ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 जून 2022

आलस करना बुरी बात है

 





  
मिठाई की एक दुकान मे दोपहर के समय दुकानदार अपने छोटे बच्चे को दुकान मे बैठाकर दुकान  से पीछे लगी कोठरी मे सोने चला जाता था।  उसने अपने बच्चे को कह रक्खा था कि अगर कोई ग्राहक आए तो मुझे जगा देना  ।  एक दिन  रामू और शामू नाम के नटखट लड़कों ने सोंचा कि कैसे मुफ्त मे मिठाई खाई जाऐ।  वे उस मिठाई की दुकानपर पहुँचे और पूछा जलेबी क्या भाव है. छोटा बच्चे ने जाकर पापा को उठाया, तबतक रामू और शामू कहीं छुप गये। दुकानदार आया किसी को दुकान मे नहीं देखकर फिर सोने चला गया ।  रामू शामू फिर आये और काउन्टर पर लगी मिठाई निकाल कर खाने लगे । उन्होने  बच्चे के टोकने पर   कहा कि अपने पापा को बताओ चींटा मक्खी आऐ है।   बच्चा चिल्ला कर बोला पापा, चींटा मक्खी आये है ।   पापा को नींद  आ रही थी वे आलस कर बोले आने दे बेटा आने दे। बच्चा फिर चिल्लाया पापा चींटा मक्खी मिठाई खाये जा रहे हैं दुकानदार अलसाकर बोला खाने दे बेटा खाने दे. लड़के मजे से मिठाई खाकर चुपचाप चले गये. आलसी दुकान दार पड़ा सोता रहा।।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

आषाढ आ गया

 


हर समय  मधुमास  नहीं रहता

आतप संताप जगत है सहता

पत्ते वृक्ष से जब दूर चले जाते

दरख़्त उष्मिता से सूख जाते


पथिक  जरा आराम नहीं पाते

पंछी  ठूंठ पर बैठने से कतराते

अंशुमान चहुँओर है आ जाता

आषाढ़ वसुन्धरा पर छा जाता


वारिद अभी दूर दूर तक नहीं है 

अवनि की प्यास व्यापक बडी है

नदी ताल मे जलाभाव छा जाता

आषाढ धरातल  पर  छा जाता




शरद कुमार श्रीवास्तव 



" सबक " एक बालकथा प्रिया देवांगन प्रियू की रचना

     


          बरसात का मौसम था। आकाश में काले-काले बादल छा रहे थे। अंधेरा होने वाला था। गली में बिजली खम्भे के नीचे कुछ छोटी-छोटी लड़कियाँ फुगड़ी खेल रही थीं। सब बहुत खुश थीं। अचानक बिजली चमकी। सब डर गयीं। वहीं पर ठहर गयीं। तभी मिन्नी बोली - "चलो यहाँ से चलते हैं, तेज बारिश होने वाली है। आँधी भी आने लगी है।" लेकिन किसी का भी मन घर जाने का नहीं हो रहा था। सभी इस सुनहरे मौसम का मजा लेना चाहते थे।
           विधि बोली - "मिन्नी ! तुम्हें जाना है तो जाओ। हम सब तो मौसम का मजा लेंगे और इस हल्की बारिश में भीगेंगे भी।" सभी लडकियाँ हँसने लगीं। मिन्नी बोली- "बारिश का मजा तो सबको अच्छा लगता है, लेकिन मेरे पापाजी जी कहते हैं कि जब जोर से बिजली चमके, तो बिजली खम्भे या पेड़ों के नीचे नहीं ठहरना चाहिये।" दूसरी लड़कियों को मिन्नी के ऊपर बहुत ग़ुस्सा आया। सभी मिन्नी से कहने लगीं- "मिन्नी,तुम्हें जाना है तो जा। हमें तेरा भाषण नहीं सुनना है।" मिन्नी वहाँ से चली गयी।


           फिर सभी लड़कियाँ दौड़-दौड़ कर खेलने लगीं। मस्ती करने लगीं। तभी बूंँदा-बाँदी भी शुरू होने लगी। बादल भी गरजने लगा। सभी बारिश का आनंद ले रहीं थीं। अचानक बारिश तेज होने लगी और बिजली का जोर-जोर से चमकना शुरू हो गया। लड़कियाँ घबरा गयीं और कहने लगी कि हमें भी मिन्नी के साथ ही घर चले जाना था। अब हम कहाँ रहेंगे। विधि बोली- "चलो उस पेड़ के नीचे जा कर खड़े हो जाते हैं। बारिश के थमते ही हम घर चलेंगे।"             थोड़े ही दूर में बहुत सारे पेड़-पौधे लगे हुए थे। जैसे ही लड़कियाँ आगे बढ़ने लगीं , बिजली पेड़ से कुछ दूरी पर गिरी। वे बाल-बाल बचीं। एकदम डर गयीं सबके-सब। सभी एक-दूसरे को देखने लगीं। किसी के मुँह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। बारिश में ही भींगते हुये सभी लड़कियाँ विधि के घर चली गयी।


            विधि के मम्मी-पापा ने लड़कियों को अपने घर की ओर आते हुए देख लिया। अंदर बुलाया और पूछा- "इतनी बारिश में क्यों भींग रहे थे तुम सब ?" लड़कियाँ डर के मारे कांँप रही थीं। विधि की मम्मी को समझ में आ गया कि कुछ न कुछ तो हुआ है, इसलिए बच्चे डरे हुये हैं। उन्होंने बातों ही बातों में घटना की पूरी जानकारी ली। पापाजी ने सबको को डांँट लगायी; और उन्हें समझाया- "जीवन में हमेशा याद रखना कि हमें पेड़ या बिजली खम्भे के नीचे ऐसे समय नहीं खेलना या रहना चाहिए। तुम सबने देखा है कि आसमान से वज्रपात पेड़ों पर जा गिरा । जैसे हम दो पत्थरों को आपस में रगड़ते हैं तो उससे आग उत्पन्न होती है , उसी तरह आसमान में भी बादल जब एक - दूसरे से टकराते हैं तो बिजली उत्पन्न होती है और वह धरती के गुरुत्वाकर्षण के कारण पेड़ों, बिजली खम्भों में गिर जाती है। जिस जगह पर गिरती है उस जगह के आसपास पूरा आग लगा देती है, नष्ट कर देती है। इससे निकलने वाला धुआँ बहुत ही हानिकारक होता है। आसपास के जगहों के अलावा वहाँ पर जाने वाले मनुष्य के शरीर को भी नुकसान पहुँचाती है। अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता। ऐसा नहीं है कि मिन्नी झूठ बोल रही थी। बादल व बिजली के सम्बंध में जो बातें उनके पिता जी ने उसे बताई है , वही तो उसने तुम्हें बताई ; और तुम सब को मजाक लगा। सभी सर झुकाये चुपचाप विधि के कमरे की तरफ चली गयी। उन्हें आज एक अच्छा सबक मिला था।
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रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बलशाली हूँ : एक बाल रचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 




बलशाली  हूँ स्वयं  शेर का

पंजा मोडूंगा

उसे चित्त करके मैं उसका जबड़ा तोडूंगा।


महाबली हूँ मेरे आगे कौन ठहर पाया, 

भागा पूँछ दबाकर मुझसे जो लड़ने आया।


तुमसब हो डरपोक ज़रा से चूहे से डरते,

मरियल बंदर से घबराकर हाय हाय करते।


चिड़ियाघर चलकरकेअपना दमदिखलाता हूँ

ढिशू ढिशू कर,बबरशेर को मार भगाता हूँ।


सबने मना किया कालू से ऐसा मत करना,

कहीं न उल्टा पड़े शक्ति का प्रदर्शन करना।


पर कालू ने किया अनसुना सबकी बातों को,

डाल दिया पिंजरे मेंअपने दोनों हाथों को।


किया शेर ने वार पकड़ पंजे को तोड़ 

बलशाली हूँ स्वयं शेर का

पंजा मोडूंगा

उसे चित्त करके मैं उसका जबड़ा तोडूंगा।


महाबली हूँ मेरे आगे कौन ठहर पाया, 

भागा पूँछ दबाकर मुझसे जो लड़ने आया।


तुमसब हो डरपोक ज़रा से चूहे से डरते,

मरियल बंदर से घबराकर हाय हाय करते।


चिड़ियाघर चलकरकेअपना दमदिखलाता हूँ

ढिशू ढिशू कर,बबरशेर को मार भगाता हूँ।


सबने मना किया कालू से ऐसा मत करना,

कहीं न उल्टा पड़े शक्ति का प्रदर्शन करना।


पर कालू ने किया अनसुना सबकी बातों को,

डाल दिया पिंजरे मेंअपने दोनों हाथों को।


किया शेर ने वार पकड़ पंजे को तोड़ दिया,

सुनकर भारी शोर शेर ने पंजा छोड़ दिया।


आपनी ताकत पर बच्चों अभिमान नहीं करना

कभी बड़ों की ताकत का, अपमान नहीं करना।

     


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

                 😊😊

सब धर्मो का सार











अंजू जैन गुप्ता
गुरूग्राम

आषाढ़ प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



आया है आषाढ़, साथ आ जाओ पानी।
देखर रहें हैं राह, छोड़ दो अब मनमानी।।
लालच देकर रोज, कहाँ जी तुम उड़ जाते।
दिखते पानी मेघ, धरा में क्यों नहिँ आते।।

गड़गड़ की आवाज, हिया में शोर मचाते।
सुनकर मानव शोर, सभी वे खुश हो जाते।।
कहीं गिराते नीर, बढ़ाते कहीं उदासी।
बेचारी ये झील, यहाँ बैठी है प्यासी।।

तरसे मन उल्लास, खण्ड वर्षा ये कैसी।
कहीं धूप अरु छाँव, नहीं पहले थी ऐसी।।
आओ बारिश बूंँद, रूठना अब तुम छोड़ो।
बांँटो अपना प्रेम, धरा से नाता जोड़ो।।

मानव का ये रूप, नहीं जी तुम अपनाओ।
नहीं बदलना रंग, सही पहचान दिखाओ।।
जोड़े हाथ किसान, कहे तुम नीर गिराओ।
ओ राजा आषाढ़, जरा हरियाली लाओ।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

नन्ही चुनमुन और उसकी पेन्टिंग

 


नन्ही चुनमुन  की मम्मी घर का काम करने मे लगी हुईं थीं ।  चुनमुन ने अपनी मम्मी  को सरप्राइज  देने के खयाल  से अपनी पेन्टिंग  के  सामान अपनी मम्मी की अलमारी की दराज से निकाल  कर  बिस्तर की चादर  पर  फैला कर ड्राइंग  शीट पर एक पेन्टिंग करने के लिए बैठ गई।   

चुनमुन  के मन मे आ रहा था कि वह पार्क  का दृश्य  बनाए ।   दो दिन  पूर्व  ही उसके मम्मी पापा उसे घर के पास  के एक पार्क  मे  ले गए  थे ।   उस पार्क  मे खूब  झूले लगे थे ।   सुंदर  सुंदर  फूलो की क्यारियाँ थी ।   एक छोटे से ताल मे एक छोटा फौवारा भी था ।   ताल मे पाँच छह बतखें भी तैर रही थी ।   चुनमुन  को सबसे ज्यादा  ताल, बतख़ और  फौवारे मे दिलचस्पी थी ।   बार बार  उस छोटे  ताल के पास जाकर  खड़ी हो जाती थी

पेंटिंग  करते समय उसे बस उसी  फौवारे बतखों का ही ध्यान  आ रहा था।   नन्ही चुनमुन ने  एक पेंसिल  निकाली और  पहले  उस फौवारे का एक चित्र  बनाया

फौवारा ठीक  बना था पर थोड़ा तिरछा था ।    जिस समय  चुनमुन  ने फौवारा देखा था वह चल नहीं रहा था  इसलिए  चुनमुन  ने भी फौवारे को चलता हुआ  नहीं दिखलाया ।  अब बतखें बनाने की बारी थी ।   बतख बनाने के बारे मे उसकी मेम ने परसों ही सिखलाया था ।  चुनमुन  ने पहले एक  बतख की तस्वीर  बनाई  वह खुद समझ नही पा रही थी कि यह एक  बतख़ की तस्वीर  है ।   अतः उसने मान लिया कि यह सही मे बतख़ है  ।  फिर  उसने उसी तरह की कुछ और  बतखें बनाईं।

ताल बतखें फौवारे जब सब बन गये तब चुनमुन  को कुछ  सूना सूना सा लगा ।    शायद पानी की कमी थी ।  पानी का रूप रंग स्वरूप  का चुनमुन  को कोई  आइडिया नहीं था।   वह झट से गई और अपनी पानी की बोतल  उठा लाई तथा  ताल  के चित्र  मे बोतल  को उडेल दिया ।  ड्राइंग शीट, चादर और  चुनमुन  के कपडे गीले हो गये ।  चुनमुन  यह देखकर  रोने लगी ।    तभी चुनमुन  की मम्मी आ गईं ।  उन्होने चुनमुन  को बिस्तर  से नीचे उतारा।  गीला हो गया चित्र  हटाया । चादर  बदली और  चुनमुन  के कपडे भी बदलाये।  गनीमत  थी कि चुनमुन  ने  रंगो का इस्तेमाल  नहीं किया था।


 



शरद कुमार श्रीवास्तव 


गुरुवार, 16 जून 2022

चूं चूं चिड़िआ के बच्चे

 



भयंकर जाड़े में, बेबी पीहू के घर के छज्जे में  कबूतरी ने, गमलों के झुरमुट के बीच में, दो अंडे दिए थे।  रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले चुपचाप दबे पाँव पीहू कौतुहल वश  अंडो को देखने जाती। स्कूल  से आकर भी  पहला काम होता था छज्जे पर जा कर अंडो को देखने जाना।  हर बार कबूतरी  अंडो के ऊपर बैठी मिलती थी। ऐसा कम ही मिलता कि कबूतरी वहाँ नहीं मिले एक दिन इत्फाक से कबूतरी वहाँ नहीं थी पीहू  बढ़कर जैसे ही अंडो को उठाने बढ़ी कि नाना जी आ गए उन्होंने पीहू को रोक दिया।  उन्होंने  बेबी पीहू को गोद मे उठाते  हुए बताया कि अंडो से बहुत जल्दी चूं चूं करते प्यार प्यारे चिड़िया के छोटे छोटे बच्चे निकलेंगे। इन्हे छूना भी मत।
पीहू का कौतुहल और बढ़ गया  रोज स्कूल से आते ही छज्जे पर देखने जाती और बार बार नाना जी से चूं चूं  करते चिड़िआ के बच्चों के बारे में पूछती  थी नाना जी बच्चे कब अंडो से बाहर निकलेंगे ? नानाजी कहते तुम उधर जाना नहीं बहुत  जल्दी ही बच्चे अंडे से बाहर निकाल आयेंगे चूं चूं करेंगे।
एक दिन अचानक पीहू के पापा जी छज्जे पर अखबार उठाने गए तो देखा कि अखबार वाले के जोर से अखबार फेंकने से लगे गमलो के कुछ पौधों की पत्तियां और डंडियां बुरी तरह से नष्ट हो गई हैं। वह बड़बड़ाते हुए अंदर आये।   पीहू तब तक स्कूल जा चुकी थी।  नाना जी ने जब सुना तो उनको चिड़िया के अण्डों का ख्याल आया।  वे छज्जे पर गए तो देखा कि दोनों अंडे फूट गए थे कुछ पौधे तहस नहस हो गए थे,  नाना जी कि आंखे नम हो गईं।
नन्ही पीहू के दिल को चूं चूं  चिड़िआ के बच्चे के ना देख पाने का कष्ट वह खुद महसूस कर रहे थे।  उन्होंने घर में इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। शायद  कबूतरी और उसके अण्डों  का प्रसंग घर के किसी व्यक्ति के प्राय: व्यस्त रहने के कारण, संज्ञान में नहीं था।  सिर्फ नानाजी और पीहू के बीच ही था।    पीहू के स्कूल से लौटने पर उसके पूछने पर नाना जी उसे बताया कि कबूतरी अपने चूं चूं  करते  बच्चे लेकर दूसरे घर चलीगई है।  अजन्मे कबूतरी के बच्चों के  बिछोह से नन्ही पीहू की  आँखे भी नम हो गईं।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 


क्रिकेट का खेल : दिवंगत अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव जी की रचना

 

यह श्री अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव  जी  की पूर्व  प्रकाशित  रचना है  श्री अखिलेश  चन्द्र श्रीवास्तव  जी का देहावसान  गत 9 जून  2022 को हो गया है । नाना की पिटारी की तरफ  से उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि







बच्चों मेरे पास सब आओ
11 -11 बच्चों की दो टीम बनाओ
दो अम्पायर ...दो कमेंटेटर बन जाओ
और दो स्कोरर बन जाओ
एक संभालेगा स्कोर बोर्ड
एक टीम ब्लैक कहलायेगी
दूसरी व्हाईट बन जायेगी
सारे मोहल्ले में अनाउंस कर आओ
मैच 10 बजे शुरू होगा...
औरफैसला किसी भी विवाद में
तीसरे अम्पायर का ही मान्य होगा..

**** **** **** **** ****

दर्शक सब सीटों   पर बैठ जाओ
आगे    दोनों     कैप्टन    आओ
सिक्का उछाल      फैसला होगा
जो टॉस  जीतेगा..  फैसला लेगा
कि वो बैटिंग या फील्डिंग करेगा..
सबका ध्यान    इधर हो     भाई
सिक्के   पे     बोली      लगाओ
हेड  या टेल     अपना बतलाओ
सिक्का उछला .....टेल आ गया
व्हाइट टीम का कैप्टेन जीत गया
वोह बोला पहिले फील्डिंग करेगा
अब कुछ    चैटिंग    चलती भाई
खेल       अब     शुरू होगा भाई
*** ****  **** ****

बैटिंग करने ब्लैक टीम के   ओपनर आ गये
फील्डिंग करने व्हाइट टीम के लोग जम गये
अम्पायर लाल साहब और मीर अली आ गये
थर्ड अम्पायर सक्सेना जी  जम गये सीट पर
ओपनर है ...बिल्लू और    संदीप  निगम जी
बॉलर है   अपनी जानी पहिचानी मनीषा  जी
बड़ी   तेज...फ़ास्ट    बॉलिंग     करती      है
उसकी तूफानी गेंदों से ..विपक्षी टीम डरती है
पहिला    बाल....... खेलेंगे         बिल्लू...जी
दम        साधे       सावधान      खड़े       है..
फेस            गॉर्ड ....      पहिने      हुए    हैं
अम्पायर         का        हुवा           इशारा...
मनीषा          दौड़ी       खूब           जोर से..
बाल        उसने          फेंका      पूरे जोर से
खटाक         से        आवाज      फिर आई
बाल उडी आकाश में ..बाउण्ड्री के पार  गिरी
एम्पायर के उठे दोनों हाथ सिक्सर का इशारा
शोर     से      गूँज.... उठा    मैदान      सारा
बिल्लू     जी       हैं      बहुत              खुश 

पहिले  ही     बाल     पर   सिक्सर जो मारा
मनीषा  ने दुसरे बॉल के     लिये दौड़ लगाई
बम्पर फेंका..    समझ न पाया बिल्लू बेचारा
लगी      बैट      की     एज              और
बॉल     उछल     कर     कैच     हो    गयी
बिल्लू           बिचारा     गया            मारा
आउट       हो      गया                 बिचारा




अखिलेश  चन्द्र  श्रीवास्तव 


"अपना फर्ज निभाओ" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



काट रहे हैं जंगल झाड़ी, नहीं पवन का झोंका है।
मिलकर सारे पेड़ लगाओ, तुम को किसने रोका है।।

बदल लिया करवट  मौसम ने, सूर्य चन्द्र की बारी है।
हाहाकार मचा है देखो, महमारी भी जारी है।।

जल्द समस्या हल कर डालो, फिर हरियाली आयेगी।
सुंदर सुंदर फूल खिलेंगे, चिड़िया गीत सुनायेगी।।

रूठ गयी गर धरती मैया, कैसे प्यास बुझाओगे।
देख रहे सूरज गुस्से से, कैसे उसे मनाओगे।।

विश्व धरा पर खड़ी समस्या, जल्दी से सुलझाओ जी।
कलयुग के मानव होने का, अपना फर्ज निभाओ जी।।




रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

कृष्ण कुमार बेदिल द्वारा संकलित रचना साभार काव्यशाला .....कलम

 




*अच्छी हिंदी लिखने के इच्छुक लोग कृपया ध्यान दें..*

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हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं..!


कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए..!


जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं,

जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई..!


इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए..!


इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं..!

'नई' ग़लत है, सही शब्द 'नयी' है... 

मूल शब्द 'नया' है, उससे 'नयी' बनेगा..!


क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...?

('मिलाई' ग़लत है..!)


आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी..!

('जताई' ग़लत है..!)


उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी..!

('पाई' ग़लत है..!)


अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर..!

बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये..!

('बनाए' नहीं..!)


लोगों ने नेताओं के सामने अपने-अपने दुखड़े गाये..!

 ('गाए' नहीं..!)


दीवाली के दिन लखनऊ में लोगों ने अपने-अपने घर सजाये..! ('सजाए' नहीं..!)


तो फिर प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..?

'ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध या रिक्वेस्ट की बात होगी..!


अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ..! ('देखिये' नहीं..!)


आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए..! ('सोचिये' नहीं..!)

नवेद! ऐसा विचार मन में न लाइए..! ('लाइये' ग़लत है..)


अब आख़िर (अन्त) में 'यें' और 'एँ' की बात...

यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा... 

रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा, 'यें' नहीं..!


आप लोग कृपया यहाँ आएँ..! ('आयें' नहीं..)

जी बताएँ, मैं आपके लिए क्या करूँ? ('बतायें'नहीं..)

मम्मी, आप डैडी को समझाएँ..! ('समझायें' नहीं..!)


अन्त में सही-ग़लत का एक लिटमस टेस्ट...

एकदम आसान सा... 


जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है, वहाँ 'या' लगाकर देखें..!


क्या कोई शब्द बनता है..? 

यदि नहीं, तो आप ग़लत लिख रहे हैं..!


आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं... इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए..!


'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं, इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा..!


'दुआयें' भी इसलिए ग़लत है और 'सदायें' भी 'देखिये', 'बोलिये', 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया', 'बोलिया', 'सोचिया' कुछ नहीं होते..!


कृष्ण कुमार बेदिल 

मेरठ 

छछून्दर के बच्चे! रचना वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 


एक दूजे की पूंछ पकड़कर,

चले    छछून्दर   के    बच्चे,

माँ   के  साथ  दौड़ते   सारे,

लगते    हैं   कितने    अच्छे।


आँखें बंद रखो  सब अपनी,

माँ   ने    उनको    बतलाया,

चले चलो बस शांत भाव से,

बच्चों  को  यह  सिखलाया।


बोलोगे  तो   बीच   राह   में,

दूर   कहीं     छुट    जाओगे

भटक भटककर मरजाओगे,

घर   की   राह   न   पाओगे।


इंजन बनकर  माँ  बच्चों को,

चलना   स्वयं   सिखाती   है,

सभी छछून्दर के  बच्चों  को,

माँ   की   सीख   सुहाती  है।


माँ  का  जो  कहना  मानेगा,

वह     आगे    बढ़   जाएगा,

निर्भय होकर वह जीवन की,

सारी      खुशियां     पाएगा।


माँ  की  ममता  के आगे  तो,

सब  कुछ  फीका - फीका है,

जीव जगत में सबकी माँ को,

बच्चों   का   सुख   दीखा  है।

         


         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

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 "हे ! मानव" (चौपाई) : प्रिया देवांगन "प्रियू"



हे मानव तुम पेड़ लगाओ।
तेज धूप से हमें बचाओ।।
दर दर भटके हम बेचारे।
अपनी किस्मत से हैं हारे।।

तुम तो ए सी में सो जाते।
ताजा ताजा भोजन खाते।।
मानव तुम महलों में रहते।
जरा धूप को तुम ना सहते।।

गली गली हम ढूँढे छाया।
भरी धूप में जलती काया।।
गाड़ी के नीचे जब जाते।
कभी मार कर हमें भगाते।।

दिनभर रहते भूखे प्यासे।
धीमी होती जाती साँसे।।
हे! मानव तुम हमें बचाओ।
धरती में हरियाली लाओ।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

सोमवार, 6 जून 2022

लखनऊ मे बड़ा मंगल

 



ज्येष्ठ माह के मंगलवार को हनुमानजी की पूजा-अर्चना करने से आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। इसलिए इसे बड़ा मंगल , बुढ़वा मंगल कहते हैं।  यह एक त्योहार  की तरह लखनऊ  या उसके आसपास  हिंदू और मुस्लिम समुदाय द्वारा मिलकर मनाते हैं।   बड़े मंगल की शुरुआत 400 साल पहले अवध के नवाब ने की थी। नवाब मोहम्मद अली शाह के बेटे गंभीर रूप से बीमार थे। उनकी बेगम ने कई जगह उसका इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। लोगों ने नवाब और उनकी बेगम रुबिया को बेटे की सलामती के लिए लखनऊ के अलीगंज स्थित पुराने हनुमान मंदिर में मन्नत मांगने को कहा। नवाब के मन्नत मांगने पर बेटा पूरी तरह स्वस्थ हो गया। इसके बाद नवाब और बेगम ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उन्होंने मुस्लिम सौहार्द के प्रतीक के रूप मे अलीगंज लखनऊ के पुराने हनुमान मंदिर मे चान्दी का चांद लगवाया जो आज भी मौजूद  है ।  इसके साथ ही ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में हर मंगलवार को पूरे शहर में पानी और गुड़ वितरण करवाया । उसीके बाद से बड़ा मंगल मनाने की परंपरा शुरू हो गई।

"छिपकली" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 गूगल से प्राप्त जानकारी के अनुसार 

छिपकली स्क्वमाटा जीववैज्ञानिक गण के सरीसृप प्राणियों का एक उपगण है, जिसमें अंटार्कटिका के अलावा लगभग विश्व भर के हर बड़े भू-भाग में मिलने वाली लगभग ६००० ज्ञात जातियाँ शामिल हैं।

संपादक




सुनो! छिपकली घर में आती।
कीड़े को झट से खा जाती।।
दोस्तों को सँग में है लाती।
अपने पीछे उसे घुमाती।।

दीवारों में चिपकी रहती।
कुटुर कुटुर वो छुप कर कहती।।
छोटी छोटी आँखें होती।
पता नहीं वो कब है सोती।।

कभी नहीं वो पीती पानी।
करती है अपनी मनमानी।।
अपने सँग बच्चों को लाती।
घर को भी गन्दा कर जाती।

छुप छुप कर अंडे है देती।
सुबह शाम फिर उसको सेती।।
उसके बच्चे धूम मचाते।
दरवाजों में वो दब जाते।।

देख उसे बच्चे डर जाते।
मम्मी को आवाज लगाते।।
मम्मी अपनी छड़ी उठाती।
सी.. सी.. कर के उसे भगाती।।




रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

एक वृक्ष बस रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 विश्व पर्यावरण संरक्षण  दिवस पर विशेष 





 जेठ की दुपहरी मे

ठांव दे रहा बटवृक्ष

दिन मे शीतल छांव

और सांसो को सांस


शाखाओ को बिखेरे

स्वागत  करता हर पल 

बटोही तनिक  ठहर तू

विश्राम  कर फिर जाना


मै बादलो को रोक रहा 

खड़ा अकेला एकाकी

मानव की पिपाषा मे

कट रहे वृक्ष पर वृक्ष 


तुम एक  वृक्ष लगाओगे

धरा की प्यास  बुझाओगे

प्रश्न है पर जटिल  नहीं

एक संकल्प  करो बस





शरद कुमार श्रीवास्तव 

शीलकुंज  

मेरठ

सायकिल रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"



सायकिल चलाना, मजे उड़ाना, बचपन के दिन, याद करे।
दोस्तों सँग जाना, रेस लगाना, ऊपर-नीचे, श्वांँस  भरे।।
हाथों को छोड़े, हैंडल मोड़े, मैदानों में, साथ बढ़े।
धरती भी बंजर, होता पंचर, पकड़ पहाड़े, सभी चढ़े।।

वो घूमे बस्ती, करते मस्ती, सीट बैठ कर, राह चले।
जादा इठलाते, हम गिर जाते, बैठ वहाँ पर, हाथ मले।।
ये बात पुरानी, बनी कहानी, आओ मिलकर, याद करे।
बचपन भी बीते, जीवन जीते, कभी खुशी से, आँख भरे।।






रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

गंगा दशहरा : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 



आज हम  भारत से लुप्त हो रहे त्योहारों के बारे में जानकारी देने क्रम मे, एक महत्वपूर्ण  त्यौहार, "गंगा दशहरा" के बारे में  जानकारी दे रहे हैं । जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि (अर्थात इस वर्ष दिनांक 09/06/2022) को हम गंगा-दशहरा पर्व के रूप मे मना रहे हैं । कहते हैं कि हमारी पावन गंगा का अवतरण इसी दिन धरती पर हुआ था । आज के दिन भारतवासी गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। उसके उपरांत वे भगवान् का ध्यान और दान करते हैं । इससे उन्हें उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है । अगर गंगा जी पास मे नहीं है तब किसी भी नदी में स्नान करने और भगवान् का ध्यानकरते हुए दान करने से पाप दूर हो जाते है ।
स्कन्द पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरित होने की कथा है, वह इस प्रकार है ।
एक बार अयोध्या के नरेश राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिये एक घोड़ा धरती पर छोड़ा । स्वर्ग के राजा इन्द्र को ईर्षावश राजा सगर का यह यज्ञ अच्छा नहीं लगा । उन्होंने अश्वमेध के लिए छोड़े हुए घोड़े को पकड़ कर पाताल लोक ले गये और कपिल मुनि के पास बांध दिया । इधर राजा सगर के अश्वमेध के घोड़े के गायब होने की खबर से चारों ओर खलबली मच गई । राजा सगर के सैनिक चारों तरफ दौड़े । राजा के साठ हजार सैनिक पाताल लोक में भी गये । वहाँ उन्हें अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के समीप बंधा हुआ मिला । वे लोग यह देखकर चोर चोर कर चिल्लाने लगे । कपिल मुनि ने जब यह देखा तब उनके क्रोध से सारे साठ हजार सैनिक जलकर समाप्त हो गये । इन साठ हजार लोगों के उद्धार के लिए राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा जी को धरती पर भेजने का निर्णय लिया । इसके पहले ब्रह्मा जी सुनिश्चित होना चाहते थे कि गंगा जी के वेग को धरती संभाल सकेंगी। ब्रह्मा जी ने भागीरथ जी से कहा कि वह भगवान् शिव को प्रसन्न करें ताकि वे गंगा जी को धरती पर अवतरित होने से पहले अपनी जटाओं में संभाल लें। धरती की भी स्वीकृति आवश्यक है । भागीरथ ने खूब तपस्या की और भगवान् शिव को खुश किया । भागीरथ ने अपने अथक प्रयास से गंगा जी को धरती पर लाकर अपने पुरखों का उद्धार किया । इसीलिए गंगा जी को भागीरथी भी कहा जाता है और पूरी चेष्टा से किये गये प्रयास को भागीरथी प्रयास भी कहा जाता है ।



शरद कुमार श्रीवास्तव