ब्लॉग आर्काइव
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दिसंबर
(18)
- प्रिन्सेज डाॅल का मैरी क्रिसमस
- बाल गीत (जंगल) रचना प्रिया देवांगन प्रियू
- क्रिसमस डे"
- माँ की सीख (लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह
- घोड़ा गाड़ी(बाल रचना) : रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
- गौ माता : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
- "बगिया" दिवंगत महेन्द्र देवांगन की रचना
- बंदर की बारात,,,(बाल गीत) रचना वीरेन्द्र सिंह ब्...
- **नाना जी की मूँछ** रचना शादाब आलम
- हे राम "(लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी
- "किसान" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
- चीटियां और साँप (पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित)
- कुछ चित्र भी
- नन्ही चुनमुन और यूनीकार्न :शरद कुमार श्रीवास्तव
- जाड़े की धूप
- कोरोना" (चौपाई)
- व्यर्थ न तोड़ो फूल!(बाल रचना) रचना वीरेन्द्रसिंहब...
- लघु कथा/ लालच बुरी बला
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दिसंबर
(18)
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
प्रिन्सेज डाॅल का मैरी क्रिसमस
बाल गीत (जंगल) रचना प्रिया देवांगन प्रियू
जंगल के हम रहने वाले।
कन्द मूल को खाते हैं।।
हट्टे कट्टे हम है यारों।
उठ कर दौड़ लगाते हैं।।
हाथी बंदर धूम मचाते।
उछल कूद सब करते हैं।।
बन्दर देख कर सभी बच्चे।
ताली खूब बजाते हैं।।
दूर सभी रहते महलों से।
कड़ी मेहनत करते है।।
कंद मूल अरु लकड़ी लाकर।
पेट सभी हम भरतें हैं।।
सादा जीवन उच्च विचारें।
हम जंगल वनवासी है।।
मिलजुल सब कर रहते साथी।
हम जंगल के दासी है।।
माटी पुत्री -प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997
क्रिसमस डे"
माँ की सीख (लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह
कोरोना,कोरोना,कोरोना,,,लड़का अपनी माँ पर खीजता हुआ घर के बाहर चला गया।माँ मास्क हाथ में लिए देखती ही रह गई।
यह लड़का मेरी बात नहीं सुनता।बारबार हाथ साबुन से धोने,कपड़े धोने और मास्क लगा कर रहने की बात क्या गलत है। माँ अनेक शंकाओं में घिरी उसके शकुशल घर लौटने की राह देखती है।
बेटा यह सोचकर घर से निकला कि अब मैं उस घर में नहीं जाऊंगा जहां सर समय पाबंदियों में जीना पड़े।कभी यहां कभी वहां सुबह से शाम तक घूमते हुए थक गया भूख अलग से सताने लगी।वह नज़दीक के गांव में रह रही अपनी बहन के यहाँ पहुंचा।किवाड़ खटखटाई खिड़की खोलकर बहन देखा मेरा भाई आया है,जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलने को हाथ बढ़ाया उसके पति ने कहा अगर भाई ने मास्क पहन रखा हो तभी द्वार खोलना वरना उसे पहले मास्क लगाकर आने को कहो।
बहन ने यही बात अपने भाई को बोल दी।इसके बाद वह कई जगह गया हर जगह उसे कोरोना से बचाव की चेतावनी सुननी पड़ती।
इधर माँ एकटक उसकी राह देख देखकर पागल हुई जा रही थी।तभी अचानक दरवाजा बजा मां ने कौतूहलवश दरवाज़ा खोला,देखा कि उसका बेटा निढाल सा पड़ा हुआ है।माँ ने किसी तरह उसे चारपाई पर लिटाकर आराम दिलाया।
फिर उसके मुंह हाथ धुलकर उसके कपड़े बदलवाए उसके बाद खाना खिलाकर पूछा, क्या में गलत थी जो तुझे इस भयानक बीमारी से बचने की सलाह देती रही।
बेटा बेहद शर्मिंदा हुआ और मां के पैरों में गिर कर क्षमा मांगी और मां की हर सीख पर अमल करने का आश्वासन देते हुए तुरत माँ से मास्क मांगकर लगा लिया।
अब उसकी समझ में पूरी तरह आ चुका था कि हर बीमारी का इलाज जानकारी और बचाव में ही निहित है।इसलिए मास्क पहनिए,बार बार साबुन से हाथ धोइए,और उचित दूरी रखिए।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
घोड़ा गाड़ी(बाल रचना) : रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
तुगड़म तुगड़म तुगड़म करती
आई घोड़ा गाड़ी
हैट लगाकर हांक रहा था
बंदर उसे अनाड़ी।
कभी इधर से उधर भगाता
बनता बड़ा खिलाड़ी
मार - मार हंटर घोड़ों की
सारी चाल बिगाड़ी।
तेज हवा से बातें करती
दौड़ रही थी गाड़ी
तभी अचानक बीच राह में
पड़ी कटीली झाड़ी।
निकल गया गाड़ी का पहिया
बंदर गिरा पिछाड़ी
ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर
नोच रहा था दाढ़ी।
कभी-कभी अधिक होशियारी
बने मुसीबत भारी
सोच समझकर चलने में ही
निर्भय रहें सवारी।
हमको भी सबने सिखलाया
धीमी रखना गाड़ी
तभी कहेंगे राजा बेटा
वरना कहें कबाड़ी।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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गौ माता : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
बुधवार, 16 दिसंबर 2020
"बगिया" दिवंगत महेन्द्र देवांगन की रचना
मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
बंदर की बारात,,,(बाल गीत) रचना वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
अचकन पहन बांधकर पगड़ी
बंदर मामा आए
बैठ गए घोड़ी पर जाकर
मुख में पान दबाए।
सबने मिलकर किया भांगड़ा
खूब ढोल बजवाए
नाच - नाचकर थके बराती
बहुत पसीने आए।
लेकर जब बारात अनोखी
बंदर मामा धाए
सूंघ - सूंघकर सारी झालर
तोड़ - तोड़ बिखराए।
हाथी, घोड़ा, ऊंट सभी ने
बढ़कर हाथ मिलाए
सजा सजाकर तश्तरियों में
स्वयं नाश्ता लाए।
हलवा पूड़ी दूध जलेबी
मिलकर सबने पाए
दूल्हे राजा ने बढ़चढ़ कर
भांग पकौड़े खाए।
देख बंदरिया को बन्दर जी
मन ही मन हर्षाए
माला डलवाने गर्दन को
बार -- बार उचकाए।
बंदर मामा तनिक देर भी
खड़े नहीं रह पाए
जयमाला की पावन रस्में
पूर्ण नहीं कर पाए।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
12/12/2020
**नाना जी की मूँछ** रचना शादाब आलम
बालगीत रचनाकारों मे एक जाना पहिचान नाम श्री शादाब आलम का है इनकी यह कविता, इसी पत्रिका मे अगस्त 2017 के अंक मे प्रकाशित हो चुकी थी, वह पुनः प्रकाशित की जा रही है ।
चौड़ी-चौड़ी, लम्बी-लम्बी,
नाना जी की मूँछ।
लटकी दिखती है यह अक्सर
नीचे की ही ओर
टस से मस न होतीं चाहे
खींचूँ जितनी ज़ोर।
ऐसा लगता जैसे मुँह पर
लगी हुई हो पूँछ।
नाना जी को अपनी मूँछों
पर है बड़ा गुमान
कहते मूँछे तो होती हैं
मर्दों की पहचान।
करे बुराई जो मूँछों की
जातें उससे जूझ।
जब मैं रूठूँ फिर वे हँसकर
मुझे बुलाते पास
और सुनाते मूँछों वाला
गीत बड़ा ही ख़ास।
मूँछों पर वे कहें पहेली
फ़ौरन लूँ मैं बूझ।
- शादाब आलम
हे राम "(लघु कथा) वीरेन्द्र सिंह बृजवासी
घना कोहरा, गज़ब की ठिठुरन कितने भी गर्म कपड़े पहन ने पर भी ठंड अपना असर कम करने को राजी नहीं।
ऐसे में मामूली फटे-टूटे कंबल में लिपटी एक वृद्धा हाथ पैरों को सिकोड़े रात काटने को मजबूर सूर्य की पहली किरण से जीवन लौटाने की आस में निरजीव सी पड़ी है।
सब उसके पास से होकर गुजरते रहे परंतु किसी ने यह नहीं सोचा कि उसके पास जाकर उसका हाल-चाल पूछें,उसके खाने-पीने की व्यवस्था करें।या और कुछ नहीं तो एक प्याला गर्म चाय ही पिलवा दें।या उसे सड़क से उठाकर कहीं किसी छत के नींचे ही लिटा दें।
उस वृद्धा के बच्चे तो दुर्भाग्यशाली हैं ही।वह लोग भी कम दुर्भाग्यशाली नहीं हैं जो यह सब देख कर भी अनजान बने रहते हैं।
हम यह सोच ही रहे थे तभी कुछ लोग आए और एक सादे कागज़ पर उसका अंगूठा लगाने का प्रयास करने लगे।हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि इस बुढ़िया की दो सौ बीघा जमीन है।यह उसे अपनी लड़की के नाम करने पर उतारू है।हम ऐसा होने नहीं देंगे।
हम तो चाहते हैं कि यह मरने से पहले जमीन हमारे नाम कर दे।अगर राजी से नहीं तो ऐसे ही सही।वो अंगूठा निशानी ले कर चले गए। हम देखते ही रह गए।सिर्फ मुंह से यही निकला,
"हे राम"
ह वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
09/12/2020
"किसान" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
चीटियां और साँप (पंचतंत्र की कहानियों पर आधारित)
रविवार, 6 दिसंबर 2020
कुछ चित्र भी
बिलासपुर से श्री जाविद अली की सुपुत्री कुमारी ऐन कक्षा नवम की छात्रा ने अपनी कुछ मनमोहक चित्रकला के नमूने भेजे । इनके दादा दिवंगत हिदायत अली साहब भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । पिता हिन्दी विभाग की सेवा कर रहे हैं तो माता उर्दू मे डाक्टरेट के बाद लडकियो के विद्यालय मे सेवारत हैं।
नन्ही चुनमुन और यूनीकार्न :शरद कुमार श्रीवास्तव
रात हो गई थी नन्ही चुनमुन अपने खिलौनो के साथ बिस्तर मे सोने का प्रयास कर रही थी वह सोच रही थी उसका यूनीकार्न अगर घोड़ा होता तो वह उसकी पीठ पर सवार होकर सपनो के देश की सैर कर आती । अचानक यूनीकार्न सजा सजाया घोड़ा बनकर तैयार हो गया और चुनमुन से बोला चलिए बेबी आप को सैर कराता हूँ। नन्ही चुनमुन तुरन्त उसकी पीठ पर जा बैठी । वह घोड़ा हवा से बाते करता हुआ कभी बादलो के ऊपर तो कभी नीचे उडने लगा । चुनमुन को बहुत मजा आ रहा था । अब वे चाकलेट के बगीचे मे थे । यह बगीचा असल मे एक जादूगर का था । चुनमुन ने चाकलेट के पेड से एक चाकलेट तोड़नी चाही तब वहाँ चौकीदार ने पकड़ लिया । नन्ही चुनमुन क्या करती और घोड़ा भी क्या करता चाकलेट तो बेबी ने तोड़ी थी तो पकड़ी भी वही जायेगी ।
यूनीकार्न चुपचाप वहाँ से गायब हो गया वह चुनमुन की मम्मी को फोन भी नहीं कर पा रहा था। चुनमुन मम्मी जी से पूछकर नहीं आई थी । इसलिए उसे इसके लिए भी डाँट पड़ती । चुनमुन अब अकेली पड़ गई थी यह देखकर वह रोने लग गई कि अचानक उसकी आँखें खुल गई । आँखों के खुलते ही उसने यूनीकार्न को ढूंढना चाहा लेकिन यूनीकार्न तो वहाँ नही था । चुनमुन को सब बातें किसी पहेली से कम नहीं लग रही थी । कि वह चाकलेट के पेड़ के चौकीदार से कैसे बचकर आई कैसे । यूनीकार्न पर भी बहुत क्रोध आ रहा था जो उसे अकेला छोड़कर भाग गया था। तभी उसकी नजर बिस्तर से नीचे पड़ी जहाँ यूनीकार्न महोदय धराशाई पड़े थे ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
जाड़े की धूप
सुन मुन्नू सुन गुन्नू ओ बेबी पीहू रानी
आया है जाड़ा, जाड़े की धूप सुहानी
आओ बैठे धूप में कहती बूढ़ी नानी
बच्चे बात न सुनते खेलते हैं पानी
पहनो मोजे पावों में कहती है नानी
टोपा नहीं पहनते करते ये मनमानी
दौड़ें बच्चे पकड न पाये देखो नानी
नाक सुड़ सुड़ फिर भी खेलते पानी
नानी की बात न माने करते मनमानी
जाड़ा नहीं सताए जितनी करे शैतानी
सर सर हवा चले बहे नाक से पानी
बच्चों से जाड़ा हारा सुनिए जी नानी
बच्चों से न बोले जाड़ा बात ये बतानी
युवा का मीत शीत बात सबने है मानी
जाड़ा बूढ़ा नहीं छोड़ता मत कर हैरानी
ओढ़ रजाई बूढ़ा काँपे होगई बात पुरानी
शरद कुमार श्रीवास्तव
शनिवार, 5 दिसंबर 2020
कोरोना" (चौपाई)
व्यर्थ न तोड़ो फूल!(बाल रचना) रचना वीरेन्द्रसिंहबृजवासी-
जान बूझकर तुम बगियासे
व्यर्थ न तोड़ो फूल
अद्भुत ईश्वर की माया को
कभी न जाना भूल।
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रंग-बिरंगे फूल हर घड़ी
देते हमें सुगंध
वातावरण सुहाना करके
दूर करें दुर्गंध
फूल तोड़ने से बगिया में
रह जाएंगे शूल।
टहनी पर फूलोंका खिलना
सबको भाता है
असमय ही मिट्टीमें मिलना
दुख पहुंचाता है
मौसम का आभास कराते
तरह- तरह के फूल।
फूलों सी कोमलता रखना
लगता अच्छा है
शब्द-शब्द पंखुरियों जैसा
लगता सच्चा है
फूलों सा व्यवहार सभी के
होता है अनुकूल।
सुंदर फूलों की घाटी सा
चमके अपना देश
तन-मन सुंदर करने वाला
हो नूतन परिवेश
पाखण्डों की बढ़ोत्तरी को
कभी न देना तूल।
आओ हम मिलकरके ऐसा
कदम उठाते हैं
फूल सुरक्षित करके बगिया
को चमकाते हैं
फूलदार पौधों की मिलकर
चलो बनाएं गूल
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उप्र,
मोबा- 9719275453
दिनांक- 01/12/2020
लघु कथा/ लालच बुरी बला
तांगे वाला अपने तांगे में सवारी दर सवारी बैठाले जा रहा था।यहां तक कि अपने बैठने की जगह भी सवारियों से भर ली।दुबले-पतले घोड़े के लिए भी इतनी सवारियां लेकर चल पाना उसके बूते से बाहर था।परंतु बेचारा क्या करे ।मुंह में कंटीली लगाम ऊपर से मालिक का तड़ातड़ पड़ता हंटर उसको चलने के लिए विवश कर रहा था।
जैसे-तैसे घोड़े ने ताकत बटोरकर चलना प्रारम्भ किया तो उसके पैर कांपने लगे परंतु सर नीचे करके और कुछ कदम ही चल पाया होगा कि सवारियों के अथाह बोझ से तांगा इतना नींचे झुक गया कि बेचारा घोड़ा भी ऊपर टंग गया।इधर ज्यादा झुकने के कारण तांगे में बैठी सवारियां भी धड़ाधड़ जमीन पर गिरने लगीं।कई सवारियों को गंभीर चोटें भी आ गईं।
सवारियों के गिरते ही घोड़ा भी जोर से नींचे गिरा और गर्दन टूटने के कारण भगवान को प्यारा हो गया।यह देख कर तांगे वाला दहाड़ें मार कर रोने लगा।उसका रोना सुनकर बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए और तांगे वाले को ताने मरते हुए बोले,क्या भैया एक बार में ही मालदार होना चाह रहा था।जिन सवारियों के चोट लगी उनका क्या कसूर था अब भुगत,,,,
घोड़ा कोई हवा खाकर थोड़े ही चलेगा उसे भी तो अच्छा दाना-पानी चाहिए,ज्यादती की भी एक सीमा होती है।तभी कुछ पुलिस वाले आए और घायलों को अस्पताल भिजवाने के पश्चात तांगेवाले को अपने साथ थाने ले गए।
तभी तो बुद्धिमान लोगों ने कहा है "लालच बुरी बला"
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
दि0- 02/12/2020