ब्लॉग आर्काइव

शुक्रवार, 26 जून 2020

बचपन की वह रोमांचकारी घटना ** श्याम सुंदर श्रीवास्तव



लगभग 35-36 वर्ष पहले की बात है,जब मैं 10-12 वर्ष का बालक था।  चैत का महीना था।खेतों और खलिहानों में समृद्धि के उत्सव गीत गाये जा रहे थे।गाँव से लगभग पाँच कोस दूर(लगभग 12-13 कि०मी०) बेतवा (नदी) पार भेंड़ी -जलालपुर में प्रति वर्ष नव दुर्गों में मेला लगता था।यह क्षेत्र का प्रसिद्ध एवं बड़ा मेला था।समस्त क्षेत्र वासी इस मेले में बड़े उत्साह से भाग लेने जाते थे।
गाँव में भी मेले में जाने की तैयारियाँ जोरों पर थीं।बैलों की जोड़ियाँ तैयार की जा रही थीं।सग्गड़(छोटी बैल गाड़ी) ठों-ठाँक कर तैयार किये जा रहे थे।एक विशेष प्रकार का उल्लास एवं उत्साह गाँव में छाया हुआ था।
विशेष कर बच्चों में।मेले में जाते समय बैल गाड़ियों की दौड़ होती थी।लोग महीनों महले से बैलों को खिला-पिला कर तैयार करते थे।जहाँ रास्ता समतल,चौड़ा एवं मैदान की तरह होता,लोग अपनी-अपनी बैलगाड़ी परिचालन एवं बैलों की धावक क्षमता का परिचय देने लगते थे।हमारे छोटे दादा जी को ( पिता जी के बड़े भाई,जिन्हें हम सब भाई बहन छोटे दादा कहते थे,क्योंकि वे बड़े दादा से छोटे थे।)अच्छे बैल रखना और बैलगाड़ी दौड़ाने का बहुत शौक था।तय यह हुआ कि सुबह चार बजे सभी लोग खलिहान में इकट्ठे होकर मेले के लिये चलेंगे।दादा तो खलिहान में लेटते ही थे,अतः हमें और भइया(श्री रामजी श्रीवास्तव)जो मुझसे दो वर्ष बड़े हैं को आदेश हुआ कि छाता लेकर सुबह घर से खलिहान पर आ जाना।
एक दिन पहले से ही हम लोग कपड़े धोकर तैयार थे।मुझे याद है लाल चौखाने वाली वह शर्ट जिसे पहनने के लिये हम किसी विशेष उत्सव,समारोह एवं मौके की प्रतीक्षा किया करते थे।शायद वह शर्ट जिसे पहन कर हम विशेष गर्व एवं खुशी का अनुभव करते थे,मेरे जीवनकी सबसे अच्छी शर्ट थी।जिसकी समानता आज तक महँगे से महँगे कपड़े नहीं कर सके।रात तो सोते-जागते किसी तरह निकल गई,किन्तु भुन्सारे(प्रातःकाल)से पहले ही अपनी लाल चौखाने वाली शर्ट और मक्खन जीन का खाखी रंग का पैण्ट पहन कर हम तैयार हो गये।
घर से खलिहान कुछ दूर था।घर था बीत बस्ती में और खलिहान था गाँव से कुछ हट कर तालाब के किनारे भइया छाता लेकर और मैं नाश्ते की पोटली लिये निकल पड़े खलिहान की ओर।
साथ में यह भी बताते चलें कि छाता को साथ लेने का एक विशेष प्रयोजन था।दरअसल बैलगाड़ी दौड़ के समय छाता को ऊपर उठाकर तान देने से बैल अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़ने लगते थे।भइया आगे-आगे और मैं पीछे-पीछे।धुँधलका होने के कारण दूर का दृश्य साफ महीं दिखाई दे रहा था।अपनी धुन में मस्त भइया आगे बढ़ते जा रहे थे।मैं कुछ पीछे था।भइया को सामने कुत्ते कोई आकृति दिखाई दी।किन्तु वे उसकी परवाह किये बिना आगे बढ़ते गये।इससे पहले कि भइया उसकी अजीब हरकतों को देख कुछ समझ पातेकि वह आकृति मुँह फाड़ कर उनकी ओर झपटी।उनके गले से एक तेज चीख निकल पड़ी, " दादा बचाओ....." ।
मरता क्या न करता।भइया ने तेजी से घबराहट में छाते को उसके फैले हुये मुँह की ओर कर दिया और डर से अपना मुँह फेर लिया।
खलिहान पास में ही था।भइया की चीख सुन कर आस-पास के लोग जो खलिहान में ही सोते थे, " मारो,,,मारो,,,,।" चिल्लाते हुये दौड़ पड़े।छाते के आगे की नोंक की चुभन से तिलमिला कर और लोगों को आते देख जिनौरा (भेड़िया) भाग खड़ा हुआ।
रात के अंतिम प्रहर की नीरवता में भइया की हृदय विदारक चीख सम्पूर्ण गाँव में सिहरन दौड़ा गई।मौत को साक्षात मुँह फैलाए देख अपनी स्थिति का स्मरण कर आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।


  👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
                          व्याख्याता-हिन्दी
               अशोक उ०मा०विद्यालय
                       लहार,भिण्ड,म०प्र०
                  मो०-‪9993282741‬

प्यारी नानी





मेरी नानी प्यारी नानी देखो हम आ गए 
गर्मी की छुट्टियां मनाने तेरे घर आ गये
दिन प्रतिदिन मोबाइल पे थे हम मिलते  
कभी गीत, परी के किस्से थे हम सुनते  


कोरोना के खातिर , घर में हम बोर हुए 
क्लास आनलाईन करने को मजबूर हुए 
अब  लड्डू खूब मजे से खाने हम आ गये 
आइसक्रीम के मजे उड़ाने हम आ गये 


नहीं मांगते पैसा कौड़ी ना चांदी ना सोना
हम तो हैं प्यारी नानी  तेरे खेल खिलौना
हम प्यारे हैं जैसे तुमको वैसी प्यारी हो 
 सच कहता  बच्चों को जान से प्यारी हो। 


  शरद कुमार श्रीवास्तव 


भालू दादा :वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी





भालू   दादा  नेता  बनकर
जब    जंगल   को    धाए
जंगल  के  सारे  जीवों  ने
तोरण     द्वार      सजाए।
      --------------

उतर  कार   से  भालू  दादा
शीघ्र    मंच     पर     आए
कहकर  जिंदाबाद सभी ने
नारे        खूब        लगाए
इतना स्वागत  पाकर दादा
मन    ही    मन    मुस्काए।
भालू दादा---------------

सबकी तरफ  देख नेताजी
इतना       लगे        बताने
थोड़ा  सब्र  रखो   बदलूँगा
सारे        नियम       पुराने
साफ हवा भोजन पानी  के 
सपने      खूब       दिखाए।
भालू दादा----------------

जमकर  खाई   दूध मलाई
खाई        मीठी       रबड़ी
फल खाने को चुहिया रानी
आकर   सब  पर   अकड़ी
चुहिया  रानी  को समझाने
सभी      जानवर      आए।
भालू दादा-----------------

निर्भय होकर सब जंगल में
इधर    -   उधर        घूमेंगे
एक   दूसरे   के  हाथों  को
बढ़-चढ़       कर      चूमेंगे
साफ - सफाई रखने के भी
अद्भुत       मंत्र      सुझाए।
भालू दादा----------------

जंगल के  राजा को पर यह
बात    समझ    ना     आई
मेरे    जीतेजी    भालू   को
किसने      जीत      दिलाई
खैर  चाहता   है   तो  भालू 
तुरत         सामने      आए।
भालू दादा-----------------

देख  रंग  में  भंग   सभी  ने
सरपट      दौड़        लगाई
सर्वश्रेष्ठ   ही    बचा   रहेगा
बात    समझ     में     आई
भालू  दादा   भारी  मन   से
इस्तीफा        दे         आए
भालू दादा-----------------

       


                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                     मुरादाबाद/उ,प्र,
                     9719275453
            दिनांक- 20/06/2020

जीवन को महकाना सीखो महेन्द्र कुमार वर्मा


हर दुख में मुसकाना सीखो ,

सुख में ख़ुशी लुटाना सीखो।

 

अन्धकार जब घिर घिर जाए ,

जगमग दीप जलाना सीखो।

 

संकट की बेला जब आए ,

डटकर तुम भिड़ जाना सीखो।

 

हम सब में हो भाई चारा ,

सबको मीत बनाना सीखो।

 

कठिनाई की बेला में भी,

आगे कदम बढ़ाना सीखो।

 

बगिया के फूलों से भाई ,

जीवन को महकाना सीखो। 



 महेंद्र कुमार वर्मा

द्वारा ,जतिन वर्मा

‪1---1103‬ रोहन अभिलाषा

वाघोली ,पुणे [महाराष्ट्र]

पिन --412207   मोबाइल नंबर --‪9893836328‬

मजदूर






मजदूर है हम देश के , मेहनत करना जानते हैं।
पसीना अपना बहाते हैं , कभी हार नही मानते हैं।।
एक एक ईंट जोड़कर , महलों को बनातें हैं।
दिनभर की मजदूरी करके , रोजी रोटी कमाते हैं।।
एक एक पैसा जोड़ जोड़ कर , बच्चों को पढ़ाते हैं।
नही थकते है कभी भी हम , मेहनत खूब करते हैं ।।
कुटिया में रह कर भी , अपना सपना पूरा करते हैं।
खुद भूखे रहकर भी , बच्चों को खाना खिलाते हैं।।
कभी पत्थर काटते तो कभी ईट को उठाते हैं।
अपनी मेहनत से हम , दूसरों के घर को सजाते हैं।।
मजदूर है हम देश के , मेहनत करना जानते हैं।
पसीना अपना बहाते हैं , कभी हार नही मानते हैं।।



प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया
छत्तीसगढ़

priyadewangan1997@gmail.com

कौवे और मुर्गी की साझा खेती



बच्चों आप जानते हो कि साझा काम किे से कहते हैं .  जब दो या कई लोग मिल कर एक काम को करें तो साझा काम कहते है.  साझा काम मे पार्टनर लोगो को अपना अपना साझा लाभ / हानि भी मिलता है.
एक बार एक पेड़ पर एक कौवा रहता था.  उस पेड़ के नीचे एक मुर्गी भी अपने बच् के साथरहती थी.  मुर्गी बहुत मेहनती थी और कौवा बहुत चालाक था.  कौवे ने एक बार मुर्गी से कहा ,बहन अगर हम साझा खेती करें तो कितना अच्छा हो.  मुर्गी ने कहा हाँ , मिलजुल कर काम करने मे क्या बुराई है मै तैयार हूँ. कौवा बोला मै थोड़ा बिजी रहता हूँ जब कोईकाम हो तब आप मुझे बुला लीजियेगा.
खेती करने के लिये जमीन की जुताई करने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की जुताई करवाओ आकर.  कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं .. मुर्गी ने खेतों की जुताई कर ली.
जब जमीन से घास पूस दूर करने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की खर पतवार हटवाओ, कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने खेतों से खर पतवार भी दूर कर दी.
अब खेत मे बीज डालने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन मे बीज डाले जायें.  कौवा फिर बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने खेतों मे बीज भी बो दिये.
पौधे निकल आये तब सिचाई करने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ जमीन की सिंचाई करवाओ आकर.  कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने खेतों की सिंचाई कर ली.
खेतो मे लगे गेहूँ की बालियाँ  काटने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ कटवाओ . तब फिर कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने गेहूँ की कटाई भी कर ली
गेहूँ की बालियाँ  से गेहूँ निकालने का समय आया .   मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ निकलवाओ . तब फिर कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने गेहूँ की बालियों से गेहूँ भी निकाल  लिया.
गेहूँ पीस कर आटा बनाने का समय आया. मुर्गी ने आवाज लगाई आओ गेहूँ पिसवाओ. तब फिर कौवा बोला  ऊँची डाल पर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने गेहूँ पीस कर आटा भी बना ऌिया.
मुर्गी आटे से पूड़ी बनाने लगी तब फिर उसने आवाज लगाई आओ पूड़ी बनवाओ . तब फिर कौवा बोला  ऊँची डाल पेंर बैठे हैं हलवा पूड़ी खाते है तुम चलो हम आते हैं ..  मुर्गी ने आटा सान कर पूड़ी भी बना ली
जैसे ही पहली पूडी कड़ाई से निकली कौवा नीचे आगया.  बोला लाओ पूड़ी लाओ बहुत भूख लगी है.  मुर्गी नपे एक डंन्डाफेक कर कौवे को मारा कि काम कुछ नहीं किया पूडी बटाने आ गया.   तुझे कुछ नहीं मिलेगा पूड़ी मैं खाऊंगी और मेरे बच्चे खाएगे. कौवा रोता हुआ वहाँ से भाग गया।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 



कैप्शन जोड़ें

गुरुवार, 25 जून 2020

अभिलाषा ( ताटंक छन्द : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना







मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।
 झुकने दूंगा नहीं  तिरंगा ,  मेरे मन की आशा है ।।1।

नित नित वंदन करुँ मै माता,  तुम तो पालन हारी हो ।
कभी कष्ट ना होने देती , सबके मंगलकारी हो ।।2।।

जाति धर्म सब अलग अलग पर , एक यहाँ की भाषा है ।
मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।3।।

शस्य श्यामला धरा यहाँ की , सुंदर पर्वत घाटी है ।
माथे अपने तिलक लगाऊँ,  चंदन जैसे माटी है ।।4।।

कभी खेलते युद्ध यहाँ पर , कभी खेलते पासा हैं ।
मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।5।।



महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़

सफेद मोतियों वाली माला : मधु त्यागी की बालकथा

 ..नाना की पिटारी के नगीनों से एक सुन्दर नगीना यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं 



             आज जब नैना समुद्र तट पर पहुँची तो बचपन की कुछ यादें ताजा हो गईं । बीस वर्ष पहले ,शौर्य और नैना , माँ - बाबा के साथ मुम्बई घूमने आए थे हालाँकि वे मध्यम वर्गीय परिवार से थे , बाबा की आय इतनी नहीं थी कि  वे कहीँ घूमने में पैसे बरबाद करें, फिर भी बाबा ,शौर्य और नैना  को मुम्बई घुमाने लाए थे । नैना  दस वर्ष की थी और शौर्य आठ वर्ष का। नैना , शौर्य से बड़ी थी पर शौर्य ने हमेशा स्वयं को नैना  से बड़ा ही समझा और नैना  ने उसके इस एहसास को स्वीकार भी किया । दोनों बाबा के साथ समुद्र के किनारे गए और दोनों ने वहाँ से बहुत से शंख और सीप इकट्ठे किए  , शाम को बाबा के साथ लौटते वक्त, नैना  का ध्यान सड़क के किनारे रखे रंग-बिरंगे सीप के बने खिलौनों और मोती की सुंदर मालाओं पर गया ,बाबा से जिद  की ,माला पाने के सौ जतन भी किए पर बाबा ने एक ना सुनी। नैना  को आज भी याद है कि उन खिलौनों और मालाओं के  आकर्षण से निकल पाना उसके लिए असंभव हो रहा था । माँ -बाबा कब आगे निकल गए पता ही नहीं चला और नैना वहीँ खड़ी उन रंग-बिरंगी मालाओं को निहार रही थी , तभी शौर्य ने उसके हाथ पकड़ा और चलने के लिए कहने लगा पर नैना बिना माला के चलने के लिए तैयार ही नहीं थी । शौर्य , नैना को दुकान पर ले गया और उसकी पसंद की माला उठाने के लिए कहा , नैना ने खुशी खुशी सफेद रंग की गोल मोती वाली माला उठा ली ।  शौर्य ने माला की कीमत पूछी ,माला २० रूपये की थी , शौर्य के पास बाबा के दिए हुए ५ रूपये थे उसने जेब में हाथ डालकर रूपये निकाले और दुकानदार के सामने रखकर कहा - भईया मेरे पास इतने ही पैसे हैं और मेरी बहन को ये माला चाहिए । दुकानदार ने कहा - बाबु जेब में तो कुछ और भी है , निकालो सबकुछ । शौर्य ने जेब में हाथ डाला और जेब में से सारी सीपियाँ और शंख निकालकर दुकानदार के सामने रख दिए , दुकानदार ने बड़े प्यार से उन सीपियों में से गिनकर २० सीपियाँ और शंख निकालकर अपने गल्ले में डाल लिए और बाकि की सीपियाँ , शंख और ५ रूपये लौटते हुए कहा - बेटा ये रूपये तुम्हारे बाबा की कमाई के हैं, ये सीपियाँ और शंख तुम्हारी कमाई के हैं । शौर्य ने नैना का हाथ पकड़ा , नैना माला पहनने की नाकाम कोशिश कर रही थी , शौर्य ने माला पहनने में नैना की मदद की और माँ -बाबा के पास चलने को कहा ।  



मधु त्यागी
गुड़गाँव

चिड़िया रानी : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना









 
चिड़िया रानी  दावत खाने
मिलकर     साथ     चलेंगे
काली  कोयल   का न्योता
दिल   से  स्वीकार   करेंगे।
         ----------------

वहाँ   मिलेंगे  तोता - मैना
बत्तख      और     कबूतर 
डैक  बजेगा  डांस   करेंगे
सारे    उछल -उछल   कर
मोटी  मुर्गी   के  बतलाओ
कैसे          पैर       हिलेंगे।
चिड़िया रानी-------------

मोर सजीले  पंख खोलकर
सुंदर       डांस       करेगा
पूरे मन  से  दौड़ - दौड़कर
सबमें       जोश      भरेगा
चलो हाथ में हाथ डालकर
हम     भी    तो    मटकेंगे।
चिड़िया रानी-------------

चिड़िया बोली  नहीं जानते
कोरोना      फैला          है
दूरी   रखकर  बातें  करना
नहले     पर     दहला    है
दोनों  हाथों को  साबुन  से
मल-मल      कर    धोएंगे।
चिड़िया रानी-------------

कौए राजा  काँव-काँव कर
सबसे        ही        बोलेंगे
दूध,  जलेबी  और  मिठाई
के       ढक्कन      खोलेंगे
लेकिन  हमतो  ठंडाई  को
बाय    -    बाय     बोलेंगे।
चिड़िया रानी-------------

समय कीमती होता है यह
समझो    चिड़िया     रानी
जो भी करना है कर डालो
ओढ़ो        चूनर      धानी
समय बीतने पर दावत  में
बोलो       क्या       पाएंगे।
चिड़िया रानी-------------

      -----///---💐--///-----

                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                     मुरादाबाद/उ,प्र,
                     9719275453
               दि0 -16/06/2020

मंगलवार, 16 जून 2020

मित्रता : ब्रह्मलीन मंजू श्रीवास्तव की बालकथा (एक धरोहर)










नाना की पिटारी का एक चिर-परिचित नाम श्रीमती मंजू श्रीवास्तव जी का था वह अविरल अपनी कहानी कविताओं को इस पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए भेजतीं थीं। उनकी अप्रत्याशित मृत्यु से हमें भारी क्षति हुई है ।. उनकी कहानियों में से एक कहानी को हम पुनःप्रकाशित कर रहे हैं 




विनय और अमन बचपन से गहरे दोस्त थे | एक दिन भी एक दूसरे को देखे बिना या मिले बिना चैन नहीं मिलता था |
विनय और अमन की दोस्ती के चर्चे स्कूल मे काफी मशहूर थे|लोग तो यहां तक कहते थे कि दोनों की दोस्ती कृष्ण सुदामा की दोस्ती को भी मात करती है |
इसी तरह हंसी खुशी से दिन बीत रहे थे |
एक दिन अचानक स्कूल मे विनय की तबियत खराब हो गई | कक्षा मे ही उसे उल्टी हो गई | तुरत डा. के पास ले गये | डा. ने दवा दे दी | कहा चिन्ता की कोई बात नहीं |आराम करने को कहा |
दूसरे दिन विनय को फिर उल्टी हुई | और दो तीन बार हुई|विशेषज्ञ ने पूरी जाँच की विनय की|
विशेषज्ञ ने विनय के परिजनों को जाँच की पूरी रिपोर्ट बताई | डा. ने बताया कि विनय के फेफड़े मे संक्रमण हो गया है| दवा दे दी |
लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था |शहर के सबसे बड़े डॉक्टर को दिखाया गया |
दो
े दिन बाद जाँच की रिपोर्ट मिली ||
|उसमे पाया गया कि फेफड़े मे कैंसर है |
विनय के माता पिता बहुत परेशान|
विनय का परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था |विनय के माता पिता को डॉक्टर ने पूरी बात समझाई कि कैंसर की अभी शुरुआत है | इलाज कराने पर बिल्कुल ठीक हो जायगा
पूरा खर्चा आयगा करीब ३ ,या ३ १/२ लाख रूपये | ज्यादा भी लग सकते हैं |
विनय के माता पिता की चिन्ता वाजिब थी| इतने रूपये कहां से आयेंगे?
विनय के माता पिता को चिन्तित देखकर अमन ने उनको धीरज बंधाया कि सब ठीक होगा चिन्ता न करें अंकल |
अमन ने विनय की बीमारी की बात अपने पापा को बताई| अमन ने पापा से कहा क्यूँ न हम विनय के इलाज के लिये पैसे दे दें | पापा ने भी कहा हाँ हाँ क्यों नहीँ? आखिर वह तुम्हारा दोस्त है | यदि ऐसे वक्त भी हम उसके काम न आ सके तो दोस्ती कैसी?
हांलाकि अमन भी मध्यम परिवार से ही था | उसके पिता सरकारी नौकरी मे कार्यरत थे | लेकिन दूसरों की मदद करने के लिये दो कदम आगे ही रहते थे |
विनय का इलाज शहर के सबसे बड़े अस्पताल मे शुरू हो गया |
धीरे धीरे विनय के स्वास्थ्य मे सुधार होने लगा |
विनय के माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था| एकलौता बेटा जो था|
अमन प्रतिदिन विनय के पास आकर बैठता था|

उसका हौसला बढ़ाता था जिससे विनय अपनी बीमारी के बारे मे ज्यादा न सोचे|
दिन बीत रहे थे | विनय के स्वास्थ्य मे भी सुधार हो रहा था |
साल बीत चुका था| विनय भी अब पूर्ण स्वस्थ हो चुका था|
डॉक्टर ने विनय को अस्पताल से छुट्टी दे दी थी| वह घर आ गया था|
उसके घर मे खुशी का माहौल था

सबसे ज्यादा खुशी अमन को हो रही थी कि वह अपने दोस्त को दूसरा जीवन दिलाने मे सफल रहा |
उधर विनय जैसे अहसानों के तले दबा जा रहा था|उसने विनय से कहा अहसान कैसा? यदि मेरा दोस्त मुझसे बिछड़ जाता तो मै कैसे रह पाता | पैसा तो हाथ का मैल है| फिर आ जायगा पर दोस्त कहां से लाता |

*†**************************
बच्चों सच्चा दोस्त वही है जो मुसीबत मे साथ दे |

मंजू श्रीवास्तव नोएडा


जल के ऊपर कविता :वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना




इस अंक में श्री वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की कविता का वीडियो भेज रहे हैं  हमारा वीडियो संलग्न करने का प्रथम  प्रयास है 



सरस्वती वंदना : रचना श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'



























प्रार्थना करूँ यही
****************
ज्ञान दीप माँ जला
बुद्धि का कमल खिला
प्रार्थना है यही।

अंधकार को मिटा
मोह आवरण हटा
कंठ में सु राग भर
गीत हो उठें मुखर
गीत औ' संगीत का
बना रहे सिलसिला।
कामना करूँ यही।।

बुद्धि माँ करो विमल
भाव दे नवल-नवल
तम सघन विनाश कर
मूढ़ता का नाश कर
बुद्धि हो समुज्ज्वला।
चाहना है बस यही।।

माँ मुझे दुलार दे
सप्त स्वर संवार दे
नित नवीन भाव भर
शब्द-शब्द हों प्रखर
कर सकूँ जगत भला।
भावना है शुभ यही।

'
                              व्याख्याता-हिन्दी
                             अशोक उ०मा०विद्यालय,
                              लहार,भिण्ड,म०प्र०

बालक ध्रुव : शरद कुमार श्रीवास्तव





विष्णु पुराण में ध्रुव की कहानी बताई गई है । यह इस प्रकार है ।
महाराजा उत्तानपाद की दो महारानियाँ थी । जिनमे बड़ी रानी का नाम था सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था । छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद को बहुत प्रिय थी। ध्रुव बड़ी रानी सुनीति के पुत्र थे । रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद को बहुत पसंद थीं इसलिए वो बहुत नकचढ़ी भी थीं । महाराजा उत्तानपाद उनकी सही गलत सब बातों को पसंद करते थे और गलत बातों का कोई प्रतिरोध नहीं करते थे ।
पाँच साल की आयु के बालक ध्रुव, एक बार, जब उनके पिता उत्तानपाद अपने सिंहासन पर विराजमान थे तब वे अपने पिता की गोद में आकर बैठ गए थे। उसी समय छोटी महारानी सुरुचि अपने बेटे उत्तम के साथ वहाँ आई । उत्तम अपने पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगा । रानी सुरुचि ने ध्रुव को महाराजा की गोद से उतार और अपने बेटे को महाराजा की गोद में बैठा दिया । नन्हे राजकुमार ध्रुव रोने लगे, तब रानी सुरुचि ने बालक ध्रुव से कहा कि अगर तुम्हें महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठने का इतना ही शौक था तब मेरे गर्भ से जन्म लेना चाहिए था। बालक ध्रुव ने इस बात की शिकायत अपनी माँ सुनीति से की । रानी सुनीति ने उसे समझाया कि सुरुचि भी ध्रुव की माँ है। अतः माँ के द्वारा लिये फैसले पर कुछ कहना अनुचित होगा । माता सुनीति ने कहा कि माता से बडे सिर्फ़ भगवान है वे ही तुम्हारी बात सुन सकते हैं । 

बालक ध्रुव ने भगवान की तपस्या करने के लिये अपना घर छोड़ कर तपस्या करने के लिये वन निकल गए । रास्ते में उन्हें काफी अड़चने आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य पर चलते रहे । 


         देव ऋषि नारद बालक ध्रुव के सामने प्रगट हुए और उन्होंने तपस्या की कठिनाइयों के बारे मे भी बताया । ध्रुव पर किसी बात का जब असर नहीं पड़ा तब नारद मुनि ने उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन करने का मार्ग सुझाया । ध्रुव की घनघोर तपस्या से सम्पूर्ण ब्रह्मांड हिल गया । ध्रुव ने लगातार छह माह अन्न जल त्याग कर एक स्थान पर बैठकर घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या मे लीन होने की वजह से भगवान विष्णु सामने खड़े थे परन्तु ध्रुव ने अपनी आंखों को बंद रखा।  उनका ध्यान मन में विराजमान छवि की तरफ एकाग्रचित था । भगवान विष्णु ने जब उनके हृदय पटल से वह छबि लुप्त कर दी तब ध्रुव ने आंखोको खोला और प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए । भगवान विष्णु के दर्शन से ध्रुव इतना भाव विह्वल हो गये थे कि उन्हें तपस्या करने का मूल कारण याद नहीं आ रहा था । भगवान से उन्होंने धन सम्पत्ति मोक्ष कुछ नहीं माँगा । भगवान ने उन्हें ध्रुव पद प्रदान किया और ऐसे महान भक्त के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व के चारों ओर महान सप्तऋषि आज भी चक्कर लगा रहे हैं ।


ध्रुव अपने पूर्ण लीन भक्ति के कारण ध्रुवीकरण ध्रुवीय आदि शब्दों के पूरक बन गये उत्तर में स्थित एक तारा का नाम भी आपके नाम से जाना जाने लगा ।हमारे देश में एक हेलीकॉप्टर का नाम भी ध्रुव रखा गया है ।


                                शरद कुमार श्रीवास्तव

गिलहरी : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना





चिक-चिक करती पूंछ हिलाती
रोज़     गिलहरी     आती     है
खोज-खोज  खाने   की   चीजें
तुरत     उठा    ले   जाती    है।

कुतर-कुतर  कर   सारा   खाना
जल्दी - जल्दी      खाती       है
बड़े  प्यार  से  बैठ   के  भोजन
करना     हमें      सिखाती    है।

पत्तों   के   झुरमुट   में  छुपकर
आँख   मूँद     सो    जाती    है
बिल्ली,   सांप,  नेवले   से   वह
चौकन्नी        हो      जाती     है।

हरी  भरी  सब्जी   फल  खाकर
सेहत      रोज़      बनाती      है
पेड़ों  से  फल  कुतर-कुतर  कर
नीचे        खूब      गिराती     है।

गिरे    बीज   से    फूटे    अंकुर
देख - देख        हर्षाती         है
इसी  तरह   नित  पेड़   उगाकर
पर्यावरण         बचाती         है।

खाली   नहीं   बैठती   दिन   भर
श्रम    का    साथ    निभाती   है
सक्रियता   जीवन     की    पूंजी
सबको    यह     समझाती     है।

नाज़ुक   रेशों   को    ले   जाकर
घर    भी     स्वयं     बनाती    है
साथ  सुलाकर   सब  बच्चों  को
जीवन    का    सुख    पाती   है।

बिस्कुट,   रोटी,    सेव,   पपीता
आओ     सब    लेकर      आएं
सुंदर       धारीदार       गिलहरी
के      आगे     रखकर     आएं।



             
                 वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद/उ,प्र,
                   9719275453
                    09/06/2020

उम्मीद की किरण : श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'








लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलती असफलता से प्रशांत का उत्साह कुछ कम हो गया था।किन्तु वह निराश नहीं हुआ था।उसे अपनी लगन,निष्ठा,ईमानदारी एवं परिश्रम पर पूरा विश्वास था। जितनी बार वह प्रतियोगी परीक्षा में असफल होता उतनी ही लगन ,मेहनत और निष्ठा से वह अगली बार की तैयारी में जुट जाता।यह उसका दुर्भाग्य था या शासन के नियमों की वाध्यता कि वह एक अंक या एक अंक से भी कम प्वाइंट्स से मैरिड में रह जाता था। इतनी बार असफल होने पर भी उसने हार नहीं मानी।क्योंकि वह जानता था कि अँधेरे के बाद उजाला आता है।रात जितनी ही काली होती है सुबह उतनी ही प्रकाशवान हो जाती है। प्रशांत ने मन में ठान लिया था कि वह एक न एक दिन सफल होकर ही रहेगा।उसे उम्मीद थी कि एक दिन उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन अवश्य होगा। काले- काले घने बादलों की कालिमा धीरे-धीरे छँट रही थी।बादलों में छिपी सूर्य की किरणें धीरे-धीरे विकीर्ण होने लगी थीं।सूर्य देव बादलों के बीच से झांक रहे थे।मानों मुस्करा कर कह रहे थे, "बादल मुझे ढँक तो सकता है किन्तु मेरे अस्तित्व को मिटा नहीं सकता है।" आज प्रशांत की उम्मीद का सूर्य भी धीरे-धीरे अपनी लालिमा विखेरता हुआ अपने आने की सूचना दे रहा था।आज ही तो प्रशांत की जिला न्यायाधीश के पद पर ज्वाइनिंग हो रही थी। 👉





श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल' व्याख्याता-हिन्दी अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार,भिण्ड,म०प्र०




शनिवार, 6 जून 2020

पर्यावरण दिवस पर एक बालगीत रचना शरद कुमार श्रीवास्तव







आओ मिलजुल हम पेड़ लगाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल हम पानी बचाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल कूड़ा न फैलाऐं
पर्यावरण बचाऐ पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल धुआँ न फैलाऐ
पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल शोर मत मचाऐ
पर्यावरण वचाऐं पर्यावरण बचाऐं
आओ मिलजुल पॉलीथिन हटाऐं
पर्यावरण बचाऐं पर्यावरण बचाऐं


          शरद कुमार श्रीवास्तव

पर्यावरण बचाओ (दोहा छंद) महेन्द्र देवांगन माटी की रचना



































पेड़ लगाओ मिल सभी,  देते हैं जी  छाँव ।
शुद्ध हवा सबको मिले  , पर्यावरण बचाव ।।















पर्यावरण विनाश से,  मरते हैं सब लोग ।
कहीं बाढ़ सूखा कहीं,  जीव रहे हैं भोग ।।

जब जब काटे वृक्ष को , मिलती उसकी आह ।
भुगत रहे प्राणी सभी  , ढूँढ रहे हैं राह ।।

सड़क बनाते लोग हैं  , वृक्ष रहे हैं काट ।
पर्यावरण विनाश कर , देख रहे हैं बाट ।।

पेड़ों से मिलती हवा , श्वासों का आधार ।
कट जाये यदि पेड़ तो  , टूटे जीवन तार ।।

माटी में मिलते सभी  , सोना चाँदी हीर ।
पर्यावरण बचाय के  , समझो माटी पीर ।।

दो दिन की है जिंदगी  , समझो इसका मोल ।
माटी बोले प्रेम से  , सबसे मीठे बोल ।।



महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

प्रिंसेस डॉल और टिंकपिका का जादूगर : शरद कुमार श्रीवास्तव






प्रिंसेस डॉल स्कूल से लौट कर आई तो थोड़ा कुछ खा लेने के बाद वह स्कूल का होम वर्क ले कर बैठ गयी। आज मैथ वाली मैम ने उसे 100 अंकगणित ( मैथ) के सवाल कर के लाने को कहा था। वह सवाल करने बैठ तो गयी लेकिन वह एक भी सवाल कर नहीं पा रही थी। उसे ध्यान आया कि क्लास में जब मैथ टीचर सवाल करना सीखा रहीं थी, तब प्रिंसेस और रूपम, कट्टिम कुट्टा का खेल क्लास में खेल रही थी। अब जब सवाल नहीं समझ में आ रहा था तब प्रिंसेस को रुलाई छूट रही थी। वह क्या करे कैसे करे वह सोच रही थी। उसने सोचा की रूपम को फोन लगाए लेकिन रूपम भी तो कट्टिम कट्टा खेल रहजी थी वह क्या बतायेगी. वह रो रही थी कि दीवार पर बैठा मकड़ा उससे बोला रो मत ! मैं, अगर, सब सवाल कर दूँ तो तुम मुझे क्या खाने को दोगी। प्रिंसेस खुश होकर बोली मैं तुम्हे अपनी फेवरिट नट चॉकलेट दूंगी।

 मकड़े ने उससे कहा की तुम अपने खिलोनो से खेलो मैं अभी तुम्हारे मैथ के सवाल कर देता हूँ। प्रिंसेस ने अपना मुंह खिलौने की तरफ किया, तब तक मकड़े ने, उसकी कापी के सब सवाल हल कर दिया और चौकलेट उठा कर गायब हो गया।
मैथ की टीचर को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने अंग्रेेजी की मैडम से कहा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने भी प्रिंसेस को 100 लाइन का ट्रांसलेशन दिया आज भी स्कूल में प्रिंसेस और रूपम साथ साथ खेल रही थी। इसलिए उसे पता ही नहीं लगा । परन्तु जब उसने घर में होम वर्क की कापी खोली तब उसे देख कर रोने लगी। वह मकड़ा फिर आया और बोला आज तो मैं तुम्हारा कलर बॉक्स लूंगा। उसने उसी तरह उसने प्रिंसेस डॉल का ध्यान हटा कर सारे ट्रांसलेशन कर डाले। अब मकड़ा प्रिंसेस डॉल का कलर बॉक्स भी चला गया। दो दिनों के बाद पेरंट टीचर मीटिंग में प्रिंसेस की मम्मी से मैथ की मैम और अंग्रेजी की मैम ने प्रिंसेस की बहुत तारीफ़ किया। लेकिन कहा कि घर से सब सवाल कर लाती है पर क्लास में रूपम से बातें बहुत करती है। कहीं आप तो घर में उसकी मदद तो कहीं नहीं कर देती हैं । ऐसे उसके सवाल कोई दूसरा कर देगा तो आप की प्रिंसेस बुद्धू रह जायेगी उसे तो कुछ नहीं आएगा। प्रिंसेस की माँ को भी दाल में कुछ काला नजर आया। घर आ कर वह जादू से गायब होकर दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गयी। उन्होंने देखा की एक मक्खी और एक मकड़ा आपस में बात कर रहे थे। मकड़ा बोला की मैं टिंकपिका से आया हूँ वहाँ के जादूगर ने भेजा है। प्रिंसेस के सब सवाल मैं कर देता हूँ। धीरे धीरे वह वीक (कमजोर) हो जायेगी तब उसे बुद्धू बना कर टिंकपिका का जादूगर अपने साथ पकड़ कर ले जाये जाएगा और बार्बी डॉल बना कर अलमारी में बंद कर देगा । इससे वह बहुत पावरफुल हो जाएगा , तब उसका कोई कुछ नहीं कर सकता और वह बहुत ताकत वाला बन जाएगा।
प्रिंसेस को ना तो उस मकड़े और मक्खी की बात कुछ सुनाई दे रही थी न तो वह समझ ही पा रही थी कि मकड़ा उसका काम क्यों कर दे रहा है। प्रिंसेस की माँ तो वहाँ जादू से छुपी थीं उन्होंने मकड़े की सब बातें सुन ली थी । वो जाला साफ़ करने वाला एक झाड़ू लेकर आयीं और उन्होंने जाला साफ कर दिया और मकड़े को मार दिया। प्रिंसेस की मम्मी प्रिंसेस से बोली की यह मकड़ा तुम्हारा होम वर्क करके तुम्हे कमजोर कर दे रहा था ताकि तुम्हे बुद्धू बनाकर वह बदमाश जादूगर पकड़कर ले जाय और बार्बी डॉल बना कर अपनी अलमारी में बंद कर दे। अब तुम अपना होम वर्क खुद किया करो जिससे तुम अधिक बुद्धिमान बन सको।

शरद कुमार श्रीवास्तव



" बिल्ली मौसी का ज्ञान " : बालकथा :अंजू जैन गुप्ता की बालकथा






खरगोश,बन्दर और लोमड़ी तीनों जंगल में एक माउंटेन के नीचे रह्ते थे। उन तीनों  में  गहरी मित्रता थी।खरगोश को गाजर,बन्दर को केला और लोमड़ी को अंगूर बहुत  पसंद थे।
एक दिन यूही  बातो  बातो में उन  सबके बीच बहस छिड गई  और बन्दर  कहने लगा कि केला सबसे अच्छा होता है तभी खरगोश बोला नहीं  नहीं  गाजर सबसे अच्छी होती हैं और फिर तुरंत ही लोमड़ी बोली रहने दो तुम दोनों तो मूर्ख हो तुम्हे  कुछ नहीं पता सबसे अच्छे तो अंगूर होते है। और इसी बात पर वे सब लड़ने लगते है उनका शोर सुनकर बिल्ली मौसी दौड़ती हुई आ जाती है और कहती है अरे भई क्या हुआ तुम सब आपस में लड़ क्यो रहे हो?किस बात पर इतना झगड़ा कर रहे हो ?तब खरगोश बिल्ली मौसी को सारी बात बताते हुए कहता है कि मौसी आप ही बताइए सब से अच्छी  गाजर हो ती है  ना !
तब मौसी जोरो से  हँसने लगती है मौसी को हँसता हुआ देख कर वह सब शांत हो जाते है।
तब मौसी उन्हे  समझाते हुए कहती है कि  तीनों ही चीजें हमारी सेहत  के लिए  अच्छी  और जरूरी   होती हैं। तभी  लोमड़ी पूछती है  बताइए  मौसी कैसे?
तब मौसी कहती है  कि  केले में  कैल्शियम होता है जिससे हमारे दाँत और  हड्डियां  मजबूत होती है। गाजर  में विटामिन-A होता है जो  हमारी आँखों की रोशनी को बढाता है और स्वस्थ  रखता है। और  अंगूरो में विटामिन - c होता है जो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है (immunity) अर्थात बीमारियोंसे लड़ने की क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है। इसलिए ये तीनों ही चीजें और  हमारी सिर्फे  ये तीनों ही चीजें नही  बल्कि  सभी फल और सब्जियाँ हमारी सेहत के लिए अच्छी होती हैं। मौसी की बात अब तीनों को समझ आ जाती है और वे सब आपस में लड़ना  छोड़ कर एक साथ  बोल पड़ते है कि हाँ भई अब तो हम सभी फल और सब्जियाँ खाया करेंगे।




अंजू जैन गुप्ता

अम्मा कब स्कूल खुलेंगे : बालगीत :वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

























अम्मा  कब   स्कूल    खुलेंगे
इतना तो  हमको   बतला दो
कान पकड़कर  कोरोना   को
अपनी ताकतभी दिखला दो।
        -----------------

मोबाइल  मत   देखो   बच्चों
असर पड़ेगा  इन आंखों  पर
लेकिन ऑनलाइन शिक्षा का
असर न होगा क्याआँखों पर?
चश्मा  नहीं  लगाना   हमको
अध्यापक को भी  बतला  दो।
अम्मा कब-----------------

अंतर्मन खुश  होता  सबका
साथ -साथ  ही  बतियाने में
कितना जी लगताहै सबका
मिल  करके  शिक्षा पाने  में
करके  पूजा  तुम  ईश्वर को
हाल  हमारा भी  बतला  दो।
अम्मा कब----------------

इकिया-दुकियाआंख मिचौनी
खेलें   किलकिल   कांटी  हम
कोड़ा   छुपा   लगाएं  चक्कर
रोकें    उठती     खांसी    हम
खेल-खेल  में पढ़ना - लिखना
अम्मा हमको भी  सिखला दो।
अम्मा कब------------------

घर  में   पड़े-पड़े  हम  यूं  ही
कब तक अपना वजन बढ़ाएं
और   पार्क   में  दौड़  लगाने
कब तक  अपना मन तरसाऐं
बाधाओं   से   मुक्ति   दिलाने
अम्मा कुछ तो चक्र  चला दो।
अम्मा कब------------------

अरे कोरोना  अंकल  तुम भी
इतना नहीं  समझते  पाते हो
हमें  समझकर  बच्चा  हमसे
आकर  स्वयं  उलझ जाते हो
हिम्मत   है तो  माँ   के  आगे
हमको  छूकर भी दिखला दो।
अम्मा कब------------------
         😢---😢---😢
              -----------



       

















       वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी
       मुरादाबाद/उ,प्र,
       9719275453
          

विभिन्नता में एकता : रचना अंजू जैन गुप्ता





भारत  के उत्तर प्रदेश में रामपुर नाम का एक गाँव है। जहाँ पर रामपुर पब्लिक स्कूल है। इस स्कूल में दूर दूर से सभी वर्गो अमीर गरीब सब धर्मो के बच्चे पढ़ने आते है। रोहन,आसिफ और नानकी तीन मित्र थे जो इसी स्कूल में  पढते थे।रोहन हिन्दू था व हरियाणा का रहने वाला था।आसिफ मुस्लिम था व मुम्बई का रहने वाला था जबकि नानकी सिक्ख था और पंजाब से  यहाँ पढने आया था।
तीनों में गहरी मित्रता थी।टोनी का भी इन्हीं की कक्षा में दाखिला हो जाता है ,परन्तु वह किसी से बात नहीं करता था बहुत घमंडी था क्योंकि वह विदेश से आया था।
   
 एक दिन आसिफ ने कहा, टोनी क्या तुम हमारे मित्र बनोगे? तभी टोनी चिल्लाया " no,no I don't want to be your friend. I m a foreigner  and I am so special।".

टोनी के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर रोहन और नानकी भी वहाँ पहुँच जाते है और टोनी  को कहते है , why are you shouting?  तुम चिल्ला क्यों रहे हो? हम तो तुमसे दोस्ती करने आये है।
टोनी कहता है "नो -नो  तुम तीनों तो एक दूसरे से अलग हो।तुम्हारा  खाना,पहनना व  भाषा भी अलग-अलग है मैं तुमसे दोस्ती नही कर सकता जाओ मुझे पढ़ने दो।"इतना कह कर वह कक्षा से बाहर चला गया।

       तभी खेल के मैदान में फुटबॉल के अध्यापक सभी बच्चों को खेलने के लिये कहते है  और कुछ देर  बाद ही खेल के बीच में अचानक से बारिश शुरू हो जाती है तथा साथ ही छुट्टी की bell  हो जाती है ।   सभी बच्चे  घर के लिये चल पढते है।  आसिफ को तभी किसी के चिल्लाने की आवाज आती है help  -help और तीनों मित्र स्कूल बैग वहीं  छोड़ कर मैदान की और  भागते है। वहाँ जाकर देखते है की Tony चिल्ला रहा है।  उसका पैर  फिसल गया था और उसे बहुत चोट भी लगी थी।   बारिश के कारण सभी अध्यापक भी अंदर स्टाफ रूप में  चले गये थे।

तीनों मित्रों ने उसे सहारा दे कर उठाने की कोशिश किया , किन्तु इसी बीच आसिफ भी फिसल जाता है और उसे खून निकलने लगता है। उसके खून निकलते देख Tony  चिल्लाया," खून -खून, खून तुम्हारा भी खून मेरे खून की तरह लाल  रंग का है", तभी आसिफ कहता है कि ,हाँ Tony खून तो सबका लाल रंग का ही होता है।  फिर तुम हमे अपने से अलग क्यों  समझते हो?  हम सब तो  एक जैसे हैं सिर्फ  वेशभूषा ,खाना और भाषा अलग होने से कुछ फर्क नही पडता है।  हम चाहें तो एक दूसरे की भाषा भी सीख  सकते है ,तभी नानकी बोलता है" तुम्हे पता है रोहन की मम्मी बाजरे की रोटी  बहुत स्वादिष्ट  बनाती है "और रोहन कहता है ,"कि नानकी की मम्मी सरसों का साग बहुत स्वादिष्ट बनाती है।"
बातें करते -करते वे staff रुम में  पहुँच जाते है। अध्यापिका जी उनको first aid दे देती हैऔर Tony को तीनों मित्रों को धन्यवाद  कहने को कहती है Tony को अब समझ  आ जाता है कि  diversity का अर्थ," अलग-अलग होता है", किंतु  इससे  प्यार व एकता भी बढ़ती है। Tony  तभी तीनों को धन्यवाद  कहता है और अब उन सबके साथ मिल कर रहता है।























अंजू जैन गुप्ता
गुरुग्राम