जंगल के हम रहने वाले।
कन्द मूल को खाते हैं।।
हट्टे कट्टे हम है यारों।
उठ कर दौड़ लगाते हैं।।
हाथी बंदर धूम मचाते।
उछल कूद सब करते हैं।।
बन्दर देख कर सभी बच्चे।
ताली खूब बजाते हैं।।
दूर सभी रहते महलों से।
कड़ी मेहनत करते है।।
कंद मूल अरु लकड़ी लाकर।
पेट सभी हम भरतें हैं।।
सादा जीवन उच्च विचारें।
हम जंगल वनवासी है।।
मिलजुल सब कर रहते साथी।
हम जंगल के दासी है।।
माटी पुत्री -प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997
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