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मंगलवार, 16 जून 2020

सरस्वती वंदना : रचना श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'



























प्रार्थना करूँ यही
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ज्ञान दीप माँ जला
बुद्धि का कमल खिला
प्रार्थना है यही।

अंधकार को मिटा
मोह आवरण हटा
कंठ में सु राग भर
गीत हो उठें मुखर
गीत औ' संगीत का
बना रहे सिलसिला।
कामना करूँ यही।।

बुद्धि माँ करो विमल
भाव दे नवल-नवल
तम सघन विनाश कर
मूढ़ता का नाश कर
बुद्धि हो समुज्ज्वला।
चाहना है बस यही।।

माँ मुझे दुलार दे
सप्त स्वर संवार दे
नित नवीन भाव भर
शब्द-शब्द हों प्रखर
कर सकूँ जगत भला।
भावना है शुभ यही।

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                              व्याख्याता-हिन्दी
                             अशोक उ०मा०विद्यालय,
                              लहार,भिण्ड,म०प्र०

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