नाना की पिटारी का एक चिर-परिचित नाम श्रीमती मंजू श्रीवास्तव जी का था वह अविरल अपनी कहानी कविताओं को इस पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए भेजतीं थीं। उनकी अप्रत्याशित मृत्यु से हमें भारी क्षति हुई है ।. उनकी कहानियों में से एक कहानी को हम पुनःप्रकाशित कर रहे हैं
विनय और अमन बचपन से गहरे दोस्त थे | एक दिन भी एक दूसरे को देखे बिना या मिले बिना चैन नहीं मिलता था |
विनय और अमन की दोस्ती के चर्चे स्कूल मे काफी मशहूर थे|लोग तो यहां तक कहते थे कि दोनों की दोस्ती कृष्ण सुदामा की दोस्ती को भी मात करती है |
इसी तरह हंसी खुशी से दिन बीत रहे थे |
एक दिन अचानक स्कूल मे विनय की तबियत खराब हो गई | कक्षा मे ही उसे उल्टी हो गई | तुरत डा. के पास ले गये | डा. ने दवा दे दी | कहा चिन्ता की कोई बात नहीं |आराम करने को कहा |
दूसरे दिन विनय को फिर उल्टी हुई | और दो तीन बार हुई|विशेषज्ञ ने पूरी जाँच की विनय की|
विशेषज्ञ ने विनय के परिजनों को जाँच की पूरी रिपोर्ट बताई | डा. ने बताया कि विनय के फेफड़े मे संक्रमण हो गया है| दवा दे दी |
लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था |शहर के सबसे बड़े डॉक्टर को दिखाया गया |
दो
े दिन बाद जाँच की रिपोर्ट मिली ||
|उसमे पाया गया कि फेफड़े मे कैंसर है |
विनय के माता पिता बहुत परेशान|
विनय का परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था |विनय के माता पिता को डॉक्टर ने पूरी बात समझाई कि कैंसर की अभी शुरुआत है | इलाज कराने पर बिल्कुल ठीक हो जायगा
पूरा खर्चा आयगा करीब ३ ,या ३ १/२ लाख रूपये | ज्यादा भी लग सकते हैं |
विनय के माता पिता की चिन्ता वाजिब थी| इतने रूपये कहां से आयेंगे?
विनय के माता पिता को चिन्तित देखकर अमन ने उनको धीरज बंधाया कि सब ठीक होगा चिन्ता न करें अंकल |
अमन ने विनय की बीमारी की बात अपने पापा को बताई| अमन ने पापा से कहा क्यूँ न हम विनय के इलाज के लिये पैसे दे दें | पापा ने भी कहा हाँ हाँ क्यों नहीँ? आखिर वह तुम्हारा दोस्त है | यदि ऐसे वक्त भी हम उसके काम न आ सके तो दोस्ती कैसी?
हांलाकि अमन भी मध्यम परिवार से ही था | उसके पिता सरकारी नौकरी मे कार्यरत थे | लेकिन दूसरों की मदद करने के लिये दो कदम आगे ही रहते थे |
विनय का इलाज शहर के सबसे बड़े अस्पताल मे शुरू हो गया |
धीरे धीरे विनय के स्वास्थ्य मे सुधार होने लगा |
विनय के माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था| एकलौता बेटा जो था|
अमन प्रतिदिन विनय के पास आकर बैठता था|
उसका हौसला बढ़ाता था जिससे विनय अपनी बीमारी के बारे मे ज्यादा न सोचे|
दिन बीत रहे थे | विनय के स्वास्थ्य मे भी सुधार हो रहा था |
साल बीत चुका था| विनय भी अब पूर्ण स्वस्थ हो चुका था|
डॉक्टर ने विनय को अस्पताल से छुट्टी दे दी थी| वह घर आ गया था|
उसके घर मे खुशी का माहौल था
सबसे ज्यादा खुशी अमन को हो रही थी कि वह अपने दोस्त को दूसरा जीवन दिलाने मे सफल रहा |
उधर विनय जैसे अहसानों के तले दबा जा रहा था|उसने विनय से कहा अहसान कैसा? यदि मेरा दोस्त मुझसे बिछड़ जाता तो मै कैसे रह पाता | पैसा तो हाथ का मैल है| फिर आ जायगा पर दोस्त कहां से लाता |
*†**************************
बच्चों सच्चा दोस्त वही है जो मुसीबत मे साथ दे |
मंजू श्रीवास्तव नोएडा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें