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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

मैं सीमा पर जाऊंगा! वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल कविता

 


मम्मी मुझको गन दिलवा दो,

मैं    सीमा     पर    जाऊंगा,

ताबड़तोड़  फायरिंग  करके,

दुश्मन      मार     भगाऊंगा।


मैं  दुश्मन  को उसके  घर में,

घुसकर      के   धमकाऊँगा,

ढिशू-ढिशू करके  मैं  उसको,

नानी       याद     दिलाऊंगा।


दुश्मन  हमको   हाथ  लगाए,

यह   कैसे    हो   सकता   है,  

उसके  दोनों   हाथ  काटकर,

 ही   घर    वापस   आऊंगा।


मेरी  इस  नन्हीं  पिस्टल  को,

देखा   अभी   न   बच्चू    ने,

इसकी  गोली  से  दुश्मन  के,

सारे         होश     उड़ाऊंगा।


भारत माता की  जय कहना,

दुनियाँ    को    सिखलाऊंगा,

स्वयं   तिरंगा   लेकर   मम्मी,

सीमा       पर     लाहराऊँगा।


मेरा   भारत     सबसे   प्यारा,

इसको      सीस    झुकाऊंगा, 

देश भक्ति का गीत सिखा  दो,

मैं      तन-मन    से   गाऊँगा।


    ----💐💐💐💐💐---


         


              वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ, प्र,

                  9719275453

                   

"शबरी"प्रिया देवांगन "प्रियू की रचनाणञ

 




राम राम की रटन लगाई।
उम्र बिता तब दर्शन पाई।।
प्रतिदिन राहे फूल बिछाती।
राम दरश की आस लगाती।।

ऋषि मुनि की वह सेवा करती।
भक्ति भाव तन मन में भरती।।
राम लखन जब दर्शन पावे।
नैनो अपने नीर बहावे।।

शबरी कुटिया खुशियाँ आई।
राम लखन को भीतर लाई।।
आँखों में विश्वास जगाई।
राम लखन की चरण धुलाई।।

चख चख मीठे बेर खिलाई।
शबरी माता भाग्य जगाई।।
भक्ति देख ईश्वर है हारे।
राम दरश कर जीवन तारे।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

चिड़िया घर वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का बालगीत

 



चिड़ियाघर में क्या- क्या देखा,

कहा   मेम   ने   बोलो   स्वेता,

किसने  देखी   चिड़िया   रानी,

किसने   देखा    शेर  अनोखा।


किसने     देखा   भालू    बंदर,

किसने    देखा   हाथी    मोटा,

किसने   देखी  प्यारी  बुलबुल,

किसने   देखा    सुंदर    तोता।


किसने   देखा   मोर   सुनहरा,

किसने   देखा   गीदड़    रोता,

किसने   देखी    चीनी    मुर्गी,

किसने   देखा    कुत्ता  सोता।


किसने   देखी   श्यामा   गैया,

किसने  देखा   बछड़ा   छोटा,

किसने  चढ़ते   हुए   पेड़  पर,

देखा   है   भालू    का   पोता।


किसने  देखा  मगरमच्छ  को,

मुंह   खोले   बालू    में   लेटा,

किसकिस पर दौड़ाबनमानुष,

किसपर झपटा अजगर मोटा।


सब बच्चों ने चिड़िया घर का,

हाल   बताया   आंखों   देखा,

कहा मेम  ने  पास  न   जाना,

वरना   खा  जाओगे   धोखा।




              वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

                   

"बसंत पंचमी" छब आती है प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 





आता है जब पंचमी, पूजा करते लोग।
हाथ जोड़ विनती करे, और लगाते भोग।।

हरी भरी धरती दिखे, हरियाली चहुँओर।
कोयल कूके बाग में, होते जग में भोर।।

करते पूजा शारदा, और झुकाते माथ।
जाते हैं सब द्वार पर, मिलजुल सबके साथ।।

मन को सबके मोहते, पुष्पों की मुस्कान।
आता दौर बसंत का, सुंदर लगे बगान।।

विद्या की है दायनी, भरती जग भण्डार।
श्वेत कमल में बैठती, देती खुशी अपार।।

श्वेत वस्त्र धारण करें, पुस्तक पकड़े हाथ।
वीणा की झंकार से, सभी झुकाते माथ।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

बसन्त पंचमी और सरस्वती पूजा : डा. पशुपति पाण्डेय जी के लेख से साभार



बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में एक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार *माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी* का त्यौहार मनाया जाता है वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है और बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है इसलिए बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिन भी है जिस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है पेड़ों पर नयी पत्तिया कोपले और कालिया खिलना शुरू हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है।


बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है यह माता सरस्वती का प्राकट्योत्सव है इसलिए इस दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना की जाती है इसी लिए विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत विशेष होता है।


बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत ऊर्जामय ढंग से और विभिन्न प्रकार से पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है इस दिन पीले वस्त्र पहनने और खिचड़ी बनाने और बाटने की प्रथा भी प्रचलित है तो इस दिन बसंत ऋतु के आगमन होने से आकास में रंगीन पतंगे उड़ने की परम्परा भी बहुत दीर्घकाल से प्रचलन में है।


बसंत पंचमी के दिन का एक और विशेष महत्व भी है बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त और अनसूज साया भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किये जा सकते है।


माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है।


भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है।


वसन्त पञ्चमी का दिन हिन्दु कैलेण्डर में पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पञ्चमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। हिन्दु कैलेण्डर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता है।


ज्योतिष विद्या में पारन्गत व्यक्तियों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है।


वसन्त पञ्चमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। सभी विद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।



*बसन्त पंचमी कथा*


सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-


प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।


अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूं भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है l

                 🙏

    डा. पशुपति पाण्डेय

   गोमती नगर, लखनऊ

“सरस्वति वंदना ” श्रीमति मिथिलेश शर्मा एम.ए., साहित्यरत्न. की रचना

 







मां शारदे वरदान दे, 

हमको अभय का दान दे, 

मां शारदे वरदान दे. 


कमलासिनी हंसासिनी, 

कवियों के कंठ निवासिनी,

आलोकमय नव ज्ञान दे,

मां शारदे वरदान दे.

 

भावों को नव अभिव्यक्ति दे, 

शब्दों को अनुपम शक्ति दे, 

सृजनात्मक उत्थान दे, 

मां शारदे वरदान दे.


मृदुहासिनी वरदायिनी, 

मां भक्ति दे अनपायिनी,

हमको अपरिमित ज्ञान दे, 

मां शारदे वरदान दे.





रचना-

श्रीमति मिथिलेश शर्मा

एम.ए., साहित्यरत्न. 

भूतपूर्व अध्यापिका, लखनऊ

करनी व्यर्थ न जाई ✍🏻🌺✍🏻 अर्चना सिह जया का बालगीत

 



अच्छी करनी जो करें,


कभी बुरा न उस संग होए।


आओ सुनाऊं एक कहानी,


तन-मन पुलकित होए।


घने जंगल के बीच से,


गुज़र रहा था वह लकड़हारा।


तपती धूप में छांव तलाशता, 


सोचता था विश्राम कर लूं दोबारा।


देखा तभी जाल में फंसे कौए को,


बिछे जाल से झट उसे निकाला।


आजादी का बोध कराकर,


झूमता मस्त चला लकड़हारा।


आम के पेड़ के डाल पर जा बैठा,


पोटली से रोटी, फिर उसने निकाला।


तभी कौवे ने झट से लपक कर,


लकड़हारे की रोटी लेकर भागा।


रोटी की लपक झपक के चक्कर में,


धपाक ज़मीन पर गिर पड़ा वो बेचारा। 


मोच पैर में थी आई,





कमर पर भी चोट थी खाई।


गुस्से से वह लाल हो गया,


लकड़हारा फिर बहुत झल्लाया।


काक ने माफी मांगी यह कहकर,


"जो मैं रोटी ले कर न भागता,


डाल से लिपटा सांप फिर काटता।"


लकड़हारे को बात जब समझ आई,


धन्यवाद! कहकर रीत निभाई।


आधी-आधी रोटी मिलकर खाई,


दोनों ने अच्छी मित्रता की गांठ लगाई। 


इस कहानी से सीख लो भाई,


"अच्छी करनी कहीं व्यर्थ ना जाई।"




       ------- अर्चना सिंह जया

चलो खूब मेहनत करते हैं

 



चलो खूब मेहनत करते है ।
अपने सपनों को नये तरीके से बुनते है ।
ना जाने कितने ही अवरोध होंगे राहों में ,
पर दृढ़ हौसलों और साहस से लड़ते हैं ।
खुद के जुनून और अटूट विश्वास से ,
चलो संघर्ष के अंधेरे में , जुगनू सा चमकते है ।
चलो खूब मेहनत करते है ...
________________
✍️ कृष्णा वर्मा , रायपुर
       09.02.2021

चाँद : प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 



भोले सर पर चाँद विराजे।
शिव शंकर का डमरू बाजे।।
नाग गले में धारण करते।
भक्तों के संकट को हरते।।

चाँद चाँदनी करते बातें।
यूँ कटती है दिन अरु रातें।।
तन मन को शीतल है करती।
सब के मन में खुशियाँ भरती।।

आज चाँद तक मानव जाते।
लौट खुशी से वापस आते।।
चाँद संग रहते हैं तारे।
सब लगते हैं कितने प्यारे।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

"शारदे वंदन" रचना स्व महेंद्र देवांगन "माटी" प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू"




चरण कमल में तेरे माता, अपना शीश झुकाते हैं।
ज्ञान बुद्धि के देने वाली, तेरे ही गुण गाते हैं।।
श्वेत कमल में बैठी माता, कर में पुस्तक रखती।
राजा हो या रंक सभी का, किस्मत तू ही लिखती।।
वीणा की झंकारे सुनकर, ताल कमल खिल जाते हैं।
बैठ पुष्प में तितली रानी, भौंरा गाना गाते हैं।।
मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे, ज्ञान बुद्धि तू देती है।
शब्द शब्द में बसने वाली, सबका मति हर लेती है।।
मैं अज्ञानी बालक माता, शरण आपके आया हूँ।
झोली भर दे मेरी मैया, शब्द पुष्प मैं लाया हूँ।।

रचनाकार 
महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

पाठशाला : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का बालगीत

 




बाल गीत(पाठशाला)

--------------------------------

रानू   आओ   भानू    आओ,

नगमा  आओ  शानू   आओ,

खुली   पाठशालाएं   सबकी,

जल्दी-जल्दी कदम  बढ़ाओ।


अनवी आओ असमी आओ,

फियोना आओ रश्मि आओ,

घंटी  बज   जाने   से  पहले,

सब अपनी क्लासोंमें जाओ।


रामू   आओ   स्यामू  आओ,

क्रिस्टोफर  औ जानू  आओ,

टिफिनऔर पानी की बोतल,

लेकर  ही  पढ़ने  को  आओ।


लापरवाही   नहीं    दिखाओ,

हाथ साफकर मास्क लगाओ,

कोरोना    को    दूर    भगाने,

डरो  नहीं   टीका   लगवाओ।


संकट की वह  घड़ी भुलाओ,

लड्डू  बांटो   खुशी  मनाओ,

पाबंदी  हट   रही   सभी   से,

फिर भी दूरी  उचित  बनाओ।


भगवन हमपर दया दिखाओ,

हर   बीमारी    दूर    भगाओ,

बहुत रह लिए  घर  के  अंदर,

खुली हवा में  सांस  दिलाओ।




           -----------------

                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

                   9719275453

                    09/02/2022

                           --------

मातृ - पितृ दिवस". रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"


 




मात पिता सेवा करो, है दोनों भगवान।
देते हैं संस्कार जी, करो सदा सम्मान।।

संग रहो माँ बाप के, जीवन का है सार।
मिलकर रहते साथ जब, आती खुशी अपार।।

गुरु के दोनों रूप है, देते हैं संस्कार।
मिलती शिक्षा है हमें, माने कभी न हार।।

मात पिता सेवा करो, होते चारो धाम।
मिले सफलता नेक ही, होते जग में नाम।।

मात पिता से घर बने, कभी न इनको छोड़।
जीवन का ये अंग है, मुँह ना इनसे मोड़।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


माँ शारदे करो कल्याण


 


माँ शारदे करो कल्याण

हम सब बच्चे हैं नादान ।।

ज्ञान से मेरी झोली भरो

ये कृपा हम पर तुम करो

पढ़ लिखके हम बड़े बने

तुम्हारा नाम उज्वल करें

माँ शारदे करो कल्याण

हम सब बच्चे हैं नादान ।।

तम्हारा करते है गुणगान

माँ शारदे करो कल्याण

पद्मासन तुम्हारा है धवल

सुन्दर सा प्यारा शतदल

वस्त्र शुभ्र हार तुषार सा

वीणा हाथ मे शोभित माँ

माँ शारदे करो कल्याण

हम सब बच्चे हैं नादान।।

सभी देवगन पूजन करते

त्रिदेव सदा जप है करते

तुम ही हो जग की दात्री

बच्चों की सुन लो बिनती

माँ शारदे करो कल्याण

हम सब बच्चे हैं नादान।।


शरद कुमार श्रीवास्तव


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

पहेलियाँ




 1 निम्नलिखित  में  कौन सा  अंक  क्रम  से   बाहर  का  है   और सही  संख्या  क्या  होगी


अ)  2, 6, 19, 54, 162
ब)  19, 11,  16, 10, 13, 8
स) 1, 3, 9, 27, 83
द ) 4, 8, 16, 31, 64


2 एक खेल के  मैदान  में  6  बच्चों  की  औसत  आयु  15 वर्ष  है,  तब किसी  एक बच्चे  की  अधिकतम  आयु कितनी  हो सकती  है  जबकि  न्यूनतम  आयु 12 वर्ष  है ?

3  दो  किलो रुई और दो किलो के  बटखरे में  कौन  भारी है

4  माँ की आयु बेटी से  दुगुनी है  , बेटे की  उम्र  पिता की  आधी  है  ।  माता पिता  की  आयु  का अनुपात  3:4 है  तो बेटे और बेटी की  आयु में  क्या  अनुपात  है ।

5  काला हाथी उड़ता  जाए
    किसी  के पकड़ न आए


संकलन 
शरद कुमार श्रीवास्तव 

जहां चाह वहां राह वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बालकथा

 





बस कर बेटा अब मेरे बस का नहीं है कि तुझे और आगे तक पढ़ा सकूँ।अब तूने बी,ए,पास तो कर लिया।कोई नौकरी तलाश कर कहीं छोटी-मोटी मिल जाए तो,,,,

     बड़ी नौकरी के ख़्वाब देखना

तो हम गरीबों के नसीब में ही नहीं।रिश्वत के आगे काबिलियत को कौन पूछ रहा है बेटा। इस गरीबी ने तो मेरे सभी अरमानों पर पानी फेर दिया।मेरा तो मन  था कि मैं अपने बेटे को थानेदार की वर्दी में सजा-धजा देखूं।लेकिन इस के लिए तो बहुत पैसों और ऊंची सिफारिश की जरूरत होती है।वह हमारे बस का नहीं।

  बेटे को पिता की बात घर कर गई।उसने उसी पल यह प्रतिज्ञा ली कि मैं हर हाल में पिता के सपनों को पूरा करके ही रहूंगा।फिर क्या था उसने इसे अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य निर्धारित करके जी तोड़ मेहनत करनेमें दिन-रात एक कर दिया।

      उसकी मेहनत रंग लाई और  एक वर्ष के कठिन पुलिस प्रशिक्षण के पश्चात थानेदार की वर्दी पहनकर पिता के सपने को साकार कर दिखाया।इसके लिए उसने अपने सामान्य ज्ञान के साथ-साथ शारीरिक गठन को भी विशेष महत्व दिया।छोटी मोटी नौकरी करके पैसा भी कमाया ताकि उद्देश्य पूर्ति की राह में कोई बाधा न आए।

      वर्दी पहनकर वह जब घर पहुंचा तो घर वालों की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।पिता ने उसे गले से लगाकर यह कहा ,बेटा यह वर्दी ईश्वर ने तुम्हें देश सेवा के लिए दी है कभी इसको कलंकित मत होने देना।घमंड की परछाँई भी इस पर मत पड़ने देना।मेरी इस बात को सदैव याद रखना।

       "जहां चाह वहां राह"

      ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे।

             ------////-----




                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ,प्र,

                    9719275453

                     

अनोखा गिफ्ट ! : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का बाल गीत

 

       


 


एक दिवस बिल्ल मौसी ने,

भेजा      सबको     न्योता,

मेरे जन्म  दिवसपर   भैया,

लाना      गिफ्ट    अनोखा।


खाने को पकवान  बहुत हैं,

सांभर       लिट्टी      चोखा,

हलवा, पूरी,  खीर  मखाना,

दूध     पकी    केसर    का।


नॉनवेज  भी  बना  रखा  है,

तरीदार       और       सूखा,

चूक  गए  तो  नहीं  मिलेगा,

ऐसा         सुंदर       मौका।


सबसे   पहले  आकर   घेरा,

बंदरजी         ने       सोफा,

नाच  रहे  थे सभी खुशी  से,

लगा      तिकोना       टोपा।


बिल्ली  चूहे   के  आने  का,

ताड़     रही      थी   मौका,

सोच  रही   चूहे   राजा  का,

किसने       रस्ता      रोका।


आता  चूहा  दिया  दिखाई,

खुला     खुशी का    खाता,

मेरी  इच्छा  पूरी   कर   दी,

मैनी      थेंक्स      विधाता।



बिल्ली  मौसी  को  चूहे  ने,

किया       दूर से       टाटा,

यहां रखा है गिफ्ट  तुम्हारा,

मैं    तो   घर   को    जाता।


         



                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                    मुरादाबाद/उ, प्र,

                    9719275453

                     

"गुलाब" : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना




डाल डाल पर लगी हुई थी।
सुंदर सी गुलाब की कलियाँ।।
खुशबू चारों ओर बिखेरती।
गुलाब की नन्ही सी कलियाँ।।

तितली  उनके पास है आती।
नन्ही कलियों पर बैठ जाती।।
रस उसका संग लेकर।
पेट अपना भरती।।

फूलों पर बैठ तितली।
मन की बात बताती।।
नन्ही कली को दोस्त बना के।
आसमान में उड़ जाती।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

अर्चना सिंह जया की रचना आरुणिभक्ति

 




 एक अनोखा शिष्य था ऐसा,


परम आज्ञाकारी व व्यवहारिक,


 मोहक, दया रूप था उसका।


गुरुकुल में शिक्षा अध्यापन कर,


सेवा भाव सदा मन में रख,


परोपकार था वो करता। 


माता पिता व गुरुजनों की सेवा, 


आरुणि का धर्म था सच्चा। 


एक संध्या गुरुकुल से विदा ले,


सभी विद्यार्थी गृह की ओर थे चले। 


बादल घिर कर आने थे लगे,


खेतों की मेड़ों, पगदंडी पर


घबराकर बालक दौड़ पड़े।


तभी गई नज़र एक खेत की मेड़ पर,


एक हाथ जितनी थी टूटी पड़ी,


ये देख अचंभित हुए सभी।


पर अकेला बालक आरुणि,


जिसने समय की गंभीरता को समझा।


झटपट टूटी मेड़ संग उसने,


अपने कोमल तन को जोड़ा,


 लेटकर रोका जल के बहाव को। 


उल्टे पांव सरपट सब भागे,


गुरु को सूचित किया सबने।


धान के खेत की उसने की रक्षा,


सुनकर आरुणि की महान दास्तां।


यह देख गुरु हुए फिर गर्वित,


गुरु का ऋण उतार दिया उसने। 


मोल मिल गया गुरु को शिक्षा का,


आदर्श आचरण देख आरुणि का।


साहसिक कार्य कर पड़ा था मुर्छित,


आरुणि-गुरुभक्ति से हुए प्रसन्न चित।


आयोदधौम्य गुरु हुए धन्य देखकर,


आंखें भर आईं गले लगा कर।


आरुणि की भक्ति में थी सच्चाई,


गुरु शिष्य की परंपरा निभाई।




       ----- अर्चना सिंह जया

संपादक की डेस्क से

 




प्रिय मित्रों


"नाना की  पिटारी "के  सात  सफल वर्ष  व्यतीत  होने तथा आठवे वर्ष  के  प्रारंभ होने  पर  आपका  स्वागत  है ।
यह  पत्रिका दिनांक  04/02/2014  से, अर्थात,  गत   सात वर्षों  से   अंतर्जाल पर, छोटे बच्चों के  लिए प्रकाशित हो रही थी  ।  यह पत्रिका   बिल्कुल  निशुल्क है  और  विज्ञापन  रहित है ।  इसे   कोई  भी व्यक्ति  विश्व  में  कहीं  भी,   गूगल/एम एस एन आदि सर्च इंजन  मे हिन्दी अथवा अंग्रेजी  में 'नाना की  पिटारी'/ nana ki pitari लिख कर प्राप्त कर   सकता  है।

गत् सात वर्षो मे  ' नाना  की पिटारी'  पत्रिका  ने हिन्दी    बालसाहित्य जगत के  साहित्य  में  लेखन और  प्रसारण के  कार्य  में  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  है  ।  कविताओं,   कहानियों,   पहेलियों और   चुटकुलों  के अलावा शामू धारावाहिक लम्बी कहानी,  प्राचीन  विश्व  के  सात अजूबे ,  नवीन  विश्व  के  सात अजूबे, अपने नन्हे मुन्ने पाठकों के  समक्ष प्रस्तुत किया है।  पेरिस का  इफेल टावर  दिखाया  और कभी  बर्लिन की  दीवार तो कभी जैसलमेर के रेगिस्तान तथा  यूरोप के सबसे बड़ा Rhine वाटर फाल  की सैर  कराई है ।  इसने   हमारे  महापुरुषों, हमारे पूर्वजों  के  बारे  में भी  समय समय पर   बताया  है।  

 
   बाल मन की  उत्सुकता और उत्कंठा   को  ध्यान  में  रख  कर  इस पत्रिका ने   एक रोचक   बाल चरित्र,   'प्रिन्सेज डॉल' का भी सृजन  किया था ।  ज्ञान वर्धक,  बाल मनोरंजन  प्रिन्सेज डॉल  की ( फेरीटेल्स) की   बाल कथाओं  की  धारावाहिक  सीरीज को एक माला की तरह पिरो कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया  ।   इस पत्रिका में प्रारंभ से अब तक लगभग 2000 आइटम  प्रकाशित   प्रकाशित  हो  चुके हैं  ।

जैसा  कि  अमूमन बचपन में  दाँतों  के  निकलने  के  समय  कठिनाई  होतीं  हैं  वैसी ही  इस  पत्रिका के  प्रकाशन  मे  पहले चार वर्षों में  कठिनाईयां  भी  आई  थी  , मसलन्,  "हिन्दी  ब्लागस् डाट नेट" की  साइट  पर   सर्वर बदले जाने  की  प्रक्रिया  से उत्पन्न  कुछ  तकनीकी  परेशानियों  के कारण ' नाना  की पिटारी' का  ब्लॉग  'हिंदी ब्लॉग डॉट नेट 'के  सर्वर  से  अदृश्य हो गया ।   जिसकी वजह  से उसकी  मेमोरी  में  पड़े  हमारे लगभग 1150 अभिलेख गायब हो गए  थे  जिनकी     रिकवरी वे अंत तक नहीं  कर  पाए ।   हमारी पत्रिका  को " हिंदी  ब्लाग  डाट नेट "  के  कारण  बहुत  बड़ा  नुकसान  उठाना पड़ा।   लेकिन  हम रुके  नहीं  हम अपने  मार्ग  मे पुनः बढ़ते गये   । हम  "नाना  की पिटारी "  को  "ब्लागर" के  पटल पर ले आये  जहाँ  से  अब तक   बिना  रुके  हुए पत्रिका  का   प्रकाशन चल रहा है  ।  अब हम पत्रिका के प्रकाशन के आठवे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।  यह सब आप लोगों के प्यार और सहयोग के कारण ही संभव हो पाया है।

पत्रिका  के  प्रकाशन  से  ही  इसके साथ जुड़े  रचनाकारों  का उल्लेख  और धन्यवाद  ज्ञापन  आवश्यक  है  ।   प्रारंभ  में  श्री  अखिलेश  चन्द्र  श्रीवास्तव  श्रीमती  अंजू  गुप्ता  ने अपने सहयोग से काफी उत्साहित  किया  तदुपरांत  श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव  जी डॉ  प्रदीप शक्ल  जी,  श्री  शादाब  आलम जी , स्व महेंद्र  देवांगन, अर्पिता  अवस्थी,  सुषमा  मांगलिक    और  कुमारी  प्रिया  देवांगन  प्रियू ,  श्रीमती  अंजू निगम ,श्रीमती  मंजू श्रीवास्तव ( दिवंगत) वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी  श्रीमती  मिथिलेश  शर्मा  और  श्री कृष्ण कुमार वर्मा जी   के  नाम विशेष  रूप से   उल्लेखनीय  है  इन्होंने इस ब्लॉग में अपने लेखन से काफी सहयोग दिया है ।   श्रीमती  मधु त्यागी  जी ने  अपनी  तथा एमिटी  इन्टरनेशनल गुरुग्राम एव  श्रीमती श्वेता दिव्यांक, माउंट ओलंपस स्कूल मालबो टॉउन गुरुग्राम,  के सहयोग से प्रेषित  छात्रों  की रचनाएँ   ' नाना की पिटारी' मे प्रकाशन हेतु  प्रेषित  की थीं।   आप सभी को  बहुत  धन्यवाद  और आशा है कि आगे  भी वे छोटे  बच्चों  के लिए  अपनी  रचनाओं  को  हमे  हमारे email :-  nanakipitari@gmail.com पर भेजते  रहेगें ।

 आपके अभिनन्दन के साथ


शरद कुमार श्रीवास्तव 

"हिन्दी बोलो" रचना स्व महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")




हिन्दी सीखो हिन्दी बोलो, हिन्दी में सब काम करो ।
आगे बढ़ते जाये हम सब, भारत का तुम नाम करो।।

हिन्दी है बावन अक्षर का,  सब भाषा से न्यारी है ।
मधुर सुहानी हिन्दी भाषा,  हम सबको यह प्यारी है।।

हिन्दी अपनी मातृभाषा है, इसका सब सम्मान करो।
आगे बढ़ते जाये हम सब, भारत का तुम नाम करो ।।





रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़