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गुरुवार, 27 जून 2019

चूं चूं चिड़िआ के बच्चे :बालकथा :शरद कुमार श्रीवास्तव






भयंकर जाड़े में, बेबी पीहू के घर के छज्जे में  कबूतरी ने, गमलों के झुरमुट के बीच में, दो अंडे दिए थे।  रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले चुपचाप दबे पाँव पीहू कौतुहल वश  अंडो को देखने जाती। स्कूल  से आकर भी  पहला काम होता था छज्जे पर जा कर अंडो को देखने जाना।  हर बार कबूतरी  अंडो के ऊपर बैठी मिलती थी। ऐसा कम ही मिलता कि कबूतरी वहाँ नहीं मिले एक दिन इत्फाक से कबूतरी वहाँ नहीं थी पीहू  बढ़कर जैसे ही अंडो को उठाने बढ़ी कि नाना जी आ गए उन्होंने पीहू को रोक दिया।  उन्होंने  बेबी पीहू को गोद मे उठाते  हुए बताया कि अंडो से बहुत जल्दी चूं चूं करते प्यार प्यारे चिड़िया के छोटे छोटे बच्चे निकलेंगे। इन्हे छूना भी मत।
पीहू का कौतुहल और बढ़ गया  रोज स्कूल से आते ही छज्जे पर देखने जाती और बार बार नाना जी से चूं चूं  करते चिड़िआ के बच्चों के बारे में पूछती  थी नाना जी बच्चे कब अंडो से बाहर निकलेंगे ? नानाजी कहते तुम उधर जाना नहीं बहुत  जल्दी ही बच्चे अंडे से बाहर निकाल आयेंगे चूं चूं करेंगे।
एक दिन अचानक पीहू के पापा जी छज्जे पर अखबार उठाने गए तो देखा कि अखबार वाले के जोर से अखबार फेंकने से लगे गमलो के कुछ पौधों की पत्तियां और डंडियां बुरी तरह से नष्ट हो गई हैं। वह बड़बड़ाते हुए अंदर आये।   पीहू तब तक स्कूल जा चुकी थी।  नाना जी ने जब सुना तो उनको चिड़िया के अण्डों का ख्याल आया।  वे छज्जे पर गए तो देखा कि दोनों अंडे फूट गए थे कुछ पौधे तहस नहस हो गए थे,  नाना जी कि आंखे नम हो गईं।
नन्ही पीहू के दिल को चूं चूं  चिड़िआ के बच्चे के ना देख पाने का कष्ट वह खुद महसूस कर रहे थे।  उन्होंने घर में इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। शायद  कबूतरी और उसके अण्डों  का प्रसंग घर के किसी व्यक्ति के प्राय: व्यस्त रहने के कारण, संज्ञान में नहीं था।  सिर्फ नानाजी और पीहू के बीच ही था।    पीहू के स्कूल से लौटने पर उसके पूछने पर नाना जी उसे बताया कि कबूतरी अपने चूं चूं  करते  बच्चे लेकर दूसरे घर चलीगई है।  अजन्मे कबूतरी के बच्चों के  बिछोह से नन्ही पीहू की  आँखे भी नम हो गईं।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 

बुधवार, 26 जून 2019

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : मित्रता





मित्रता
विनय और अमन बचपन से गहरे दोस्त थे | एक दिन भी एक दूसरे को देखे बिना या मिले बिना चैन नहीं मिलता था |
विनय और अमन की दोस्ती के चर्चे स्कूल मे  काफी मशहूर थे|लोग तो यहां तक कहते थे कि दोनों की दोस्ती कृष्ण सुदामा की दोस्ती को भी मात करती है |
इसी तरह हंसी खुशी से दिन बीत रहे थे |
एक दिन अचानक स्कूल मे विनय की तबियत खराब हो गई | कक्षा मे ही उसे उल्टी हो गई | तुरत डा. के पास ले गये  | डा. ने दवा दे दी | कहा चिन्ता की कोई बात नहीं |आराम करने को कहा |
दूसरे दिन विनय को फिर उल्टी हुई | और दो तीन बार हुई|विशेषज्ञ ने पूरी जाँच की विनय की|
विशेषज्ञ ने विनय के परिजनों को जाँच की पूरी रिपोर्ट बताई | डा. ने बताया कि विनय के फेफड़े मे संक्रमण हो गया है|  दवा दे दी |
लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था |शहर के सबसे बड़े डॉक्टर को दिखाया गया |
दो
े दिन बाद जाँच की रिपोर्ट मिली ||
|उसमे पाया गया कि फेफड़े मे कैंसर है |
विनय के माता पिता बहुत परेशान|
विनय का परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था |विनय के माता पिता को डॉक्टर ने पूरी बात  समझाई कि कैंसर की अभी  शुरुआत है | इलाज कराने पर बिल्कुल ठीक हो जायगा
पूरा खर्चा आयगा करीब ३ ,या ३ १/२ लाख रूपये | ज्यादा भी लग सकते हैं |
विनय के माता पिता की चिन्ता वाजिब थी| इतने रूपये कहां से आयेंगे?
विनय के माता पिता को चिन्तित देखकर अमन ने उनको धीरज बंधाया कि सब ठीक होगा चिन्ता न करें अंकल |
अमन ने विनय की बीमारी की बात अपने पापा को बताई| अमन ने पापा से कहा क्यूँ न हम विनय के इलाज के लिये पैसे दे दें | पापा ने भी कहा हाँ हाँ क्यों नहीँ? आखिर वह तुम्हारा दोस्त है | यदि ऐसे वक्त भी हम उसके काम न आ सके तो दोस्ती कैसी?
हांलाकि अमन भी मध्यम परिवार से ही था | उसके पिता सरकारी    नौकरी मे कार्यरत थे | लेकिन दूसरों की मदद करने के लिये दो कदम आगे ही रहते थे   |
विनय का इलाज शहर के सबसे बड़े अस्पताल मे शुरू हो गया |
धीरे धीरे विनय के स्वास्थ्य मे सुधार होने लगा |
विनय के माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था| एकलौता बेटा जो था|
अमन प्रतिदिन विनय के पास आकर बैठता था|
उसका हौसला बढ़ाता था जिससे विनय अपनी बीमारी के बारे मे ज्यादा न सोचे|
दिन बीत रहे थे | विनय के स्वास्थ्य मे भी सुधार हो रहा था |
साल बीत चुका था| विनय भी अब पूर्ण स्वस्थ हो चुका था|
डॉक्टर ने विनय को अस्पताल से छुट्टी दे दी थी| वह घर आ गया था|
उसके घर मे खुशी का माहौल था
सबसे ज्यादा खुशी अमन को हो रही थी कि वह अपने दोस्त को दूसरा जीवन दिलाने मे सफल रहा |
उधर विनय जैसे अहसानों के तले दबा जा रहा था|उसने  विनय से कहा  अहसान कैसा? यदि मेरा दोस्त मुझसे बिछड़ जाता तो मै कैसे रह पाता | पैसा तो हाथ का मैल है| फिर आ जायगा पर दोस्त कहां से लाता |
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बच्चों सच्चा दोस्त वही है जो मुसीबत मे साथ दे |
मंजू श्रीवास्तव नोएडा


लल्ला की आंखों मे पानी : बालगीत : शरद कुमार श्रीवास्तव






















लल्ला की आंखों मे पानी
छुट्टियों की खत्म कहानी
नानी के घर से अभी आया
दादीजी ने बस्ता खुलवाया

छुट्टी की मस्ती फुर्र हो गयी
होमवर्क मे वो कहाँ खो गई
अब तो लल्ला जायेगा शाला
शुरू हो गया फिर वही बवाला




शरद कुमार श्रीवास्तव

कृष्ण कुमार वर्मा की बालकविता : आओ स्कूल चलें हम






















आओ बच्चो स्कूल चले हम ,
रोज नयी नयी चीज़े सीखे हम ...
पढ़ना , लिखना और खूब खेलना , 
अच्छी बातें , हरपल है बोलना ...

शिक्षक जीवन के मूल्य सिखाते ,
शिक्षा का निरंतर महत्व बताते ...
गणित , विज्ञान , भाषाओ का अभ्यास कराते ,
मन से भय और दुविधाओं का जाल हटाते ....

जीवन मे आगे बढ़ना है , खूब पढ़ाई करना है ,
रोज स्कूल जाना है , चुनौतियों से आगे बढ़ना है ...
आओ बच्चो स्कूल चले हम ,
रोज नयी नयी बाते , सीखे हम ...












कृष्ण कुमार वर्मा 
चंदखुरी फार्म , रायपुर [ छतीसगढ़ ]

रविवार, 16 जून 2019

भुवनेश्वर की उदयगिरि और खंड गिरि की गुफाएं : शरद कुमार श्रीवास्तव













भुवनेश्वर में उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं  स्थित हैं ।  यह दोनों पहाड़ियां मुख्य शहर से लगभग 7-8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।  यहाँ कभी प्रसिद्ध जैन मठ हुआ करते थे जिन्हें पहाड़ी की चोटी पर चट्टानों को काट कर बनाए गए कक्षों में चलाया जाता था। दूसरी शताब्दी में निर्मित ये कक्ष बहुत आकर्षक और नक्काशी दार रहे होंगे ऐसा इनके भग्नावशेषों को देखकर आभास होता है।   रानी गुफा और हाथी गुफा  इस का सबूत हैं।

ये कक्ष अथवा गुफाएं तत्कालीन जैन धर्मावलंबियों द्वारा विश्राम के लिये किए जाते रहे होंगे इस का प्रमाण  उनमे  सिरहाने बनीं तकिये के रूप में शिलाएं है।

 उदयगिरि में जहां 18 गुफाएं हैं, वहीं खंडगिरि में 15 गुफाएं और एक मंदिर हैं।

शरद कुमार श्रीवास्तव 

19 ऊंट की कहानी : शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव





एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे।

एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।

मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार फिर?

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5 बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4 नौकर को दे दिए।

10+5+4=19

बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...

वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा हो गया



सौजन्य से
                श्री शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव

कौवे और मुर्गी की साझा खेती : शरद कुमार श्रीवास्तव






 






















बच्चों आप जानते हैं कि साझा काम किेसे कहते हैं ।   जब दो या कई लोग मिल कर किसी एक काम को करें तो उसे साझा काम कहते है।  साझा काम मे पार्टनर्स  को अपना अपना साझा लाभ / हानि  मिलता है।  इसी पर आधारित है यह कहानीः-

एक बार एक पेड़ पर एक कौवा रहता था ।  उसी पेड़ के नीचे एक मुर्गी भी अपने बच्चों के साथ रहती थी ।  मुर्गी बहुत मेहनती थी और कौवा बहुत आलसी था।  कौवे ने एक बार मुर्गी से कहा ,बहन अगर हम साझा खेती करें तो कितना अच्छा हो।   मुर्गी ने कहा हाँ , मिलजुल कर काम करने मे क्या बुराई है मै तैयार हूँ।    कौवा बोला तैयार मै भी हूँ पर मै थोड़ा बिजी रहता हूँ जब कोई काम हो तब आप मुझे बुला लीजियेगा।

कुछ समय बाद खेती करने के लिये जमीन की जुताई करने का समय आया ।  मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की जुताई करवाओ आकर,  कौवा बोला ‘ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’.  मुर्गी ने खेतों की जुताई कर ली।
जब जमीन से घास पूस दूर करने का समय आया तो   मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की खर पतवार हटवाओ ।  कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’।   मुर्गी ने खेतों  से खर पतवार भी दूर कर दी।
अब खेत मे बीज डालने का समय आया ।  मुर्गी ने आवाज लगाई आओ भाई अब तो आओ जमीन मे बीज डाले जायें।  कौवा फिर बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’.  मुर्गी क्या करती उस ने खेतों मे बीज भी बो दिये।

खेत में पौधे निकल आये तब सिचाई करने का समय आया ।  मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की सिंचाई करवाओ आकर.  कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’.  मुर्गी ने खेतों की सिंचाई कर ली.
अंत मे खेतो मे लगे गेहूँ की बालियाँ  काटने का समय आया ।  मुर्गी ने फिर आवाज लगाई आओ गेहूँ कटवाओ  तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’.  मुर्गी ने हारकर गेहूँ की कटाई भी कर ली।

जब गेहूँ की बालियाँ  से गेहूँ निकालने का समय आया तो   मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ निकलवाओ  तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’.  मुर्गी ने गेहूँ की बालियों से गेहूँ भी निकाल  लिया।
गेहूँ पीस कर आटा बनाने का समय आया ।   मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ पिसवाओ  तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’।   मुर्गी ने गेहूँ पीस कर आटा भी बना लिया.
मुर्गी आटे से पूड़ी बनाने लगी तब फिर उसने आवाज लगाई आओ पूड़ी बनवाओ  तब फिर कौवा बोला ‘ ऊँची डाल पे बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .’।  मुर्गी ने आटा सान कर पूड़ी भी बना ली
जैसे ही पहली पूडी कड़ाई से निकली कौवा नीचे आगया।  बोला लाओ पूड़ी लाओ बहुत भूख लगी है।  मुर्गी ने एक डंन्डा फेक कर कौवे को मारा कि काम धाम कुछ नहीं किया पूडी बटाने आ गया।   आलसी और कामचोर को कुछ नहीं मिलेगा। पूड़ी मैं खाऊंगी और मेरे बच्चे खाएगे ।   कौवा रोता हुआ वहाँ से भाग गया।


                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 

मैं जहाज बन जाऊँ (बाल कविता) सुशील शर्मा


माँ  मैं जहाज बन जाऊँ।
आसमान की सैर कराऊँ।

अपनी पीठ पर तुझे बिठाऊँ।
छत से मैं ऊपर उड़ जाऊँ।

उडूं हवा में सर सर ऐसे।
उड़े हवा में पंछी जैसे।

लाल किला के ऊपर घूमूँ।
एफिल टावर को मैं चूमूँ।

सात समंदर पार कराऊँ।
हनुमान बन कर दिखलाऊँ।

एवरेस्ट पर लेंडिंग करके।
भारत को देखूँ जी भरके।

माँ तुम बिलकुल मत घबड़ाना।
आँख बंद करके मुस्काना।

सारे विश्व की सैर कराऊँ।
माँ तेरी गोदी चढ़ जाऊँ।

















सुशील शर्मा

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : सेनापति वाशिंगटन




अमेरिका मे सैनिकों के आवास  के लिये निर्माण कार्य चल रहा था| मेन गेट बनाने के लिये मोटे मोटे लकड़ी के लट्ठ लाये जा रहे थे |
लट्ठ  उठाकर एक गाड़ी पर चढ़ाना था | इस कार्य के लिये काफी मज़दूर काम मे लगे थे | पर उस लट्ठ को उठाने मे सभी विफल रहे|
कुछ दूरी पर मज़दूरों का नायक खड़ा यह सब देख रहा था |
उसी वक्त  अमेरिकी सेनापति घोड़े पर उधर से गुजर रहा था |उसने देखा कि मज़दूर लट्ठ उठाने मे असमर्थ हैं|>वह तुरत घोड़े पर से उतरा और मज़दूरों के साथ जोर लगाया और लट्ठ गाड़ी पर चढ़ा दिया |
सेनापति उस नायक के पास गया और नायक से कहा कि यदि आपने मज़दूरों की थोड़ी मदद कर दी होती तो लट्ठ आसानी से गाड़ी पर चढ़ गया होता |
नायक बोला मै नायक हूँ, मज़दूरों के साथ कैसे काम कर सकता था?
सेनापति ने कहा मुसीबत के वक्त किसी की मदद करने से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता|
सेनापति ने वहां से जाते समय  मज़दूरों से कहा आगे कभी कोई जरूरत पड़े तो सेनापति वाशिंगटन को याद करना |
जब नायक को पता लगा कि सेनापति ,राष्ट्रपति वाशिंगटन थे तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ और सेनापति से माफी मांगी |
*****************************
बच्चों हर इन्सान का कर्तव्य है कि मुसीबत के वक्त हर इन्सान की मदद करनी चाहिये ,चाहे कोई बड़ा हो  या छोटा | मुसीबत छोटा या बड़ा नहीं देखती |






मंजू श्रीवास्तव 
नोएडा 

गुरुवार, 6 जून 2019

पर्यावरण दिवस पर एक बालगीत : शरद कुमार श्रीवास्तव





















आओ मिलजुल हम पेड़ लगाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल हम पानी बचाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल कूड़ा न फैलाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल धुआँ न फैलाऐ
पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल शोर मत मचाऐ
पर्यावरण वचाऐं पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल पॉलीथिन हटाऐं
पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं

                        शरद कुमार श्रीवास्तव 

(पर्यावरण दिवस पर विशेष) गुलाब परी के फफोले : बालकथा : शरद कुमार श्रीवास्तव






गुलाब परी सो कर उठी । उठ कर अपने घर के सामने वाले झरने पर मुँह धोने के लिए हाथ बढ़ाया तो झरने  में  पानी नहीं था । आज हवा सो गई थी । हवा आज झरने तक ओस की बूँदें भरकर नहीं लाई थी । सबेरे ही गर्मी का दैत्य लाल लाल आँखों से डरा रहा था ।   गुलाब परी के शरीर पर फफोले पड़ गये थे ।  उस रात, यद्यपि उसके पापा मम्मी ने उसे सात मुलायम गद्दों के ऊपर सुलाया था , फिर भी प्रदूषण की वजह से गुलाब परी के गद्दों के नीचे पड़ी धूल की एक कण की वजह से गुलाब परी के बदन पर फफोले पड़ गये थे । गुलाब परी की मम्मी को अपनी बच्ची की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी । उसने अपनी बच्ची की तकलीफ़ की शिकायत महारानी प्रकृति से की । महारानी ने आदेश जारी किया कि गुलाब परी की तकलीफ के कारणो का पता लगाया जाय ।
एक  नन्ही रंग-बिरंगी तितली को इस काम के लिए महारानी ने लगाया ।        उस तितली ने हवा,जल और भूमि को दोषी पाया । तितली ने अपनी रिपोर्ट कोयल को प्रस्तुत किया । कोयल ने हवा की बात सुनी । हवा ने अपने बचाव  में  अपने  साथ साथ जल और भूमि का पक्ष रखा । प्रदूषण से भरपूर हवा , कोयल के सुर को भी नुकसान पहुंचा रही थी । अतः पेड़ के ऊपर पत्तों के बीच मे छुपकर, जज, कोयल ने हवा की बात सुनी। गन्दी सन्दी हवा ने जज कोयल को अपना पक्ष रखा । हवा बोली कि मानव जाति की वजह से हवा प्रदूषित हुई है । ऑटोमोबाइल से निकला धुँआ और उड़ती धूल फैक्टरियों की चिमनियों से उत्सर्जित गैसें और धुँआ, कचरा कचरे को जलाना भी हवा के प्रदूषण के कारण रहे हैं जो ओजोन परत में छेद कर रहे हैं और एक जटिल प्रक्रिया से प्रदूषण फैल जाता है । जज कोयल ने अपनी मीठी आवाज में हवा से निदान भी पूछा । हवा ने भूमि और जल की तरफ के पक्ष कोयल के समक्ष रखे । जिनमे मुख्य थे कि इन्सान अपने आस पास निजी और सामुहिक सफाई का ध्यान रखें । अधिक से अधिक पेड़ लगाए। अपने दैनिक जीवन शैली में बदलाव लाएं कम से कम आटोमोबाइल वाहनों का प्रयोग करें । पानी और बिजली को बचाए ताकि ऊर्जा के लिए जंगल नहीं कटे।
कोयल ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रकृति महारानी से सिफारिश की कि मनुष्यों को कड़े और स्पष्ट शब्दों में निर्देश और चेतावनी दी जाऐ ताकि इस पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा बनी रहे और गुलाब परी को या किसी और को कोई नुकसान या तकलीफ नहीं हो।
























शरद कुमार श्रीवास्तव

विचित्र भाषा बाल कविता सुशील शर्मा























है अंग्रेजी भाषा
देखो बड़ी विचित्र।
समझ नहीं सका आज तक
 इसका कोई चरित्र।

एक शब्द के कई अर्थ हैं
वो भी उलझे उलझे।
चक्कर में पड़ जाते हैं
बच्चे बूढ़े सुलझे।

टेढ़े मेढे शब्द हैं इसमें
होते कई कई अर्थ।
इसके गलत प्रयोग से
निकले अर्थ अनर्थ।

but को बट कहते
put पुट होता है।
अंग्रेजी भाषा में सब
उल्टा पुल्टा होता है।

एक bank में रुपया रखते
एक नदी किनारा है।
एक bat क्रिकेट में होता
इक चमगादड़ न्यारा है।

sign मतलब हस्ताक्षर है
या संकेतक समझाओ।
match क्रिकेट का होता है
या मैच मिलान है बतलाओ।

लेफ्ट कभी बाँया होता है
या छोड़ कर जाना है।
light हल्का होता है,
या प्रकाश का आना है।

mean का अर्थ संकुचित होता
या शब्दों का अर्थ है।
गोली चलना fire है तो
आग भी बड़ी समर्थ है।

ऐनक अगर glass से बनता
फिर गिलास को क्या कहते।
fly अगर मख्खी होती तो
हम सब हवा में क्यों उड़ते।

किनोलेज (knowledge)और किनो कहते
हमने अंग्रेजी सीखी।
पिसाई का लोगी (Psychology)कहने पर
मार पड़ी तीखी तीखी।

चलने को हम वाल्क कहें
ओर नटुरे नेचर को।
लिव को हम लाइव कहते हैं
और फुटुरे फ्यूचर को।

कठिन और मुश्किल है
अंग्रेजी का ये व्यवहार।
समझ नहीं अब तक पाया में
अंग्रेजी का ये आधार।



                         सुशील शर्मा

महीने में पन्द्रह इतवार : प्रभु दयालु श्रीवास्तव






                    




                    महिने में कम से कम आएं
                    हे भगवन पंद्रह इतवार |

                    पता नहीं क्यों सात दिनों में ,  
                    बस इतवार एक आता |
                    छ: दिन का बहुमूल्य समय तो ,
                    शाळा में ही धुल| जाता |
                    ऐसे में कैसे चल पाये ,
                    खेल कूद का कारोबार |

                   शाळा एक दिवस लग जाए ,
                   दिवस दूसरे छुट्टी हो|
                   रोज रोज पढ़ने लिखने से,
                   कैसे भी हो कुट्टी हो |
                   एक -एक दिन छोड़ हमेशा ,
                   हम छुट्टी से हों दो चार |

                   पढ़ना लिखना बहुत जरूरी ,
                   बात सभी ने मानी है |
                   खेल कूद भी है आवश्यक ,
                   कहते ज्ञानी ध्यानी हैं |
                   खेल कूद से ही तो बनता ,
                   सच में स्वस्थ सुखी परिवार |

                  पढ़ें एक दिन ,खेल एक दिन,
                  यह विचार कितना अच्छा ,
                  इस विचार से झूम उठेगा ,
                  इस दुनियां का हर बच्चा |
                  बात मान लो बच्चों की अब  ,
                  बच्चों का ही तो  संसार |




                  प्रभुदयाल श्रीवास्तव
12, शिवम सुन्दरम  नगर छिन्दवाड़ा 

                मध्य  प्रदेश

          

कृष्ण कुमार वर्मा कका प्रेरक बालगीत : सफलता







सपनों को पूरा करने ,
कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ।
रात को दिन बनाकर ,
खूब पढ़ाई करनी पड़ती है ...

हौसलों में जुनून भर ,
नए इतिहास बनाती है ।
तब जाकर ये सफलता ,
ख़ूब शोर मचाती है ....

कुछ खोकर , तो कुछ त्याग कर ,
इसे पाने को , जी जान लगाती है ।
सफल हो कर ये सार्थक जीवन ,
सफलता के उद्देश्य बताती है ....

























कृष्ण कुमार वर्मा
चंदखुरी फार्म , रायपुर CG
9009091950
28/05/2019