खेतों में फसलें लहराते।
अन्न किसान उगाते हैं।।
कड़ी धूप में दिनभर रहते ।
तब वह भोजन खाते हैं।।
बंजर धरती सोना उगले।
कड़ी मेहनत करते हैं।।
गर्मी ठंडी बरसातों में।
नही किसी से डरते हैं।।
फसल जीवन भर वे उगाते।
तभी बैठ के खाते हैं।।
बूँद पसीना रोज बहाते।
तब वह घर पर आते हैं।।
अब क्या होगा सोंच रहे हैं।
अन्न कहाँ से लायेंगे।।
घर में भूखे बच्चें सोते।
भोजन कैसे खायेंगे।।
कुछ तो दया दिखाओ भगवन।
बच्चें भी अब रोते हैं।।
अन्न नही है खाने को अब।
भूखे रहकर सोते हैं।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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