ब्लॉग आर्काइव
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2017
(206)
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जुलाई
(18)
- बेबी वीनम नामा की अंग्रेजी रचना। : My Mother
- चुटकुले : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव
- महेंद्र देवांगन की छत्तीसगढ़ी भाषा में शिव भजन
- शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : कौवे और मुर्ग...
- अंकिता कुलश्रेष्ठ की कविता : बचपन प्यारा
- सुशील शर्मा की रचित क्रांतिकारी चन्द्रचन्द्रशे...
- मंजू श्रीवास्तव का बालगीत : वृक्षारोपण
- शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : मेरी नानी अच्...
- डॉ प्रदीप शुक्ल का बालगीत : आदम घर
- अंजू श्रीवास्तव निगम की बालकथा : पेड़ जीवन रक्षक
- शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : वफादार टामी
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचना सबसे मिलती सीख
- अंजू गुप्ता की इस पत्रिका में पूर्व प्रकाशित ...
- प्रिन्सेज डॉल से एक परी कथा
- शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : टिंकपिका की सैर
- महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना : पेड़ लगाएं
- महेन्द्र देवांगन माटी की बाल कविता : बरसात
- शादाब आलम का बालगीत : मीनू के जूते
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जुलाई
(18)
बुधवार, 26 जुलाई 2017
चुटकुले : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव
1
. रामू (मैथ के सर से)- सर इंगलिश के सर अंग्रजी मे बात करते हैं आप क्या मैैथ मे बात नही कर सकते हैं?
मैथ के सर- रामू ज्यादा तीन पाँच नहीं करो, फौरन नौ दो ग्यारह हो जाओ वरना कान के नीचे पाँच रसीद करूंगा कि छठी का दूध यादआ जायगा
2
कमरे मे मच्छर काट रहे थे मम्मी ने मच्छरदानी लगा कर लाइट बुझा दिया. एक जुगनू किसी तरह मच्छरदानी मे घुस आया तो आशी बोली मम्मी मच्छर यहाँ हमे टार्च लेकर ढूढने आया है़
3
बच्चो को पढाने के लिए रखे जाने वाले टीचरों का इन्टरव्यू चल रहा था एक प्रत्याशी से पूछा गया बच्चों के साथ का आपको क्या अनुभव है ?
प्रत्याशी बोला, जी अच्छा अनुभव है ,कल तक मै भी बच्चा था.
4
शौर्य — सतीश तू हाथ में बर्फ लिए इतनी देर से क्या देख रहा है
सतीश — भाई मैं देख रहन हूँ यह लीक कहाँ से हो रही है।
5
अजय : यार जय कार धीरे चलाओ मुझे डर लग रहा है
जय : डरने की कोई बात नहीं है तू भी आँख बंद कर ले जैसे मैं बंद किये हूँ
6
अध्यापक : रमेश पानीपत , प्लासी या और किसी लड़ाई के बारे में तुम्हे क्या मालूम है
रमेश -पानीपत , प्लासी के बारे में मैं जानता नहीं मैं वहाँ नहीं था मम्मी पापा की लड़ाई के बारे में बाहर बताने मना किया है
संकलन
शरद कुमार श्रीवास्तव
महेंद्र देवांगन की छत्तीसगढ़ी भाषा में शिव भजन
बम बम भोले
***************
हर हर बम बम भोलेनाथ के , जयकारा लगावत हे ।
कांवर धर के कांवरिया मन , जल चढाय बर जावत हे ।
सावन महिना भोलेनाथ के, सब झन दरसन पावत हे ।
धुरिहा धुरिहा के सिव भक्त मन , दरस करे बर आवत हे ।
कोनों रेंगत कोनों गावत , कोनों घिसलत जावत हे ।
नइ रुके वो कोनों जगा अब , भले छाला पर जावत हे ।
आनी बानी के फल फूल अऊ , नरियर भेला चढावत हे ।
दूध दही अऊ चंदन रोली , जल अभिसेक करावत हे ।
भोलेनाथ के महिमा भारी , सबझन माथ नवावत हे ।
औघड़ दानी सिव भोला के, सब कोई आसीस पावत हे ।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : कौवे और मुर्गी की साझा खेती
बच्चों आप जानते हो कि साझा काम किेंसे कहते हैं ? जब दो या कई लोग मिल कर एक काम को करें तो साझा काम कहते है। साझा काम मे पार्टनर लोगो को अपना अपना साझा लाभ / हानि भी मिलता है। साझा काम करने में सफलता तभी मिलती है जब सभी हिस्सेदारों की मेहनत बराबर की हो और नियत साफ हो । इसके लिए बच्चों हम आपको कौवे और मुर्गी की साझा खेती की कहानी सुनाते हैं
एक बार एक पेड़ पर एक कौवा रहता था . उस पेड़ के नीचे एक मुर्गी भी अपने बच्चों के साथरहती थी . मुर्गी बहुत मेहनती थी और कौवा बहुत चालाक था. कौवे ने एक बार मुर्गी से कहा ,बहन अगर हम साझा खेती करें तो कितना अच्छा हो. मुर्गी ने कहा हाँ , मिलजुल कर काम करने मे क्या बुराई है मै तैयार हूँ. कौवा बोला मै थोड़ा व्यस्त रहता हूँ जब कोई काम हो तब आप मुझे बुला लीजियेगा.
खेती करने के लिये जमीन की जुताई करने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की जुताई करवाओ आकर. कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं। मुर्गी ने खेतों की जुताई कर ली।
जब जमीन से घास पूस दूर करने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की खर पतवार हटवाओ , कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने खेतों से खर पतवार भी दूर कर दी.
अब खेत मे बीज डालने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन मे बीज डाले जायें. कौवा फिर बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं। मुर्गी ने खेतों मे बीज भी बो दिये.
पौधे निकल आये तब सिचाई करने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की सिंचाई करवाओ आकर. कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने खेतों की सिंचाई कर ली.
खेतो मे लगे गेहूँ की बालियाँ काटने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ कटवाओ . तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने गेहूँ की कटाई भी कर ली
गेहूँ की बालियाँ से गेहूँ निकालने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ निकलवाओ . तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने गेहूँ की बालियों से गेहूँ भी निकाल लिया.
गेहूँ पीस कर आटा बनाने का समय आया . मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ पिसवाओ . तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने गेहूँ पीस कर आटा भी बना लिया.
मुर्गी आटे से पूड़ी बनाने लगी तब फिर उसने आवाज लगाई आओ पूड़ी बनवाओ . तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पेंर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं । मुर्गी ने आटा सान कर पूड़ी भी बना ली
जैसे ही पहली पूडी कड़ाई से निकली कौवा नीचे आगया. बोला लाओ पूड़ी लाओ बहुत भूख लगी है. मुर्गी नपे एक डंन्डाफेक कर कौवे को मारा कि काम कुछ नहीं किया पूडी बटाने आ गया. तुझे कुछ नहीं मिलेगा पूड़ी मैं खाऊंगी और मेरे बच्चे खाएगे । कौवा रोता हुआ वहाँ से भाग गया.
अंकिता कुलश्रेष्ठ की कविता : बचपन प्यारा
""एक बार जो फिर मिल जाए
मुझको मेरा बचपन प्यारा
अपनी मुठ्ठी में भर लूँ में
नील गगन और चंदा तारा
रंग बिरंगी तितली फिर से
पकडूं में बगिया में जाकर
फूलों से दामन भर लूं और
रंग लूं अपना जीवन सारा
मुझको मेरा बचपन प्यारा
खट्ठी मीठी गोली चूरन
और ढेरों प्यारे गुब्बारे
माँ की गोदी में चढ़ जाऊं
बनकर सबका राजदुलारा
मुझको मेरा बचपन प्यारा
कितना सुख होता बचपन में
कौतूहल और खेल खिलौने
न चिंता न कोई डर था
पर अब है विपरीत नज़ारा
मुझको मेरा बचपन प्यारा
अंकिता कुलश्रेष्ठ
सुशील शर्मा की रचित क्रांतिकारी चन्द्रचन्द्रशेखर आजाद को श्रद्धांजलि
तीन दिन पूर्व 23 जुलाई को महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की जन्मतिथि थी इस अवसर पर विशेष रूप से महान क्रान्तिकारी को "नाना की पिटारी" की भावभीनी श्रद्धांजलि
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
मौत से आँखें मिला कर वह बात करता था।
अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।
असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था।
भारत की स्वतंत्रता का वो चितेरा था।
बापू से था प्रभावित पर रास्ता अलग था।
खौलता था खून अहिंसा से वो विलग था।
बचपन के पंद्रह कोड़े जो उसको पड़े थे।
आज उसके खून में वो शौर्य बन खड़े थे।
आज़ाद के तन पर कोड़े तड़ातड़ पड़ रहे थे।
जय भारती का उद्घोष चंदशेखर कर रहे थे।
हर एक घाव कोड़े का देता माँ भारती की दुहाई।
रक्तरंजित तन पर बलिदान की मेहँदी रचाई।
अहिंसा का पाठ उसको कभी न भाया।
खून के ही पथ पर उसने सुकून पाया।
उसकी शिराओं में दमकती थी जोशो जवानी।
युद्ध के भीषण कहर से लिखी थी उसने कहानी।
उसकी फितरत में नहीं थी प्रार्थनाएं।
उसके शब्दकोशों में नहीं थीं याचनाएं।
नहीं मंजूर था उसको गिड़गिड़ाना।
और शत्रु के पैर के नीचे तड़फड़ाना।
मन्त्र बलिदान का उसने चुना था।
गर्व से मस्तक उसका तना था।
क्रांति की ललकार को उसने आवाज़ दी थी।
स्वतंत्रता की आग को परवाज़ दी थी।
माँ भारती की लाज को वो पहरेदार था ।
भारत की स्वतंत्रता का वो पैरोकार था।
अल्फर्ड पार्क में लगी थी आज़ाद की मीटिंग।
किसी मुखबिर ने कर दी देश से चीटिंग।
नॉट बाबर ने घेरा और पूछा कौन हो तुम।
गोली से दिया जबाब तुम्हारे बाप हैं हम।
सभी साथियों को भगा कर रह गया अकेला।
उस तरफ लगा था बन्दूक लिए शत्रुओं का मेला।
सिर्फ एक गोली बची थी भाग किसने था मेटा ।
आखरी दम तक लड़ा वो माँ भारती का था बेटा।
रखी कनपटी पर पिस्तौल और दाग दी गोली।
माँ भारती के लाल ने खेल ली खुद खून की होली।
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
सुशील शर्मा
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
मौत से आँखें मिला कर वह बात करता था।
अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।
असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था।
भारत की स्वतंत्रता का वो चितेरा था।
बापू से था प्रभावित पर रास्ता अलग था।
खौलता था खून अहिंसा से वो विलग था।
बचपन के पंद्रह कोड़े जो उसको पड़े थे।
आज उसके खून में वो शौर्य बन खड़े थे।
आज़ाद के तन पर कोड़े तड़ातड़ पड़ रहे थे।
जय भारती का उद्घोष चंदशेखर कर रहे थे।
हर एक घाव कोड़े का देता माँ भारती की दुहाई।
रक्तरंजित तन पर बलिदान की मेहँदी रचाई।
अहिंसा का पाठ उसको कभी न भाया।
खून के ही पथ पर उसने सुकून पाया।
उसकी शिराओं में दमकती थी जोशो जवानी।
युद्ध के भीषण कहर से लिखी थी उसने कहानी।
उसकी फितरत में नहीं थी प्रार्थनाएं।
उसके शब्दकोशों में नहीं थीं याचनाएं।
नहीं मंजूर था उसको गिड़गिड़ाना।
और शत्रु के पैर के नीचे तड़फड़ाना।
मन्त्र बलिदान का उसने चुना था।
गर्व से मस्तक उसका तना था।
क्रांति की ललकार को उसने आवाज़ दी थी।
स्वतंत्रता की आग को परवाज़ दी थी।
माँ भारती की लाज को वो पहरेदार था ।
भारत की स्वतंत्रता का वो पैरोकार था।
अल्फर्ड पार्क में लगी थी आज़ाद की मीटिंग।
किसी मुखबिर ने कर दी देश से चीटिंग।
नॉट बाबर ने घेरा और पूछा कौन हो तुम।
गोली से दिया जबाब तुम्हारे बाप हैं हम।
सभी साथियों को भगा कर रह गया अकेला।
उस तरफ लगा था बन्दूक लिए शत्रुओं का मेला।
सिर्फ एक गोली बची थी भाग किसने था मेटा ।
आखरी दम तक लड़ा वो माँ भारती का था बेटा।
रखी कनपटी पर पिस्तौल और दाग दी गोली।
माँ भारती के लाल ने खेल ली खुद खून की होली।
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
सुशील शर्मा
मंजू श्रीवास्तव का बालगीत : वृक्षारोपण
लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
तरह तरह के फूल रंगीले,
मुन्नी, चुन्नी जल्दी आओ,
चिंटू, पिंटू छैल छबीले,
बगिया की रौनक तो देखो
दुल्हन जैसी सजी हुई है
बेला, चमेली, रात की रानी,
महक उठी बगिया रानी।
आओ अब हम पेड़ लगायें,
आम, अमरूद,जामुन ,लीची
कल ये पेड़ बड़े होंगे,
मीठे फलों से लदे होंगे,
मंजू श्रीवास्तव
५०२ प्रांगण अपार्टमेंट
सेक्टर ६२ नोएडा।
रविवार, 16 जुलाई 2017
शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : मेरी नानी अच्छी नानी
मेरी नानी अच्छी नानी
प्यारी सी सुना कहानी
एक हो राजा एक रानी
परी देश की या महारानी
मेरी नानी अच्छी नानी
प्यारी सी सुना कहानी
बादल देश काला काला
या सुन्दर परियों वाला
मेरी नानी अच्छी नानी
प्यारी सी सुना कहानी
पंखों वाला घोड़ा ही हो
रेस में कभी दौड़ा भी हो
भाता नही पोकेमान देखो
बोर लगता डोरेमान देखो
मेरी नानी अच्छी नानी
प्यारी सी सुना कहानी
मम्मी को उसकी नानी
थीं सुनाती रोज कहानी
मेरी नानी अच्छी नानी
तू भी मुझे सुना कहानी
शरद कुमार श्रीवास्तव
डॉ प्रदीप शुक्ल का बालगीत : आदम घर
झाँक रही नन्ही सी चिड़िया
घर के अन्दर ऐसे चिड़ियाघर में झांकें हम
नन्ही चिड़ियों को जैसे
बड़े जानवर मगर भला
क्यों धीरे धीरे चलते
चलते क्या बस हौले हौले
यहाँ से वहाँ सरकते
छोटे से दड़बे में जाने
कैसे ये रह लेते
साँस छोड़कर वही साँस
वापस फिर से ले लेते
मन चाहा आकाश नापने
का सुख ये क्या जानें
इतना बड़ा शरीर भला
ये कैसे उड़ें उड़ानें
धन्यवाद भगवान तुम्हारा
मुझको पंख लगाया
इस दड़बे के बंधन से
मुझको आज़ाद कराया
पर इनके संग तुमने जाने
क्यों की नाइंसाफ़ी
बड़े जानवर छोटे घर में
जगह नहीं है काफ़ी
' आदम घर ' को देख के मेरा
मन अजीब सा भैय्या
ऐसा ही कुछ मन में बोले
बैठी हुई चिरैय्या.
डॉ. प्रदीप शुक्ल
अंजू श्रीवास्तव निगम की बालकथा : पेड़ जीवन रक्षक
अशिमा अपने मम्मी-पापा के साथ लेह के हवाई -अड्डे पर उतरी|😘😘😘लेह.की सुदंरता के बारे मे वो काफी लोगों से सुन चुकी थी|🎊🎊🎊हवाई-अड्डे पर उतरते ही उसे लेह की मनोरम वादियाँ भा गयीं थी|💝💝💝बस एक बात उसे खटक रही थीं| यहां की वादियाँ एकदम पथरीली एवं वीरान. थी| हरियाली रहित|🙅🙅
अशिमा को हवाई अड्डे पर उतरते ही आक्सीजन की जबरदस्त कमी लगी|दोस्तों की राय मुताबिक एक पूरा दिन आराम मे बीता|🎊🎊ताकि उनका शरीर लेह के मुताबिक ढल जाये|😘😘
Shey Monastery
अशिमा दूसरे दिन लेह और उसके आसपास घूमने निकले| shey monastery , thik shey monastery, सिंधु नदी, संगम और मेगनीटिक पाइट| 💝💝💝💝 चारो ओर प्रकृति के रंग बिखरे थे|🎁🎁🎁 बस कमी पेड़-पौधों की लगी|
जब अशिमा thikshay monastery जा रहे थे| तब उसे काफी बडे पैमाने मे पेड़ लगे दिखाई पड़े| अशिमा का मन खुश हो गया|🎊🎊🎊 साथ बैठे अंकल ने ही बताया कि उनके महान लामा गुरु की वजह से ही सब सभंव हो सका|😘😘😘 10अक्टुबर 2010 मे करीब 4000 लोगों ने ये पौधे रोपे थे| 🎁🎁इससे पहले के जुलाई माह मे बादल फटने से यहाँ जबरदस्त तबाही हुई थी| जिसे देख ये कदम उठाया गया|😘 आज वो पौधे पेड़ का रूप ले चुके है|💝💝यह सुनकर अशिमा को बेहद खुशी हुई|
तीसरे दिन अशिमा अपने मम्मी पापा के साथ चागला पास होते हुये पेगयोनग झील गये| चागला ऊचाई मे होने की वजह से उसकी मम्मी की तबीयत काफी खराब हो गई| वैसे भी दस मिनट से ज्यादा वहाँ कोई रूक नही सकता|👏👏ऊचाई की वजह से उन्हें सांस लेने मे दिक्कत हुईं|
अशिमा ने लेह और उसके आसपास फैले सुदंर नजारों का खुब आंनद लिया| पर पेड़ पौधों की कमी ने धूल-मिट्टी का साम्राज्य स्थापित कर दिया हो जैसे|🙅🙅🙅पर अब अशिमा को पेड़ पौधों के महत्व का भी पता चला|🎊🎊💝😘
अशिमा ने तय किया कि घर लौटते ही वो अपने घर के आसपास पेड़ जरूर रोपेगी|~💝~यही नही इसे वो मुहिम भी बनायेगी|😘🎊🎊
लेह की इस यात्रा ने अशिमा को अपने आसपास के वातावरण के लिये भी सजग कर दिया|🎊😘💝😘💝
अंजू श्रीवास्तव निगम
शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : वफादार टामी
लालबिहारी को अपनी माँ का बाहर का काम करना पसंद नहीं है । उसकी माँ रोज सबेरे लालू को उसकी दादी के पास छोड़कर अपने पति के साथ मजदूरी करने के लिए चली जाती है । लालू अपनी दादी के साथ दिन भर खेलता रहता है परन्तु सरे शाम अपनी माँ के काम से वापस आने के समय से कुछ पहले से ही झोपड़ी के दरवाजे पर छुपकर खड़ा हो जाता है । जैसे ही उसके माता पिता घर वापस आते तो लालू उनसे चिपक जाता है ।
लाल बहादुर के माता पिता काम से लौटते समय लालू के लिये कुछ न कुछ, खाने के लिए लेकर आते हैं । वह बहुत चाव से खाता है , लेकिन उसका कुछ हिस्सा उसके घर के बाहर खडे टामी कुत्ते को भी देता है । टामी से लालू की बहुत दोस्ती है । टामी को भी लालू के माता पिता के आने की प्रतीक्षा रहती है और वह उन लोगों के आते ही दुम हिलाकर अपनी खुशी प्रदर्शित करता है । लाल बहादुर की दादी को लेकिन लालू की टामी से दोस्ती अच्छी नही लगती है । उन्हें लगता है कि कही टामी छोटे बच्चे को काट न ले। वह इसलिए एक छड़ी लेकर टामी को भगाया करती हैं । लाल बहादुर लेकिन टामी के साथ मिलकर खेलना बहुत अच्छा लगता है । वह टामी के साथ सड़क पर दौड़ता रहता है और किनारे बने पार्क तक भाग कर पहुंच जाता है ।
एक दिन रोज की तरह सड़क पर लाल बहादुर खेल रहा था कि सड़क पर एक पतंग कही से कट कर आ गई । रंग बिरंगी पतंग को पकड़ने के लिए लालू दौड़ पड़ा । इस भाग दौड़ में वह सड़क के किनारे खड़ी एक गाडी से टकरा कर गिर पड़ा । लालू को चोट आ गई । उसके खून बह रहा था और वह चल नहीं पाया रहा था । टामी भौंकते हुए लालू के घर जाकर वहाँ से उसकी दादी को कपड़े से पकड़ कर अपने साथ ले आया । दादी लाल बहादुर को गोद में लेकर घर ले आयीं । अब दादी को समझ में आ गया कि कुत्ते वफादार होते हैं ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
गुरुवार, 6 जुलाई 2017
शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : टिंकपिका की सैर
नन्ही चुनमुन ' प्रिन्सेज डॉल ' फेरी टेल्स, की पुस्तक में से "टिंकपिका का जादूगर " वाली कहानी अपनी दादी से सुन चुकी थी । उसने सोचा कि कितना भयानक होगा टिंकपिका । उसे सोफे पर बैठे बैठे ही दीवार पर एक मकड़ी दिखाई दी । वह पहले घबरा गई लेकिन उसने फिर सोचा कि वह क्यों घबरा रही है । वह तो अपने स्कूल का सारा काम जो घर मे करने के लिए दिया जाता है वह खुद अपने आप कर लेती है बस कभी कभी अपने पापा से मदद लेती है । यह कोई भी बुरी बात नहीं है । तभी उसे लगा कि दीवार की मकड़ी बस उसे ही देखे जा रही है । उसने अपनी निगाह मकड़ी की तरफ से फेर ली और अपने मोबाइल पर गेम खेलने मे बिजी हो गई ।
गेम खेलते हुए न जाने क्या हुआ कि वह मोबाइल की स्क्रीन पर वह एक अजनबी जगह पहुँच गई । वह जगह एक पुराना किला था । उसके दरवाजे पर भयानक दिखने वाले पहरेदार खड़े थे जिनकी बड़ी बड़ी मूछें थी । बडे-बडे बाहर की ओर निकले दाँत थे । इस किले में घुसते ही एक बड़ा सा कमरा था । उस कमरे मे काली पोशाक में ऊँची लम्बी जादूगर वाली कैप पहने एक जादूगर बैठा था और उसके सामने मक्खी, मकड़ी, काकरोच, चींटे सहित कई अन्य कीड़े मकोड़े खडे होकर अपनी बातें सुना रहे थे । ज्यादातर कीड़े उन बच्चों की खबर लाए थे जो अलग अलग वजह से कमजोर हो रहे थे । जादूगर उनसे कहा रहा था कि ठीक है वे उन बच्चों को उलझाए रखें ताकि वे थोड़ा और कमजोर हो जाएँ तो जादूगर खुद जाकर आसानी से उन्हें टिंकपिका ले आए और रोबोट बना कर उनसे काम कराए । नन्ही चुनमुन ने इन कीडों को यह कहते आगे सुना कि ज्यादातर बच्चे होमवर्क तो कर लेते हैं परन्तु मोबाइल से चिपके रहते हैं । वे बाहर खेल कूद नहीं कर सकते हैं । इसलिये ताकत मे कमजोर हो रहे हैं , हमारी उनपर नजर है । नन्ही चुनमुन ने मोबाइल फोन पर से नजर हटाई तो ऊपर मकड़ी अपनी आँखें मटका कर उसे घूरते नजर आई मानो वह कहते रही हो कि यही था टिंकपिका का जादूगर जो टिंकपिका मे अपने किले मे बैठा था । अब तक चुनमुन सचेत हो गई थी और वह मोबाइल फोन को छोड़कर साइकिल चलाने लगी।
शरद कुमार श्रीवास्तव
महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना : पेड़ लगाएं
चलो चलें एक पेड़ लगायें,
धरती को हम स्वर्ग बनायें ।
चारों ओर हरियाली छाये ,
खुशियों की बगिया महकायें ।
पौधे लाकर हम लगायें,
चारों ओर घेरा बनायें ।
खाद पानी रोज डालें,
जानवरों से इसे बचायें ।
नये नये कोपल निकलेंगे ,
हर डाली पर पत्ते बिखरेंगे ।
उड़ उड़ कर पक्षी आयेंगे ,
चींव चींव मीठे गीत गायेंगे ।
ताजा ताजा फल लगेंगे,
बच्चे बूढ़े खुश रहेंगे ।
सुंदर सुंदर फूल खिलेंगे ,
इसकी सेवा खूब करेंगे ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम (छ ग )
पिन - 491559
मो नं -- 8602407353
Email -mahendradewanganmati@gmail.com
महेन्द्र देवांगन माटी की बाल कविता : बरसात
बरसात का मौसम आया ,
बादल गरजे पानी लाया ।
झम झमाझम गिरे पानी,
पानी खेले गुड़िया रानी ।
चम चमाचम बिजली चमके,
छोटू छुप जाये फिर डरके ।
आसमान में काले बादल ,
दिख रहे हैं जैसे काजल ।
चुन्नू मुन्नू नाव चलाये,
दादा दादी खूब चिल्लाये ।
दोनों पानी में भीग रहे,
आक्छी आक्छी छींक रहें ।
टर्र टर्र मेढक चिल्लाये ,
पानी को फिर से बुलाये ।
पानी गिरे झम झमाझम,
नाचे गुड़िया छम छमाछम ।
चारों ओर हरियाली छाई,
खेतों में फसलें लहलहाई ।
खुश हो गये सभी किसान ,
मिट गई चिंता की सभी निशान ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
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