ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 16 अगस्त 2023

पहियों के अविष्कार की कहानी रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 



नाना जी के साथ गुड्डू पार्क से लौट रहा था । वह एक नर्सरी की पोयम गुनगुना रहा था । 

सूरज गोल चन्दा गोल, मम्मी जी की रोटी गोल, पापा जी का पैसा गोल 

फिर वह कुछ सोचने लगा और  अपने भोले पन के साथ उसने नानाजी से पूछा "अच्छा नाना जी,पापा की कार के पहिये भी तो गोल होते हैं ?"   नाना जी बोले हाँ बेटा वे भी गोल होते हैंं लेकिन ये मशीन का हिस्सा होते हैं।  तुम्हारे पापा का पैसा, तुम्हारी मम्मीजी की रोटी सुरज चन्द्रमा भी गोल होते हैं, परन्तु यह मशीन नहीं होते हैं।  पहिये एक तरह की मशीन होती हैं।  एक धुरी पर लगे पहिये घूमते हैं तभी तो तुम्हारी कार चलती है.

अच्छा नाना जी, मैने तो सुना है कि पेट्रोल से गाडी चलती है ।    गुड्डू की तीव्र बुद्धि के सामने एक बार नाना जी सकपका गये । वे बोले तुमने ठीक ही सुना है पेट्रोल से कार का इन्जन चलता है फिर यह इंजन ताकत लगा कर पहियों को तेजी से घुमाता है तो पहिया गोल घूमता हुआ गाड़ी को आगे बढाता है । अच्छा बताओ ऐसे कौन कौन से पहिये तुम जानते हो जो धुरी पर चलते हैं  गुड्डू बोला कार ,साइकिल,मोटरसाइकिल के पहिये. नाना जी बोले पौटर्स व्हील, ड्राइवर की स्टेरिग और सभी मशीने आदि बहुत सी चीजो मे पहिये या पहिये जैसी चीजों का उपयोग होता है। 

 गुड्डू जानते हो कि इस प्रकार की वस्तुओ  का इस्तमाल पहली बार लगभग ५५०० वर्ष पहले किया गया था ।   गुड्डू  ने पूछा, वह कैसे ? तब नानाजी बोले, कहा जाता है कि सबसे पहले कुम्हार का चाक् बना जिस पर आदि काल मे बर्तनों को बनाया होगा । फिर बड़े- बड़े लकड़ी के लट्ठो को लकड़ी के पहिया नुमा दो चीजो को बीच मे एक डन्डे से जोड कर लुढ़काया जाता रहा होगा । यही आगे चलकर, जाने अनजाने ट्रान्सपोर्ट और आज की मशीनो के बनाने की पहल रही होगी

नानाजी के पहियों के अविष्कार  की कहानी सुनकर, गुड्डू अवाक रह गया ।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

नि:शब्द : प्रिया देवांगन "प्रियू" की लघुकथा




          "बिटिया रानी....!  मैं सोच रहा हूँ कि तुम पढ़ाई करती रहो और साहित्य सेवा भी; जिससे हमारी साहित्यसेवा बढ़ती रहे। साहित्य सृजन के जरिये हमारी समाजसेवा भी होगी। मुझे तो अभी और आगे बहुत कुछ करना है। तुम क्या सोचती हो इस बारे में ? क्या तुम सहमत हो मेरे इस बात से ?" एक साहित्यकार पिता इंद्रजीत ने रूही के पास अपनी स्नेहपूर्वक बात रखी। 
          थोड़ी देर सोचने के बाद रूही बोली- हाँ... हाँ...! पापा क्यों नहीं... ? मुझे आपके साथ अधिक से अधिक समय बिताने को भी मिलेगा; और एक साथ कार्य करने में अच्छा भी लगेगा। रोज अखबारों के पन्नों में बड़े-बड़े अक्षरों में आपके नाम के साथ मेरा भी नाम आएगा।".रूही की बातें सुन इंद्रजीत जी हँस पड़े। 
          रूही मुँह बनाते हुए बोली- "पापा ! इसमें हँसने वाली क्या बात है ? हम ऐसा कार्य करेंगे तो हम दोनों का एक साथ नाम नहीं आएगा क्या ?" 
          इंद्रजीत जी बोले- "बेटा, एक बात जिंदगी में हमेशा ध्यान रखना कि लोगों को नाम के पीछे नहीं भागना चाहिए। कुछ ऐसा काम करो कि स्वयं तुम्हारा नाम हो जाय। हमें लोगों को बताने की जरूरत नहीं पड़ना चाहिए कि हम ऐसा काम कर रहे हैं या बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। जताने की जरूरत नहीं है।" 
          रूही अपना एक हाथ आगे करते हुए बोली- "बस .. बस... पापा जी हो गया।" इंद्रजीत जी को रूही बिटिया का जरा सा रूठना समझ आ गया। बोले- "आज तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आएगी। जब तुम जिंदगी का मतलब समझोगी, तब तुम्हें सब एहसास होगा।" 
रूही बोली- "पापा जी, ये सब बातें मेरी समझ से परे हैं। वैसे भी आप तो मेरे साथ हो ही हमेशा, तो मुझे किस बात की फिक्र रहेगी ; भला बतताइए।" फिर इंद्रजीत जी बोले- " मेरी रानी....! हमेशा तुम मेरे भरोसे मत रहा करो न भाई। कभी खुद भी कुछ कर लिया करो।" 
         "छोड़ो ना पापा जी, आप भी बस इन्हीं बातों को लेकर बैठ गए ? आप भला कहाँ जायेंगे; बताइए ? चलिए, अब रात बहुत हो चुकी है। सोते हैं। कल सुबह क्या करना है। इसकी योजना तैयार करेंगे। गुड नाईट पापा जी।" कहते हुए रूही अपने बेडरूम में चली गयी।
          अगली सुबह रूही की आँखें देर से खुली। उठी। उसे इंद्रजीत जी नहीं दिखाई दिये। सोचने लगी कि इतनी देर हो गयी आज पापा मुझे आवाज क्यों नहीं दे रहें है। थोड़ी भी देर होती तो, वे रूही उठो न कितना सोओगी री लड़की। रात भर नहीं सोयी हो क्या। जल्दी उठ कर व्यायाम करना चाहिए ना। कुछ भी नहीं।" रूही आज स्वयं उठ गयी थी। इंद्रजीत जी को देख कर घबरा गयी। बोली- "क्या हुआ पापा जी, आप ठीक तो है ना ? क्यों बार–बार पसीना आ रहा है आपको ? हाँफ क्यों रहे हैं आप ? मम्मी... मम्मी...! पापा जी ठीक तो है ना ?"
         इंद्रजीत जी बोले- "थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही है बेटा।" तभी मम्मी बोली- "चलिए डॉक्टर के पास चलते हैं।"
         इंद्रजीत जी को डॉक्टर के पास ले जाने वाले ही थे कि पता नहीं रूही की आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे। तभी इंद्रजीत जी बोले- 'मैं जल्दी आऊँगा बेटा। डोंट वरी माय डियर।" इंद्रजीत जी ने कहा।   
          "नहीं पापा जी। मैं भी आपके साथ जाऊँगी।" रूही की जिद्द में अनुरोध था। अंततः रूही का इंद्रजीत जी के साथ जाना नहीं हो पाया। 
          घर वालों को इंद्रजीत जी का इंतजार करते काफी समय हो गया। थोड़ी देर बाद खबर मिली कि वे अब कभी वापस नहीं आयेंगे।
          साहित्यकार पिता इंद्रजीत जी की नयन बिछायी पुत्री रूही अब तक निः शब्द हो चुकी थी।
                  



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़




मंगलवार, 8 अगस्त 2023



 बच्चों की ट्रेन है आई

सीटी बजाती आई

एक पीछे एक बच्चे ने

जुड़ मिल है इसे बनाई 


आगे भोला इंजन  है

पावर वाला इंजन  है

पीछे सब डिब्बे बच्चे हैं

चीकू आशी पीहू संग है


इनिका गार्ड  बनी है 

ड्यूटी पर बस तनी है

गाड़ी बोली छुक छुक

मम्मी बोली रुक रुक


शरद कुमार श्रीवास्तव 


रविवार, 6 अगस्त 2023

बाल रचना /बादल से विनती ! वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी'

 




काले बादल आए आकर चले गए

कबतक लौटेंगेबतलाकर नहींगए।

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ताल, तलैया, नाले  सारे  सूखे  हैं 

दादुर, मोर,पपीहा भी तो भूखे  हैं

ठहरी-ठहरी हैं कागज़ की नौकएं

बादल भैया क्यों बच्चों से रूठें हैं।


इंतज़ार में  सारी  छुट्टी  बीत  गईं

लगताहै इसबार गर्मियां जीत गईं

जीव-जंतु सब मारे-मारे फिरते हैं

पानीकी बोतल भी सारी रीत गईं।


छतरीभी कबसे खूंटी परलटकीहै

बरसातीभी अपना रस्ताभटकी है

लौंग बूट भी पड़े हुए हैं  टांडी पर

धानलगाने मेंभी दुविधाअटकी है।


हम बच्चोंकीउतरी सूरत पढ़लेना

पानी बरसाने के बाद अकड़लेना

दयाकरोबादल अज्ञानी बच्चोंपर

घोरगर्जना करके खूब बरसलेना।


बारिश की बूदों में हमें नहाना है

नाच-नाच करकेआनंदउठाना है

बादलतुमसेइतनी विनतीकरतेहैं

वर्षाकरने तुमको वापसआना है।

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       वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी'

           

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कागज की नाव शरद कुमार श्रीवास्तव




कागज की नाव

कागज की नाव चली

टिंकूजी के गांव चली

सड़क मोहल्ले  गली

बहकर पानी मे चली


वो छुपती छुपाते चली

वो बचती बचाते चली

टिंकूजी की नाव चली

कागज की नाव चली


बरसाती पानी में चली

झूमती झामती चली

टिंकूजी की नाव चली

कागज की नाव चली


पिंटू की एक न चली

मन्टू की एक न चली

टिंकू ही की नाव चली

कागज की नाव चली




शरद कुमार  श्रीवास्तव

राही बाल प्रेरक कविता रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 






आगे बढ़ते जाना
राह दिखे कांँटे
मत वापस तुम आना।।

हंँस के जीना होगा
जन्म लिए गर तो
विष भी पीना होगा।।

आंँखों में हो सपने
साथ नहीं देते
छल करते हैं अपने।।

कल की छोड़ो बातें
त्याग चलो चिंता
मधुरम होंगी रातें।।

मिलना तुमको माटी 
कर्म करो ऐसा
याद रहें परिपाटी।।

     

      

//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़