ने मैरी बिटिया के बारे में क्या कहा । रामू बोला कि, "योगी ने कहा कि तुम्हारी बेटी जैसे ही अपने होने वाले पति को देखेगी तभी बोलने लगेगी!  इतने में ही सेठ की बेटी सामने से  आते हुए दीख गयी, और देखते ही बोलने लग गयी । अब तो सेठ बहुत खुश हुआ कि तुम तो अब मेरे दामाद हो । में आज ही तुम दोनों की शादी करूंगा । 
घर पहुँच कर माँ ने पूछा कि बेटा  योगी जी ने क्या कहा । रामू ने  सारी बात बताई कि कैसे बह अपना प्रश्न तो पूछ ही नहीं सका । परोपकार की भावना से पहले उसने दूसरों की समस्याओं के बारे में सोचा । यह सुनकर माँ को बहुत खुशी हुई । उसे गले लगाकर माँ ने कहा  परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं । रामू की गरीबी भी दूूर हो गई!

सियाराम शर्मा

मंजू श्रीवास्तव का बालगीत : तितली रानी तितली रानी





तितली रानी, तितली रानी,

कितनी प्यारी, बड़ी सुहानी।

मखमल से अति कोमल हैं,

रंग बिरंगे पंख तुम्हारे।

इस डाली से उस डाली पर,

कहां कहां उड़ती फिरती हो।

कितना प्यार है तुम्हें फूलों से,

फूलों से ही चिपकी ही रहती हो।

गर मै भी तितली बन जाऊँ,

पास तुम्हारे आ जाऊँ।

डाल डाल और पात पात,

बच्चों का मन बहलाऊँ।

संग तुम्हारे उड़ती फिरूँ,

दुनिया भर की सैर करूँ।

दूर गगन में उड़ती जाऊँ,

हाथ किसी के न आ पाऊँ।

तितली रानी, तितली रानी

कितनी प्यारी, बड़ी सुहानी।
***†*******************


                                                     मंजू श्रीवास्तव ,  हरिद्वार

महेंद्र देवांगन की रचना : जय गणेश




जय गणेश 

बुद्धि के वह देने वाला , सबका मंगल करते ।
भक जनों के संकट को, पल में दूर वह करते ।
एक दंत और लंबा उदर, सूपा जैसे हैं कान ।
जो भी मांगो सच्चे दिल से, रखता है वह ध्यान ।
चूहे की सवारी है और,  लड्डू मोदक भाता ।
लिखने में वह तेज है,  बुद्धि के वह दाता ।

                             महेन्द्र देवांगन माटी 
                             पंडरिया  (छत्तीसगढ़ )

बुधवार, 16 अगस्त 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : पहियों के अविष्कार की कहानी








नाना जी के साथ चीकू भइया पार्क से लौट रहे थे । चीकू एक नर्सरी की पोयम गुन गुना रहे थे । सूरज गोल चन्दा गोल, मम्मी जी की रोटी गोल, पापा जी का पैसा गोल फिर  कुछ सोचने लगे. कुछ रुक कर अपने भोले पन के साथ पूछा ,अच्छा नाना जी,पापा की कार के पहिये भी तो गोल होते हैं । नाना जी बोले हाँ बेटाजी वे भी गोल होते हैंं लेकिन ये मशीन का हिस्सा होते हैं तुम्हारे पापा का पैसा, तुम्हारी मम्मीजी की रोटी सुरज चन्द्रमा भी गोल होते हैं परन्तु यह मशीन नहीं होते हैं. पहिये एक तरह की मशीन होते है. एक धुरी पर लगे पहिये घूमते हैं तभी तो तुम्हारी कार चलती है.
अच्छा नाना जी, मैने तो सुना है कि पेट्रोल से गाडी चलती है चीकू की तीव्र बुद्धि के सामने एक बार नाना जी सकपका गये । वे बोले तुमने ठीक ही सुना है पेट्रोल से कार का इन्जन चलता है फिर यह इंजन ताकत लगा कर पहियों को तेजी से घुमाता है तो पहिया गोल घूमता हुआ गाड़ी को आगे बढाता है । अच्छा बताओ ऐसे कौन कौन से पहिये तुम जानते हो जो धुरी पर चलते हैं. चीकू बोला कार ,साइकिल,मोटरसाइकिल के पहिये. नाना जी बोले पौटर्स व्हील, ड्राइवर की स्टेरिग और सभी मशीने आदि बहुत सी चीजो मे पहिये या पहिये जैसी चीजों का उपयोग होता है ।
जानते हो  पहिये का इस्तमाल पहली बार लगभग ५५०० वर्ष पहले किया गया था ।    चीकू ने पूछा, वह कैसे ? तब नानाजी बोले, कहा जाता है कि सबसे पहले कुम्हार का चाक् बना जिस पर आदि काल मे बर्तनों को बनाया होगा । फिर बड़े- बड़े लकड़ी के लट्ठो को लकड़ी के पहिया नुमा दो चीजो को बीच मे एक डन्डे से जोड कर लुढ़काया जाता रहा होगा । यही आगे चलकर, जाने अनजाने ट्रान्सपोर्ट और आज की मशीनो के बनाने की पहल रही होगी
नानाजी के पहियों के अविष्कार के रहस्योदघाटन सुनकर, चीकू अवाक रह गया था।।

                                         शरद कुमार श्रीवास्तव

अंजू निगम की प्रस्तुति : नागालैंड की लोककथा




बहुत समय पहले की बात हैं|झींगा  और केकड़ आपस में बहुत अच्छे मित्र थे|वे आपस में खूब हंसी मजाक करते|और एक दूसरे का भी मजाक बनाते पर फिर भी आपस में वे बहुत अच्छे मित्र थे|वे एक दूसरे के बिना कुछ न करते|
  एक बार ठंड में नदी मे पानी बहुत कम था|केकड़े को ठंड लग रही थी|इसलिए उसने नदी किनारे धूप सेंकने की सोची|अचानक झींगा आया और उछल-उछल कर केकड़े को चिढाने लगा|
"ओ केकड़े, तुम क्या मेरी तरह उछल सकते हो?मैं कितना चुस्त और तेज हूँ|'
केकड़े ने उत्तर दिया,"हाँ मैं जानता हूँ कि तुम उछल सकते हो|पर क्या तुम मेरी तरह शांत पड़े रह सकते हो?क्या तुम मेरी तरह पानी के बाहर आ धूप का आंनद ले सकते हो?आओ, मेरे दोस्त मेरी तरह तुम भी आंनद लो|"
  इस तरस झींगा केकड़े को अक्सर परेशान करने लगा|"देखो मेरी तरफ देखो|क्या तुम वो सब कर सकते हो जो मैं करता हूँ?"झींगा उसके आराम में खलल पहुँचाता|
    केकड़ा अक्सर एक गीत गाता,"मेरी ओर देखो मेरे दोस्त|हम लोगों के लिये बने हैं|जो आकृ हमें पड़ लेगे और खा जायेंगे|इसलिये इस तरह की बहस की जरूरत नही|जब तक जीवित हो खुश हो|"
   केकडा कह ही रहा था कि कुछ गांव वाले आये|जो बांस की टोकरियाँ पकडे थे|नदी के कम पानी के कारण उन्होंने सारे केकड़े और झींगा पकड़ लिये|ओर गाँव लौट उनका भोजन किया|
    इस प्रकार केकड़े की बात सच साबित  हुई|कि जब तक जीवन हैं सुखपूर्वकजीयो



                                                      अंजू निगम

महेंद्र देवांगन माटी का बालगीत ; आजादी का पर्व


आजादी का पर्व मनाने, गाँव गली तक जायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।
नहीं भूलेंगे उन वीरों को , देश को जो आजाद किया ।
भारत मां की रक्षा खातिर, जान अपनी कुर्बान किया ।
आज उसी की याद में हम सब , नये तराने गायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।
चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह,  भारत के ये शेर हुए ।
इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए ।
बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।
मिली आजादी कुर्बानी से,  अब तो  नही जाने देंगे ।
चाहे कुछ हो जाये फिर भी, आंच नहीं आने देंगे ।
संभल जाओ ओ चाटुकार तुम, अब तो शोर मचायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, सबको आगे आना होगा ।
स्कूल हो या मदरसा सब पर , तिरंगा फहराना होगा ।
देशभक्ति का जज्बा है ये , मिलकर साथ मनायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा,  शान से हम लहरायेंगे ।

महेन्द्र देवांगन माटी 
 पंडरिया  (छत्तीसगढ़ )

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : तिरंगा झंडा






खूब सलोना न्यारा  है अपने  देश का झंडा
बहुत सुन्दर प्यारा सा अपने  देश का झंडा

रंग  केसरिया बतलाए हममें कितना  बल है
श्वेत  रंग  दर्शाता भारत शांत सत्य सरल है

बीच मे चक्र है बना हुआ चौबीस तीली वाला
गतिशील, धर्म और जीवन को है दर्शाने वाला

इसमे हरे रंग की पट्टी सबसे नीचे लगी भाई
मेरे देश की मिट्टी की ये  सोंधी महक है लाई

पावन  है ये धरती अपनी सुन्दर  नील गगन है
तिरंगा जब लहराता है तब हर्षित होता  मन है

खूब सलोना न्यारा   है अपने देश का झंडा
बहुत  सुन्दर प्यारा सा अपने देश का झंडा

🎋 


                                 शरद कुमार  श्रीवास्तव

मंजू श्रीवास्तव की रचना मेरे देश का झंडा





मेरे देश का तिरंगा झंडा,
हमें जान से भी ज्यादा प्यारा है।
देखो इसकी शान निराली,
सारे जग से न्यारा है।

तीन रंगों का मेल है इसमें,
केसरिया, बलिदान का  प्रतीक,
श्वेत रंग सुख शान्ति का प्रतीक।
बीच मे अशोक चक्र विराजत
जो गतिशीलता को दर्शाता,
हरा रंग खुशहाली का है,
जो श्रद्धा, शौर्य को दर्शाता ।
इसी  तिरंगे की खातिर,
देश भक्त वीरों ने,
निज प्राणों का बलिदान किया।
आज़ादी की कीमत पहचानी,
सब कुछ अपना त्याग दिया।

देश की आन-बान है तिरंगा,
भारत मां की शान है तिरंगा
आओ हम सब लें ये संकल्प

तिरंगे की शान न जाने पाये,
चाहे जान भले ही जाये
आज़ादी की रक्षा हेतु,
निज प्राण भी न्योछावर कर जायें।

         जय हिन्द। जय भारत ।

                              मंजू श्रीवास्तव

रविवार, 6 अगस्त 2017

मंजू श्रीवास्तव द्वारा प्रेषित रचना : झगड़ा करना बुरी बात है


यह शिक्षाप्रद मनोरंजक रचना जो बहुत समय पहले काफी लोकप्रिय हुईं थी पर आधारित  रचना  श्रीमती मंजू श्रीवास्तव नै प्रेषित किया है ।  अज्ञात कवि की रचना  यधावत प्रस्तुत है



लालू कालू थे दो भाई,
एक रसगुल्ले पे हुई लड़ाई।
लालू बोला मैं खाऊँगा,
कालू बोला मैं खाऊँगा ।
झगड़ा सुनकर मम्मी आई,
दोनो के एक एक चपत लगाई।
लालू लगा जोर से रोने,
कालू ने भी तान मे तान मिलाई।
दोनों को किया कमरे मे बन्द,
लालू, कालू का रोना भी बन्द।
मम्मी ने जब दरवाजा खोला,
कालू कान पकड़ के बोला,
नहीं लड़ूँगा,  अब नहीं लड़ूँगा।
लालू ने भी हाँ मे हाँ मिलाई।
मम्मी ने दोनों को प्यार किया,
और रसगुल्ला आधा आधा बांट दिया।


                         प्रेषिका़
                        मंजू श्रीवास्तव ५०२ प्रांगण
                        अपार्टमेंट सेक्टर ६२ नोएडा यू़पी

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : कागज की नाव







कागज की नाव चली
टिंकूजी के गांव चली
सड़क मोहल्ले व गली
बहते हुए पानी मे चली

वो छुपती छुपाते चली
वो बचती बचाते चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली

बरसाती पानी में चली
झूमती झामती चली
टिंकूजी की नाव चली
कागज की नाव चली

पिंटू की एक न चली
मन्टू की एक न चली
टिंकू ही की नाव चली
कागज की नाव चली


                                   शरद कुमार  श्रीवास्तव

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : पंचतंत्र की एक कहानी पर आधारित : चार मित्र




चार मित्र गुरूकुल से  पाकर शिक्षा  घर प्रस्थान किये
राह में वे अपनी विद्या का बढचढ़ खूब बखान किये
उन लोगों को तभी राह मे हड्डियों का एक ढेर मिला
कौन तेज है अपनी विद्या मे समझाने का मिला सिला

एक बोला हड्डियों से मै शेर का कंकाल बना सकता हूँ
दूसरा बोला मै भी उस पर माँस खाल चढ़ा सकता हूँ
तीसरा दोस्त उस शेर को जीवित करना बता रहा था
चौथे मित्र का मन काम का परिणाम बोध करा रहा था

चौथा मित्र संकोच सहित बोला था वो सबसे जाकर
करो स्वयं सुरक्षा भाई कहता हूँ सबसे शीश नवाकर
कंकाल बना लो, चाहे तो हड्डी पे भी माँसचर्म मढ़ालो
जान डालने से पहले स्वयं खुद अपने को तो बचालो

मित्रो ने उपहास किया बोले हम निडर पर तू कायर है
बना रहे हैं शेर पर तुझको जाने किससे लगता डर है
हमारा बनाया शेर देखना हमेशा हमारा कहना मानेगा
हम कहेगे बात कोई भी तो वह हर्गिज कभी न टालेगा

वे बोले तू कायर है तुझको विद्या कुछ नही आती है
हमारे अचम्भा दिखाने की बात इसीसे तुझे न सुहाती
तुम्हे लगता है अगर डर तो भाई पेड़ पर चढ़ जाओ
हम सबके प्रदर्शन के बीच दोस्त तुम टाँग न अड़ाओ

चौथा मित्र झट जा बैठा पेड़ पर अपनी जान बचाकर
पहले दो ने शेर बनाया ,उसको फूलो से खूब सजाकर
तीसरे ने जैसे ही जान डालने हित मन्त्रों की फुँकाई
शेर तुरंत जीवित होकर तीनो को वह खा गया भाई



                                                    शरद कुमार श्रीवास्तव

सियाराम शर्मा का राखी गीत




राखी
राखी
रेशम का धागा
हरे लाल पीले
मोती से पिरोए
नेह की डोर में
समाये
बहना के
असीम,
प्यार की उमंगों


उमड़ते हुए
अनुराग
स्नेह की
पावन
अटूट सौगात
भाई की
कलाई पर
बंधी यह
डोर!
आशाओं
आशीर्वादों की
कामनाओं से
पूरित
भाई के मस्तक पर
शोभित तिलक चंदन की
चमकती दमक
खुशियों की
अपार
मिठास
रिश्तों में
अतुल रस
घोलता
स्नेह उत्सव
रखे अमर
भाई -बहन
प्यार के
बंधन को  अटूट
यह रक्षाबंधन


                                  सियाराम शर्मा

अंजू निगम की बालकथा : ये दोस्ती



दीपा क्लास के दरवाजे पर इस तरह खडी हो गयी कि अवनि क्लास के अंदर नहीं आ पाये| जानबूझकर दीपा ऐसे काम करती जिससे अवनि को हैरान होना पड़े| अवनि जानती थी कि दीपा से कुछ भी कहना बेकार हैं |  इसलिये वो वापस पलट गयी|  पीछे जोरदार ठहाका लगा|  अवनि की आँखों मे नमी उतर आयी|
    एक समय था जब ये दोनों पक्की सहेलियाँ थी|  हर बात का साथ था दोनों का . पर आज केवल प्रतिद्वंद्वी|
उनका दोस्ताना देख कितनी कोशिश चलती थी कि इस दोस्ती मे दरार पड़ जाये| मालुम तो सबको ही था कि दीपा कान की कितनी कच्ची  हैं|अवनि  ही उसे संभाल रखती|
"पहले कही बात को परखो फिर विश्वास करो"कितनी बार तो अवनी ये बात दीपा के कानों मे डाल चुकी थी|उसे कहाँ पता था कि उसकी सीख ऐसे हवा मे उड़ जायेगी|
   दोनो पढ़ाई के साथ टेबल टेनिस मे भी माहिर थी| इस बार खिलाड़ियों का चयन  होना था|स्टेट लेवल पर|शुरुआती प्रतियोगिता मे ही दोनों आमने सामने थी|ये केवल इत्तेफाक था कि अवनि का लगाया जोरदार शॉट दीपा की उगलियों को चोटिल कर गया|इसी आधार पर उसे प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा|अवनि का चयन हो गया|

      वे लड़कियाँ ,जो जाने कबसे इसी मौके की तलाश मे थी,उनकी दोस्ती तोड़ने का सुनहरा मौका हाथ लगा|फिर जाने कितने अफसाने बने और अवनि के प्रति दीपा का मन खट्टा कर गये|अवनि की कोई सफाई काम न आई|दीपा की ये बेरूखी अवनि को तोड़ गयी|
   फिर वक्त ने कुछ ऐसी करवट ली|कि वार्षिक परीक्षा के लगभग दो महीने पहले दीपा बेतरह बीमार पड़ी|उसे मीयादी बुखार ने आ घेरा|उसकी पढाई ठप्प हो गई|वे चापलूस लड़कियाँ  हवा के झोंके की मानिंद गायब  होने लगी|
    अवनि ही रोज के नोटस् बना दीपा की मम्मी को दे आती| दीपा उसका लिखा पहचान न ले इसके लिए उसे अपने लिखे का तरीका बदलना पड़ा|
आंटी परख रही थी अवनि की दोस्ती|एक दिन आंटी ने ही बताया कि नोटस् मिलने के बाद भी दीपा उदास एवं  हताश हैं|तब अवनि ने दीपा से बात करने की सोची|पहल उसी को करनी पड़गी|वो नादान केवल मुँह फुलाना जानती हैं|

     अवनि के सामने आते ही मानो दीपा का इतने दिनो का बांधा गुस्सा निकल पड़ा|दीपा और खरी सुनाती अवनि को कि माँ आ गई|
"बस कर अवनि!!अपनी दोस्ती साबित करने के लिये और कितने इम्तिहान दोगी?ये नादान नहीं समझ पायेगी तुम्हारी दोस्ती को|"
 फिर माँ ने दीपा के बीमार होने से लेकर अब तक का सारा किस्सा बयान किया|
    दीपा हैरान थी,शर्मिंदा भी|उसकी आँखो मे आँसू तिर आये|अवनि ने उसे गले लगा लिया|इतने दिनो का बिछोह दोनों की आँखों से आँसू बन बह निकले|आंटी की आँखे भी नम थी|
   एक महीने के बाद दोनों एक साथ स्कूल पहुंची|वे चापलूस लड़कियां आँख चुराते इधर-उधर हो गयी|
       उनकी दोस्ती अग्नि परीक्षा से गुजर और खरी हो गयी थी|

                              अंजू निगम
                              इन्दौर