ब्लॉग आर्काइव

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बाल कविता नींद खुली तो. : प्रभु दयालु श्रीवास्तव





        
        नींद खुली तो
    हंसा रही थी बात बात में।
    परी आई थी गई रात में।
    एक हाथ में चॉक्लेट थी,
    चना कुरकुरे एक हाथ में।

    हम तो उसके दोस्त हो गए,
    बस पहली ही मुलाक़ात में।
    बोली इन्टर नेट सिखा ,
    लेपटॉप हूँ लाई साथ में।

     नींद खुली तो मां को ,देखा,
     गरम जलेबी लिए हाथ में।
     माँ ही बनकर परी आई थी,
     समझ गई मैं ,गई रात में | 



                      प्रभुदयाल श्रीवास्तव छिंदवाड़ा

किससे अब उपचार करायें : प्रभु दयालु श्रीवास्तव









किससे अब उपचार करायें
   अब लगती है कथा कहानी।
    है सच्ची पर बात पुरानी
    नदी भरी थी नीले जल से।
    झरनों के स्वर थे कल कल के।
                   पर्वत जंगल हरियाली थी।
                   सभी ओर बस खुशहाली थी।
                   वह दिन कैसे वापस आएं।
                   किससे अब उपचार कराएं।
    लोग खुले दिलवाले थे तब।
    मन के भोले भाले थे तब।
    जैसे भीतर वैसे बाहर,
    ख़ुशी बांटते मुट्ठी भर भर।
                     मन के भीतर द्वेष नहीं था।
                      घृणा भाव भी शेष नहीं था।
                       रोते चेहर फिर हंस पाएं।
                       किससे अब उपचार कराएं।
  बहुत हुई छल छंद बनावट,
  झूठी मुस्कानों की जमघट।
   रिश्ते नाते सिर्फ दिखावा।
   हुई जिंदगी एक तमाशा।
                      पैसे फेको काम कराओ।
                      पैसे से ही इज्जत पाओ।
                       कैसे मिथ्याचार हटायें।
                       किससे अब उपचार कराएं। 


प्रभुदयाल श्रीवास्तव
12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 48000

मेरी यूरोप की यात्रा : शरद कुमार श्रीवास्तव




मेरी यूरोप की यात्रा

(गतांक से आगे )

टिटलिस पहाड़ियों  की  सैर 


अब हमारी यात्रा राइन-फाल देखने के बाद आगे बढ़ चुकी थी।. यूरोपा टूर की बस ने हमे अगले मुकाम यानि Zurich के एक अच्छे होटल  मे  पहुँचा दिया था।  उल्लेखनीय है कि पिछले अंक में हमने अपनी यात्रा पेरिस से प्रारंभ की थी।  भारत के काफी पर्यटन संचालकों के यात्री इस यूरोपा टूर की बस मे थे यानि सभी यात्री भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही थे और गाइड महोदय भी भारत में कश्मीर से थे।   वार्तालाप हिहिन्दी में ही होता था। दिन में हम दर्शनीय स्थल घूमते थे और रात मे अच्छे होटलों में रुकते थे।  रात्रि का भोजन भारतीय भोजनालयों मे टूर संचालकों द्वारा आयोजित रहता था और सुबह का नाश्ता- चाय, होटलों के सौजन्य से मुफ्त होता था ।.यह सब टूर पैकेज में निहित था। 

 रात को ज्यूरिख के एक भारतीय भोजनालय में रात का खाना खाने के बाद हमने एक आरामदेय होटल में विश्राम किया।   सुबह का नाश्ता हम लोगों को कराने के बाद  यूरोपा टूर की बस ल्यूसर्न (Lucern) , स्विट्जरलैंड के शहर को दिखाने के लिए ले गई। उस दिन इस शहर को देखने के लिए प्रायोजित समय सीमा मात्र दो घंटे थी। गाइड महोदय साथ में ही थे।  यूरोप के प्रसिद्ध शहर "ल्यूसर्न"  मध्य कालीन वास्तुकला के वैभव के लिए मशहूर है। यहांँ पर झील और चर्च है जो चारों ओर बर्फीली पहाडि़यों से घिरी हुई है।  यहाँ की सड़कों पर अच्छी खासी रौनक रहती है।   सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ इसकी रौनक मे चार चांद लगा देती है।  यद्यपि समय के अभाव में हम अधिक नहीं घूम सके तथाापि  चर्च और झील के किनारे का बाजार अवश्य देखा। वहाँ के बाजार के पास ही यह झील थी।  इस झील को एक ढंके पुल से पार करना होता था।   पुल को पार करते ही शहर के उस भाग  में यहां का मशहूर चर्च स्थित है।  यह चर्च बहुत भव्य और शालीन है।. यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि इस पुल के ऊपर भारतीय फिल्म "दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे" के कुछ दृश्य फिल्माए गये थे।





 शहर मे निर्धारित समय बिताने के बाद हम अगले गंतव्य स्थान की तरफ एक अलग बस द्वारा अग्रसर हुए।   यह स्थान "टिटलिस" की खूबसूरत, बर्फ आच्छादित पहाड़ियां थीं।  इन पहाडों पर जाने के लिए एक स्थान पर पहुंचे जहांँ टिटलिस की पहाड़ियों पर जाने के लिए रोपवे का भव्य बेस स्टेशन  था।. पहाड़ी पर जाने के लिये हमे एक रोप वे से जाना था  रोपवे मे जाने के टिकट टूर आपरेटर ने ले रखे थे अतः हमे कोई परेशानी नहीं हुई। 

















यह उरी अल्पस् टिटलिस  पहाड़ियां  Obwalden और Bern के बीच समुद्री तल से लगभग 11000 फीट ऊपर, पर्वतों के उच्चतम श्रृंखलाओं पर Susten pass पर स्थित है जहाँ स्विट्ज़रलैंड से विश्व प्रसिद्ध केबल कार ( रोपवे) के द्वारा जाया जाता है।  यह केबल कार 11000 फिट की ऊंचाई को तीन रोमांचक चरणों मे पूरा करती हैं।   पहले के दो स्टेशन हमने एक ही केबलवे मे पूरी की परन्तु अन्तिम चरण के लिए दूसरी केबलकार से जाना पडा़  केबल कार से ऊपर जाने के लिए लगभग ₹1000  का टिकट लेना पडता है।  जिसकी व्यवस्था टूर आपरेटर करा देता है ।  चूंकि हम अपने बच्चों के साथ पांच लोग थे, अतः हम साथ साथ ऊपर तक गये और वापस एक साथ आये।  तीसरे  स्टेशन पर पहाडियों पर चारों ओर बर्फ ही बर्फ  थी खूब बर्फीली हवाओं में हम लोग आइस स्पोर्ट्स का आनन्द लिये।  यहां ँँ पर अधिक सैलानी भारतीय थे अतः  मनोरंजन के लिए पर्यटन आकर्षण के लिए  भारतीय फिल्म अभिनेता शाहरुख खान और काजोल के बड़े प्ले कार्ड लगे थे  जिनके बगल में खड़ होकर लोग  सेल्फी खींच रहे थे। टिटलिस को इस यात्रा की यादें बहुत दिनों तक मन मे ताजा रहीं। 



शरद कुमार श्रीवास्तव 




कौए की सोच : मंजू श्रीवास्तव





एक कौआ था |बहुत आराम से रह रहा था| दिन भर इधर उधर उड़ता रहता दाना पानी की खोज मे, शाम को अपने घोंसले मे आकर आराम करता |
एक दिन उसकी नज़र एक बतख पर पड़ी|  कौआ उड़कर उसके पास गया और बोला तुम कौन हो? तुम्हारा शरीर कितना सफेद ,सुन्दर है| मै एकदम काला| बतख ने जवाब दिया, मै तो कुछ भी नहीं| मुझसे सुन्दर तो तोता है | उसके पास दो दो रंग है | शरीर हरे रंग का और गला लाल|| कितना सुन्दर लगता है |
कौआ तोते के पास गया और उससे बोला तुम कितने सुन्दर दिखते हो, रंग बिरंगे | मैं एकदम काला|
तोते ने कहा कौआ भाई , तुम गलत कह रहे हो| क्या तुमने जंगल का मोर देखा है? कितना सुन्दर लगता है | रंग बिरंगे पंख | मैं तो कुछ भी नहीं हूँ | जब मोर नाचता है तो सबका मन मोह ले ता है |
अब कौआ समझ गया था कि सब के अपने अपने गुण हैं, मै व्यर्थ मे परेशान हो रहा  हूँ|
              *"""**""*****"*****
बच्चों ईश्वर ने सब जीवों को अपने अपने गुण दिये  हैं | एक दूसरे से तुलना नहीं करनी चाहिये| अपने गुणों को और बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिये.


                                मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

घना हो तमस चाहे : नवगीत : सुशील शर्मा




अब घना हो तमस चाहे 
आंधियां कितनी चलें। 

हो निराशा दीर्घ तमसा 
या कंटकाकीर्ण पथ हो। 
हो नियति अब क्रुद्ध मुझसे 
या व्यथा व्यापी विरथ हो।

लडूंगा जीवन समर मैं 
शत्रु चाहे जितने मिलें। 

ग्रीष्म की जलती तपन हो या
हिमाच्छादित पर्वत शिखर। 
हो समंदर अतल तल या 
सैलाब हो तीखा प्रखर।

चलूँगा में सत्य पथ पर 
झूठ चाहे कितने खिलें।  

लुटता रहा अपनों से हरदम 
रिश्तों को न मरने दिया। 
दर्द की स्मित त्वरा पर 
नृत्य भी हँस कर किया। 

मिलूँगा मैं अडिग अविचल 
शूल चाहें जितने मिलें। 


                             सुशील शर्मा 

बचपन : कृष्ण कुमार वर्मा



वो नटखटपन , वो अबोध शैतानियां
वो दादी अम्मा की रहस्यमयी कहानियां ...

गुल्ली डंडा , भौरा , पिट्टूल हमारे साथी 
खेले जो हम सांप-सीढ़ी , लूडो और बाटी ...

वो गुलेल से चिड़ीमार , वो पतंग से कलाबाज़ 
वो चोर-सिपाही की भागमभाग , वो टीने के ड्रम की अल्हड़ आवाज ...

वो बगीचे से आम चुराना , मालिक देख दौड़ लगाना 
वो दोस्तो से मिलकर , जामुन , बेर तोड़ लाना ...

ना मोबाइल , ना वीडियो गेम का था वो जमाना 
सच्ची खुशी तो बस , दोस्तो के बीच था पाना ...

खूब घूमना , जी भर खेलना , जैसे था अनोखा लड़कपन
पर सच मे जैसा भी था , बेहतरीन पल था , वो बचपन ....










- कृष्ण कुमार वर्मा 
  चंदखुरी फार्म , रायपुर [ छत्तीसगढ़ ] 
  15 / 04 / 2019




महात्मा बुद्ध प्रतिदिन अपने आश्रम  मे पूजा पाठ संपन्न करने के बाद टहलने निकला करते  थे |  शहर मे सब शांति से रह रहे हैं जानकर वह चिंता मुक्त हो जाते थे |
   उनके आश्रम से कुछ ही दूर एक जंगल  था | टहलते समय उनको वह जंगल पार करना पड़ता था| उस जंगल मे एक डाकू आकर रहने लगा था| वह बड़ा क्रूर था| जो भी राहगीर जंगल से होकर शहर जाता उसे पकड़कर उसके हाथ काट डालता था और उंगलियों की माला बनाकर पहन लेता था |
उस डाकू की क्रूरता से गांववाले बहुत परेशान थे | जब महात्मा बुद्ध को यह बात पता लगी तो उन्होने सोचा जंगल मे जाकर देखें क्या बात है?
   दूसरे दिन वह जंगल से गुजर रहे थे कि वह डाकू उनके सामने आकर खड़ा हो गया और बहुत गालियां देने लगा| तलवार निकालकर बोला अपना हाथ निकालो | महात्मा बुद्ध ने  हाथ आगे  कर दिया | डाकू ने तलवार उठाई हाथ पर वार करने के लिये, पर यह क्या ? तलवार उठी तो उठी रह गई  | डाकू बहुत चकराया कि ये क्या हो रहा है | मैने ऐसा इन्सान देखा नहीं ,डाकू ने मन मे सोचा | इतना भला बुरा कहने के बाद भी बिलकुल शांत खड़ा है |
    डाकू ने बुद्ध से पूछा ,मैने आपको इतना भला बुरा कहा पर आप बिल्कुल शांत खड़े है | बुद्ध ने कहा वत्स! तुमने मुझे गालियां दीं पर मुझे जरूरत नहीं थी इस कारण मैने स्वीकार  नहीं की | वह तुम्हारी थी तुम्हारे पास लौट गई |
डाकू समझ गया कि ये कोई बहुत बड़े महात्मा हैं | वह उनके पैरों पर गिर गया और उसने माफी मांगी | महात्मा बुद्ध ने उसे उठाकर गले लगा लिया |
          उस दिन से वह डाकू महात्मा बुद्ध का शिष्य बन गया और बाकी जीवन सत्कर्मों मे लगाया  |
      जानते हो बच्चों उस डाकू का नाम था अंगुलीमाल |
   सत्कर्म करके जीवन सफल बनाओ |



              मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

नदियों : महेन्द्र देवांगन माटी




नदियाँ 
( सार छंद) 
कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने ।
मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।।

सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती ।
सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।।

खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते ।
उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।।

स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती ।
विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।।

गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा ।
भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।।

विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते ।
माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।।

शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ ।
पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।।



                    महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) 
                   शरदििञत्रड         पंडरिया छत्तीसगढ़ 
                   86024073त53
mahendradewanganmati@gmail.com

गर्मी : बाल कविता : सुशील शर्मा





गर्मी बहुत तेज है मम्मी। 
छत पर खेल रही क्यों निम्मी।  
सूरज मामा का मुँह लाल।  
मुँह पर ढकते सभी रुमाल। 

सारी चिड़ियाँ चूँ चूँ करतीं। 
प्यासी प्यासी क्यूँ वो फिरतीं। 
रख दो मम्मी एक सकोरा। 
साथ में दाना दुमका कोरा। 

चिड़िया ने सब तिनके जोड़े। 
यहाँ घुसा कर वहाँ मरोड़े। 
बुनकर एक घोंसला ताना। 
लाई फिर वो चूजों को खाना। 

गर्मी से हम सब बेहाल। 
आइसक्रीम अब करे कमाल। 
चलो आम तोड़े हम कच्चे।  
करें धमाल सभी हम बच्चे।


                           सुशील शर्मा 

शनिवार, 6 अप्रैल 2019


शून्य से शिखर तक : मंजू श्रीवास्तव




नमन के पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी |  नमन ने सोचा कुछ छोटा मोटा काम करके घर मे मदद करूं|
दूसरे दिन वह एक ऑफिस मे गया| ऑफिस के मालिक ने नमन से पूछा क्या तुम्हें कम्प्यूटर आता है? नमन ने कहा, आता तो नहीं पर सीख लूंगा |
ऑफिस के मालिक ने कहा इतना समय तो नहीं है मेरे पास| नमन निराश हो गया | ऑफिस से निकलकर वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया | वह सेव का पेड़ था |
    बैठे बैठे उसके मन मे एक खयाल आया | उसने पेड़ से कुछ सेव तोड़े और घर घर जाकर सेव बेच आया | सेव ताजे थे| सबने खुशी खुशी खरीद लिये |उसे सौ रूपये मिले| बाजार जाकर फिर सौ रुपये के सेव खरीदे | इस बार सेव बेचने पर उसे डेढ़ सौ रूपये मिले | बड़ा खुश हुआ |फिर उसने सौ रूपये के सेव खरीदे और शाम तक ३०० रूपये कमा लिये|
धीरे धीरे उसका काम बढ़ने लगा और उसने एक छोटी दुकान खोल ली |
वह अच्छी किस्म के सेव लाता था और ग्राहकों से व्यवहार बहुत अच्छा था | इसलिये उसकी दुकान मे भीड़ लगी रहती थी |
छोटी दुकान से बढ़ते बढ़ते  नमन ने कई दुकाने बना लीं और कई सेव के बगीचे भी खरीद लिये  |
आज वह बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था | अब उसके पास कार बंगला सब कुछ था |
करीब १० साल बाद नमन उसी बगीचे के पास से गुजर रहा था जहां वह पहली बार पेड़ के नीचे बैठा था| कार रुकने की आवाज सुनकर बगीचे का मालिक बाहर आया | नमन को देखकर बहुत अचम्भा हुआ |
इसके पहले कि बगीचे का मालिक कुछ पूछे नमन ने खुद ही कहा साहब आज जो कुछ मैं हूँ सिर्फ आपकी वजह से |
बगीचे के मालिक ने कहा कि यदि आज तुम्हें कम्प्यूटर आता होता तो तुम ऑफिस बॉय ही बनकर रह जाते |
बच्चों कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता| मन मे हौसला होना चाहिये कुछ कर गुजरने के लिये |


                               मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
      

चिड़िया : शरद कुमार श्रीवास्तव




आई चिड़िया चूं चूं करती
बैठ पेड़ पे मेरा मन हरती
कंठ सुरीला मधुर है वानी
सुनाती सबको राम कहानी

दाना खाना उड फिर जाना
बेबी से मिलने वापस आना
बेबी चिड़िया खूब बतियाते
जाने बातें क्या करते जाते

बेबी बोली कल जल्दी आना
मेरे हाथ से तुम दाना खाना
चिडिया बोली बड़ी हो जाओ
फिर तुम एक पौधा उपजाओ


शरद कुमार श्रीवास्तव

प्रिन्सेज डॉल की डॉल : शरद कुमार श्रीवास्तव






प्रिन्सेज घर मे दुखी बैठी थी ।  उसकी प्यारी बिल्ली ने प्रिन्सेज से उसके भाई के बारे में पूछ जो लिया था ।  डॉल को मालूम नही कि उसका कौन भाइं है., उसका कोई भाई है भी कि नहीं यह भी उसे नहीं मालूम ।  उसकी मम्मी भी  गोल मोंल जवाब देती हैं तो कभी वह कृष्ण भगवान को राखी बंधवा देती है .। वैसे तो मौसी बुआ मामा दादी के घर मे उसके भाई बहन सब हैं परन्तु वे सब  काफी दूर दूर मे रहते हैं ।  वे लोग बहुत बहुत दिनो पर आते है तब प्रिन्सेज किससे खेले ?   रूपम का भाई तो उसक़े पास रहता दोनो साथ खेलते हैं । यह बात अलग है कि रूपम और उसके भाई मे कभी कभी झगड़ा भी होंता है जब उनकी मम्मी एक ही तरह की बॉल / खिलौने लाकर देती है। 
रूपम को तो वही गुडिया चाहिये होती है जो रूपम का भाई खेल रहा होता हैं अथवा उसके भाई को वही बॉल चाहिये होंती है जो रूपम खेल रही होती है. प्रिन्सेज ने सोचा कि उसका भी कोई भाई होता तो वह उससे रूपम डॉल की तरह झगड़ा नहीं करती दोनो लोग बहुत प्यार से खेलते।

प्रिन्सेज को उदास देख कर बिल्ली भी उदास हो गई वह बोली तुम्हारे पास भाई नहीं है तो क्या हुआ मै तो हूँ।   हम लोग साथ खेलते है ।   प्रिन्सेज बोली हाँ हाँ ठीक है पूसी जी । प्रिन्सेज पूसी के साथ वही पुराना, बाल थ्रो एन्ड पिक का खेल ,खेल रही थी. इतने मे किसी ने दरवाजा खटखटाया . प्रिन्सेज ने दरवाजा खोला तो देखा कि मम्मी आई है और उसके हाथ मे एक बोलने वाली सुन्दर सी डॉल है. प्रिन्सेज बहुत खुश हुई कि चलो भाई नही है तो क्या हुआ यह प्यारी सी डॉल उसके पास आ गयी है जिससे वह बात कर सकती है. पूसी तो साथ मे खेलती है पर ठीक से बात नहीं कर सकती . यह डॉल तो बड़े मजे की है स्टोरी सुनाती है राइम भी सुनातीं है . अब वह नई डॉल के साथ व्यस्त रहने लगी. एक दिन प्रिन्सेज की मम्मी पापा बाहर उसे घुमाने के लिये ले गये थे . प्रिन्सेज का होमवर्क करना छूट गया था . बिना होमवर्क किये प्रिन्सेज सो गयी थी. उसे लगा कि वह बोलने वाली डॉल उसे उठा कर कह रही है कि प्रिन्लेज का कुछ खो गया है . प्रिन्सेज झटपट बिस्तर से उठ बैठी उसने डॉल की तरफ देखा तो वह मुस्करा कर स्कूल बैग की तरफ देख रही थी तब उसी समय प्रिन्सेज को अपना छूटा हुआ होमवर्क याद आया और उसने झटपट होमवर्क कर लिया . उस समय पूसी को प्रिन्सेज का लाइट जलांना अच्छा नहीं लगा उसने एक बार प्रिन्सेंज को आँख खोल कर देखा फिर मुँह फेर कर सो गयी. प्रिन्सेज ने नई बोलने वाली डॉल जिस को वह प्यार से डॉल ही बुलाती थी को सोने से पहले थैन्क्स दिया नहीं तो स्कूल मे अगले दिन काम नहीं करने के लिये टीचर से डांट सुननी पड़ती .
डॉल तो वैसे एक गुड़िया थी लेकिन प्रिन्सेज को वह बहुत अच्छी लगती थी . वह इसलिये नहीं कि वह देखने मे बहुत खूबसूरत थी ऒंर बोलने वाली थी बल्कि इसलिये भी कि कोई जरुरी बात प्रिन्सेज करना भूल जाती थी तब डॉल को देखते ही याद आ जाती थी . इसलिये प्रिन्सेज कहीं जाते समय डॉल को बाई बाई कहना नहीं भूलती थी।।


                                  शरद कुमार श्रीवास्तव

मीनू के जूते : शादाब आलम




लाल रंग के प्यारे प्यारे

नन्ही मीनू के जूते

पहन उसे वह दौड़े-भागे

मस्ती में उछले-कूदे।

चलते रहने पर उसमे इक

बत्ती जलती-बुझती है

इसीलिए वह ज़रा देर भी

ना बैठे ना रूकती है।



                         शादाब आलम

लालच का दुश्फल : कृष्ण कुमार वर्मा





समीर और रौनक दो दोस्त थे , साथ मे एक ही स्कूल में पढ़ते थे । एक दिन स्कूल में पिकनिक का प्लान बना । सभी बच्चे पिकनिक पर जा रहे थे । समीर की माँ ने उसके पसंद के बेसन लड्डू और नमकीन उसके टिफिन में पैक कर दिए और कहा कि लड्डू ज्यादा डाले है टिफिन में , रौनक के साथ बाटकर खाना ।

फिर समीर पिकनिक पर पहुंचा । दोस्तो के साथ खूब मस्ती किया । दोपहर में जब सभी टिफिन करने बैठे , तो उसके दोस्त रौनक ने उसे हलवा खिलाया । लेकिन समीर ने केवल उसे नमकीन बस दिया और लालचवश पूरा लड्डू अकेले ही खा लिया ।

अचानक थोड़ी देर में घूमते घूमते उसके पेट मे दर्द होने लगा । तब उसे टीचरों ने दवाई देकर बस में ही आराम करने बोल दिया और इस तरह समीर पूरी तरह से पिकनिक में घूम नही पाया और उसे अफसोस हो रहा था कि क्यों उसने इतना सारा खा लिया ।

जब वह घर पहुंचा तो सारी बात माँ को बता दिया । तब माँ ने समझाया कि देखो बेटा - लालच का फल हमेशा बुरा ही होता है । अगर तुम बाटकर खाते तो तुम्हारे दोस्त को भी लड्डू खाने का आंनंद मिल पाता और तुम्हारा पेट भी खराब नही होता और अच्छे से पिकनिक का पूरा आनंद ले पाते ।
अब समीर को लालच का दुष्फल समझ आ चुका था ।



                                कृष्णकुमार वर्मा
                                चंदखुरी फार्म , रायपुर [ छत्तीसगढ़ ]
                                krcverma@gmail.com
                                 / / 2019

माँ ये तेरा बेटा सैनिक :सुशील शर्मा


















माँ तेरा ये बेटा सैनिक
देश की लाज बचाएगा।
मातृभूमि पर शीश चढ़ा कर
तेरा कर्ज चुकाएगा।

प्रेम और सद्भाव के झरने
हिन्द भूमि पर बहते हैं ।
लेकिन कुछ नापाक दरिंदे
आस्तीनों में रहते हैं।

हम सब बच्चे कसम उठाते
दुश्मन को ललकारेंगे
पाक अगर नापाक रहा तो
घर में घुस कर मारेंगें।

माँ मुझको मंजूरी दे दे
मैं सेना में जाऊंगा।
मातृभूमि की सेवा में
मैं अपना शीश कटाऊंगा।

                     सुशील शर्मा