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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

कौए की सोच : मंजू श्रीवास्तव





एक कौआ था |बहुत आराम से रह रहा था| दिन भर इधर उधर उड़ता रहता दाना पानी की खोज मे, शाम को अपने घोंसले मे आकर आराम करता |
एक दिन उसकी नज़र एक बतख पर पड़ी|  कौआ उड़कर उसके पास गया और बोला तुम कौन हो? तुम्हारा शरीर कितना सफेद ,सुन्दर है| मै एकदम काला| बतख ने जवाब दिया, मै तो कुछ भी नहीं| मुझसे सुन्दर तो तोता है | उसके पास दो दो रंग है | शरीर हरे रंग का और गला लाल|| कितना सुन्दर लगता है |
कौआ तोते के पास गया और उससे बोला तुम कितने सुन्दर दिखते हो, रंग बिरंगे | मैं एकदम काला|
तोते ने कहा कौआ भाई , तुम गलत कह रहे हो| क्या तुमने जंगल का मोर देखा है? कितना सुन्दर लगता है | रंग बिरंगे पंख | मैं तो कुछ भी नहीं हूँ | जब मोर नाचता है तो सबका मन मोह ले ता है |
अब कौआ समझ गया था कि सब के अपने अपने गुण हैं, मै व्यर्थ मे परेशान हो रहा  हूँ|
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बच्चों ईश्वर ने सब जीवों को अपने अपने गुण दिये  हैं | एक दूसरे से तुलना नहीं करनी चाहिये| अपने गुणों को और बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिये.


                                मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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