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मंगलवार, 26 मई 2020

रोटी (दोहा छंद) महेन्द्र देवांगन माटी की रचना











रोटी खातिर आज सब , दौड़ रहे हैं लोग ।
कोई तड़पे भूख से, कोई छप्पन भोग।।

देख धरा के हाल को, क्या होगा भगवान ।
भूख मिटाने आदमी,  बन बैठा शैतान ।।

काम करो सब प्रेम से,  तभी बनेगी बात।
कड़वाहट जो घोल दे, वो खायेगा लात।।

धरती माता को कभी,  मत बाँटो इंसान ।
अन्न उगाओ खेत में,  तभी बचेगी जान।।

माटी के सब पूत हैं,  कर लो ऐसे काम।
याद करे सब आदमी,  रहे जगत में नाम।।















महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य : संकलन कर्ता शरद कुमार श्रीवास्तव



1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।

श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं तो जानिये-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | 

आओ छुक -छुक रेल चलाएं : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का बालगीत



आओ  छुक -छुक रेल चलाएं
मीलों   तक   इसको   दौड़ाएं
छुन्नू    चालक    आप    बनेंगे
मुन्नू   आप   गार्ड   बन   जाएं
झंडी और  व्हिसिल  देकर  के
सबको   गाड़ी   में    बिठलाएँ।
आओ छुक -छुक--------------

स्टेशन        स्टेशन          रोकें
लाल   हरे   सिग्नल   को   देखें
चलने  का  सिग्नल  मिलने  पर
करें      इशारा      अंदर     बैठें
फिर    सरपट   गाड़ी    दौड़ाने
चालक   को   झंडी   दिखलाएं।
आओ छुक - छुक--------------

दादी     अम्मा     बूढ़े      बाबा
दौड़  नहीं  सकते   जो   ज्यादा
उनको   डिब्बे  में  बिठला  कर 
पूर्ण    करें       इंसानी      वादा
गोलू,     मोलू,     चिंटू,    भोलू
को  टॉफी   बिस्कुट   खिलवाएँ।
आओ छुक-छुक---------------

दिल्ली,  पटना,   अमृतसर   हो
जहाँ  कहीं  भी जिनका  घर हो
उत्तर,   दक्षिण,   पूरव,   पश्चिम
कोई     छोटा-बड़ा    शहर    हो
भटक  रहे  श्रमिक  अंकल   को
अब उनके   घर  तक    पहुंचाएँ
आओ छुक -छुक---------------

देख    सभी   का    मन   हर्षाया
उतरे     जब     स्टेशन      आया
टी टी   ने   जब    पूछा    आकर
सबने  अपना   टिकिट   दिखाया
टाटा     करते       सारे       बच्चे
अपने    अपने   घर   को    जाएँ।
आओ छुक -छुक----------------

हम    बच्चे   कमज़ोर   नहीं    हैं
बातूनी     मुंहजोर      नहीं      हैं
एक   साथ   रहते   हैं   फिर   भी
होते   बिल्कुल     बोर    नहीं   हैं
साथ - साथ  खा-पीकर  हम सब
मतभेदों       को     दूर     भगाएँ।
आओ छुक-छुक-----------------
 ------------------

           

       वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
           मुरादाबाद/उ,प्र,
           9719275453
      दिनांक-19/05 2020

मेरी डायरी : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना



























गर्मी के तपन धूप में भी , काम करते हैं वे लोग।
जीवन के कठिन डगर में , हौसला रखते हैं वे लोग।।
कितना मुश्किल हो गया है , एक एक पल जीना।
कैसे रहतें है वो लोग , अपने परिवारों के बिना।।
मैं उस इंसान के बारे में , दर्द ए बयां करती हूँ।
अपनी डायरी के पन्नो में ,  हौसला कैद करती हूँ।।
आज महामारी के जंग से , यही लोग लड़ रहे हैं।
अपनी जिंदगी जीने के लिये , आज उमड़ रहे हैं।।
अस्पतालों में भगवान का रूप , लिये खड़े हैं।
कोरोना को हराने के लिये , सभी लोग अड़े है।।
देश के वीर जवान और डॉक्टरों को नमन करती हूं।
अपनी डायरी के पन्नों में ,  हौसला कैद करती हूँ।।




                          प्रिया देवांगन "प्रियू"
                          पंडरिया छत्तीसगढ़

नया सवेरा (दोहा बद्ध) : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना





नया सवेरा आ गया, जाग उठो इंसान ।
स्वागत कर लो भोर का, नहीं बनो शैतान ।।

खिल गई है बाग में,  कलियाँ चारों ओर ।
चिड़िया चहके नीड़ में, मचा रही है शोर।।

टन टन घंटी बज रही, मंदिर जाते लोग ।
पूजा करते प्रेम से,  लेकर छप्पन भोग।।

कोरोना अब दूर हो, माँगे सब वरदान ।
संकट सबके टाल दो, दया करो भगवान ।।

माटी को अब चूमकर, "माटी" तिलक लगाय।
इस माटी से प्रेम है, प्राण इसी में जाय।।

                           महेन्द्र देवांगन माटी
                           पंडरिया छत्तीसगढ़

गंगा दशहरा :रचना शरद कुमार श्रीवास्तव




हिन्दू पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा पर्व प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 1 जून 2020, सोमवार को पड़ रही है। इसलिए गंगा दशहरा इस साल 1 जून को मनाया जाएगा।

पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव आजकल युवा पीढ़ी पर इतना   अधिक है  कि वह वैलेंटाइन डे के साथ  कोई न कोई डे हर  सप्ताह  खोज खोज कर मनाते है।   यह अपनी जगह एक अच्छी बात है लेकिन भारत के तीज त्योहार और उनकी महत्ता को हम भुलाते जा रहे हैं । इसी संदर्भ में  हम  भारत से लुप्त हो रहे त्योहारों के बारे में जानकारी देने के लिये  गंगा दशहरा के बारे में यहां जानकारी दे रहे हैं । जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हम गंगा-दशहरा पर्व के रूप मे मनाते हैं । पावन गंगा का अवतरण इसी दिन धरती पर हुआ था । आज के दिन भारतवासी गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। उसके उपरांत वे भगवान् का ध्यान और दान करते हैं । इससे उन्हें उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है । अगर गंगा जी पास मे नहीं है तब किसी भी नदी में स्नान करने और भगवान् का ध्यानकरते हुए दान करने से पाप दूर हो जाते है ।
स्कन्द पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरित होने की कथा है, वह इस प्रकार है ।
एक बार अयोध्या के नरेश राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिये एक घोड़ा छोड़ा । स्वर्ग के राजा इन्द्र को ईर्षावश राजा सगर का यह यज्ञ अच्छा नहीं लगा । उन्होंने अश्वमेध के लिए छोड़े हुए घोड़े को पकड़ कर पाताल लोक ले गये और कपिल मुनि के पास बांध दिया । इधर राजा सगर के अश्वमेध के घोड़े के गायब होने की खबर से चारों ओर खलबली मच गई । राजा सगर के सैनिक चारों तरफ दौड़े । राजा के साठ हजार सैनिक पाताल लोक में भी गये । वहाँ उन्हें अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के समीप बंधा हुआ मिला । वे लोग यह देखकर चोर चोर कर चिल्लाने लगे । कपिल मुनि ने जब यह देखा तब उनके क्रोध से सारे साठ हजार सैनिक जलकर समाप्त हो गये । इन साठ हजार लोगों के उद्धार के लिए राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा जी को धरती पर भेजने का निर्णय लिया । इसके पहले ब्रह्मा जी सुनिश्चित होना चाहते थे कि गंगा जी के वेग को धरती संभाल सकेंगी। ब्रह्मा जी ने भागीरथ जी से कहा कि वह भगवान् शिव को प्रसन्न करें ताकि वे गंगा जी को धरती पर अवतरित होने से पहले अपनी जटाओं में संभाल लें। धरती की भी स्वीकृति आवश्यक है । भागीरथ ने खूब तपस्या की और भगवान् शिव को खुश किया । भागीरथ ने अपने अथक प्रयास से गंगा जी को धरती पर लाकर अपने पुरखों का उद्धार किया । इसीलिए गंगा जी को भागीरथी भी कहा जाता है और पूरी चेष्टा से किये गये प्रयास को भागीरथी प्रयास भी कहा जाता है ।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

शनिवार, 16 मई 2020

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : दादी मां के लड्डू





नन्ही चुनमुन को उसकी मम्मी से पता चला कि कल उसकी दादी मां आने वाली हैं।  दादी मां से मिलने की बात से वह बहुत उत्साहित थी।   अपने पढ़ने वाले कमरे में सारी कापी किताबों को ठीक से सेल्फ मे लगाया कपड़ों की रैक भी ठीक से लगाके बार बार अपनी मम्मी से पूछ रही थी कि दादीजी कब आयेगीं और अपने हाथ से बनाए बेसन के लड्डू लाएंगी।

उस दिन देर रात तक सुबह के इन्तजार मे नन्ही चुनमुन जगती रही और सुबह होते ही उसनें अपने पापा से कहा पापा दादीजी को स्टेशन से लाने के लिये मै भी चलूँगी।  पापा जब स्टेशन जाने लगे तब उन्होंने नन्ही चुनमुन को भी साथ में ले लिया। स्टेशन पर थोड़ी देर में गाड़ी आ गई और दादी मां भी आ गईं थीं  चुनमुन ने दादीजी जी के हाथों से उनका बैग ले लिया।   रास्ते में पापा की गाड़ी में ही वह दादीजी के बैग को चुपके से टटोलती रही और अनुमान लगाती रही कि दादीजी उस के लिए ढेर सारी चाकलेट लाई है।. घर पहुंच कर उसने बिना समय गंवाये दादी मां से पूछ लिया कि वह उसके  ( चुनमुन) लिए क्या लाई हैं।  दादी मां को कोई जवाब नहीं दिया  दरअसल वे अपनी बीमारी के इलाज के लिए अपने बेटे के घर आयीं थीं और इसीलिए वे नन्ही चुनमुन के लिए कुछ नहीं ला पायीं थीं। 
दादीजी  ने प्यार से चुनमुन से खाली हाथ आने की यह वजह शेयर की।  परन्तु नन्ही चुनमुन को दादी की बात कहाँ समझ में आने वाली थी क्योंकि वह पहले जब कभी आतीं थीं तब उसके लिये कुछ न कुछ लेकर आतीं थीं।   दादी मां को भी अच्छा नहीं लग रहा था।. दिन मे ही वह चुनमुन के पापा के साथ जाकर डॉक्टर को दिखाकर लौटीं तो डॉक्टर ने बताया कि वे पूरी तरह से ठीक हैं।. दादीजी अब खुश हो गईं थीं   घर लौटने के बाद बहू से उन्होंने बेसन थोड़ा घी और चीनी लेकर चुनमुन के लिए उसकी पसंद के जब लड्डू बनाये तब चुनमुन और दादीजी  दोनों खुश हो गए और फिर आपस में दोस्त बन गये।


         शरद कुमार श्रीवास्तव

कृष्ण कुमार वर्मा की रचना :किसान



हाँ ! मैं मेहनतकश किसान हूँ ,
भाग्य का मारा बड़ा लाचार हूँ ।
देश के लिए अन्न उगाता हूँ पर ,
खुद भूखा और तंगहाल हूँ ...
निर्मम प्रकृति , सरकारी व्यवस्था
का मारा , कर्ज में डूबा गुलाम हूँ ।
बेटी ब्याह , मरती फसलो की चिंता में ,
जूझता , मरता इंसान हूँ .
..

___________________
✍ कृष्ण कुमार वर्मा , रायपुर
     छत्तीसगढ़

कृष्ण कुमार वर्मा की बालकथा :घोंसला




प्राची सुबह आंगन में बैठे चाय पी रही थी , तभी उसने देखा कि आँगन में लगें अमरूद के पेड़ पर एक चिड़िया घोंसला बना रही थी । तभी प्राची को शरारत सूझी । उसने लम्बी लकड़ी से उस घोंसला को तोड़ दिया । फिर उसने देखा कि थोड़ी देर बाद चिड़िया फिर से घोंसला बनाने लगी । प्राची फिर से उसे तोड़ दी ।।
अचानक उसकी माँ ने उसे ऐसा करते देख लिया । तब उन्होंने प्राची से कहा - देखो बेटा ! किसी के रहने के घर को नुकसान नही पहुँचाना चाहिए , चाहे वो किसी चिड़िया का हो या फिर किसी जानवर का । सबको दुःख होता है । अगर कोई तुम्हारे आशियाना को तोड़ दे तो तुम्हें कैसा लगेगा ?
तब प्राची को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने जाकर चिड़िया का घोंसला फिर से तैयार कर दिया । और उसमें चावल के कुछ दाने भी दाल दिये । कुछ देर बाद देखा कि चिड़िया उस दाने को खा रही थी तो वह बहुत खुश हुई ।
● सार - किसी को बिना कोई कारण के तंग या नुकसान नही पहुँचाना चाहिए ।














कृष्ण कुमार वर्मा
रायपुर ,
छत्तीसगढ़


शिक्षापूर्ण बाल रचना : वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी




गोलू आओ, मोलू आओ,
मोनीचंद  बतोलू   आओ,
प्रेम    एकता    भाईचारा,
सारी  दुनियाँ  में फैलाओ।

घर से  दूध जलेबी  लाओ,
सबके साथ बैठकर खाओ,
कम मिलने पर जोभी रूठे,
सारे  मिलकर उसे मनाओ।

रंग - बिरंगी   नाव  बनाओ,
पानी   में   उनको   तैराओ,
सिर्फ  दोस्ती रखो  सभी से,
कुट्टी करके मत दिखलाओ।

सोओ जल्द शीघ्रउठ जाओ,
नहीं समय को व्यर्थ गंवाओ,
खोया  समय  नहीं   लौटेगा,
सदा  सत्य को  गले लगाओ।

मात-पिता को सीस नवाओ,
खा पीकर  विद्यालय जाओ,
ध्यान लगाकर  करो   पढ़ाई,
नहीं  गुरु  की  हंसी उड़ाओ,

अश्वथ,फ्योना तुमभीआओ,
अन्वी, अस्मी को भी लाओ,
देखो कोयल कुहुक  रही  है,
मीठे स्वर का साथ निभाओ।
गोलू आओ-----------------


         
           
















वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश,
9719275453
            

बर्लिन और बर्लिन की दीवार शरद कुमार श्रीवास्तव























बर्लिन जर्मनी की राज धानी है अभी 10.11.2014 को इस राष्ट्र ने इसे पश्चिमी जर्मनी और जर्मनी गणराज्य को विभाजित करने वाली दीवार को ढहाने की सिल्वर जुबली अर्थात 25 वी वर्षगांठ मनाई
दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति एक सैनिक सन्धि से हुई जिसमे जर्मनी 1949 मे दो भागो मे बंट गया पश्चमी जर्मिनी अमेरिका द्वारा समर्थित तथा पूर्वी जर्मिनी एक गण राज्य के रूप मे सोवियत रूस द्वारा सम्रथित था दोनो राष्ट्रों मे पूर्वी जर्मनी से बेहतर काम के अवसरो की तलाश मे भारी पालायन प्रारम्भ हुआ पूर्वी जर्मनी मे गणतन्त्र के खर्चे पर फ्री मे उच्च शिक्षा लेकर पश्चिमी जर्मनी लोग भाग जाते थे. दूसरी समस्या गुप्तचरी जोरो पर थी और उसपर कोई अंकुश नही लग पा रहा था. इस पर वर्ष 1962 मे रातोरात पहले कंटीले तार लगाए गये फिर 45 किलोमीटर लम्बी दीवीर खड़ी की गई इसके लिये तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति निकिता खुर्शचेव की स्वीकृति थी . इस दीवार के बनने से पालायन काफी कम हो गया लेकिन इस दीवार के दोनो पार जर्मनी निवासियों के अपने ही लोग थे जो रातों रात अलग हो गये थे अतः इसके बनने का खूब विरोध हुआ. लोग चोरीछुपे दीवार पार करने की कोशिश मे पकड़े जाते थे . कुछ मामलों मे जान भी लोगों ने गंवाई. कभी दीवार से छगांग लगाकर कभी गुब्बारे मे तो कभी सुरगं बनाकर दीवार पार करने की कोशिश होती थी परन्तु सुरक्षा व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी पैंतालीस किलोमीटर पर सेना की लगभग 90 चौकियाँ थी. 1989 मे सोवियत राष्ट्र की पकड़ ढीली पड़ी और दीवार के दोनो ओर के राष्ट्रों ने बर्लिन की दीवार उसके बनने के लगभग 28 वर्षों बाद गिरा दी और वर्ष 1990 मे फिर दो महान जर्मन राष्ट्रों का आपस मे विलय हुआ . क्या हम अपने दिलों की दीवारे नहीं हटा सकते ?



शरद कुमार श्रीवास्तव

बुधवार, 6 मई 2020

नटखट मदन लाल : शरद कुमार श्रीवास्तव






बचपन के वह क्या दिन थे. मित्रों के साथ उठना बैठना उनके साथ किस्से कहानियाँ सुनना और सुनाने मे एक विशेष आनन्द मिलता था हमारे मित्रों मे एक मित्र राजीव लाल थे उन्होने एक घटना सुनाई जिसको वह सत्य घटना बताते थे. राजीव लाल के रिश्ते के एक चाचा मदन लाल कालेज कीफुटबाल टीम मे सेन्टर हाफ से खेलते थे. एक बार कालेज की टीम को पडोस के शहर से खेलने बुलावा मिला. कालेज से किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं मिली. बच्चे बहुत कठिनाई महसूस कर रहे थे. जाना जरूरी था. इज्जत की बात थी. मदन लाल ने सुझाया कि आधे आधे टिकट का पैसा मुझे देदो मै तुम सब को हाफ टिकट मे ही ले चलूँगा. एक ही स्टेशन की दूरी थी बच्चे गाते बजाते गंतव्य स्टेशन तक पहुँच गये. स्टेशन के गेट पर टी.टी साहब खड़े थे. मदन लाल ने टी टी से भीड़ के बीच कहा मै लडकों को गिनता जाता हूँ फिर एक लड़के की पीठ को गेट से बाहर निकाला और बोला एक फिर दूसरे फिर तीसरे और इस तरह से हर एक बच्चे को बाहर निकाल दिया. मदनलाल कुछ देर खड़े रहे जब तक बच्चे दूर निकल नहीं गये. उन्होने बाद मे अपना टिकट पकड़ाया तब टीटी ने पूछा और ११ टिकट ? इस पर मदन लाल बोले मै तो गिन रहा था मै तो अपना टिकट जानता हूँ.
हम सबने राजीव लाल से कहा इसका मतलब है कि तुम्हारे चाचा जी ने टीटी को बेवकूफ बनाकर रेलवे को ठग लिया इसपर राजीव लाल बोले अरे कहाँ भाई टीटी ने सिपाही की मदद से मदन लाल चाचा को पकड़ लिया फिर हमारे बाबा जी जाकर भारी जुर्माना भर कर मदनलाल चाचा को छुडा कर ले आए। 


                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 


कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर : शरद कुमार श्रीवास्तव























कल सात मई है इसी दिन हमारे देश में एक महान विभूति ने जन्म लिया था जिनका नाम था कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर 
वे हमारे राष्ट्रगान " जन गण मन अधिनायक जय हे" , और बांग्लादेश  राष्ट्रगान  "आमार शोनार बांगला"  के रचयिता थे कवि रवीन्द्र नाथ  टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को जोरासाँको कोलकत्ता मे हुआ था .  वे पिता श्री देवेन्द्र नाथ ठाकुर और माता शारदा देवी की जीवित 13 वीं संतान थे .  

कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्व में भारत  की साहित्यिक पहचान बनानेवाले और भारत में साहित्यिक चेतना जागने वाले प्रथम तथा  भारत से साहित्य में 1913 में नोबल पुरुस्कार अपनी रचना गीतांजलि पर   प्राप्त करने वाले एक मात्र साहित्यकार हुए हैं।

टैगोर के कीर्तिमान साहित्य श्रृंखला में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका उल्लेखनीय हैं।प्रारम्भिक शिक्षा उन्हे घर पर ही अच्छे गुरुओं द्वारा हुई थी। उनके पिता  श्री देवेनद्र नाथ ठाकुर और बड़े भाई श्री सतेन्द्र नाथ ठाकुर भी प्रतिष्ठित विद्वान थे उनसे भी  प्रकंरम्भिक शिक्षा प्राप्त की।   बाद में ये प्रतिष्ठित सेंटजेवियर कॉलेज .में और कानून की पढाई करने इंग्लंड गये थे ।

प्रकृति से इन्हे विशेष प्रेम था।   सुन्दर प्राकृतिक स्थल पर इन्होने शिक्षा की महान केंद्र शांतिनिकेतन की स्थापना की।   जो आज भी कला और संस्कृति का मंदिर है।   रविन्द्र नाथ टैगोर ने रविन्द्र संगीत को जन्म दिया  जो बांग्ला संगीत की प्रतिष्ठित विधा है।   उन्होंने लगभग 2500 गाने रविन्द्र संगीत को दिए थे।  पेंटिंग का शौक भी  जीवन के अंतिम समय में था जहाँ इन्होने कलाकृतियाँ  जिसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर थे.
रविन्द्र नाथ सच्चे देश भक्त थे वे उन्होंने अपने साहिया रचनाओं से पराधीन भारत में स्वाधीनता के लिए चेतना जगाने का प्रयास किया।   महात्मा गांधी , ऑरोबिंद ,और सुभाष चन्द्र बॉसेसे वे बहुत प्रभावित थे . महात्मा गांधी से वैचारिक मतभेद था  टैगोर रश्रवाड सेअधिक मानववाद के माननेवाले थे।
दिनांक 7 अगस्त 1941 को टैगोर का स्वर्गवास हो गया।।

                          शरद कुमार श्रीवास्तव 

कठिन डगर (ताटंक छंद) : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना







कठिन डगर है ये जीवन का, कभी नहीं घबराना जी ।
संकट में है देश हमारा,  सबको जोश दिलाना जी ।।

कोरोना बीमारी देखो, कैसे चलकर आया है ।
दिखे नहीं यह सूक्ष्म जीव पर, पूरी दुनिया छाया है।।

साफ सफाई रखना सीखो, भीड़ भाड़ मत जाना जी।
कठिन डगर है ये जीवन का, कभी नहीं घबराना जी ।।

बंद हुए सब घर के अंदर,  ये कैसा दिन आया है।
काम धाम सब बंद पड़े हैं, कितने संकट लाया है।।

आयेगा अब नया सवेरा,  हिम्मत सभी दिलाना जी ।
कठिन डगर है ये जीवन का, कभी नहीं घबराना जी ।।



महेन्द्र देवांगन माटी  (शिक्षक)
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
‪8602407353‬
mahendradewanganmati@gmail.com

कृष्ण कुमार वर्मा की पोयम : Twinkling stars





Twinkling stars
In this lighting sky ,
Conveying dynamic life .
No matter , how many
crises come ,
Keep smiling in positive
approach and shine
with your aura ..
Twinkling stars
Determined to fight
The darkness ...
____________________

✍ कृष्ण कुमार वर्मा , रायपुर


कृष्ण कुमार वर्मा की रचना : मेहनत कश मजदूर






1 ली मई को विश्व श्रमिक दिवस के अवसर पर 
____________________

हम मेहनतकश मजदूर ,
करते जी तोड़ मेहनत पर ,
सुकुनियत से है कोसों दूर ..
अच्छा जीवन है एक सपना ,
पर परिस्थितियों से हम मजबूर ..
जिंदगी हम तेरे मजदूर ,
किस्मत ने भी बस , यही लिखा दस्तूर 

...


कृष्ण कुमार वर्मा
रायपुर , छत्तीसगढ़

एक बाल कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव : भैंस मिली छिंदवाड़े में







भैंस गुमी ,भई भैंस गुमी।
काली वाली भैंस गुमी।

गए ढूंढ़ने कोलकाता,
दिल्ली को भी छाना खूब।
नहीं मिली जब ढूंढ़े से,
सोचा गई नदी में डूब।

कानाफूसी में पाया,
गई है भैंस अखाड़े में।
तुरत ढूंढने निकले तो,
भैंस मिली छिंदवाड़े में



प्रभूदयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुंदरम नगर
  छिन्दवाड़ा म प्र

श्रीमती अंजू जैन गुप्ता की कविता बड़ी मुश्किल है यूँ वक्त बिताना





बड़ा मुश्किल है यूँ वक़्त बिताना
अपने कर्मस्थली को छोड़ यूँ
घर बैठ जाना।
माना कि  कभी-कभी काम का अतिशय दबाव होता है मगर दिल से लो
तो वो भी  खुशी देता है।
          बड़ा मुश्किल है यूँ वक़्त  बिताना।
 उन बीते हुए लम्हों में जी पाना।
बांहे पसार आज, हर और खड़ा है
इंसान कि कब भागेगा  ये lockdown का शैतान ।
      बस अब और नहीं होता इंतजार
     चाहत है कि खुले आसमां  को छू ले, मिली है  जितनी भी ज़मी उसे सर आँखों  पर रख ले।
हो सके तो थोड़ा ही सही मगर जिंदगी के इन कुछ पलों को सुकून से जी ले।



                    अंजू जैन गुप्ता

चुटकुले : संकलनकर्ता शरद कुमार श्रीवास्तव





1. आयुष :- अच्छा बताओ संता और बंता मे क्या रिलेशन है

शौर्य. :- पहले बेसन संता है तभी पकौड़ा बंता है.

2. टीचर :- राष्ट्रपति भवन कहाँ है

रामू :- पता नहीं

टीचर :- बेन्च पर खडे हो जाओ

रामू : — वह बेंच से भी नहीं दिख रहा है


3. राधा :- रमेश तुमने गुलाब की डाली क्यों तोड़ी

रमेश. :- यहाँ लिखा है फूल तोड़ना मना है

4. भिखारी :- एक रुपये का सवाल है

किशन. :- एक रुपया माँगते शर्म नहीं आती है

भिखारी :- तो आप सौ रुपये दे दीजिये

5. मजिस्ट्रेट चोर से :- दोबारा उस दुकान मे चोरी करने क्यों गये

चोर :- दुकान मे लिखा था दोबारा आगमन प्रार्थनीय है.

6. टीचर : — अकबर ने कब शासन की डोर संभाली

छात्र :- नहीं मालूम

टीचर :- बोर्ड पर लिखा पढ़ कर भी नहीं बता सकते हो

छात्र:- मै समझा था कि यह अकबर का मोबाइल नम्बर है

7. पिता : — आओ होम वर्क करा दें

पुत्र :- जी घन्यवाद , गलत होमवर्क तो मै खुद भी कर सकता हूँ.

8. ग्राहक :- ये नीबू कैसे दिये

दुकानदार:- हवाइजहाज से नीचे उतरो ये नीबू नहीं संतरे हैं.
























शरद कुमार श्रीवास्तव 

संकलन कर्ता