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गुरुवार, 26 जुलाई 2018

अर्चना सिंह जया की रचना : बच्चों मोबाइल छोडो









बच्चों! मोबाइल को छोड़ो,

बचपन में नए रंग बिखेरो,

खुशियों को करीब से जानो।

उछलो कूदो, दौड़ो भागो

दोस्तों के संग गेंद खेलो।

मिल जुल कर रेल बनाओ,

इंजन-बोगी तुम ही बन जाओ।

बचपन में चलो रंग बिखेरो।

कागज की नाव बनाकर,

ठहरे पानी में तैराओ।

मित्रों के संग पतंग उड़ा,

कटी पतंग लूटकर लाओ।

बल्ले-गेंद से क्रिकेट खेल,

कपड़े व तन पर दाग लगाओ।

बचपन में नए रंग बिखेरो।

अपनी माता समान भूमि पर,

रंगीन कंचों का आनंद उठाओ।

कोरे कागज़ पर चित्र बना,

मन चाहे रंग से रंग डालो।

चार सखा के साथ बैठ,

लूडो-कैरम में मन रमा लो।

फुटबाल,हाॅकी या हो बैडंिमंटन,

मैदान में अपने दम दिखा दो।

बचपन में नए रंग बिखेर कर,

खुशियों को करीब से जानो।





        अर्चना सिंह ‘जया‘

डॉक्टर प्रदीप शुक्ल की नई रचना। : ओ आर एस का घोल



भोलू भालू कल सन्डे को
गया घूमने हाट
और किनारे वहीं सड़क पर
उसने खाई चाट

दो दर्जन पानी पूरी भी
कल उसने थे गटके
ऊपर से फिर दो दो पत्तल
दही बड़े भी सटके

आज सुबह बिस्तर से उठकर
हुई अचानक उल्टी
बिस्तर पर ले रहा दर्द से
भोलू अल्टी पल्टी

दस्त शुरू हो गए दनादन
भोलू जी घबराए
भोलू की मम्मी दौड़ें, कुछ
उन्हें समझ ना आए

फोन लगाया डॉक्टर को
तो उसने तुरत बताया
ओ आर एस का घोल पिलाओ
शाम तलक मैं आया

घर में अभी नहीं ओ आर एस
मम्मी भी घबराई
तभी पड़ोसी रुनझुन बन्दर
दौड़ी भागी आई

कहा, अरे! तुम भोलू दादा
बिल्कुल मत घबराना
नमक और चीनी से मुझको
आता घोल बनाना

तब तक इसको पियो ज़रा तुम
मैं जाती बाजार
अभी दौड़ ओ आर एस के
पैकेट लाती हूँ चार

ग्लास भरा गोलू ने पूरा
गट गट सब पी डाला
पर तुरंत ही उल्टी में फिर
सारा घोल निकाला

सुस्त हो गया अब तक भोलू
लेटा हुआ निढाल
घबराई मम्मी की हालत
हुई हाल बेहाल

तब तक रुनझुन ओ आर एस के
पैकेट लेकर आई
छोटा पैकेट एक ग्लास में
डाल तुरत वह लाई

दो दो चम्मच पानी,
हर दो मिनट में उसे पिलाया
हुई नहीं उल्टी भोलू को
अब जाकर मुस्काया

सूझबूझ से रुनझुन ने
भोलू की जान बचाई
सुनो, दस्त में ओ आर एस है
सबसे बड़ी दवाई.🐻



















डॉ  प्रदीप शुक्ल

स्वच्छता अभियान : मंजू श्रीवास्तव की बाल रचना







आओ बच्चों हम सब मिलकर,
स्वच्छता अभियान को सफल बनायें 
इधर उधर न कूड़ा फेंके,
स्वच्छता का सुन्दर पाठ पढ़ायें |

अधिक से अधिक पेड़ लगा कर,
पर्यावरण को शुद्ध बनायें |

रंग बिरंगे फूलों के पौधों से
शहर को अपने खूब सजायें |

चारों ओर हरियाली ही हरियाली,
प्रदूषण का नामों निशां मिटायें |

शुद्ध वायु हो,  शुद्ध वातावरण हो,
धरती को प्रदूषण मुक्त करायें |

कितना सुन्दर, कितना प्यारा
प्रदूषण मुक्त ये शहर हमारा |

स्वच्छ हो धरती, स्वस्थ हो मानव
स्वच्छता ही हो ध्येय हमारा |



















मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

गुलगुला : सपना मांगलिक का बालगीत






गोल गोल सा फूला फूला


गरम गुलगुला कहाँ चला?


अरे रेरे ,भई अरे रेरे


डूबा यह तो पेट कुआँ


हुई नाक फिर लाल लाल


मुंह से भी निकला धुंआ ।











सपना माँगलिक
आगरा 


प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : रेल








छुक छुक करती आती रेल ,

छुक छुक करती जाती रेल ।

चिंटू पिंटू मोनू सोनू 

दौड़ लगाये खेले खेल ।


पटरी पर है चलती रेल ,

यात्रियों को भरती रेल ।

इस शहर से उस शहर तक ,

सबको भर ले जाती रेल ।


सौ सौ डिब्बों वाली रेल ,

कभी ना रहती खाली रेल ।

दौड़ लगाती खूब तेजी से, 

जल्दी से पहुँचाती रेल ।


साफ सुथरा अब रहती रेल ,

पंखा  एसी चलती रेल ।

कचरा फेंके जो डिब्बे में, 

उसको तो पहुँचाती जेल ।


चुन्नू मुन्नू चढ़े रेल ,

दिनभर खेले अपना खेल ।

यात्रियों का पेलम पेल ,

एक दूजे से होये मेल ।


 


                           प्रिया देवांगन "प्रियू"

                          पंडरिया  (कबीरधाम )

                          छत्तीसगढ़ 




संकल्प  (बाल लघुकथा ) : सुशील शर्मा 



आज विद्यालय में पोधरोपण हो रहा था सभी बच्चे बड़े उत्साह से स्कूल में उछल कूद कर रहे थे। बड़े बच्चे गड्ढा खोद रहे थे छोटे बच्चे गड्ढों के पास पानी और खाद बगैरह का इंतजाम कर रहे थे। मास्टरजी सबको ताकीद कर रहे थे की पौधों को कैसे रोपित करना है। 

'सुनील गड्ढा जरा नाप का खोदो देखो तुम तिरछा खोद रहे हो " मास्टरजी ने सुनील को निर्देशित किया। 

'जी सर " सुनील अलर्ट हो कर गड्ढा सीधा करने लगा 

"सवि तुम वो गोबर की खाद लेकर आओ " मास्टरजी ने कहा। 

"जी सर "सवि पॉलिथीन में राखी गोबर की खाद उठा लाई। 

"सर हम पौधों में खाद क्यों डालते हैं "सवि ने बड़ी सहजता से पुछा। 

"तुम खाना क्यों खाती हो ?"मास्टरजी ने मुस्कुराते हुए सवि से पूछा। 

"खाने से हमें ताकत आती है " सोहन बीच में ही बोल पड़ा। 

"लेकिन खाद तो खाना नहीं है ये तो गन्दा गोबर है "सवी ने फिर प्रश्न किया। 

"पेड़ पौधे ऐसी ही सदी गली चीजों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं " मास्टरजी ने सभी बच्चों को समझाया। 

"पेड़ पौधों में यह शक्ति होती है की वो सदी गली चीजों को अच्छी ऊर्जा में बदल देते हैं जैसे वो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर उसे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीजन में बदलते हैं और अपना भोजन बनाते हैं। "मास्टरजी ने सभी छात्रों को समझाया फिर एक प्रश्न किया "अच्छा बताओ बच्चो इस प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?

सवि झट से बोली "सर इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं "

"बहुत सुंदर सवि ,अब तुम सब बच्चों को पता चला की अगर पेड़ पौधे भी ऑक्सीजन बनाना छोड़ दें तो क्या होगा " मास्टरजी ने बच्चों की और प्रश्नवाचक दृष्टी से देखा। 

"ऑक्सीजन जल्दी ख़त्म हो जाएगी और हम मर जायेंगे " सुनील ने झट से उत्तर दिया। 

"ऑक्सीजन बनती रहे इसके लिए हमें क्या करना होगा ?"मास्टरजी ने फिर प्रश्न किया। 

हमें बहुत सारे ,इतने सारे पौधे लगाने पड़ेंगे "नन्ही ऋतू ने अपनी दोनों बाहें फैलाकर बताया। 

"हमें इतने सारे पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करना होगा ताकि हमें ज्यादा ऑक्सीजन मिले" सवि ने ऋतू की बात को और विस्तृत किया। 

आओ हम सब मिलकर नन्हे नन्हे पौधे रोपें और उन्हें पेड़ बनाने का संकल्प लें "मास्टरजी ने नन्ही ऋतू के हाथ में पौधा थमाते हुए कहा।  

सभी बच्चे जोर से चिल्लाये "हम सभी संकल्प लेते हैं "




                              सुशील   शर्मा 

सोमवार, 16 जुलाई 2018

कृष्ण कुमार वर्मा की कहानी *साँप और आरी*


एक दिन, एक साँप, एक बढ़ई की औजारों वाली बोरी में घुस गया।
घुसते समय, बोरी में रखी हुई बढ़ई की आरी उसके शरीर में चुभ गई और उसमें घाव हो गया, जिस से उसे दर्द होने लगा और वह विचलित हो उठा। गुस्से में उसने, उस आरी को अपने दोनों जबड़ों में जोर से दबा दिया।
अब उसके मुख में भी घाव हो गया और खून निकलने लगा। अब इस दर्द से परेशान हो कर, उस आरी को सबक सिखाने के लिए, अपने पूरे शरीर को उस साँप ने उस आरी के ऊपर लपेट लिया और पूरी ताकत के साथ उसको जकड़ लिया। इस से उस साँप का सारा शरीर जगह जगह से कट गया और वह मर गया।
      *ठीक इसी प्रकार कई बार, हम तनिक सा आहत होने पर आवेश में आकर सामने वाले को सबक सिखाने के लिए, अपने आप को अत्यधिक नुकसान पहुंचा देतें हैं।*
         *यह जरूरी नहीं कि हमें हर बात की प्रतिक्रिया देनी है, हमें दूसरों की गल्तियों को नजरअंदाज करते हुए, अपने परम पथ पर अग्रसर होना है और यह नहीं कि दूसरे को उसकी गलती की सजा देने के लिए हम अपने लक्ष्य और पथ से विचलित हो जायें।



                           कृष्ण कुमार वर्मा

शैलेंद्र तिवारी की रचना : स्मृति सनबर्ड




स्मति सनबर्ड
09 अप्रैल, 2018 नौ बजे कार्यालय जाने के लिये मैने अपनी कार के शीशे की सफाई करने के लिये जैसे ही अगला दरवाजा खोला अचानक एक चिड़िया उसके अन्दर आ गई। मैं ठीक से देख भी नहीं पाया कि वो अचानक उड़ते हुये पीछे की सीट व शीशे के गैप से होती हुयी डिक्की में चली गई। इसमे पहले ही वह दाई साइड की खिड़की से भी टकरायी थी। गरमी बढ़ने का समय हो रहा था। मैने डिक्की खोली तो एक कोने मेरे बैठी हुई एक सनबर्ड फिमेल दिखाई दी जो कि काफी डरी हुयी थी। मैने धीरे से कार की सीट पर पड़े तौलिये को उठाकर हाथ में लेकर उसे ढककर पकड़ा और अपने घर की पहली मंजिल पर लकर गया। तौलिये को खोलने के बाद जब मैने उसे पकड़ा तो वह आराम से मेरे हाथ पर बैठ गई लेकिन उसकी हृदय गति बहुत तेज थी।
मै अपनी स्मृति में पहले भी कह चुका हू कि मैं एक पक्षी प्रेमी व्यक्ति हू और मेरे पास कई लकड़ी के डिब्बे भी है।
क्योंकि मुझे कार्यालय को देर हो रही थी फिर भी मैने उसे एक सिरिंज में पानी व शहद भरकर थोड़ा सा पिलाया और एक लकड़ी के डिब्बे में बन्द करके मै कार्यालय को चला गया। शाम को कार्यालय से वापस आते ही सबसे पहले में अपनी घर की ममटी (वह स्थान जोकि सीढ़ियो से छत को जाने का रास्ता हो और छत से ठका हो) में गया डब्बा उठाया और पहली मंजिल के कमरे में गया वह स्वस्थ थी। मैं जानता था कि सनबर्ड फूलो से जूस (छमबजवत) चूसती हैं इस कारण मैने शहद की शीशी से 4 बूंद शहद लेकर एक सिरिंज में भरकर (पानी के साथ) उसे पिलाया और डब्बे में रखकर कमरे के अन्दर रख लिया। रात को खाना खा कर मै भी सो गया।
सुबह 5.00 बजे जब उठा तो बाहर हल्का-हल्का उजाला दिखायी दे रहा था। मुझे समय पर्याप्त नहीं लगा तो मैने 30 मिनट और इन्तजार किया उसके बाद जैसे ही मैने डिब्बा उठाया चिड़िया के फड़फड़ाने की आवाज मुझे सुनाई दी। मैने डिब्बे को खोला। डिब्बा खोलते ही वह पहले अन्दर को गई फिर शायद उसे यह अहसास हुआ कि यहॉ पर कोई खतरा नहीं है। यह सोचकर वह बाहर निकली और फुर्र से उड़कर मेरे घर के सामने लगे बोगेनवेलिया पर बैठ गई। लगभग 15 से 20 सेकेन्ड बैठने के बाद उसने एक बार मुड़कर देखा और फुर्र हो गई।
मेरा घर फूलो के पौधो से भरा हुआ था उसमें कई चिड़िया आती थी उसमें कई चिड़िया आती थी और आती है कई सनबर्ड भी आती थी और आती है पर मुझे लगता है कि शायद आज भी वह आती है। एैसा मुझे इसलिये लगता है कि पूर्व मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है।


                     शैलेन्द्र  तिवारी 
                     सेक्टर  21 इन्दिरा  नगर  
                     लखनऊ 

मंजू श्रीवास्तव की कहानी : प्रोफेसर नीरजा



प्रोफेसर नीरजा के कक्षा मे प्रवेश करते ही सभी छात्रों ने एक साथ नीरजा जी का स्वागत किया |
    नीरजा जी बहुत दिनों से छात्रों से कुछ कहना चाह रहीं थी उसका मौका आज मिल गया |
      नीरजा जी ने कहा बच्चों आज आपसे बहुत जरूरी बात करनी है इसलिये आज का पाठ कल  पढ़ाऊँगी | बच्चे खामोश हो गये |
       आज जे बात मैं बताने जा रही हूँ वो मेरे जीवन की सुन्दर सी कहानी है जिसे सुनकर आप भी प्रेरित होंगे |
      आज जिस मुकाम पर मैं हूँ उसके पीछे मेरी कड़ी मेहनत व मेरे माता पिता का बहुत बड़ा हाथ है |
      जब मैं बहुत छोटी थी तभी मेरे माता पिता का कार दुर्घटना मे देहान्त हो गया था  | बिल्कुल अकेली, असहाय सी अपने कमरे मे बैठी थी|
   तभी कमरे का दरवाजा खुला और अंकल आंटी आ गये जिनके यहां मेरी मां काम करती थी | उन्हें देखकर  मैं रोने लगी  | उन लेगों मुझे धीरज बंधाया और अपने घर ले गये |
अंकल आंटी निःसंतान थे | उन दोनो ने मुझे हमेशा के लिये अपने यहां रख लिया  अपनी बेटी बनाकर | मैने भी उन्हें मम्मी पापा कहना शुरू कर दिया  | स्कूल भी जाना शुरु कर दिया था |
        कुशाग्र बुद्धि तो थी ही मेरी |
     सफलताओं की सीढ़ियां चढ़ते हुए १२ वीं मै टॉपर थी | सरकार की तरफ से मुझे स्कॉलरशिप मिली  | आगे की पढ़ाई जारी रखी |
    समय गुजरता गया | मैने ph.d की | माता पिता की खुशी का ठिकाना न था  |
      मैने प्रोफेसरशिप के लिये आवेदन पत्र भेजा और मेरा चयन हो गया  | 
    बच्चों  ये थी मेरे जीवन की सफलता की कहानी |
****************************

बच्चों , सफलता उसीको मिलती है  जो मेहनत से पीछे नहीं हटते |
ईश्वर उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं   |


                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : बरसा रानी







बरसा रानी  बरसा रानी ,

जल्दी से तुम आओ ।

खेत सारे सूख गयें है ,

हरियाली तुम लाओ ।

सबको है इंतजार तुम्हारा ,

कब तक तुम आओगे ।

सबके मन में खुशियाँ ,

कब तक तुम लाओगे ।

जल्दी से तुम आ जाओ ,

इंतजार  मत कराओ ।

सूख रहे हैं कंठ हमारे ,

जल्दी प्यास बुझाओ  ।

जब तुम आओगी ,

चारों तरफ हरियाली होगी ,

सब किसानों के मन मे 

खुशहाली होगी।




                         प्रिया देवांगन "प्रियू"

                        पंडरिया  (कवर्धा )

                        छत्तीसगढ़ 

रोज स्कूल जायेंगे  : महेन्द्र देवांगन की रचना







खतम हो गई छुट्टी अब तो, 

रोज स्कूल जायेंगे ।

मम्मी भर दो टिफिन डिब्बा, 

मिल बांटकर खायेंगे ।


नये नये जूता और मोजा, 

नया ड्रेस सिलवायेंगे ।

नई नई कापी और पुस्तक, 

नया बेग बनवायेंगे ।


नये नये सब दोस्त मिलेंगे, 

उनसे हाथ मिलायेंगे ,

नये नये शिक्षक और मैडम 

हमको खूब पढायेंगे ।


नहीं करेंगे अब शैतानी, 

डांट नहीं अब खायेंगे ।

टीचर जी के होमवर्क को ,

पूरा करके जायेंगे ।


मन लगाकर पाठ पढेंगे, 

अपना ज्ञान बढायेंगे ।

काम्पीटेशन के इस युग में, 

अव्वल नंबर लायेंगे ।



                      महेन्द्र देवांगन* *माटी* 

                       पंडरिया  (कवर्धा )

                       छत्तीसगढ़ 


शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

एक वादा -देश पहले (सेवानिवृत सैनिक पर एक कहानी : सुशील शर्मा






मनोहर ,  अस्पताल में पड़ा सुधीर का इंतजार कर रहा था ।    सुधीर फौजी अफसर बन कर प्रशिक्षण में था। मनोहर की हालत काफी गंभीर थी ।   एक एक कर  मनोहर को अपने जीवन
के सारे लम्हे याद आ रहे थे। मनोहर के पिता बहुत खुश थे क्योंकि आसपास के गांव में सिर्फ वही सीमा पर लड़ने गया था ,हालाँकि माँ ने दबे स्वर में विरोध किया था लेकिन पिता ने माँ को डांटते हुए समझाया था "तू शेर की माँ है या गीदड़ की
मेरा मनोहर देश की सेवा में
जा रहा है हंस कर विदा कर उसको "। 

 मनोहर हज़ारों की भीड़ में भी अलग ही दिखाई देता था ।
पिता ने सीमा पर जाते हुए मनोहर से  कहा था "सुन बेटा एक फौजी का व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली होता है। उसे बहुत ज्यादा अनुशासनप्रिय होना चाहिए। फौजी
नियमों के पक्के होते हैं और समय पर अपने लक्ष्य को पूरा करने की क्षमता रखते हैं और यह उनकी आदत में शुमार होता है।  इसलिए तुम  निडर और निर्भीक बनो देश हित
में अपने प्राण निछावर करने से पीछे मत हटना।
पिता के ये शब्द मनोहर के लिए गीता के समान थे उन्होंने कहा था "तुम सेना में सिर्फ रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से ही भर्ती नहीं हुए हो अपितु जीवन में  कुछ कर दिखाने के जोश-जुनून, कर्तव्य पालन और उससे भी बढ़कर देश की अस्मिता की
रक्षा करने की दृढ़ इच्छा तुम्हारे मन में होनी चाहिए। देशप्रेम की भावना से  ओत-प्रोत मातृभूमि पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर भारतीय सेना की दशकों पुरानी
परंपरा का निर्वहन तुम्हे अपने प्राण चुका कर करना है।"
सेना में प्रशिक्षण के दौरान उसको समझाया गया था कि देश की खातिर मर मिटने का
ये जज्बा, चुनौतीभरी जीवनशैली, अनुशासन से ओतप्रोत पल
एक प्रभावी व्यक्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।  और ऐसा तभी संभव होता है जब
निरंतरता और नौकरी की सुरक्षा का आश्‍वासन बना रहें। सेना को संरचित किया गया
है ताकि सुनिश्चित किया जा सकें कि इसके कर्मी, निर्बाध गरिमा के साथ काम करते
हैं।

मनोहर ने सेना में अपनी बहादुरी के परचम लहरा दिए जम्मू कश्मीर में सबसे
खतरनाक अभियानों में उसने अपनी दिलेरी और बहादुरी से आतंकवादियों और
पाकिस्तानी सेना से लोहा लिया। सरकार ने उसे बहादुरी के लिए अशोक चक्र एवं
अन्य वीरता पुरुष्कारों से नवाजा इसी मध्य उसकी शादी हुई एवं सुधीर का जन्म
हुआ। माता पिता की मृत्यु के बाद एवं अपना कमीशन अवधि पूरा करने के बाद मनोहर
ने फौज से  रिटायरमेंट ले लिया एवं अपने परिवार के साथ जबलपुर में शिफ्ट हो
गया।
मनोहर ने हमेशा अनुशासित जीवन जिया था अतः उसे ये सिविलियन जीवन बहुत कष्टमय
प्रतीत हो रहा था और कभी कभी तो जब वह अन्याय होते देखता तो अपना आपा खो देता
और अन्याय करने वाले से लड़ बैठता था। उसकी पत्नी सुमित्रा उसको बहुत समझाती की
अब आप फौज में नहीं हो कुछ सिविलियन तौर तरीकों में ढल जाओ किन्तु मनोहर अपने
आदर्शों पर अडिग था। वह कहता "जो बदल जाये वो फौजी नहीं। "
सरकार ने मनोहर को शहर में  एक प्लाट दिया था उस पर मनोहर एक मकान  बनाना चाह
रहा था इसकी अनुमति के लिए उसने नगर निगम में आवेदन दिया था किन्तु तीन माह
होने के बाद भी अधिकारी और बाबू उसे टरका देते थे ,मनोहर बहुत परेशान था उसके
दोस्त जो संख्या में बहुत कम थे उन्होंने उसे समझाया की कुछ ले दे कर मामला
सुलटा लो जल्दी अनुमति मिल जाएगी किन्तु मनोहर अडिग था कि मैंने हमेशा सत्य पर
आधारित जिंदगी को जिया है मैं भ्रस्टाचार को बढ़ावा नहीं दे सकता।
आखिर एक दिन गुस्सा में वह नगर निगम के कार्यालय में अधिकारिओं से लड़ बैठा
फलस्वरूप उसके आवेदन पर कई आपत्तियां लगा दी गईं मसलन उस जगह का डायवर्सन नहीं
हैं उस जगह मकान  के निर्माण की अनुमति नहीं हैं आदि अदि। मनोहर खून का घूँट
पीकर रह गया वह सोच रहा था की सैनिक सीमा पर अपने जान की बाजी लगा कर इन
भ्रष्टाचरियों की रक्षा क्यों करता है। उसे अपने सेनाध्यक्ष का वो भाषण याद आ
रहा था जिसमे उन्होंने कहा था "सेवानिवृत्ति के बाद भी सेना के अधिकारी, देश
के सबसे सम्‍मानजनक नागरिकों में से एक होते हैं। यह, उनमें अंत‍निर्हित आचार
संहिता और नैतिक मूल्‍यों को जोड़ता है जो उन्‍हे समाज में एक विशेष सामाजिक
आला पाने के लिए उन्‍हे सक्षम बनाता है। जब तक वह अधिक स्‍वस्‍थ और फिट है, तब
तक उसके लिए एक दूसरे कैरियर या समानांतर में अन्‍य कार्यों को करने का
विकल्‍प संभव है। उसका करो या मरो वाला रवैया और मानसिक चपलता सुनिश्चित करती
है कि वह कभी उम्रदराज़ नहीं होने वाला, लेकिन उसे समाज में एक महत्‍वपूर्ण
सदस्‍य बने रहना होगा और अपना सहयोग देते रहना होगा।"
मनोहर ने ठान लिया कि वह इस भ्रष्ट सिस्टम से लड़ेगा और इसे बदलेगा वह अनुमति
लेकर नगर निगम के बाहर धरने पर बैठ गया उसके साथ ही अन्य पीड़ित व्यक्ति भी
धरने पर बैठे धीरे धीरे वह धरना आमरण अनशन में बदल गया। चार दिन बाद आमरण करने
वाले दो व्यक्तियों की हालत गंभीर हो गई मनोहर तो फौजी था उसपर उतना असर नहीं
हुआ किन्तु उसके साथ जो पीड़ित थे उनका स्वास्थ्य ख़राब होने लगा मिडिया ने भी
ये खबर उछाली तो शहर के जितने भी राजनेता और पीड़ित थे वो सभी एकत्रित होकर
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे बात सेना के अधिकारीयों और मंत्रियों तक गई
,मनोहर पर आमरण अनशन छोड़ने का दबाब भी बनाया गया किन्तु मनोहर अडिग रहा एवं
आखिर में प्रश्न को झुकना पड़ा और उन्होंने निगम कमिश्नर की कहा की कल ही सभी
पीड़ित व्यक्तियों की सुनवाई कर उन्हें अनुमति प्रदान की जावे। अगले ही दिन
कमिश्नर ने धरना स्थल पर ही सभी हितग्राहियों को माकन की अनुमति प्रदान कर जूस
पिला कर सब का अनशन तुड़वाया।
इस छोटी सी जीत ने मनोहर के मन में आत्मविश्वास भर दिया की अगर व्यक्ति मन में
ठान ले तो वह भ्रष्टाचार से लड़ सकता है।

मनोहर ने निश्चय किया कि वह अपना बाकी का जीवन समाजोपयोगी कार्यों में समर्पित
करेगा। एक बार गर्मी की दोपहर में उसने देखा कि गायों का एक समूह बिना पानी के
सड़कों पर प्यासा भटक रहा है तथा उस मोहल्ला में एक भी पेड़ नहीं है जिसके नीचे
वो गायों का समूह धुप से बच कर खड़ाहो सके मनोहर ने निश्चय किया की वह अपने
पूरे मोहल्ले में पेड़ लगाएगा एवं उनकी देखभाल करेगा।
सुबह उठ कर वह बाजार में नर्सरी गया एवं वहां से कुछ पौधे ले आया एवं लुहार की
दुकान से उसने कुछ ट्री गार्ड बनवाये और हर दिन सुबह वह मोहल्ले की सड़कों पर
गड्डा करता एवं पौधा रोपण करता धीरे धीरे मोहल्ले के नौजवान एवं बच्चे उसकी इस
मुहीम से जुड़े एवं कुछ ही महीनों में पूरे मोहल्ले में चरों और हरे हरे पौधे
लहराने लगे। हर दिन मनोहर सुबह बाल्टी लेकर निकल जाता एवं समस्त  पौधों में
पानी डालता एवं उनकी देखभाल करता था।

मनोहर के माता पिता नहीं थे उसे उनकी बहुत याद आती थी अतः वह रविवार को
वृद्धाश्रम जाकर वहां के बुजुर्ग लोगों के साथ बैठ कर उनके  सुख दुःख बांटता
था। जिन वृद्धों के सन्तानो ने उन्हें वृद्धाश्रम में अकारण रखा था उनसे
संपर्क साधकर उन्हें समझाता अनुनय विनय कर उन्हें अपने साथ घर रखने की सलाह
देता एवं उनके न मानने पर अदालत से स्वयं के खर्चे पर उन वृद्धों को उनके
अधिकार दिलाता।
एक फौजी हमेशा देश के बारे में पहले सोचता है मनोहर अपने बेटे प्रवेश के लिए
शहर के एक अच्छे निजी स्कूल में गया पहले तो उसे मनाकर दिया गया बाद में जब
उसने बताया की हर स्कूल में फौजियों के बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य है तो
बहुत आनाकानी के पश्चात उसके बेटे सुधीर को प्रवेश देने को सशर्त तैयार हुए
जिसमे स्कूल की फीस के आलावा उसी स्कूल से किताबें ,ड्रेस जूते और न जाने क्या
क्या खरीदने पड़ेंगे।
"लेकिन ये तो ज्यादती है "मनोहर ने प्रबंधक  से कहा।
" तो मत लीजिये प्रवेश एक तो आपने हमारी बहुमूल्य सीट खा ली "प्रबंधक ने चिढ़ते
हुए कहा।
"खा ली से आपका क्या तात्पर्य है वो मेरा अधिकार है "मनोहर ने गुस्से में कहा।
"इतना खर्च तो आपको लगेगा पढ़ाना हो तो पढ़ाओ वर्ना .. "प्रबंधक ने गुस्से में
कहा।
"क्या आप मनमानी करेंगे एक फौजी जिसने सारे जीवन देश की सेवा की उससे जब आप
लूट खसोट कर रहें हैं तो आम आदमी की आप क्या हालत करते होंगे " मनोहर ने अपने
गुस्से पर काबू करते हुए लेकिन तेज स्वर में कहा।
"आप को आम आदमी से क्या लेना देना और आप फौज़  में हो तो कोई भगवान नहीं हो
"प्रबंधक का रुखा व्यवहार जारी रहा।
"नहीं आप इस तरह से पालकों को नहीं लूट सकते " मनोहर ने गुस्से में कहा।
"आप बाहर जा सकते हैं "प्रबंधक ने बाहर की और इशारा करके कहा।

मनोहर ने ठान लिया कि वह पालकों का शोषण नहीं होने देगा दूसरे दिन उसने पालकों
को इकठ्ठा करके उस निजी स्कूल के सामने धरना दिया। स्कूल प्रबंधन ने उसे बहुत
लालच दिया की वह उसके बच्चे की पूरी फीस माफ़ कर देंगे साथ ही उसे अच्छे अंको
से पास करवा देंगे लेकिन मनोहर ने स्पष्ट कह दिया कि जब तक प्रवंधन समस्त
पालकों के लिए  नियमानुसार फीस का निर्धारण नहीं करता तब तक उसका धरना
प्रदर्शन जारी रहेगा ,आखिर तीन दिन के बाद उच्च शिक्षा अधिकारी के हस्तक्षेप
के बाद स्कूल ने नियमानुसार फीस का निर्धारण किया साथ ही स्कूल से किताबें एवं
अन्य सामग्री खरीदने की बाध्यता समाप्त की। मनोहर के मन में एक आत्म संतोष हो
गया की वह आज भी एक लड़ाई लड़ रहा है भले ही वह सीमा की लड़ाई नहीं हैं किन्तु
सीमा के भीतर भ्रष्ट  तंत्र से लड़ना ज्यादा मुश्किल है।
उसने निश्चय कर  लिया था कि वह अपने एकलौते बेटे सुधीर को सेना में जरूर
भेजेगा। उसने  अपने बेटे सुधीर से वादा लिया था कि वह अपने देश की सेवा करने
सेना में जरूर जायेगा। उच्च शिक्षा प्राप्ति के बाद सुधीर का चयन सेना में एक
अधिकारी के रूप में हुआ।
सुधीर के प्रशिक्षण के दौरान ही मनोहर को हार्ट अटैक आया बहुत कोशिशो के बाद
भी मनोहर को बचाया नहीं जा सका। मरने से पहले उसने अपने बेटे सुधीर को पास
बुलाया वर्दी में सजे-धजे फौजी अफसर बेटे सुधीर को देख कर मनोहर का सीना गर्व
से तन गया। फौजी वर्दी में सजा सुधीर मनोहर को अपना ही प्रतिरूप लगा आज से 30
साल पहले जब फौज में चयन हुआ था। मनोहर ने उसके सर पर हाथ रख कर कहा "बेटा
देश  सर्वोपरि है उसके बाद कोई और है सीमा पर कभी भी पीठ मत दिखाना गोली खाना
तो अपने सीने पर खाना।"
"पिताजी आप से वादा करता हूँ मेरी आखरी साँस सिर्फ देश की सेवा करते हुए ही
निकलेगी ..... अभी सुधीर अपना वाक्य पूरा ही नहीं कर पाया था कि मनोहर इस
संसार से विदा हो चुका था लेकिन उसके मुंह पर एक शहीद का तेज था जो कह रहा था
की उसके जीवन का एक एक क्षण देश के काम आया।


                     सुशील  शर्मा 

स्मृति (ओरियंटल मैगपायी रोबिन) : शैलेन्द्र तिवारी की स्मृति श्रृंखला से





जून, 2016 में मैनें अपने घर पर पहली मंजिल की बालकनी में एक लकड़ी का बक्सा लगभग 10-12 इन्च बड़ा लगाया , जो कि चिड़ियों को घोसला बनाने के उद्देश्य से लगाया था। बक्सा लगाते ही उसमें गौरेया का आना जाना शुरू हुआ लेकिन बाजी हाथ लगी ओरियंटल मैगपायी रोबिन के जोड़े को। उन्होंने घोसला बनाना शुरू किया। घर के सामने पार्क है और पार्क में नीम के पेड़ है नीम के पेड़ो की छोटी-छोटी डंडियों जिसमें पत्ते लगते हैं को इक्टठा करके नर व मादा रोबिन, बक्से में डालने लगें, घोसला बनने लगा। यह काम दोनों लोग सुबह और शाम को किया करते, क्योंकि जून माह में लखनऊ में दिन भर बहुत गर्मी का मौसम होता है। तीन दिनों की मेहनत के बाद घोसला बनकर तैयार हो गया। चौथे दिन मादा रोबिन ने डिब्बे/घोसले में बैठकर अण्डा दे दिया। 
घर के सामने बिजली का तार व पेड़ है नर राबिन कभी पेड़ में कभी बिजली के तार पर बैठकर इन्तजार करता तथा मादा राबिन अण्डे को सेकती थी। क्योंकि मैं दिनभर आफिस में रहता हूँ तो मुझे दिनभर घर की जानकारी नहीं हो पाती है। एक अवकाश के दिन मैने देखा कि नर राबिन अपने मुह में कीड़ा भर कर लाया और इधर-उधर देखने के बाद सीधे डब्बे/घोसले के अन्दर चला गया। डिब्बे में से बहुत हल्की-हल्की आवाज आ रही थी। मुझे यह समझते देर न लगी कि अण्डे से बच्चे निकले एक-दो दिन हो चुके है। थोड़ी देर बाद मादा चिड़िया भी अपने मुह/चोंच में मकोड़े भर कर लायी और नर के बाहर आ जाने के बाद व घोसले में गयी और शायद बच्चें को खिलाया भी होगा। इस तरह यह सिलसिला चलता रहा।
सात-आठ दिनां के बाद एक दिन मैंने नर चिड़िया (रोबिन) को चिल्लाते हुये सुना तो मै कमरें से जाली वाले दरवाजे के अन्दर से झॉकने लगा, तो देखा कि नन्हा सा बच्चा डिब्बे की खिड़की पर बैठा है। उसके पिता बिजली के तार पर बैठा उसे बाहर उड़ाने का प्रयास करा रहा है। शायद अपनी भाषा में यही कर रहा होगा। कई बार अन्दर बाहर करने के उपरान्त वह बच्चा जोर लागाकर उड़ा और बालकनी की रेलिन्ग पर जा बैठा। इतने में उसकी माँ भी अपनी चोंच में भरकर खाना लायी व उसे खिलाया।
शायद उसको और साहस आ गया वह अपने माता-पिता के निर्देश में उड़कर पेड़ की ओर चला गया। अब वह बडे़ पक्षियों की दृष्टि से दूर था तथा उसे किसी प्रकार का खतरा नहीं था। मेरे घर के ठीक सामने पेड़ होने के कारण दो-तीन दिनां तक मेरी नजर उस पर रहीं। उसके माता-पिता उसे खिलाते और देखते ही देखते वह उड़ने लगा। 
दो तीन दिनां तक वह मुझे नहीं दिखायी दिया न ही उसके माता-पिता दिखायी दिये। एक दिन आफिस जाते समय अपने घर के पीछे पानी की टंकी के पास पेड़ो के झुरमुठ में मुझे उसकी आवाज सुनाई दी मैं रूका तो देखा कि उसका पिता उसे कुछ स्वंय खाने के लिये सिखा रहा था। वह बार-बार पिता की चोंच से खाना चाह रहा था और पिता जमीन से निकाल कर खाना सिखा रहा था। फिर उसने कई बार कोशिश करी और कामयाब हुआ। यह देखकर मै भी अपने कार्यालय की तरफ बढ़ गया। यह निश्चित था कि अब वह अपना जीवन जी सकता है।



                       शैलेन्द्र  तिवारी , सेक्टर  21
                       इन्दिरा  नगर  लखनऊ 

महेन्द्र देवांगन की रचना : आओ पेड़ लगायें






चलो चलें एक पेड़ लगायें,  धरती में खुशहाली लायें ।

पेड़ लगाकर घेरा बनायें,  गाय बकरी से उसे बचायें ।

सुबह शाम हम पानी डालें,  सुरक्षा का उपाय अपना लें ।

धीरे धीरे पेड़ बढ़ेंगे,  मैना गिलहरी उस पर चढेंगे ।

सबको मिलेगी शीतल छाँव,  सुंदर दिखेगा मेरा गाँव ।

फल फूल भी रोज मिलेगा,  सबका मन खुशी से खिलेगा ।

कभी नही इसको काटेंगे , फल फूल को रोज बाँटेंगे ।

हो हमारे सपने साकार,  पेड़ जीवन का है आधार ।

  


                        महेन्द्र देवांगन "माटी "

                        पंडरिया  (कवर्धा )

                        छत्तीसगढ़ 

                         8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com


मंजू श्रीवास्तव की कहानी : सुमी का जन्म दिन









सुमी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी | बहुत आज्ञाकारी व मृदुभाषिणी बेटी थी |
आजकल वह अपने जन्म दिन को लेकर बहुत उत्साहित थी जो इसी महीने आनेवाला था |
उसके मम्मी पापा ने भी कहा था कि इस बार सुमी का जन्मदिन एक नये अन्दाज़ मे मनायेंगे |
सुमी की उत्सुकता बनी रही कि पापा ऐसा क्या नया करने वाले हैं |
     यही सोचते सोचते आखिर वह दिन भी आ गया जिसका सुमी को इतने दिन से इन्तज़ार था , जन्म दिन |

   आज सुमी बहुत खुश थी | सुबह से ही नई ड्रेस पहनकर पूरे घर मे चहकती घूम रही थी | वह मन मे सोच रही थी आज पापा मेरे लिये खूब सारे गिफ्ट लायेंगे | बहुत मजा आयेगा |
      विचारों मे खोई हुई थी तभी घर के बाहर कार रूकने की आवाज आई | दौड़ती हुई बाहर गई, देखा पापा की कार थी |
         उसने देखा कार मे बहुत सुन्दर सुन्दर गिफ्ट रखे हुए थे | सुमी का मन बल्लियों उछलने लगा | उसने सोचा आज अपनी सहेलियों को बुलाकर खूब जश्न मनायेंगे |
        लेकिन पापा मम्मी सुमी को अपने साथलेकर  आश्रम  की तरफ चल दिये |  सुमी को कुछ समझ नहीं आया | पापा हम लोग कहाँ जा रहे हैं
हैं? सुमी ने पूछा |
        पापा ने कहा बेटा हम सब बच्चों के आश्रम जा रहे हैं | सुमी का मन उदास हो गया | उसे लगा कि उसके सारे सपने टूट गये |
     मम्मी ने उसे समझाया कि हर साल तुम अपनी सहेलियों के साथ जन्म दिन मनाती हो | इस बार इस नये तरीके को अपनाकर देखो, तुम्हें बहत खुशी मिलेगी | इन अनाथ बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर तुम्हें हर बार से दुगुनी खुशी मिलेगी  |ये  बच्चे अपना जन्म दिन कहाँ मना पाते हैं | सुमी को मम्मी की बातें समझ मे आ गईं | 
        सब लोग आश्रम पहुँच गये| आश्रम के मालिक ने तीनों का स्वागत किया और बच्चों से मिलवाया |
       सुमी ने एक एक करके सभी बच्चों के  हाथ मे मिठाई का पैकेट और एक एक सूट उपहार स्वरूप दिया|
         बच्चे इतने खुश मानो दुनिया की सारी दौलत मिल गई हो |
           सारे बच्चों ने सुमी को हैप्पी बर्थ डे दीदी , हैप्पी बर्थ डे दीदी कहकर चारों तरफ से घेर लिया |  
        बच्चों को इतना खुश देखकर सुमी की आंखों मे भी  खुशी के आँसू आ गये |

       घर आकर सुमी ने मम्मी से कहा,  सच मे मम्मी आज के जन्म दिन का जश्न हर बार से बहुत अच्छा था | आगे से मै अपना जन्म दिन इसी तरह मनाया करूँगी |

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बच्चों, किसी को कुछ देकर मन मे जो खुशी और आनन्द  का अहसास होता है उसकी किसी से कोई बराबरी नहीं |





                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार