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रविवार, 26 मई 2019

परोपकार का संतोष बालकथा : कृष्ण कुमार वर्मा





रौनक और अतुल दो पक्के मित्र थे । एक साथ खेलना , कूदना और साथ मे ही स्कूल जाते थे ।
एक बार दोनो स्कूल जा रहे थे तो रास्ते मे एक आम का पेड़ था । आम पककर गिरे हुए थे । जैसे ही रौनक ने देखा तो दोनो दौड़कर आम के पास पहुंच गए और उठाने लगे । फिर अचानक अतुल ने देखा कि पास में एक चिड़िया की छोटी सी बच्ची गिरी पड़ी है । तो अतुल जाकर उसे उठाने लगा । यह देखकर रौनक ने अतुल से कहा - कि अब हमें चलना चाहिये क्योंकि स्कूल के लिए देर हो रहे है । लेकिन अतुल ने कहा - " हम इसे ऐसे नही छोड़ सकते ! यह अपने घोंसले से गिर गया है और यही पर पड़ा हुआ गर्मी में मर जायेगा । हमे इसे घोसले में पहुँचाना ही होगा ।
तभी रौनक ने कहा कि इसे कैसे ऊपर चढ़ाएंगे ?
तब अतुल ने कहा कि वह उसके ऊपर चढ़कर उसे ऊपर रख दें । फिर रौनक ने वैसे ही किया । और इस तरह दोनो दोस्त स्कूल के लिए निकले ।
आज बहुत देर हो चुका था । मास्टर जी ने देर आने का कारण पूछा तो अतुल ने सबकुछ बता दिया ।
यह सब सुनकर मास्टर जी ने दोनों को शाबासी दी और पूरी कक्षा को परोपकार का महत्व बताया कि कैसे हमे हर जीव - जंतुओं की मदद करनी चाहिए।
यह सब सुनकर रौनक और अतुल बहुत खुश थे और विशेषकर रौनक को परोपकार का महत्व और संतोष , समझ मे आ चुका था ।




      कृष्ण 

  •   कुमार वर्मा

      चंदखुरी फार्म , रायपुर
      9009091950
      krcverma@gmail.com
      25/05/2019

वसुधा का श्रंगार : विजय चंदेल




 प्राणवायु जीवो को देते ,सब वृक्ष ईश्वर वरदान । 
उदार भाव के होते है तरु,देते शीतल छांव का दान। 
 वारिद -वारि मिले तरु से  ,धरा अनेक औषधि उपजाते । 
श्रृंगार वृक्ष हैं वसुधा के ,जहाँ लख चौरासी जीवन पाते । 
कंद ,मूल ,फल ,पुष्प मनोहर ,जीव- जंतु के भूख मिटाते । 
ऐसे दिव्य महान वृक्ष है ,राहगीर जहां आनंद पाते । 
आओ साथी हम सब मिलकर, खोदे अनेको गड्ढ़े । 
पर्यावरण संतुलन के लिए,लगाए मिलकर  पौधे । 
 हरे -भरे वृक्षों को देख  , करेंगे सभी  जन   याद । 
नव आगन्तुक पीढ़ी से ,हमे  मिलेंगे  साधुवाद   । 

                     रचनाकार 
                   विजय चन्देल (शिक्षक) 
            पंडरिया छत्तीसगढ़ 
            


रंग बिरंगी तितली रानी बालगीत : कृष्ण कुमार वर्मा




रंग बिरंगी तितली रानी ,
सबके मन को भाती हो ...
इस फूल से उस फूल तक ,
यू ही तुम इतराती हो ...


फूलों की मेरी एक बगिया है ,
कभी इधर भी पास आया करो ...
साथ मिलकर खेला करेंगे ,
आंखमिचौली खूब किया करो ...


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✒ 



      कृष्ण कुमार वर्मा
      चंदखुरी फार्म , रायपुर
      9009091950
      krcverma@gmail.com
      25/05/2019

लाल बिहारी : शरद कुमार श्रीवास्तव




लालबिहारी को अपनी माँ का बाहर का काम करना पसंद नहीं है । उसकी माँ रोज सबेरे लालू को उसकी दादी के पास छोड़कर अपने पति के साथ मजदूरी करने के लिए चली जाती है । लालू अपनी दादी के साथ दिन भर खेलता रहता है परन्तु सरे शाम अपनी माँ के काम से वापस आने के समय से कुछ पहले से ही झोपड़ी के दरवाजे पर छुपकर खड़ा हो जाता है । जैसे ही उसके माता पिता घर वापस आतेे है  तो लालू उनसे चिपक जाता है । लाल बहादुर के माता पिता काम से लौटते समय लालू के लिये कुछ न कुछ, खाने के लिए लेकर आते हैं । वह बहुत चाव से खाता है , लेकिन उसका कुछ हिस्सा उसके घर के बाहर खडे टामी कुत्ते को भी देता है । टामी से लालू की बहुत दोस्ती है । टामी को भी लालू के माता पिता के आने की प्रतीक्षा रहती है और वह उन लोगों के आते ही दुम हिलाकर अपनी खुशी प्रदर्शित करता है । लाल बहादुर की दादी को लेकिन लालू की टामी से दोस्ती अच्छी नही लगती है । उन्हें लगता है कि कही टामी छोटे बच्चे को काट न ले। वह इसलिए एक छड़ी लेकर टामी को भगाया करती हैं । लाल बहादुर को टामी के साथ मिलकर खेलना बहुत अच्छा लगता है । वह टामी के साथ सड़क पर दौड़ता रहता है और दौड़कर   किनारे बने पार्क तक भाग कर पहुंच जाता है । एक दिन, रोज की तरह,  सड़क पर लाल बहादुर खेल रहा था कि सड़क पर एक पतंग कही से कट कर आ गई । रंग बिरंगी पतंग को पकड़ने के लिए लालू दौड़ पड़ा । इस भाग दौड़ में वह सड़क के किनारे खड़ी एक गाडी से टकरा कर गिर पड़ा । लालू को चोट आ गई । उसके खून बह रहा था और वह चल नहीं पाया रहा था । टामी भौंकते हुए लालू के घर जाकर वहाँ से उसकी दादी को कपड़े से पकड़ कर अपने साथ ले आया । दादी लाल बहादुर को गोद में लेकर घर ले आयीं । अब दादी को समझ में आ गया कि कुत्ते वफादार होते हैं ।




















शरद  कुमार श्रीवास्तव 

बेबी संस्कृति की कहानी : तीन हाथी




एक समय की बात है कि एक जंगल में एक हाथी का परिवार रहता था।  जिसमें एक पापा, एक मम्मी और एक बेबी हाथी था ।  वह परिवार बहुत नेक था।  वे लोग सभी जानवरों की मदद करते थे।   उनके पास बीमार जानवरों को ठीक करने के लिए अलग अलग तरह की जड़ी बूटियां थी जिनके सहारे वे सबकी सहायता करते थे।  एक बार जंगल में बहुत खराब मौसम हो गया जिससे जानवर बीमार पड़ने लगे।  किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है और वह लोग इसकी खोज में लग गये। 
 मिठ्ठू बन्दर से जब जानवरों को  पता चला कि एक चुड़ैल यह सब कर रही है।  तब जानवरों ने मिठ्ठू से पूछा कि चुड़ैल ऐसा क्यों करेगी?   इस पर मिठ्ठू ने कहा कि वह चुड़ैल हम जानवरों को पसंद नहीं करती है।  यह सुनकर सभी जानवर डर गए   वे सब चुड़ैल को खुश करने के लिए कोशिश करने लगे   बन्दर कहीं से केले ले आया।  भालू अपने घर से शहद लाया तो गिलहरी चने ले आयी। नन्ही चींटी भी किसी से कम नहीं थी वह अपने साथ चीनी लेकर चली।  रास्ते में उसने मम्मी हाथी से पूछा कि उस चुड़ैल को देने के लिए आप क्या लेकर चल रही हैं ।. चींटी की यह बात बेबी हाथी सुन रही थी . उसने अपनी मम्मी से कहा कि मेरी मैम कह रहीं थीं कि जंगल में शहर से आदमी लोग आ कर पेडों को काट रहे हैं।  पेड़ों के कटने से प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं रहता और बीमारियां फैलने लगती हैं।  बेबी हाथी ने आगे कहा कि उसकी टीचर जी कहती हैं कि भूत प्रेत चुड़ैल वगैरह कुछ भी नहीं होता है।  बच्चे की बात सुनकर पापा हाथी बहुत खुश हुए और वह बेबी तथा मम्मी हाथी के साथ जड़ी बूटियों का बक्सा लेकर जंगल के बीमार जानवरों का इलाज करने के लिए निकल पड़े।




बेबी  संस्कृति श्रीवास्तव
कक्षा चार
ज्ञान भारती स्कूल,
साकेत, नई दिल्ली 

तितली हूं या परी : प्रभूदयाल श्रीवास्तव





 ओंठों पर मुस्कान खिली है,
 आंखों में है जादू।
 मुझे देखकर खुश कितने हैं,
 मेरे अम्मा बापू।

         मुंडन अभी करा के आई,
         लगती हूं मैं कैसी?
         फूलों पर बैठी तितली हूं,
         या हूं    परियों जैसी।



                    प्रभूदयाल श्रीवास्तव

किसान (ताटंक छंद) : महेन्द्र देवांगन माटी








करे परिश्रम खेतों में वह , तब रोटी मिल पाती है ।
माथ पसीना टप टप टपके , वह मोती बन जाती है ।।

करे नहीं परवाह धूप का , बैलों को ले जाता है ।
हल को लेकर चले खेत में  , माटी अन्न उगाता है ।।

देख किसानों की पूजा को , धरती खुश हो जाती है ।
ओढ चुनरिया हरियाली की , मस्ती में  वह गाती है ।।

हरी भरी धरती को देखे , बादल खुश हो जाता है ।
गड़गड़ करके मेघ गरजता , फिर पानी बरसाता है ।।

नमन करें हम श्रमिक जनों को , नदियाँ पर्वत घाटी को ।
नमन करें हम मातृभूमि को , इसके कण कण माटी को ।।














महेन्द्र देवांगन "माटी " (शिक्षक) 
पंडरिया छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

गुरुवार, 16 मई 2019

महेन्द्र देवांगन द्वारा रचित कविता मेरा गाँव



शहरों की अब हवा लग गई

कहां खो गया मेरा गाँव ।
दौड़ धूप की जिंदगी हो गई 
चैन कहां अब मेरा गाँव ।

पढ़ लिखकर होशियार हो गये 
निरक्षर नहीं है मेरा गाँव ।

गली गली में नेता हो गए
पार्टी बन गया है मेरा गाँव ।

भूल रहे सब रिश्ते नाते 
संस्कार खो रहा मेरा गाँव ।

अपने काम से काम लगे है 
मतलबी हो गया है मेरा गाँव ।

हल बैल अब छूट गया है 
ट्रेक्टर आ गया है मेरा गाँव ।

जहाँ जहाँ तक नजरें जाती
मशीन बन गया है मेरा गाँव ।

नहीं लगती चौपाल यहां अब
कट गया है पीपल मेरा गाँव ।

बूढ़े बरगद ठूंठ पड़ा है 
कहानी बन गया है मेरा गाँव ।

बिक रहा है खेती हर रोज 
महल बन गया है मेरा गाँव ।

झोपड़ी कही दिखाई न देगा 
शहर बन गया है मेरा गाँव ।
*********************


                        महेन्द्र देवांगन "माटी"
                       गोपीबंद पारा पंडरिया 
                       जिला -- कबीरधाम  (छ ग )
                        पिन - 491559
                       मो नं -- 8602407353
                       Email - mahendradewanganmati@gmail.com

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : दोस्ती




यश और वीरू दोनो गहरे दोस्त थे | दोनो एक दूसरे के बिना रह नहीं पाते थे |
दोनो की फुटबॉल के खेल मे बहुत रूचि थी | यश  अपने खेल मे काफी  माहिर हो चुका था | कोई भी प्रतियोगिता हो हमेशा आगे ही रहता था |
वीरू थोड़ा संकोची स्वभाव का किशोर था | हर वक्त सोचने लगता कि यदि  हार गये तो क्या होगा? इसी कारण वह अन्य बच्चों से काफी पीछे था | यश उसे बहुत समझाता था कि अपनी सोच बदलो, आगे बढ़ने की कोशिश करो पर वीरू हिम्मत नहीं जुटा पाता था |
एक दिन वीरू  फुटबॉल मैच देख रहाथा | उसमे एक दुबला पतला लड़का बहुत अच्छा खेल रहा था |  बाद मे पता चला कि वह पोलियो से ग्रसित था पर अब बिल्कुल ठीक हो गया था |
अचानक ही वीरू के मन मे विचार आया कि वह लड़का जब इतनी हिम्मत जुटा सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता? यह विचार आते ही दूसरे दिन से ही उसने अभ्यास करना शुरु कर दिया |
   उसने कोचिंग जाना शुरू कर दिया और कोच की देखरेख मे अभ्यास शुरू कर दिया |कुछ ही दिनों मे उसके खेल मे काफी सुधार हो गया था |
अब वह फुटबॉल की छोटी मोटी प्रतियोगिताओं मे भाग लेने लगा था | यह देखकर यश बहुत खुश था |
उसने यश के साथ फुटबॉल मैचों मे जाना आरम्भ कर दिया था | कई पुरस्कार जीते |
यश भी उसका हौसला देखकर उसे प्रोत्साहित करता आगे बढ़ने के लिये |
आखिर वह दिन भी आगया जब वीरू  विश्व स्तर का खिलाड़ी बन चुका था |
वीरु यश के पास गया और बोला
मेरे दोस्त, यदि तुमने मझे प्रोत्साहित नहीं किया होता तो आज मैं जिस मुकाम पर हूँ, वहाँ नहीं होता | तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया |
यश बोला,मै तेरा दोस्त हूँ, शुक्रिया कैसा? तुझे सफलता की बुलंन्दियों  पर देखकर मुझे जो खुशी हो रही है उसे बयां नहीं कर सकता |
दोनो एक दुसरे से लिपट गये और खुशी के आँसू बह निकले |
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                             मंजू श्रीवास्तव 
                             हरिद्वार
,

सफेद मोतियों वाली माला : मधू त्यागी की बालकथा




सफेद मोतियों वाली माला

             आज जब नैना समुद्र तट पर पहुँची तो बचपन की कुछ यादें ताजा हो गईं । बीस वर्ष पहले ,शौर्य और नैना , माँ - बाबा के साथ मुम्बई घूमने आए थे हालाँकि वे मध्यम वर्गीय परिवार से थे , बाबा की आय इतनी नहीं थी कि  वे कहीँ घूमने में पैसे बरबाद करें, फिर भी बाबा ,शौर्य और नैना  को मुम्बई घुमाने लाए थे । नैना  दस वर्ष की थी और शौर्य आठ वर्ष का। नैना , शौर्य से बड़ी थी पर शौर्य ने हमेशा स्वयं को नैना  से बड़ा ही समझा और नैना  ने उसके इस एहसास को स्वीकार भी किया । दोनों बाबा के साथ समुद्र के किनारे गए और दोनों ने वहाँ से बहुत से शंख और सीप इकट्ठे किए  , शाम को बाबा के साथ लौटते वक्त, नैना  का ध्यान सड़क के किनारे रखे रंग-बिरंगे सीप के बने खिलौनों और मोती की सुंदर मालाओं पर गया ,बाबा से जिद  की ,माला पाने के सौ जतन भी किए पर बाबा ने एक ना सुनी। नैना  को आज भी याद है कि उन खिलौनों और मालाओं के  आकर्षण से निकल पाना उसके लिए असंभव हो रहा था । माँ -बाबा कब आगे निकल गए पता ही नहीं चला और नैना वहीँ खड़ी उन रंग-बिरंगी मालाओं को निहार रही थी , तभी शौर्य ने उसके हाथ पकड़ा और चलने के लिए कहने लगा पर नैना बिना माला के चलने के लिए तैयार ही नहीं थी । शौर्य , नैना को दुकान पर ले गया और उसकी पसंद की माला उठाने के लिए कहा , नैना ने खुशी खुशी सफेद रंग की गोल मोती वाली माला उठा ली ।  शौर्य ने माला की कीमत पूछी ,माला २० रूपये की थी , शौर्य के पास बाबा के दिए हुए ५ रूपये थे उसने जेब में हाथ डालकर रूपये निकाले और दुकानदार के सामने रखकर कहा - भईया मेरे पास इतने ही पैसे हैं और मेरी बहन को ये माला चाहिए । दुकानदार ने कहा - बाबु जेब में तो कुछ और भी है , निकालो सबकुछ । शौर्य ने जेब में हाथ डाला और जेब में से सारी सीपियाँ और शंख निकालकर दुकानदार के सामने रख दिए , दुकानदार ने बड़े प्यार से उन सीपियों में से गिनकर २० सीपियाँ और शंख निकालकर अपने गल्ले में डाल लिए और बाकि की सीपियाँ , शंख और ५ रूपये लौटते हुए कहा - बेटा ये रूपये तुम्हारे बाबा की कमाई के हैं, ये सीपियाँ और शंख तुम्हारी कमाई के हैं । शौर्य ने नैना का हाथ पकड़ा , नैना माला पहनने की नाकाम कोशिश कर रही थी , शौर्य ने माला पहनने में नैना की मदद की और माँ -बाबा के पास चलने को कहा ।  


                मधु त्यागी
                गुड़गाँव

महेन्द्र देवांगन का बालगीत : माँ की पूजा



माँ की पूजा 
(सार छंद) 

मंदिर में तू पूजा करके,  छप्पन भोग लगाये ।
घर की माँ भूखी बैठी है , उसको कौन खिलाये ।
कैसे तू नालायक है रे , बात समझ ना पाये ।
माँ को भूखा छोड़ यहाँ पर , दर्शन करने जाये ।।
भूखी प्यासी बैठी है माँ , दिनभर कुछ ना खाये ।
मांगे जब वह पानी तो फिर , क्यों उसपर झल्लाये ।।
करे दिखावा कितना देखो , मंदिर  चुनर चढ़ाये ।
घर की माई साड़ी मांगे , उसको तू धमकाये ।।
पाल पोसकर बड़ा किया जो , उस पर तरस न खाये ।
भूल गये संस्कारों को सब , लज्जा भी ना आये ।।
कैसे  होगी खुश अब माता,  अपने दिल से बोलो ।
पछताओगे तुम भी बेटा ,  आँखें अब तो खोलो ।।


रचनाकार 
महेन्द्र देवांगन "माटी" (शिक्षक) 
गोपीबंद पारा पंडरिया 
जिला  -- कबीरधाम 
छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता : पिकनिक





लालू, कालू मोहन,सोहन,
चलो वलें अब पिकनिक में|
लीला, शीला, कविता, रोशन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
 
ले जाएंगे आलू बेसन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
वहीं तलेंगे भजिये छुन-छुन,
चलो चलें अब पिकनिक में  |

चलकर सीखेंगे योगासन,
चलो चलें अब पिकनिक‌ में|
योगासन पर होगा भाषण,
चलो चलें अब पिकनिक में|
 
प्रिंसिपल होंगे मंचासन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
रखना है पूरा अनुशासन,
चलो चलें अब पिकनिक में|





गाएंगे सब बच्चे गायन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
लाओ अपने अपने वाहन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
 
मनमोहन मनभावन है दिन,
चलो चलें अब पिकनिक में |   
नदी किनारा लोक लुभावन ,
चलो चलें अब पिकनिक में




 प्रभुदयाल श्रीवास्तव 
१२ शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र

मातृ दिवस के अवसर श्री ब्रह्मदेव शर्मा जीकी कविता : माँ है परी सुनहरी सी





माँ है परी सुनहरी सी |                 
सोचें रखती  गहरी सी ||                 

मिट्टी की सौंधी खुशबू |                   
चहरे से कुछ शहरी सी ||                 

कम खाती गम खाती है |               
बातें करती ठहरी सी ||   

मोटापे से डरती है ।
दिखती सदा इकहरी सी ।।           

डांट लगाती गलती पर |                 
थाना और कचहरी सी ||                 

ध्यान  रखे पूरे घर  का |             
सीमाओं के प्रहरी सी ||

मानस मन की चौपाई |             
पूजाघर की दहरी सी ||

घर के सारे काम करे |
खुद को कहती महरी सी ||

 हम सबकी बीमारी में |
 तकिया और मसहरी सी ||

ऊँची नील गगन से कुछ |
सागर से  कुछ गहरी सी ।।

गर्मी में ठंडी छाया ।
जाड़ों में दोपहरी सी ।।

शत शत नमन तुझे माता ।
माँ तो आखिर माँ ठहरी ।।



                   ब्रह्मदेव शर्मा
                   स्वतंत्रता सेनानी एन्क्लेव
                   नेब सराय इग्नू रोड
                   नई दिल्ली 110068

सोमवार, 6 मई 2019

नया एक्वेरियम : शरद कुमार श्रीवास्तव



नया एक्वेरियम


नन्ही के  पापा कल बाजार से एक नया एक्वेरियम  खरीद कर  लाए हैं  ।    सब कुछ  नया है उसमे ।  खूबसूरत  पेड़, चट्टानें   नया  पम्प , बुलबुले  निकालते  हुए  एक गुड्डा गोताखोर  और उसमे छह-सात  रंगीन  मछलियां भी है  ।   नन्ही  को बहुत  अच्छा  लग रहा है  परन्तु  पापाजी  ने  उसे चेतावनी  दे  रखी  है  कि  वह एक्वेरियम  के  बिल्कुल  पास नहीं  जाये नहीं  तो  ठोकर लगने से  एक्वेरियम  टूट सकता  है  ।


नन्ही  को लेकिन  चैन  नहीं  है ।   वह चाहती  है  कि  वह इन मछलियों  के  पास  जाये  और  उनसे बात  करे ।  सुनहले रंग  वाली  मछली  तो सबसे ज्यादा  चंचल  है  और ब्लू वाली भी अच्छी है पर थोड़ा  स्लो  है ।   शायद  यह  सुनहली वाली  मछली ही इनकी  राजकुमारी  है ।   यह एक्वेरियम  बैठक  में  रखा  हुआ  है।  यहाँ  पर  नन्ही  के  दादी बाबा  तो हर समय बैठे  हुए  रहते हैं  ,टीवी  पर  प्रसारित  होने  वाले  प्रोग्राम  देखते रहते  हैं ।   नन्ही चाहकर भी उसके नजदीक जा नहीं सकती है।   दूर  से  ही बैठकर एक्वेरियम  को  देखते  हुए उसे लगा  कि  उसके डैने  निकल आये हैं  और वह नदी में  तैर  रही  है  ।   तैरने में  उसे बहुत  मजा  आ  रहा  है ।    उसके  साथ  और मछलियां  भी  तैर रही  हैं।  वहीं  एक कछुआ   गर्दन उठा  कर  नन्ही  की  तरफ  देख रहा  है  ।  इतना मे  एक सुन्दर  सी  सुनहली मछली उसके  पास  आई  ।  नन्ही  थोड़ा  डर गई  तो  उस मछली  ने  रोते हुए  कहा  कि  नन्ही  तुम  बहुत  अच्छी  लडकी  हो  ।   प्लीज  मेरी बच्ची  को  कैद से  छुड़ा  लो ।   नन्ही  को  कुछ  समझ  में  नहीं  आया   ।  वह उस मछली से  पूछने लगी  तुम  रो क्यों  रही हो अपनी बात ठीक  से समझा  कर  बताओ  ।    मछली तो रोती रही परन्तु  कछुए ने  अपनी  गर्दन  उचका कर कहा नन्ही से कहा कि  तुम्हारे  पापा  जी  आज एक्वेरियम  में   सुनहरे  रंग  की  जो मछली  लाए हैं  वह इसी मछली  की बेटी है ।    उस कछुए  ने फिर  कहा   कि  जरा  पीछे  मुड़  कर  देखो  ब्लू  कलर की  मछली और बहुत  सी  मछली  तुमसे कुछ  कह रही है 




 उसने जब देखा  तब उसे पता  चला कि  वह  सोफे पर ही  सो गई थी ।    उसे अपने  सपने का ख्याल  आया   तो वह रोने लगी  ।  वह  सिर्फ  रो रही थी  ।    उसे रोता देख कर   उसकी  दादी  ने  चुप  कराने  की  कोशिश  की।   उसकी  पसंदीदा  चाकलेट , स्नैक्स उसे  देना  चाह रही  थी  परंतु  वह किसी  भी  प्रकार  से चुप नहीं  हो रही  थी ।  कुछ देर बाद उसने अपनी  दादी  जी से कहा  कि दादी जी मैं चुप हो जाती हूँ लेकिन आप  को  प्रामिस करने होगा  । जब  दादी प्रामिस के  लिए  राजी हो गईं  तब  नन्ही  ने सपने  की  बात  उन्हें  बताई।   फिर उसने और दादी जी ने पापा के  आने पर  वह उसने उन मछलियों  को जब तक नदी में  वापस  नही  छोड़वा दिया  तब तक वह नही मानीं  ।   नदी में जाते समय सब छोटी मछलियाँ उसे प्यार  से विदा  हो रहीं  थीं  ।



शरद कुमार  श्रीवास्तव

सार्थक प्रयास : कृष्ण कुमार वर्मा




जो भी करो , मन से करो
क्योंकि कोई काम नही होता छोटा या बड़ा ।
अपने मेहनतकाश प्रयासों से खुद को 
है गढ़ा ....

समर्पण रख , कड़ा संघर्ष कर इस जीवन में ,
कोई भी लक्ष्य असंभव नही , शिद्दत से 
पाने में ....

उठ खड़ा हो , आगे बढ़ , समय के साथ चल ।
उद्देश्यों को सार्थक कर , जी ले हर पल ....

ना रुको , ना थको , बस मन में उत्साह भरो
जीवन मे जो भी करो , बस मन से करो ....
---












कृष्णकुमार वर्मा
चंदखुरी फार्म , रायपुर 
9009091950


मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : भरत और बुजुर्ग


भरत बचपन से ही बहुत होशियार था | स्वभाव से सीधा और सरल व उदार हृदय वाला किशोर था |
    सातवीं कक्षा का छात्र था भरत |
सभी छात्रों से उसका दोस्ताना व्यवहार था |
      कक्षा मे किसी को किसी चीज की जरूरत होती जैसे पेन्सिल, रबर, स्केल आदि तुरत दे दिया करता |
इसलिये वह क्या स्कूल, क्या घर सभी जगह सबका चहेता बन गया था|
    |  भरत नियम से रोज सुबह टहलने जाया करता था |
    सर्दी के दिन थे | भरत हरबार की तरह सुबह टहलने निकला | उसने देखा सड़क  के किनार बैठा  एक बुज़ुर्ग आदमी  पतली सी चादर ओढ़े ठंड से कांप रहा है | उधर से गुजरने वाला हर राहगीर उसके कटोरे मे पैसे डाल देता है  |
     भरत ने सोचा इस वक्त वह बुज़ुर्ग पैसे लेकर क्या करेगा? ये ख्याल आते ही भरत दौड़ के घर गया| अपनी गुल्लक से पैसे निकाले और बाजार की तरफ भागा | उसने एक शर्ट ,पैजामा व शॉल खरीदा और उस बुज़ुर्ग को लाकर दिया |  वह बहुत खुश हुआ| कपड़े पहने और शॉल ओढ़ लिया |
   भरत ने उसे भोजन भी कराया|
बुज़ुर्ग बहुत खुश  |
भरत के माता पिता भरत के इस कार्य से बहुत ज्यादा खुश थे |
********************,*,,********
बच्चों , एक बात याद रखना कि किसी भी जरूरत मंद की सहायता के लिये हर समय हमेशा तैयार  रहो |  अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है |
























मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

कुछ न कुछ करते रहना है : प्रभु दयालु श्रीवास्तव





    कुछ न कुछ करते रहना है 

  खाली नहीं बैठना हमको ,
  कुछ न कुछ करते रहना है |

  गरमी की छुट्टी में रम्मू,
  प्यारे प्यारे चित्र बनाता |
   उन्हें बेचकर मजे मजे से ,
   रूपये रोज कमाकर लाता |
   इन रुपयों से निर्धन बच्चों,
   की उसको सेवा करना है |

    लल्ली ने गरमी की छुट्टी,
    एक गाँव में  काटी जाकर,
    कैसे पानी हमें बचाना ,
   लौटी है सबको समझाकर |
   निश्चित इसका सुफल मिलेगा ,
   बूँद बूँद पानी बचना है |

   उमर हुई अस्सी की फिर भी,
   दादाजी सबको समझाते |
   कचरा मत फेको सड़कों पर ,
   कचरा बीमारी फैलाते |
  रोज बीनते कचरा पन्नी ,
  कहते हमें स्वस्थ रहना है |

    कुछ न कुछ करते रहने से ,
    होती रहती सदा भलाई |
    तन तो स्वस्थ रहा करता है,
    मन  की होती खूब सफाई |
    चिंता  फ़िक्र दूर होती है,
    बहता खुशियों का झरना है |