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शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

अमर शहीद भगतसिंह : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

27 सितम्बर को अमर  शहीद भगत् सिंह का 118 वाँ जन्म दिन  था  । उनको अपनी तथा "नाना की पिटारी "की ओर से भावभीनी  श्रद्धांजलि


                       अमर  शहीद भगत् सिंह

वर्ष 1907 सितंबर  27 को भारत  का ऐसा  लाल हुआ
शीश चढाने  भारत  माँ  को  अपने  आप  मिसाल  हुआ

सरदार किशन सिंह ,माँ  विद्यावती का प्यारा लाल हुआ

लायलपुर  के  बंगा गांव  का बेटा धरती पर कमाल हुआ

नाम भगत सिंह  सपूत  देश  का  अंग्रेजो  का काल हुआ

लाला जी पे नृशंसता  का  बदला उसने खूब कमाल लिया

राजगुरू  संग सन 28 मे सैन्डर्स का काम  तमाम  किया

वीर सिंह, भारत माँ की खातिर फाँसी हंस के झूल लिया

शेर बन 22 वर्ष  की  उम्र  में फांसी  को गले लगा  लिया

हंस के चढ गया वह सूली पर इक पल भी उफ न किया


ऐसे शहीदे आज़म को शत शत नमन


शरद कुमार श्रीवास्तव 

अलौकिक लौकी (व्यंग्य)




 कभी सोचा कि प्रकृति ने लौकी क्यों बनाई ??


इसकी दो वजह हो सकती है ! 


पहली बात तो ये कि वो यह चाहते हों कि औरतों के पास कम से कम एक आध तो ऐसा मारक हथियार तो हो ही जिससे वो आदमियो को परास्त कर सके !


औरत लौकी बनाये बिना रह नही सकती ! लौकी नाराजगी जताने का सबसे कारगर तरीका है औरतों का !


थाली मे लौकी देखते ही बेवकूफ से बेवकूफ आदमी ये समझ जाता है कि उससे कोई बड़ी चूक हो चुकी है ! आदमी लौकी की वजह से ही दबता है अपनी बीबी से ! कायदे से रहता है ! आदमी को तमीज सिखाने का क्रेडिट यदि किसी को दिया जा सकता है तो वो लौकी ही है !


मेरी यह समझ मे यह बात कभी आयी नही कि लौकी से कैसे निपटें !लौकी आती है थाली में तो थाली थर थराने लगती है ! रोटियाँ मायूस हो कर किसी कोने मे सिमट जाती हैं ! जीभ लटपटा कर रह जाती है ! और आप बेचारगी से अचार, चटनी, पापड़ या दही के भरोसे हो जाते हैं ! हर कौर के बाद पानी का गिलास तलाशते हैं आप ! आपको लगने लगता है कि आपकी तबियत खराब है, आप ICU मे भर्ती हैं ! 

बंदा डिप्रेशन मे चला जाता है ! दुनिया वीरान - वीरान सी महसूस होती है ! कुछ अच्छा होने की कोई उम्मीद बाकी नही रह जाती ! मन गिर जाता है ! लगता है अकेले पड़ गये हैं ! 


दरअसल लौकी, लौकी नही होती, वो आपकी पत्नी की इज्जत का सवाल होती है ! आप पूरी हिम्मत करके लौकी का एक - एक निवाला गले से नीचे उतारते है ! पत्नी सामने बैठी होती है ! 

जानना चाहती है लौकी कैसी बनी ! 

आप पत्नी का मन रखने के लिये झूठ बोलना चाहते हैं पर लौकी झूठ बोलने नही देती ! लौकी की खासियत है ये ! 

इसे खाते हुये आदमी हरीशचन्द्र हो जाता है !

आप चाहते हुये भी लौकी की तारीफ नही कर पाते !


मेरा ख्याल से बंदे को शादी करने के पहले यह पता लगाने की कोशिश जरूर करनी चाहिये कि उसकी होने वाली पत्नी लौकी से प्यार तो नही करती !

वैसे ऐसी लड़की मिल भी जाये तो इसकी कोई गारंटी नही कि शादी होने के बाद उसका झुकाव लौकी की तरफ नही हो जायेगा ! दुनिया मे ऐसी लड़की अब तक पैदा ही नही हुई है जो पत्नी की पदवी हासिल कर लेने के बाद पति को सबक सिखाने के लिये लौकी का सहारा लेने से परहेज करे ! 


जब तक जहर इजाद नही हुआ था तब तक आदमी ने दुश्मनो को मारने के लिये निश्चित ही लौकी का ही इस्तेमाल करता रहा होगा !लम्बे टाईम से टिके मेहमान को दरवाजा दिखाने के लिये लौकी से बेहतर और कोई तरीका नही ! थाली में हर दूसरे वक्त लगातार लौकी के दर्शन कर ढीठ से ढीठ मेहमान भी समझ जाता है कि अब चला- चली का वक्त आ गया है ! 


पर एक तारीफ तो करनी ही पड़ेगी  इस लौकी की ! 

न्यायप्रिय होती है ये ! सब को एक - सा दुख देती है  !

स्वाभिमानी भी होती है ये ! अपने मूल स्वभाव और कर्तव्यो  से कभी नही डिगती ! लाख मसाले, तेल डाल दें आप इसमे ! ये पट्ठी टस से मस नही होती !

आप मर जायें सर पटक कर , पर लौकी हमेशा लौकी ही बनी रहती है !


इन्टरनेट  से साभार 






माँ का दर्द//बाल कहानी // प्रिया देवांगन "प्रियू"





माँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। वाह! मैदान भी हरा–भरा है। चीनू उछलते हुए अपनी माँ से कहने लगा; हम रोज आ कर खेलेंगे न.....! हाँ बेटा चीनू; माँ ने हँसते हुए हामी भरी। खुले मैदान में चीनू जैसे और भी छोटे – छोटे बच्चे खेल रहे थे यह देख चीनू और भी खुश हो गया।  चीनू की दोस्ती उन नन्हें –नन्हें बच्चों से हो गई। प्रतिदिन आते और मजे करते। इसी बहाने सबसे मिलना–जुलना भी हो जाता था। नील गगन के नजारे, ठंडी–ठंडी हवाएं, स्वच्छ वातावरण हृदय को छू लेती थी। 
              वहीं; सामने के बालकनी से नन्हीं प्रीत (बच्ची) भी इन्हें खेलते देखती और आनंद लेती; साथ ही साथ सोचती मैं भी इनके साथ खेलने जाती लेकिन...... दूर से देख कर ही मुस्कुराती।

आज शाम चीनू खेलते–खेलते थोड़ी दूर मैदान के दूसरे छोर पर चला गया। माँ अपनी सहेलियों से बात करने में व्यस्त क्या हो गई.....जैसे ही चीनू की माँ की नज़र  हटी वैसे ही दुर्घटना घटी। एक विशाल दरिंदा बाज आया और चीनू को उठा ले जा रहा था। चीनू जोर–जोर से चिल्लाने लगा। माँ....माँ मुझे बचाओ....बचाओ.....। सभी की नज़र चीनू की तरफ पड़ी। सभी दौड़ने लगे।  प्लीज़ माँ मुझे बचा लो......! दर्द भरी आवाज से चीनू कराहने लगा। चीनू की माँ सुध-बुध खोने लगी। पैरों तले जमीन खिसक गई। साँसें तेजी से ऊपर–नीचे होने लगी। आँखों से ऑंसू थम नहीं रहे थे। माँ भी चिल्लाने लगी; मेरे बेटे को कोई बचा लो.....। हे! विधाता ये क्या हो गया......? मेरा चीनू मुझे लौटा दो। बाकी बच्चे अपने–अपने माता–पिता से सहम कर लिपट गए। थोड़ी देर बाद..... सभी चीनू  की माँ को सांत्वना देने लगे। चुप हो जा री...... चीनू की माँ, चुप हो जा...। होनी को कौन टाल सकता है। हमारा जीवन कब तक है ऊपर वाले के अलावा कोई नहीं जान सकता। वो दरिंदा बाज न जाने कब से चीनू पर नज़र डाल रहा था। चीनू की माँ सुबकने लगी। बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन आँखों से ओझल होते देर न लगी।

चीनू की आवाज सुन प्रीत झट से बालकनी में आ खड़ी हुई, जब तक काफी देर हो चुकी थी। चीनू बहुत दूर जा चुका था।
                    एक मांँ अपने बच्चे के दूर जाने से कैसे तड़प रही, प्रीत टकटकी लगाए देख रही थी; और मन ही मन स्वयं को कोसने लगी  काश....!! मैं चीनू को बचा पाती। इंसान हो या पशु–पक्षी; माँ तो माँ होती है न....! माँ का दर्द माँ ही जाने; आज मैं वहाँ पर जाती तो चीनू जो कि एक मुर्गी का बच्चा था शायद वह बच जाता। 




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़



सोमवार, 26 अगस्त 2024

श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव का मधुर सम्मो




 

रक्षाबंधन पर एक सुन्दर गीत


 

जन्माष्टमी पर विशेष


 

वीणा श्रीवास्तव जी की पुण्य स्मृति मे


 

 

कल अर्थात अगस्त 27 को श्रीमती वीना श्रीवास्तव  जी की पुण्य  तिथि है।   उनको इस जगत से विदा लेकर ब्रह्मलीन  हुए 16 वर्ष  पूरे हो जाएंगे ।   श्रीमती वीणा श्रीवास्तव  महान शिक्षाविद  थी और  इस पत्रिका नाना की पिटारी की प्रणेता थीं।  पुण्य तिथि के अवसर पर नाना की पिटारी अपने भावपूर्ण  श्रद्धापुष्प अर्पित कर  रहा है।

शरद कुमार  श्रीवास्तव 

रविवार, 25 अगस्त 2024

वासुदेव कृष्ण

 




सजे किरीट मोर पंख कृष्ण माथ झूमते।
चले समीर मंद–मंद शीश केश चूमते।।
दिखे स्वरूप मेघ श्याम नैन नील साॅंवरे।
लपेट पीतवर्ण देह हाथ बाँसुरी धरे।।

अरण्य जात कृष्ण धेनु गोप ग्वाल संग में।
कदंब डाल बैठ श्याम डोलते उमंग में।।
करें विनोद वासुदेव साथ गोप गोपियां।
अनन्य भक्ति कृष्ण की बसा रखें सभी हिया।।

करे घमंड चूर नंदलाल कालिया डरे।
मिले क्षमा सदैव कृष्ण भक्ति भाव जो भरे।।
करे प्रणाम देवता निहारते स्वरूप को।
कृतार्थ तीन लोक देख कृष्ण विश्वभूप को।।

सनातनी अधर्म से अनीति राह जो चले।
पुराण वेद ग्रंथ ज्ञानहीन हस्त को मले।।
मनुष्य याचना करें पुनः धरा प्रवेश हो।
चतुर्भुजी करो कृपा सदा‌ परास्त क्लेश हो।।




//रचनाकार//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

पब्रह्मलीन साहित्यकार महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर

 


// ब्रह्मलीन साहित्यकार पिता महेंद्र देवांगन "माटी" की पुण्यतिथि 16 अगस्त 2024 पर //

बाल प्रेरक प्रसंग :

                    // प्रेरणा //

          एक साहित्यकार पिता ने अपनी पुत्री से कहा- "बिटिया सुनो तो।"
          "हाँ, पापा क्या हुआ?" एक छोटी सी बच्ची दौड़ कर आई।
         "आज मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। बैठो ज़रा मेरे पास। मैं तुम्हें सुना रहा हूँ।" पिताजी बोले।
         "अच्छा! जी पापाजी।" बालिका ने बड़े ध्यान से पंक्तियाँ सुनी- "बहुत सुंदर बाल कविता बनी है। पापा जी, आप इतनी अच्छी पंक्तियाँ कैसे लिख लेते हैं?" मज़ाक़िया अंदाज में पिताजी बोले- "पेन-कॉपी पकड़ो तुम भी; और लिखते चलो।"
          "ओह पापा जी आप भी न! आप हमेशा ऐसे ही बोलते हैं। कुछ लिखना-विखना तो सिखाते नहीं।" मुँह बनाते हुए बालिका ने कहा।
         "बिटिया सुनो तो! इधर तो आना।" पिताजी ने बालिका को अपने और करीब बुलाया।
          "हाँ, पापा क्या हुआ? बालिका बोली।            "बैठो तो ज़रा।  "जी पापा!" बालिका स्टूल पर बैठ गयी ।
          थोड़ी देर बाद बालिका ने अपने मन की बात कही- "पापा जी! बताइए न आप कैसे लिखते हैं?" मैं आपसे सीखना चाहती हूँ।" बालिका हठ पर उतर आई। 
           पापा बोले- "मैंने रफ कॉपी में लिखा है, अब फेयर करने की बारी तुम्हारी है। बहुत सारी कविता, कहानी, कुछ... कुछ और है। अभी फेयर करने में तुम ध्यान नहीं दे रही हो रानी। चलो बेटा, आज तुम्हारी स्कूल की छुट्टी है। इसमें करेक्शन करते हैं।"
         "ठीक है पापा।" कहते हुए बालिका पेन–कॉपी पकड़ कर बैठ ही रही थी, तभी पिताजी फिर बोले- "बिटिया!"
          "हाँ पापा।"
          "ये बताओ, तुम मेरी हर कविता को फेयर करती होगी, चाहे वो छंद हो या मुक्तक। मुझसे ज्यादा तो तुम्हें याद रहता है कि अमुक कविता की अमुक पंक्ति है। बात छंद की है, तो तुम्हें मैं स्वयं सिखाऊँगा।"
          "नहीं.... नहीं....पापा। मुझे ये छंद–वंद के चक्कर में नहीं पड़ना है। आप ही संभालिए अपने छंद को।" बालिका हाथ हिलाकर हँसती हुई बोली ।
          पिताजी बोले- "अरे! कैसी बात करती हो? तुम्हें तो मुझसे आगे बढ़ना है। मुझे बहुत खुशी होगी।"
          "ढंग से लिखने भी तो आना चाहिए। कैसी बातें करते हैं पापा आप।" बालिका ने पिताजी की तरफ नजरें घुमाई ।
            पिताजी बोले -"जब तुम हरेक शब्द ध्यान से देख-सुन रही हो, तो तुम लिख क्यों नहीं पा रही हो? पता है, हमारे छंद कक्षा में हर उम्र के लोग सभी छंद की कविताएँ‌ लिखते हैं। एक–एक मात्रा का ध्यान रखते हैं; और तुम तो अभी की बच्ची हो। तुम भी एक अच्छी सोच छंदबद्ध कविता व मुक्तक लिख सकती हो। साहित्य में छंदबद्ध रचनाओं का विशेष स्थान है।"
           साहित्यकार पिताजी की बातों का बालिका पर गहरा असर हुआ। बालिका ने ठान लिया कि वह एक कविता लिख कर पापा जी को जरूर दिखाएगी। तुरंत उसने टूटी–फूटी भाषा में एक कविता लिख कर अपने पिताजी को दिखाई। पिताजी ने कविता पढ़ी, तो सचमुच वे बहुत खुश हुए। उन्हें लगने लगा कि उनकी बेटी में काव्य-सृजनशीलता है। उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले- "अरे वाह बिटिया! आज तुमने मेरे मन की इच्छा  पूरी कर दी। मुझे गर्व है तुम पर। मुझे उम्मीद है कि तुम एक दिन मुझसे बेहतर कविता लिखोगी; और मेरा नाम रोशन करेगी। खुद बहुत नाम कमाओगी।"
         "कुछ भी न.... आप भी। मुझे खुश करने के लिए बोल रहे हैं आप।" बालिका तिरछी मुस्कान भरती हुई बोली।
         "नहीं...नहीं...! मैं ऐसे ही तारीफ नहीं कर रहा हूँ। तुमने सचमुच बहुत अच्छी कविता लिखी है।" एक साहित्य साधक पिता की बातें बालिका को लग गयी। भले देर से ही सही, पर बालिका को लिखने की प्रेरणा मिली। आज वह अपने साहित्यपथ पर अग्रसर है। 
          बच्चो! क्या आप जानते हैं उस कलमकार को; और कौन है वह बालिका? ठीक है, मैं बताती हूँ। वो साहित्यकार पिता हैं छत्तीसगढ़ के एक नामी लेखक ब्रम्हलीन महेंद्र देवांगन जी "माटी" ; और वह बालिका प्रिया देवांगन "प्रियू" है ।
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//लेखिका//
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ 


                 
                    


खेल भावना की पवित्रता को नमन!

 धन्य  धन्य  नीरज  चोपड़ा 



दो  आशीष  मुझे  भी  माता,

मैं, नीरज   सा   नाम   करूँ,

पाक ज़मीको स्वर्णपदक दे,

जग   में  नूतन   काम  करूँ।


मेहनत का फल मीठा  होता,

अरशद ,  तुझसे   कहती  हूँ,

तू  नीरज  से कम  थोड़ी   है,

पुत्तर-  मैं   सच   कहती   हूँ। 


मेरी   खुशी   बसी   दोनों  में,

किसको   कहूँ    पराया    मैं,

खेल भावना को  जीवन  का,

कहती     हूँ     सरमाया   मैं।


अरशद  की  अम्मी  ने बोला,

दीदी,   तुमने    सही    कहा,

मैंने भी  नीरज   की  खातिर, 

माँगी   दिल  से   यही  दुआ। 


स्वर्ण पदक से भी  महान  हैं, 

मानवता    के    भाव    यहाँ,

सच  कहता  हूँ  भर   जाएंगें,

जीवन  के  हर   घाव    यहाँ।


आज  आपके  आदर्शों   का, 

सकल   विश्व   आभारी    है,

माँ के  आशीषों  की  कीमत,

हर   कीमत   पर    भारी  है।

   


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" 

       मुरादाबाद/उत्तर- प्रदेश 

           9719275453

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ललमुनिआ और गिलहरी : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 



पाँच साल का कन्हैया अपनी मम्मी के साथ घर के बगीचे मे खेल रहा था।  तभी वहाँ पर  एक छोटी सी, प्यारी सी, लाल मुँह की रगींन चिड़िया आई ।  चिड़िया को देखकर  कन्हैया बहुत  खुश  हुआ  और  अपनी माँ से बोला, माँ ,देखो देखो, ललमुनिआ आई है।  माँ कुछ  समझ नहीं सकीं ।  वे बोलीं कौन ललमुनिया ?  नन्हा  कन्हैया  बोला,  जो नाना जी के बगीचे मे उड़ कर आती है ।   छोटी सी सुन्दर  सी , वही ललमुनिया ।   नाना जी बड़े प्यार  से इसे ललमुनिया ही पुकारते हैं ।  मम्मी जी ने सुना और  फिर अपने काम मे व्यस्त  हो गईं ।

कन्हैया भी उस चिड़िया के साथ  पकड़म पकड़ाई  मे लग गया ।  वह उस चिड़िया से ढ़ेरों बातें करना चाहता था।  अपनी नानी नाना के बारे मे ।   वहाँ की एक  एक  चीज के बारे मे पूछना चाहता था।  अचानक  उसे याद  आया कि आखिर  ललमुनिया सात समुद्र वहाँ आई कैसे ?  


  काफी पहले की बात  है जब वह अपने मम्मी पापा के साथ नाना नानी के पास गया था।  नानी के घर के आंगन  मे एक  अमरूद का पेड़ लगा था ।  उस अमरूद  के पेड़  पर एक चिड़िया बैठती थी ।  कन्हैया तब और छोटा था ।  चिड़िया को देखकर वह  बहुत खुश  हो जाता था ।  दोनो मे बहुत  दोस्ती थी ।  वह अपनी नानी के किचन  से कच्ची दाल के दाने लेकर ललमुनिआ के पास  पेड़  के नीचे डाल  देता था।  उस समय  तो चिड़िया उड़ जाती थी ।  एक गिलहरी भी न जाने कहाँ से  आती थी और दाल के दानों को उठाकर खाने लगती थी ।  कन्हैया को यह एकदम  अच्छा नहीं लगता था।  वह धत्-धत् कर गिलहरी को भगाता था कभी-कभार  गिलहरी पिछले दोनो पैरों पर खडी होकर  कन्हैया कै हाथ  जोड़कर छमा माँगती थी।   ललमुनिआ  भी आ जाती थी और  दोनो हिल मिल कर दाल के दानो को  खाते थे।  कन्हैया यह देखकर  खूब  ताली बजाता था।

उसकी बातें सुनकर  मम्मी को भी याद  आ  गया कि कन्हैया की गिलहरी और  ललमुनिआ  की दोस्ती की कहानी।  वे कन्हैया से बोलीं कि चिड़िया लोग को किसी देश का  कोई  वीसा, हवाई जहाज  के टिकट  की जरूरत  नहीं होती है वे मौसम ,भोजन  इत्यादि की उपलब्धता के अनुसार  हजारों किलोमीटर  चली जाती है ।  कन्हैया ने पूछा और  गिलहरी ?  माँ बोलीं वह अपने स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाती है ।




शरद कुमार श्रीवास्तव 



आजादी की चाहत :स्वतंत्रता दिवस विशेष : बालकथा : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

स्वतन्त्रता दिवस पर प्रिया देवांगन  प्रियू की रचना पुन: प्रकाशित  की जा रही है



 



           एक जंगल था बागबाहरा। हर पशु-पक्षी का अपना अलग समुदाय था। सब खुश थे। हाथियों का भी एक दल था। दल का नेतृत्व चंदा नाम की हथिनी करती थी। उस दल में एक हिरणी भी थी। नाम था किटी। उसे हाथियों के साथ रहने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। उसकी विवशता थी कि उसके माता-पिता ने प्राण त्यागते समय उसे हाथी-दल को सौंप दिया था। शुरुआत में हाथियों का व्यवहार किटी के प्रति अच्छा था, पर समय के साथ उनके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। अब वे किटी के साथ गुलाम सा व्यवहार किया करते थे। किटी उनसे तंग आ चुकी थी। उसकी एक ही चाहत थी हाथियों से आजादी।

             किटी हमेशा सोचती रहती थी कि उसे आजादी कैसे और कब मिलेगी। अपने माता-पिता को याद कर के बहुत रोती थी। उसे इसलिए भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि यह सिर्फ हाथियों का समुदाय था। उन सब मे किटी अकेली महसूस करती थी। उनकी बातें भी किटी को नहीं समझ नहीं आती थी। चंदा हथिनी का एक बेटा था- मौजी। दल का अकेला वारिस था। मौजी और किटी में अच्छी मित्रता थी। दोनों साथ में खेलते कूदते थे। लेकिन चंदा को इन दोनों की दोस्ती बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी । चंदा को किटी से काम करवाने में बस ज्यादा दिलचस्पी थी। उसे मौजी से दूर रखने का पूरा प्रयास करती थी।

          कुछ दिन बाद पन्द्रह अगस्त आने वाला था। जंगल के सभी जानवर पन्द्रह अगस्त मनाने की तैयारी में लग गए। हाथी समुदाय ने इस वर्ष बड़े धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था। जंगल के सभी पशु-पक्षियों को भी आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया। जंगल को दुल्हन की तरह सजाया गया। फल-फूल , मिठाई , बूंदी, नये-नये पकवानों की महक जंगल में फैलने लगी थी। कार्यक्रम में खेल-प्रतियोगिता, गीत-कहानी , भाषण शामिल थे। मौजी और किटी बहुत खुश थे। मौजी और किटी चंदा हथिनी से पूछ ही डाले- "यह सब हम क्यों कर रहें हैं ? जंगल को क्यों इस तरह सजाया जा रहा है ?" चंदा हथिनी मुस्कुराते हुए बोली- "पन्द्रह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को हम अंग्रेजों के गुलामी से आजाद हुए थे। इसलिए हम हर साल इसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं; और तिरंगा भी फहराते हैं इस दिन।" तभी किटी खुशी से उछल पड़ी और बोली कि क्या मुझे भी यहाँ से आजाद कर दिया जाएगा। क्या मैं भी अपनी जाति-समुदाय में जा सकती हूँ।" चंदा किटी को घूरती हुई बोली- "बिल्कुल नहीं। तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हारी जिम्मेदारी हमें दी है। चिंता मत करो, तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी।"

            किटी की आँखों से आँसू बहने लगे। मौजी ने चंदा हथिनी से धीमे स्वर में कहा- "माँ ! हम किटी को आजाद क्यों नहीं कर सकते हैं  ? उसे हिरण-समुदाय से अलग क्यों रखा गया है ? अभी आपने ही बताया कि स्वतंत्रता का मतलब आजादी होती है, फिर किटी को क्यों नहीं मिल सकती आजादी।" चंदा हथिनी बिना कुछ बोले वहाँ से चली गयी। उसके पीछे-पीछे मौजी भी जाने लगा। बार-बार मौजी चंदा को एक ही प्रश्न करने लगा। चंदा परेशान हो गयी। आखिर चंदा हथिनी सोचने लगी। फिर मौजी ने किटी को कहा- "तुम चिंता मत करो किटी। मैं तुम्हे आजादी दिलाऊँगा। देखना, स्वतंत्रता दिवस हम सब के लिए यादगार होगा।"

            15 अगस्त आया। जंगल में सुबह सात बजे चंदा हथिनी के द्वारा ध्वजारोहण होना था। चिड़ियों की चहक गूँजने लगी। सभी शाकाहारी जानवर- नीलगाय, चीतल, बारहसिंगा, खरगोश और हिरण समुदाय भी शामिल हुए। किटी हिरणियों को देख कर उछल पड़ी। जैसे ही उनसे मिलने जाने वाली थी कि चंदा हथिनी ने उसको रोक लिया। किटी सहम गयी। वहीं मौजी खड़ा देखता रहा। चंदा हथिनी ने ध्वजारोहण किया। राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत हुआ। फिर कविता पाठ शुरू किया गया। किटी और मौजी भी कविता पाठ में शामिल थे। सबने बारी-बारी से कविता, गीत, भाषण दिया। मौजी ने अपने भाषण में चंदा हथिनी की ओर इशारा करते हुए कहा- "देश तो आजाद हो गया है, फिर भी न जाने कितने लोग अभी भी गुलामी में जीवन यापन कर रहे हैं। कुछ लोग दूसरों को नौकर बनाकर रखा है। कहीं तो पूरे परिवार पर अपना हक जमा बैठे हैं। बच्चों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। दूसरे बच्चों का लालन-पालन की जिम्मेदारी लेकर उनका शोषण कर रहे हैं।" सब समझ रहे थे कि किटी हिरणी और चंदा हथनी की बात हो रही है। मौजी ने अपनी बात जारी रखी- "एक बच्ची को उसके परिवार से दूर रख कर किसी को क्या मिलेगा भगवान जाने। उस बच्ची की बद्दुआ जो कभी आगे बढ़ने नहीं देगी। माँ, आज आप किटी को आजाद कर दीजिए। याद है, आपने कहा था कि बेटा तुम्हे इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप मुझे तोहफा देंगी।। आज मैं सब के सामने आप से यही माँगता हूँ कि इस नन्ही-सी जान किटी को छोड़ दीजिए। इससे बड़ा तोहफा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता। सभी के आँखों से आँसू बहने लगे। सबको लगने लगा कि छोटा सा बच्चा भरी सभा में बहुत अच्छी बातें बोल रहा है। माँ, आप बताइए कि अगर मुझे आप से दूर कर दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा। क्या आप जिंदा रह पाएँगी मेरे बिना। आज किटी के माता-पिता नहीं है तो आप उसके साथ ऐसा क्यों कर रही हैं।" अपने बेटे मौजी की बातों से चंदा का दिल पिघल गया। उसने किटी हिरणी को आजाद कर दी। सब ने मौजी की जी खोलकर तारीफ की। इतना छोटा सा बच्चा इतना बड़ा काम कर दिया। इस तरह किटी हिरणी को हाथियों से आजादी मिली, जिसकी उसे चाहत थी। 

                 



रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

Life everyday नन्ही लीशा सिघल की कविता

 


LIFE EVERYDAY 


A stampede is thundering in the Savannah,

A family of bears are hibernating in a cave,

The sweet wind whistles deep in the night,

Someone runs awayfrom something with fright,

A fan is blowing winding an empty room,

Someone says sorry in a guilty tone,

A patient's heart starts to beat faster and louder,

As an elderly person's breath starts to fade,

A groupof miners finally find some jade,

A stampede is thundering in the Savannah,

A family of bears are hibernating in a cave.





Leesha Singhal 

Aged-10

Sheelkunj  

Meerut 

आर्टेमिस के भव्य मन्दिर

 




भारत  मे मन्दिरों का इतिहास बहुत  पुराना रहा है परन्तु  दुनियाभर मे भी मन्दिरो का अस्तित्व  भी पुराना रहा है जिसका प्रमाण  यूनान का आर्टेमिस  का मन्दिर  है।

आर्टेमिस के मन्दिर जिसे डाॅयना का मन्दिर  भी कहा जाता है यूनान का मन्दिर विश्व  के  पुराने सात अजूबों मे से एक  है

यह मंदिर  ग्रीक देवी आर्टेमिस के नाम से है अपोलो की कुमारी शिकारी जुड़वा ने

चन्द्रमा की देवी के रूप मे टाइटन सेलेन का स्थान  कब्जा कर लिया था

इस महान मंदिर का निर्माण लिडिया के राजा क्रोएसस ने लगभग 550 ईसा पूर्व में करवाया था और 356 ईसा पूर्व में हेरोस्ट्रेटस नामक एक पागल व्यक्ति द्वारा जला दिए जाने के बाद इसका पुनर्निर्माण नहीं किया गया था।

यह मंदिर  अपने 110×55 मीटर के वृहद आकार एवम अनुपम सुन्दरता के लिए  भी प्रसिद्ध  है ।



संकलन 

शरद कुमार  श्रीवास्तव  

बुधवार, 26 जून 2024

खरगोश और बंदर की दोस्ती

 



एक बार  की बात है। एक बंदर और एक खरगोश जंगल में रहते थें। एक दिन  खरगोश गाजर खा रहा था और वहीं बंदर पहुँच गया। बंदर कहता, गाजर कौन खाता है। हम तो केला खाते है।

 खरगोश कहता ,बंदर केले खाते हैं और खरगोश गाजर खाते हैं। फिर इसी बात से दोनों बिछड़ गए।

फिर खरगोश ने सोचा की केला खाकर देखते है।कि, केला कैसा है। और बंदर ने सोचा कि गाजर खाकर देखते है कि , गाजर कैसी है। फिर दोनों को दोनों चीज़ें अच्छी लगी। 

तो दोनो वापिस दोस्त बन गए। 

Moral-हमें सारे फल  और सब्जियाँ खाने चाहिए। 



पार्थ गुप्ता

कक्षा-तीसरी

साहसी चिड़िया!

 


सूरज  पर नाराज  हो  रही,

नन्हीं       चिड़िया     रानी,

सारी  ऐंठ  निकल जाएगी,

बरसा   जिस   दिन  पानी!


बादल का छोटासा टुकड़ा,

तेरा    मुख     ढक   लेगा,

नहीं  निकलने   देगा  तेरा,

सारा    बल     हर   लेगा!


रोजलाल-पीला होकर तू,

हम   पर   रौब    जमाता,

घोर गर्जनाएं  बादल  की,

सुनकर   घबरा     जाता!


तेरी  गर्मी  से  हम   पंछी,

हार        नहीं       मानेंगे,

अम्बरमें ऊंचे उड़कर हम,

तेरा       सच       जानेंगे!


बादल भैया  साथ  हमारे,

फिर  क्यों   डरें   बताओ,

चिड़िया बोली घोर घमंडी,

सूरज     वापस    जाओ!


चिड़िया के गुस्से के आगे,

सूरज    बोल    न   पाया,

हफ्तोंतक सूरज नेअपना,

मुखड़ा    नहीं   दिखाया!

   


   वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

      9719275453

           ----#-----

मंगलवार, 25 जून 2024

मीरा का बर्थडे : डा रामगोपाल भारतीय, का बालगीत

 



मेरी गुड़िया खुश हो जाए

हैप्पी बर्थडे में सब आए

सूरज भी आए,चंदा भी आए

अपने साथ सितारे लाए।

मेरी गुड़िया खुश हो जाए।


मम्मी पापा, दादा दादी

गुड़िया है सबकी शहजादी

भैय्या संग बच्चों ने मिलकर 

घर में महफिल खूब सजादी

मीठा केक सभी को भाए।

मेरी गुड़िया खुश हो जाए।


भालू,बंदर और मियाऊं

चिड़िया बोली मैं भी आऊं

आसमान की परियां बोली

गाना गाकर तुम्हें सुनाऊं

नाचें, गाएं,धूम मचाए।

मेरी गुड़िया खुश हो जाए।


मम्मी बोली रात हो गई

थोड़ी सी बरसात हो गई

सब अपने अपने घर लौटे 

गुड़िया मां के साथ सो गई

सपनों में गुड़िया खो जाए।

मेरी गुड़िया खुश हो जाए।



डा रामगोपाल भारतीय,मेरठ

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

टिंकपिका की सैर : नाना जी की कहानियाँ

 


बैसाखी का पर्व : अंजू जैन गुप्त


 

चुटकुले शरद कुमार श्रीवास्तव

 


1. टीचर : — अकबर ने कब शासन की डोर संभाली
छात्र :- नहीं मालूम
टीचर :- बोर्ड पर लिखा पढ़ कर भी नहीं बता सकते हो
छात्र:- मै समझा था कि यह अकबर का मोबाइल नम्बर है।

2. पिता : — आओ होम वर्क करा दें
पुत्र :- जी घन्यवाद , गलत होमवर्क तो मै खुद भी कर सकता हूँ।

3. ग्राहक :- ये नीबू कैसे दिये
दुकानदार:- हवाइजहाज से नीचे उतरो ये नीबू नहीं संतरे हैं।

4. पथिक :- भाई यह सड़क कहाँ जाती है
रामू :- जी कहीं नहीं जाती है . सालों से यहीं पड़ी हुई है।

5. परेश बिजली के तार से चिपका चीख रहा था हाय करेन्ट लग गया है बहुत दर्द हो रहा है. हाय बहुत जल्दी मै मर जाऊँगा
रमेश ने जब उसे अखबार की कटिंग दिखाई किआज सुबह से पावर कट है तब परेश का चीखना खत्म हुआ ।

शरद कुमार श्रीवास्तव 
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चंकू, मंकू और जंगल : अंजू जैन गुप्त

 



एक दिन रिया और टिया की मम्मी  ने कहा , बच्चो देखो आज बाहर घनघोर बादल छाए हुए है लगता है कि आज ज़ोरों से वर्षा होने वाली है, मैं जल्दी से बाज़ार जाकर शाम के लिए कुछ फल व सब्जियाँ ले आती हूँ।तब तक तुम्हारे पापा भी दफ़्तर से लौट आएँगे।परंतु मैं जब तक बाज़ार से लौट कर नही आती तुम दोनों अंदर ही रहना।अब चलो जल्दी करो सारे दरवाज़े व खिड़कियाँ भी बंद कर लो।

रिया कहती है , ठीक है मम्मा आप जाओ और जल्दी लौट आना तभी टिया कहती है,सुनो मम्मा आप आते हुए हमारे लिए आइसक्रीम भी ले आना।



मम्मा कहती है ठीक है बच्चो, अब अंदर से घर बन्द कर लो और जब तक मैं नही आती तुम दोनों लड़ना नही। यह कहकर मम्मा चली जाती है। 

अब दोनों बहनें ड्राइंगरूम में बैठकर टी.वी.देखने लगती हैं,परंतु कहीं से एक खिड़की खुली रह जाती है और उनके घर में बंदर घुस आते हैं।टिया जैसे ही बंदरों को देखती है  वह ज़ोर से रिया दीदी बंदर-बंदर चिल्लाती हुई  सोफे के ऊपर चढ़ जाती है और बंदर को देखकर दोनों बहनें डर जाती हैं।



तभी बंदर भी उन बच्चियों को अकेला देखकर तुरंत ही खिड़की के बाहर लौट जाते हैं। और बाहर से ही कहते हैं कि ,"बच्चो तुम हम से डरो नही मैं चंकू और ये मेरा मित्र मंकू है।हम तुम्हें  काटने या तंग करने नही आए हैं ।हमें तो ज़ोरों से भूख लगी थी।हमने दो दिन से कुछ खाया भी नही इसलिए हम तो यहाँ खाने के लिए कुछ ढूँढने आए थे।"

तभी टिया बोल पढ़ती है कि, खाना ,खाना है तो अपने घर जंगल में जाकर खाओ ; यहाँ हमारे घर क्यों आए हो?

तभी चंकू कहता है टिया तुम सही कह रही हो ,पर क्या तुम्हें पता है कि आजकल सारे बड़े - बड़े बिल्डरों ने बिल्डिंग और  फैक्ट्री लगाने के लिए हमारे जंगलों व पेड़ - पौधे को काट दिया है।अब तुम ही बताओ हम कहाँ जाकर रहे? 

टिया कहती है रहने दो चंकू-मंकू तुम हमें बेवकूफ मत बनाओ,तभी रिया बोल पड़ती है नहीं-नहीं बहन ये दोनों तो सही कह रहे हैं।तुम अभी छोटी हो ,तुम्हें पता नही है परंतु गुजरात, फरीदाबाद तथा अन्य जगहों पर भी ऐसा ही हो रहा हैं।कहीं पर जंगलों व पेड़-पौधो को काटकर माॅल बनाए जा रहे हैं तो कहीं पर फैक्ट्री व होटल इत्यादि बनाए जा रहे हैं।

ये सब सुनने के बाद टिया कहती है पर दीदी ये तो गलत है,हमें किसी का भी घर नही तोड़ना चाहिए या किसी के भी रहने की जगह को नष्ट करना गलत है और इससे तो हमारे पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ रहा है और प्रदूषण भी हो रहा है।तभी रिया पूछती है ,पर दीदी कैसे?

रिया समझाती है ,"यदि हम पेड़-पौधो को काट देंगे तो वर्षा नही होगी और यदि वर्षा नही होगी तो हम खेतों में अनाज भी नही उगा पाएँगे। इससे धरती को पानी भी नही मिल पाएगा जिससे कहीं पर सूखा पड़ जाएगा तो किसान अनाज भी नही उगा पाएँगे ।दूसरा इससे पर्यावरण को भी नुकसान होगा,हमें ताज़ी हवा व आक्सीजन भी भरपूर मात्रा में नही मिल पाएगी।"

तभी टिया कहती है, हाँ- हाँ दीदी मेरी मैम भी यही कहती है कि अगर हमें आक्सीजन नही मिलेगी तो हम साँस भी नही ले पाएँगे।

हाँ छुटकी तुम सही कह रही हो जंगल और पेड़ों के कट जाने से ऋतुओं का चरण भी बिगड़ गया हैं और  गर्मी में बहुत गर्मी तो सर्दी में बहुत सर्दी होने लगी है ।तभी

चंकू-मंकू कहते है हाँ-हाँ रिया दीदी आप सही कह रहे हो,चलो अब हम भी चलते हैं।

अरे!नहीं-नहीं, चंकू-मंकू रुको टिया तुम्हारे खाने के लिए कुछ लेने गई है।



तभी टिया उनके लिए सेब🍏,केला🍌 व अंगूर 🍇 ले आती हैं और उन्हें दे देती है।वे दोनों खाकर बहुत खुश होते हैं।

रिया कहती है, तुम दोनों चिन्ता मत करो हमारे पापा संपादक हैं तो हम उनसे बोलेंगे कि इस समस्या के बारे में अपने अखबार में छापे ताकि सब व्यक्तियों को जागरूक किया जा सके और  इस  समस्या का कुछ समाधान निकल पाए।

चंकू, मंकू रिया और टिया को धन्यवाद कहते है ।

तभी दोनों बहनें कहती हैं कि,चंकू, मंकू तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा और जब भी तुम्हें कुछ खाना हो तुम यहाँ आ सकते 👋 बायॅ-बाॅय



~अंजू जैन गुप्ता

गुरूग्राम

बाल रचना / उदास चीता : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 



सोच  रहा  था  चीता  कैसे, 

आवे         हाथ     शिकार, 

घूम  रहे   जंगल  के  अंदर, 

शेर        बड़े         खूंखार l 


हर  कोने  में   गूंज  रही है,

उनकी       क्रूर       दहाड़,

जंगल में  घुसने  का  कोई,

मुझपर      नहीं     जुगाड़। 


देख हिरण को दौड़ लगाते,

चीता       हुआ       उदास,

जंगल के राजा के  सम्मुख,

मिली     धूल     में   आस।


लेट गया धरती  पर  चीता,

होकर       मरा       समान,

मक्खी लगने पर भी उसने,

नहीं       हिलाया     कान।


भालू ,बंदर,हिरण, लोमड़ी,

पहुंचे        उसके      पास,

कान  लगाकर  लगे  देखने, 

चलती    है   क्या     साँस।


मारा तुरत झपटटा लेकिन, 

चूका       उसका       वार,

छूट गया  चीते के  मुँह  में, 

आया      हुआ     शिकार।


झुंड तभी शेरों का उसको, 

आते      दिया      दिखाई,

जान  बचाने  को  चीते  ने,

सरपट     दौड़       लगाई।

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      वीरेन्द्र  सिंह  "ब्रजवासी"

           9719275453 

                  ----**----

धरती का बच्चा : प्रदीप कुमार शुक्ल




नन्हा बीज आलसी था, 

था सबसे छिपकर सोया 

साफ हवा, धूप, बारिश के 

सपनों मे था खोया 


मिट्टी ने उसको दुलराया -

उठो बीज अब प्यारे 

पानी पी कर चलो, हवा में

खेलो राजदुलारे 


नींद खुली, आँखों को मलता 

जब वह बाहर आया 

धूल, धुआँ, चिड़चिड़ी हवा को 

पाकर वह घबराया 


लगा छींकने, खाँसा फिर 

बीमार हो गया गोया 

नन्हा बीज बना जब पौधा 

बहुत दिनों तक रोया 




 डॉक्टर प्रदीप कुमार शुक्ल

लखनऊ 

(फेसबुक से साभार)


अधूरी ख्वाहिश : लघुकथा प्रिया देवांगन "प्रियू"




मम्मी....मम्मी..... सुनिए न! क्या हुआ मेरी गुड़िया? प्रातःकाल से इतना शोर क्यों मचा रही हो? मम्मी.....मिन्नी स्वरबद्ध होकर बोली और आ कर पीछे से लिपट गई। अच्छा बताओ क्या बात है? मिन्नी बोली– "मम्मी मेरे दिमाग में बहुत अच्छा आइडिया आया है, आज के लिए।" ओह! ऐसा आज कुछ खास दिन है क्या? मिन्नी अपनी आँखें बड़ी–बड़ी कर हैरान नज़रों से मम्मी को देखने लगी; तभी किचन में पापा जी भी आ गए और दोनों से पूछने लगे- "क्या बात है? मांँ–बेटी में क्या खुसुर–फुसुर हो रही है भई....!" पापा जी थोड़ा मजाकिया अंदाज में बोले। नहीं... नहीं...ऐसी कोई बात नहीं है पापाजी कह कर मिन्नी किचन से चली गई। पापा जी के ऑफिस जाने के बाद मिन्नी बोली– "क्या मम्मी आप भी न..." ऐसा बोलते ही शांत बैठ गई। ओहहो! ठीक है बाबा बताओ , क्या–क्या करना है? मिन्नी ने अपनी मम्मी को पूरी योजना बताई। मम्मी बहुत खुश हुई और बोली एक बिटिया ही तो होती है, अपने पापा के जीवन में हर छोटा–बड़ा सपना को साकार करने में लगी रहती है और बिल्कुल माँ जैसा ख्याल भी रखती है, भाव–विभोर हो मम्मी की आँखें भर आईं। शाम होते ही पापा जी ऑफिस से घर लौटे, थोड़ी देर बाद मिन्नी पापा जी से बोली- "पापा जी चलिए न मेरे कमरे में;" क्यों?पापा जी बोले। ऐसे ही....कुछ दिखाना है आपको। अच्छा चलो;  मम्मी पापा और मिन्नी तीनों कमरे में गए। कमरे में बहुत अंधेरा था। बिटिया लाइट तो जलाओ।  धैर्य रखिए बाबा....।

इतनी भी क्या जल्दी है! मिन्नी पापा की लाडली जो थी। ओके बिटिया...। 


                    लाइट जलाते ही पापा जी विस्मित भाव से देखने लगे। सहसा फूलों की वर्षा होने लगी, छोटे–छोटे लाइट जुगनुओं की तरह चमकने लगे, नीचे धरती पर मखमली घास बिछी थी, कोयल के सुमधुर आवाज की तरह धीमे स्वर में गाना चल रहा था, एक प्यार का नगमा है............! टी–टेबल में बहुत सारी मिठाईयाँ, फल–फूल, केककट करते ही मिन्नी पापा जी को एक गिफ्ट पैकिंग आहिस्ता से खोलने के लिए बोली। पापा जी भी मुस्कुराते हुए आहिस्ता–आहिस्ता खोलने लगे। खोलते ही उनकी आँखें नम हो गईं और मिन्नी को गले से लगा लिया। पिता, बेटी को प्यार भरी नज़रों से देखने लगे। उन्होंने देखा पापा की एक फेवरेट लैपटॉप उनके सामने रखी हुई है।जिसकी पापा जी को बरसों से अभिलाषा थी। बेटा ये लैपटॉप!! ना...ना...पापा जी कुछ न कहिए ये आपके बहुत काम की है, आप दिन–रात, जाग–जाग कर मोबाइल में ही अपनी कविताएं टाइप करते रहते हैं। सो..... मैंने और मम्मी ने सोचा क्यों न पापा जी को सरप्राइज दे दें। पापा जी बोले– "आज मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई की पापा की ख्वाहिश पूरी कर रही है!" मिन्नी पापा को गले लगा कर जन्मदिवस की बधाई देती हुई, हैप्पी बर्थडे पापा...हैप्पी बर्थ डे माई डियर पापा जी...!

         तभी कानों में मम्मी की आवाज सुनाई देने लगी.......मिन्नी अरी ओ गुड़िया, उठो! बेटा भोर हो गई। कितनी देर तक सोयेगी, ये लड़की भी न, पता नहीं आज इसे क्या हो गया? मिन्नी की आँखें खुलीं, चहुँओर सन्नाटा छाया था। जो कुछ भी हुआ एक स्वप्न था। मिन्नी, मम्मी को गले लगाती हुई अपने पापा को याद कर सिसकियांँ भर–भर कर रोने लगी।



प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


रविवार, 31 मार्च 2024

नव वर्ष मंगलमय हो! : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

2081


नए वर्ष  की  नूतन  किरणे,

भरें  उजाला  घर - घर   में,

दूर-दूर  तक  मानवता  का,

बने  शिवाला  घर - घर  में!

        ----------------

शीतल छाया रहे  प्यार की,

सुख  का   वातावरण   रहे,

विपदाओं को  दूरभगा कर,

खुशियों  का अवतरण  रहे,

ईश्वर का आशीष सभी पर,

रहे   निराला   घर-घर    में!


गंगा  की  निर्मल धारा  सा,

मन  का  कोना-कोना   हो,

सुखनींदों  को आदर्शो का,

सुन्दर  सतत  बिछोना  हो,

सबके तनपर सदाचार का,

रहे  दुशाला   घर-घर    में!


सुख वैभव की घिरें घटाएं,

दौलत   की    वर्षा   बरसे, 

अन्न फूल-फल मेवाओं से,

जन मानस का  मन  हरसे,

दूध-दही  की रीती  मटकी ,

भरें  कृपाला   घर-घर  में!


ईश्वर  से  है  यही  प्रार्थना,

नूतन   वर्ष     फले - फूले,

इक दूजे को गले लगाकर,

झूलें    प्यार    भरे    झूले!

     -----***🌹***------

        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

          मुरादाबाद /उ. प्र.

           9719275453

            

              -----🌹-----

छत्तीसगढ का एक शहर : राजिम पर छत्तीसगढी भाषा "सदरी" मे प्रिया देवांगन "प्रियू" का एक चित्रण

 गत् वर्ष हमारी पत्रिका के पटल पर  प्रिया देवांगन  प्रियू जी के एक छत्तीसगढी भाषा मे प्रकाशित एक लेख  का हम पुन: प्रकाशन कर रहे है ।  यह लेख राजिम  मे राजीव लोचन  भगवान के मंदिर  के बारे मे है जहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को एक विराट मेला लगता है


राजिवलोचन मंदिर 







कुंभ मेला राजिम 

लेख :

   // धरम अउ अध्यात्म के ठऊर : राजिम //
   
          हमर छत्तीसगढ़ धरम, अध्यात्म अउ दर्शन के भुइंयाँ आय। इहाँ देवी-देवता मन के वास होथे; अउ स्वयंभू भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग तको जगह-जगह विराजमान हे। छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा भी कहे जाथे काबर कि इहाँ धान के फसल जादा मात्रा मा उपजाय जाथे। अइसनेच हमर छत्तीसगढ़ ला तीरथगढ़ याने तीरतधाम के ठऊर घलो कहे जा सकथे काबर कि ये धरती मा कतको तीरतधाम अउ दार्शनिक स्थल हें, जेमा राजिम नगरी ह बड़ा नामी ठऊर आय। पहिली राजिम ला "कमलक्षेत्र" के नाम ले घलो जाने जात रिहिसे।
मा त्रिवेणी संगम राजिम नगरी :-
----------------------
          महानदी, पैरी अउ सोंढूर नदी मन जेन जगा मिले हे; तेन ला त्रिवेणी संगम कहे जाथे। हमर राजिम नगरी ह "छत्तीसगढ़ के प्रयाग" नाम से प्रसिद्ध हे। जेन हा गरियाबंद जिला मा स्थित हे। इहाँ के भुइंयाँ चारों मुड़ा हरियर - हरियर दिखत रहिथे। धान के बाली अउ किसम-किसम के फूल-पान मन ममहावत झूमत रहिथे। लोगन के बोली गुरतुर-गुरतुर लागथे। माघ के महीना मा कुम्भ के मेला के आयोजन होथे। राजिम नगरी हर भारत के पाँचवा धाम के रूप मा प्रसिद्ध हे। माघ पूर्णिमा मा शिवरात्रि तक भव्य आयोजन होथे, जेन पन्द्रह दिन तक रहिथे। छत्तीसगढ़ सरकार डहर ले राजिम मेला ल पाँचवा कुम्भमेला के दर्जा दे गे हे।
राजीव लोचन मंदिर :
--------------
          राजिम मा सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हे। इहाँ के भुइंयाँ पवित्र माने जाथे। कहे जाथे कि वनवास काल मा श्री रामचन्द्रजी अपन कुल देवता महादेव जी के पूजा करे रिहिस। राजीव लोचन के बारे मा कहे जाथे कि गाँव के एक माईलोगिन राजिम रोज घूम-घूम के तेल बेचत रिहिस। एक दिन वोहर तेल बेचे ला जावत रिहिस त हुरहा जमीन मा दबे पथरा मा हपट गे, अउ मुड़ी मा बोहे तेल के बर्तन हा पूरा खाली होगे। राजिम माता ला अब्बड़ चिंता होय लागिस। तेल के खाली बर्तन ला पथरा ऊपर रख दिस अउ कहे लागिस मँय का करौं भगवान ! कइसे होगे ! घर के मनखे ला का कइसे बताहूँ। अपन आँखी ला मूँद के भगवान ले विनती करे लागिस। हाथ ला थेम के धीरे-धीरे उठ के खाली बर्तन ला उठाये बर देखिस ता, ओखर पाँव तरी के जमीन खिसक गे। आँखी बड़े-बड़े होगे। एकदम अकचका गे। ओखर खाली बर्तन हा तेल से लबालब भर गे रहय। ओखर खुशी के ठिकाना नइ रहिगे। "राजिम" हा घर जा के जम्मों आपबीती ला बताइस त कोनों नइ पतियावत रिहिस। दूसर दिन फेर तेल बेंचे ला निकल गे। बिहनिया ले संझा होगे फेर तेल एकोकनी नइ सिराये रहय। तब राजिम के घर वाले मन वो पथरा के शिला ला निकालिस त भगवान के मूर्ति रिहिसे अउ ओला अपन घर मा राखिस। तब ले धंधा-पानी बने चले अउ गरीबी भी दूर होगे।
          एक दिन राजा जगत पाल के सपना मा राजीव लोचन भगवान हा आइस अउ कहिस कि मोर मूर्ति के स्थापना मंदिर मा करवा दे। मँय राजिम तेलिन के घर मा हो। राजा जगत पाल हा दूसर दिन राजिम तेली के घर चल दिस अउ सपना के बारे मा बताइस। राजिम ओखर बात ल नइ मानिस। राजा बहुत जिद्दी करीस । राजिम बिलख-बिलख के रोये मेहा मोर भगवान ला अपन से दूर नइ कर सकँव। राजा दूसर दिन अपन सैनिक मन ला भेजिस के जबरदस्ती उठा के मूर्ति ल लावव। मूर्ति एकदम गरू होगे, उठबे नइ करिस। तब फिर भगवान हा राजा के सपना मा आ के कहिस के जब तक राजिम के रजामंदी नइ होही, तब तक हिल नइ सकँव। तब राजा राजिम के पास जा के बोलिस कि माता तँय रो झन, जो माँगबे वो देहूँ; बस ये मूर्ति ला मंदिर मा स्थापना करन दे। राजिम माता बोलिस कि राजा मोला भगवान मिल गे अउ कुछ नइ चाही । ते हा भगवान के नाम ला मोर नाम से रखबे अउ ये पूरा संसार मा भगवान ला मोर नाम से जाने जाही । राजा मान गे। तब से  राजिम नगर के नाम से आज प्रसिद्ध हे।
महादेव मंदिर :
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          ये मंदिर के बारे मा सुने बर मिलथे कि नदिया के बीचों-बीच म कुलेश्वर महादेव विराजमान हे। कहे जाथे कि वनवास काल मा माता सीता अपन व्रत ला पूरा करे बर नदी मा स्नान कर के बालू (रेती) से महादेव के शिवलिंग बना के पूजा करे रिहिसे। अउ अँजुरी मा भर-भर के जल चढ़ाये रिहिस। तब शिवलिंग मा माता सीता के पाँच अंगरी ले छेद होगे रिहिस । ओखर कारण ओला पंचमुखी महादेव भी कहे जाथे। आज भी माता सीता के अंगरी के निशान देखे बर मिलथे। दूर-दूर से भक्त मन पंचमुखी महादेव के दर्शन करे बर आथे। माँघी पुन्नी मा भव्य कुम्भ मेला के आयोजन होथे। पन्द्रह दिन ले लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलथे अउ बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हीरो-हीरोइन, कलाकार मन अपन कला प्रर्दशित करथे। देश-विदेश के मनखे मन घलो देखे बर आथें। दर्शन अउ कार्यक्रम के लाभ उठाथे।
ममा-भांजा मंदिर :
------------
           राजीव लोचन मंदिर ले बाहिर निकलते साठ ममा-भांजा के मंदिर हे। कहे जाथे की कुलेश्वर महादेव अउ राजिव लोचन के दर्शन तब तक पूरा नहीं होय जब तक ममा-भांजा के मंदिर के दर्शन नइ करे। येखर दर्शन बिना लोगन के दर्शन अधूरा माने जाथे।
कहे जाथे कि बाढ़ मा जब कुलेश्वर  मंदिर डूबत रिहिसे तब उहाँ ले एक आवाज निकलत रिहिसे बचाव...बचाव.... ममा मँय बूड़त हौं...। तब ममा ह अपन भांजा ला नाव मा सवार हो के बचाये ला गिस। तब से उहाँ ममा अउ भांजा एक साथ एक नाव मा बइठ के नदिया पार नइ कर सकँय।
          नदिया के किनारे बने ममा के मंदिर अंदर शिवलिंग ला बाढ़ के जल जइसे ही छूथे, वइसे ही बाढ़ अटाना चालू हो जाथे। कतको बाढ़ आ जथे फेर कुलेश्वर महादेव हर नइ बूड़े।
राजिम त्रिवेणी संगम मा अस्थि विसर्जन करे बर भी आथे। इहाँ मोक्ष के प्राप्ति होथे। दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन अस्थि विसर्जन कर के पिंड दान भी करथे।

कुम्भ मेला व दार्शनिक स्थल :-
---------------------
          माँघी पुन्नी मा कुम्भ के मेला के आयोजन करे जाथे। पन्द्रह दिन तक मनखे के कचाकच भीड़ रहिथे। देश-विदेश ले लोगन मन दर्शन करे बर अउ कुम्भ मेला के आनंद उठाये बर आथे। नदिया के तीर मा बाहर ले आये माला-मुँदरी बेचइया मन के पन्द्रह दिन तक डेरा रहिथे। बड़े-बड़े साधु-संत, चंदन-चोवा लगाय, हाथ मा तिरशूल धरे, डमरू धरे, भभूत चुपरे नागा साधु मन घूमत रहिथें। साधु मन के संगे-संग आम आदमी मन भी पुन्नी नहाये बर आथें। हमर राजिम नगरी हर बहुत बड़े तीरथ धाम कहलाथे । अपन जिनगी मा लोगन मन ला एक बार जरूर राजिम धाम के दर्शन करना चाही।
                ------///------

प्रिया देवांगन *प्रियू*

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लेख :

   // धरम अउ अध्यात्म के ठऊर : राजिम //
   
          हमर छत्तीसगढ़ धरम, अध्यात्म अउ दर्शन के भुइंयाँ आय। इहाँ देवी-देवता मन के वास होथे; अउ स्वयंभू भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग तको जगह-जगह विराजमान हे। छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा भी कहे जाथे काबर कि इहाँ धान के फसल जादा मात्रा मा उपजाय जाथे। अइसनेच हमर छत्तीसगढ़ ला तीरथगढ़ याने तीरतधाम के ठऊर घलो कहे जा सकथे काबर कि ये धरती मा कतको तीरतधाम अउ दार्शनिक स्थल हें, जेमा राजिम नगरी ह बड़ा नामी ठऊर आय। पहिली राजिम ला "कमलक्षेत्र" के नाम ले घलो जाने जात रिहिसे।
त्रिवेणी संगम राजिम नगरी :-
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          महानदी, पैरी अउ सोंढूर नदी मन जेन जगा मिले हे; तेन ला त्रिवेणी संगम कहे जाथे। हमर राजिम नगरी ह "छत्तीसगढ़ के प्रयाग" नाम से प्रसिद्ध हे। जेन हा गरियाबंद जिला मा स्थित हे। इहाँ के भुइंयाँ चारों मुड़ा हरियर - हरियर दिखत रहिथे। धान के बाली अउ किसम-किसम के फूल-पान मन ममहावत झूमत रहिथे। लोगन के बोली गुरतुर-गुरतुर लागथे। माघ के महीना मा कुम्भ के मेला के आयोजन होथे। राजिम नगरी हर भारत के पाँचवा धाम के रूप मा प्रसिद्ध हे। माघ पूर्णिमा मा शिवरात्रि तक भव्य आयोजन होथे, जेन पन्द्रह दिन तक रहिथे। छत्तीसगढ़ सरकार डहर ले राजिम मेला ल पाँचवा कुम्भमेला के दर्जा दे गे हे।
राजीव लोचन मंदिर :
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          राजिम मा सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हे। इहाँ के भुइंयाँ पवित्र माने जाथे। कहे जाथे कि वनवास काल मा श्री रामचन्द्रजी अपन कुल देवता महादेव जी के पूजा करे रिहिस। राजीव लोचन के बारे मा कहे जाथे कि गाँव के एक माईलोगिन राजिम रोज घूम-घूम के तेल बेचत रिहिस। एक दिन वोहर तेल बेचे ला जावत रिहिस त हुरहा जमीन मा दबे पथरा मा हपट गे, अउ मुड़ी मा बोहे तेल के बर्तन हा पूरा खाली होगे। राजिम माता ला अब्बड़ चिंता होय लागिस। तेल के खाली बर्तन ला पथरा ऊपर रख दिस अउ कहे लागिस मँय का करौं भगवान ! कइसे होगे ! घर के मनखे ला का कइसे बताहूँ। अपन आँखी ला मूँद के भगवान ले विनती करे लागिस। हाथ ला थेम के धीरे-धीरे उठ के खाली बर्तन ला उठाये बर देखिस ता, ओखर पाँव तरी के जमीन खिसक गे। आँखी बड़े-बड़े होगे। एकदम अकचका गे। ओखर खाली बर्तन हा तेल से लबालब भर गे रहय। ओखर खुशी के ठिकाना नइ रहिगे। "राजिम" हा घर जा के जम्मों आपबीती ला बताइस त कोनों नइ पतियावत रिहिस। दूसर दिन फेर तेल बेंचे ला निकल गे। बिहनिया ले संझा होगे फेर तेल एकोकनी नइ सिराये रहय। तब राजिम के घर वाले मन वो पथरा के शिला ला निकालिस त भगवान के मूर्ति रिहिसे अउ ओला अपन घर मा राखिस। तब ले धंधा-पानी बने चले अउ गरीबी घलो दूर होगे।
          एक दिन राजा जगत पाल के सपना मा राजीव लोचन भगवान हा आइस अउ कहिस कि मोर मूर्ति के स्थापना मंदिर मा करवा दे। मँय राजिम तेलिन के घर मा हो। राजा जगत पाल हा दूसर दिन राजिम तेली के घर चल दिस अउ सपना के बारे मा बताइस। राजिम ओखर बात ल नइ मानिस। राजा बहुत जिद्दी करीस । राजिम बिलख-बिलख के रोये मेहा मोर भगवान ला अपन से दूर नइ कर सकँव। राजा दूसर दिन अपन सैनिक मन ला भेजिस के जबरदस्ती उठा के मूर्ति ल लावव। मूर्ति एकदम गरू होगे, उठबे नइ करिस। तब फिर भगवान हा राजा के सपना मा आ के कहिस के जब तक राजिम के रजामंदी नइ होही, तब तक हिल नइ सकँव। तब राजा राजिम के पास जा के बोलिस कि माता तँय रो झन, जो माँगबे वो देहूँ; बस ये मूर्ति ला मंदिर मा स्थापना करन दे। राजिम माता बोलिस कि राजा मोला भगवान मिल गे अउ कुछ नइ चाही । ते हा भगवान के नाम ला मोर नाम से रखबे अउ ये पूरा संसार मा भगवान ला मोर नाम से जाने जाही । राजा मान गे। तब से  राजिम नगर के नाम से आज प्रसिद्ध हे।
महादेव मंदिर :
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          ये मंदिर के बारे मा सुने बर मिलथे कि नदिया के बीचों-बीच म कुलेश्वर महादेव विराजमान हे। कहे जाथे कि वनवास काल मा माता सीता अपन व्रत ला पूरा करे बर नदी मा स्नान कर के बालू (रेती) से महादेव के शिवलिंग बना के पूजा करे रिहिसे। अउ अँजुरी मा भर-भर के जल चढ़ाये रिहिस। तब शिवलिंग मा माता सीता के पाँच अंगरी ले छेद होगे रिहिस । ओखर कारण ओला पंचमुखी महादेव भी कहे जाथे। आज भी माता सीता के अंगरी के निशान देखे बर मिलथे। दूर-दूर से भक्त मन पंचमुखी महादेव के दर्शन करे बर आथे। माँघी पुन्नी मा भव्य कुम्भ मेला के आयोजन होथे। पन्द्रह दिन ले लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलथे अउ बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हीरो-हीरोइन, कलाकार मन अपन कला प्रर्दशित करथे। देश-विदेश के मनखे मन घलो देखे बर आथें। दर्शन अउ कार्यक्रम के लाभ उठाथे।
ममा-भांजा मंदिर :
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           राजीव लोचन मंदिर ले बाहिर निकलते साठ ममा-भांजा के मंदिर हे। कहे जाथे की कुलेश्वर महादेव अउ राजिव लोचन के दर्शन तब तक पूरा नहीं होय जब तक ममा-भांजा के मंदिर के दर्शन नइ करे। येखर दर्शन बिना लोगन के दर्शन अधूरा माने जाथे।
कहे जाथे कि बाढ़ मा जब कुलेश्वर  मंदिर डूबत रिहिसे तब उहाँ ले एक आवाज निकलत रिहिसे बचाव...बचाव.... ममा मँय बूड़त हौं...। तब ममा ह अपन भांजा ला नाव मा सवार हो के बचाये ला गिस। तब से उहाँ ममा अउ भांजा एक साथ एक नाव मा बइठ के नदिया पार नइ कर सकँय।
          नदिया के किनारे बने ममा के मंदिर अंदर शिवलिंग ला बाढ़ के जल जइसे ही छूथे, वइसे ही बाढ़ अटाना चालू हो जाथे। कतको बाढ़ आ जथे फेर कुलेश्वर महादेव हर नइ बूड़े।
राजिम त्रिवेणी संगम मा अस्थि विसर्जन करे बर भी आथे। इहाँ मोक्ष के प्राप्ति होथे। दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन अस्थि विसर्जन कर के पिंड दान भी करथे।

कुम्भ मेला व दार्शनिक स्थल :-
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          माँघी पुन्नी मा कुम्भ के मेला के आयोजन करे जाथे। पन्द्रह दिन तक मनखे के कचाकच भीड़ रहिथे। देश-विदेश ले लोगन मन दर्शन करे बर अउ कुम्भ मेला के आनंद उठाये बर आथे। नदिया के तीर मा बाहर ले आये माला-मुँदरी बेचइया मन के पन्द्रह दिन तक डेरा रहिथे। बड़े-बड़े साधु-संत, चंदन-चोवा लगाय, हाथ मा तिरशूल धरे, डमरू धरे, भभूत चुपरे नागा साधु मन घूमत रहिथें। साधु मन के संगे-संग आम आदमी मन भी पुन्नी नहाये बर आथें। हमर राजिम नगरी हर बहुत बड़े तीरथ धाम कहलाथे । अपन जिनगी मा लोगन मन ला एक बार जरूर राजिम धाम के दर्शन करना चाही।
                


रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com