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गुरुवार, 26 जनवरी 2017

शादाब आलम का बालगीत : ओवर ईटिंग

ओवर ईटिंग बन्दर को जब भूख लगी तो जा पहुंचा मूली के खेत। इतना खाया, इतना खाया गुड़-गुड़-गुड़-गुड़ बोला पेट। तबियत उलझी, शुरू हुई फिर आनी उसको खूब डकार। ओवर ईटिंग ने कर डाला बन्दर भैया को बीमार शादाब आलम

डॉ प्रभास्क पाठक का बालगीत : ठंड






ठंड 

 कुनमुन करती सर्दी जाती
सूरज ने ओढ़ लिया रजाई,
शाम_सुबह की ठंडी ने भी
हालत पतली कर दी भाई ।




इस बसंत ने पहन रखे हैं
झूले फूलों से सजी सजाई,
दूबों ने मोती के मुकुट हैं धारे
ओस कणों ने दरबार लगाई ।

 रंग बिरंगी धरती पर अब
 गणतंत्र भर रही है अंगड़ाई, 
उधर भारती कर में लेकर
ज्ञान किरण की बीन बजाई ।


लुब्ध, बुद्ध औ' शुद्ध हो रही
जीव ,जड़ ,माया संग सींच,
लता,गुल्म, तृण-तृण में
सृष्टि ने अद्भूत रास रचाई ।


                            डॉ प्रभास्क पाठक  
                           राँची 
                           झारखंड 

शुरुआत : शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

शुरुआत :- आज लालबत्ती क्रोसिंग पर हमेशा की तरह रुकना पडा़ । अभी 26 जनवरी के झंडा आरोहण समारोह के बाद लौट ही रहा था कि इस क्रासिंग पर लालबत्ती जली हुई थी इसलिए मुझे अपनी गाड़ी रोकनी पडी । मेरी गाड़ी की खिड़की के सामने एक दस- ग्यारह साल का बच्चा कई सारे झंडों के साथ खड़ा हो गया । इस तरह के बच्चे अक्सर ही इन चौराहों पर दिखाई देते हैं पर हमेशा कोई विशेष ध्यान नही जाता था । पता नही आज गणतंत्र दिवस के दिन मैं क्यों विचलित हो गया । मैं कार में अकेला ही था । खिड़की खोलकर मैंने उन झंडों के दाम पूछे और उसके सारे , लगभग, पंद्रह बीस झंडे, उससे ले लिए । उस बालक को कौतूहल हुआ । उसने पूछा कि आप इतने सारे झंडों का क्या करेंगे? मैंने उसके प्रश्न का जवाब न देकर उससे पूछा कि तुम्हारे सारे झंडे बिक चुके हैं अब तुम क्या करोगे । उसने कहा कि बस अपने घर जाऊँगा । मैंने उस बच्चे से पूछा कि वह कहां रहता है । इसपर उसने पुल के नीचे एक स्थान दिखाकर कहा कि यही पास मे ही रहता हूँ । मैने कहा मै भी तुम्हारे घर चलूँगा । यह कहकर मैंने अपनी गाड़ी को पुल के नीचे ही एक साइड में खड़ी की और गाड़ी से झंडे लेकर उस बच्चे के साथ उसके घर की तरफ़ गया । उसका घर टाट की पुरानी बोरियों पालिथिन इत्यादि से बना छोटा टेन्टनुमा घर था । उस बच्चे ने मुझे बताया कि यही उसका घर है । बहुत दिनों से मैं चाहता था कि मै समाज का इनाम लोगों के जीवन को पास से देखूं और कुछ करूँ । आज का समय ठीक था । इन बच्चों को आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन बच्चों को गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी दूंगा और झंडा और टाफी के लिए पैसे बाँटूंगा । अतः मैंने समय का सदुपयोग करने के बारे मे सोंचा । उस बच्चे के साथ चलते हुए मैंने उससे उसका नाम पूछा । उसने मुझे नाम अपना नाम गुड्डू बताया । गुड्डू के साथ मुझे वहाँ आया देखकर वहां आसपास के कई बच्चे आ गए थे । । सभी बच्चों को मैंने एक अर्धचक्र में खड़ा किया । फिर मैंने उनसे पूछा कि आप जानते हैं कि आज 26 जनवरी है । सब बच्चे एक ही सुर में बोल उठे कि जी हाँ आज 26 जनवरी है । मैंने सब बच्चों को वे झंडे बांट दिया और फिर पूछा कि 26 जनवरी मे हम क्या करते हैं तथा यह क्यों मनाया जाता है । मेरे यह पूछने पर एक छोटी लड़की बोल पडी कि आज के दिन हम झंडा फहराते है । दिल्ली में राजपथ पर झंडा हमारे राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, फिर वहाँ सेना की परेड होती है और अलग अलग राज्यों की झांकियां निकलती हैं । यह सुनकर मुझे अचम्भा हुआ कि इतना सब इस बच्चे को कैसे मालूम हुआ । कपड़ों और रहने के परिवेश से तो नहीं लगता है कि ये बच्चे स्कूल जाते होंगे । मैंने उससे पूछा कि आप को यह सब कैसे पता चला । उसी समय वहीं खड़ी एक स्त्री ने बताया कि शाम को एक भैया अपनी मोटरसाइकिल से आते हैं वही इन बच्चों को बैठाकर पढाई कराते हैं । उन्होंने ने ही सब बताया है । मगर पूछा कि उनको आप लोग कुछ पैसे देते होगे ? यह सुनकर वह बोली कि नहीं बाबू वे बहुत भले आदमी है । उन्होंने ही सभी बच्चों को कापियां पेंसिल किताबें भी लाकर दिया है । अब मैं अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था कि इन बच्चों को महज एक झंडा पकड़ा कर और टाफी के लिए पैसे बाटकर मैं गौरांवित अनुभव कर रहा था कि मैं इन बच्चों की छोटी सी खुशी का हिस्सा बन रहा हूँ । लेकिन वह लड़का अपनी पढ़ाई से समय और पैसा निकाल कर इन बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए प्रयास रत है । यह एक छोटी सी शुरुआत ही सही पर बहुमूल्य प्रयास है और वह भी भी बिना किसी शोरशराबे के । निश्चय ही वह, इन गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल कराने के लिये सराहनीय योगदान देरहा है । उस स्त्री ने आगे बताया कि रविवार को उन बाबू के कुछ दोस्त लोग भी आते हैं जो इन्हें गाना बजाना भी सिखाते हैं । यह सुनकर मेरा सिर उन लोगों के लिए श्रद्धा से झुक गया कि हम सोचते ही रह गए और नई पीढ़ी के इन बच्चों ने इस नेक काम की शुरुआत भी कर दी है । शरद कुमार श्रीवास्तव

सुशील शर्मा जी की ओजस्वी कविता



माँ तेरे बेटे ने वक्षस्थल पर गोली खाई है*
(एक शहीद का अंतिम पत्र )


अपने शोणित से माँ ये अंतिम पत्र तुझे अर्पित है।
माँ भारती के चरणों में माँ ये शीश समर्पित है।
माँ रणभूमि में पुत्र ये तेरा आज खड़ा है।
शत्रु के सीने पर पैर जमा ये खूब लड़ा है।
कहा था एक दिन माँ तूने पीठ पे गोली मत खाना।
शत्रु दमन से पहले घर वापस मत आ जाना।
सौ शत्रुओं के सीने में मैंने गोली आज उतारी है।
माँ तेरे बेटे ने की शत्रु सिंहों की सवारी है।
भारत माँ की रक्षा कर तेरे दूध की लाज बचाई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

मातृभूमि की धूल लपेटे तेरा पुत्र शत्रु पर भारी है।
रक्त की होली खेल शत्रु की पूरी सेना मारी है।
वक्षस्थल मेरा छलनी है लहू लुहां में लेटा हूँ।
गर्व मुझे है माँ तुझ पर मैं सिंहनी का बेटा हूँ।
मत रोना तू मौत पे मेरी तू शेर की माई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।


पिता आज गर्वित होंगें अपने बेटे की गाथा पर।
रक्त तिलक जब देखेंगे वो अपने बेटे के माथे पर।
उनसे कहना मौत पे मेरी आँखें नम न हो पाएं।
स्मृत करके पुत्र की यादें आंसू पलक न ढलकाएं।
अब भी उनके चरणों में हूँ महज शरीर की विदाई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

उससे कहना धैर्य न खोये है नहीं अभागन वो ।
दे सिन्दूर माँ भारती को बनी है सदा सुहागन वो।
कहना उससे अश्रुसिंचित कर न आँख भिगोये वो।
अगले जनम में फिर मिलेंगें मेरी बाट संजोये वो।
श्रृंगारों के सावन में मिलेंगें जहाँ अमराई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

स्मृतियों के पदचाप अनुज मेरे अंतर में अंकित हैं।
स्नेहशिक्त तेरा चेहरा क्या देखूंगा मन शंकित है।
ह्रदय भले ही बिंधा है मेरा रुधिर मगर ये तेरा है।
अगले जनम तू होगा सहोदर पक्का वादा मेरा है।
तुम न रहोगे साथ में मेरे कैसी ये तन्हाई है।
माँ से कहना मैंने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

बहिन नहीं तू बेटी मेरी अब किस को राखी बांधेगी।
भैया भैया चिल्लाकर कैसे तू अब नाचेगी।
सोचा था काँधे पर डोली रख तेरी विदा कराऊंगा।
माथे तिलक लगा इस सावन राखी बँधवाऊंगा।
बहना तू बिलकुल मत रोना तू मेरे ह्रदय समाई है।
माँ से कहना मैंने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

पापा पापा कह कर जो मेरे काँधे चढ़ जाती थी।
प्यार भरी लोरी सुन कर वो गोदी में सो जाती थी।
कल जब तिरंगें में उसके पापा लिपटे आएंगे।
कहना उससे उसको पापा परियों के देश घुमाएंगे।
उसको सदा खुश रखना वो मेरी परछांई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

माँ भारती के भाल पर रक्त तिलक चढ़ाता हूँ।
अंतिम प्रणाम अब सबको महाप्रयाण पर जाता हूँ।
तेरी कोख से फिर जन्मूंगा ये अंतिम नहीं विदाई है।
माँ तेरे बेटे ने अपने वक्षस्थल पर गोली खाई है।

(सभी शहीदों को समर्पित )



                          सुशील  शर्मा 

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत भारत देश का झंडा : शरद कुमार श्रीवास्तव



खूब  सलोना  न्यारा  सा अपने  देश  का  झंडा 




खूब  सलोना न्यारा है  अपने  देश का झंडा।
बहुत  सुन्दर  प्यारा सा  भारत  देश का झंडा

रंग  केसरिया बतलाये हममें  कितना  बल है
श्वेत  रंग दर्शाता भारत  शांत सत्य  सरल है

बीच मे चक्र है बना हुआ चौबीस  तीली वाला
गतिशील, धर्म और जीवन  को  दर्शाने  वाला  ।

इसमे हरे रंग  की  पट्टी नीचे  की  ओर है लगाई
हमे मेरे  देश की  सोंधी मिट्टी  की  महक सुहाई।

पावन है यह धरती  अपनी सुन्दर नील गगन  है
तिरंगा जब लहराता  है  तब हर्षित  होता  मन है

खूब  सलोना न्यारा है  अपने  देश का झंडा।
बहुत  सुन्दर  प्यारा सा भारत  देश का झंडा ।।










शरद कुमार  श्रीवास्तव

प्रिया देवांगन "प्रियू" का बालगीत : वन्दे मातरम गाना है                       












वंदे मातरम गाना है 

छब्बीस जनवरी मनायेंगे,तिरंगा हम लहरायेंगे।

तीन रंग का हमारा तिरंगा,शान से हम फहरायेंगे।

इस झंडे को पाने खातिर,कितने जान गंवाये है।

वीर सपूत बलिदानी हो के,इसका मान बढ़ाये है।

वंदे मातरम का नारा लगाके,देश भर में फैलाना है।

वंदे मातरम वंदे मातरम वंदे मातरम गाना है।



                             रचना 
                             प्रिया देवांगन "प्रियू" 
                             गोपीबंद पारा पंडरिया 
                              जिला -- कबीरधाम  ( छ ग )
                            Email --       priyadewangan1997@gmail.com

महेन्द्र देवांगन "माटी" का बालगीत : तीन रंगो का प्यारा झंडा


तीन रंगों का प्यारा झंडा 

तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।
कभी नही हम झुकने देंगे, आगे बढ़ते जायेंगे ।
कोई दुश्मन आंख उठाये, उनसे न घबरायेंगे ।
जान की बाजी खेलकर अपनी, हम तो इसे बचायेंगे 

भारत मां के बेटे हैं हम , गीत प्यार के गायेंगे  
कभी नही हम झुकने देंगे, आगे बढ़ते जायेंगे 
आंधी आये तूफां आये , रुक नही हम पायेंगे ।
दुश्मन की सीना को चीरकर, आगे आगे बढ़ते जायेंगे ।








है अपना ये प्यारा झंडा , चोटी पर लहरायेंगे ।
कभी नही हम झुकने देंगे, आगे बढ़ते जायेंगे ।
भारत माता सबकी माता, सुंदर इसे बनायेंगे ।
भेदभाव हम नहीं करेंगे, सबको हम अपनायेंगे।




शांति का संदेश लिये हम , नये तराने गायेंगे ।
कभी नही हम झुकने देंगे, आगे बढ़ते जायेंगे
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे।
कभी नही हम झुकने देंगे, आगे बढ़ते जायेंगे ।









रचना  
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया 
जिला -- कबीरधाम  (छ ग )
पिन - 491559
मो नं -- 8602407353 
Email -mahendradewanganmati@gmail.com

शनिवार, 21 जनवरी 2017

पीहू की  कहानी  पीहू की जबानी


पीहू की  कहानी  पीहू की जबानी

एक दिन मै बाहर गई  थी,  मुझे  ख्याल आया  कि  मैं नानाजी के  साथ  संग्रहालय देखने  जाऊँ । जब मैं   वहाँ  गई तो  मुझे वहाँ  पुराने जमाने के  अलग  अलग  जानवर  पक्षी  देखने  को  मिले  । a वहां  पे मुझे पुराने जमाने की   वीर  प्रजातियां  देखने  को  मिली ।
वहाँ   बहुत  अच्छे  जानवर  पक्षी थे ।  पिछले  बार  मैं  जब  संग्रहालय  देखने  गई  थी तब भी  मुझे  बहुत  मजा  आया  था  और इस  बार  भी  मुझे  बहुत  मजा  आया  है ।  इस  तरह  मैंने  अपनी  छुट्टियां  बहुत  मजे मे गुजारी ।  बहुत  शीघ्र  मै दूसरी  कहानी  सुनाऊँगी । धन्यवाद ।











पीहू
सुपुत्री श्रीमती स्तुति और श्री संजीव श्रीवास्तव
फ्रीडम  फिघ्टर्स एन्क्लेव
नई  दिल्ली  

सोमवार, 16 जनवरी 2017

डॉ. प्रदीप शुक्ल की पुस्तक गुल्लू के गाँव से


1. धूप बेचारी



सर्दी में सूरज अंकल ने

दे डाली है धूप को छुट्टी

मुन्ना उसके इंतज़ार में

पिए जा रहा जीवन घुट्टी



क्यों ना आई धूप समय पर

मुन्ना जोर जोर चिल्लाये

बस मालिश के इंतज़ार में

लेटा है वो तेल लगाये



दादी कहती धूप बेचारी,

बहुत दूर से वो आती है

सूरज अंकल के घर से बस

आते आते थक जाती है



पूरे बरस काम वो करती

ज़र्रे ज़र्रे को चमकाए

बस थोड़े दिन जाड़े में औ’

बारिश में ही ना आ पाए



देखो तेरी दीदी भी तो

सन्डे को स्कूल न जाये

आ जायेगी धूप बेचारी

काहे तू इतना चिल्लाये?



                                   डॉ. प्रदीप शुक्ल

.

मकर संक्रांति मनाये

आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
घर में हम सब खुशियाँ फैलाये
पतंगे हम खूब उड़ाये।
सब मिलकर हम नाचे गाये
मौज मस्ती खूब उड़ाये।

आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
गली मोहल्ले मे बांटे सारे ।
सब मिलकर कर खाये प्यारे
गंगा में डूबकी लगाये ।
शरीर अपना स्वस्थ बनाये ।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।।




















रचना  प्रिया देवांगन "प्रियू"  गोपीबंद पारा पंडरिया  जिला -- कबीरधाम  ( छ ग ) Email --priyadewangan1997@gmail.com
दादा जी ने पतंग उड़ाई











दादाजी ने  पतंग  उडाई
मंझा-चरखी-डोर मंगाई
दादा जी ने पतंग उड़ाई
 ग्यारह पेंच उन्होंने काटे
 इसी ख़ुशी में लड्डू बांटें











मम्मी-पापा, मौसी- ताई
 दिया सभी ने उन्हें बधाई
 दादाजी के मिले न भाव
 घूमे मूंछों पर दे, ताव।










 शादाब आलम

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

हाथी और दरजी

पहाड पर एक गाँव मे एक दर्जी  रहता  था. गाँव के लोग उसे कपड़े सिलने को देते थे . वह उनको सिलकर अपना और अपने परिवार का लालन पालन करता था ।   उसी गाँव मे एक हाथी भी रहता था ।  हाथी दर्जी की  दुकान के सामने खड़ा हो जाता था और दर्जी को काम करते हुये  देखता था ।   हाथी के दुकान के सामने खड़े होने की  वजह  से दर्जी की  दुकान की रौनक बढ़ जाती थी।  धीरे-धीरे  दर्जी और हाथी की कुछ दिनों बाद दोस्ती हो गयी थी । 
हाथी दर्जी के ब च्चे को अपनी पीठ पर बैठाकर कभी कभी दर्जी के  गाँव की सैर करा लाता था।  इसके बदले मे दर्जी उस  हाथी केले खाने के  लिए  देता था।  दर्जी के बच्चे  को दर्जी द्वारा  उस हाथी को खिलाना-पिलाना बिल्कुल पसंद नही था।
एक बार दर्जी   को दुकान का सामान लाने शहर जाना पड़ा।  हाथी रोज की तरह जब  दर्जी की दकान पर आया तब उसने देखा कि दुकान बन्द  है  ।    उसे आश्चर्य  हुआ  और उसे  लगा कि दर्जी अभी सो रहा है जबकि दिन सर के ऊपर तक निकल आया था ।  हाथी ने सोचा कि अगर दर्जी अभी  तक  सो रहा हो तो उसे जगा दिया जाय ।   दर्जी के बहुत  नुकसान  हो  रहा  है ।   इसलिये   हाथी ने  जोर  से  चिंघाड़ कर आवाज लगाई कि दर्जी अगर  सुने तो दुकान खोल कर अपने रोजी रोटी पर  ध्यान दे।   लेकिन  दर्जी  तो पहले ही  शहर जा  चुका था ।   उसके लड़के ने हाथी के चिंघाड़ने का कुछ  ध्यान नहीं  दिया   और न कुछ  हाथी से  बोला ।   हाथी ने दुबारा आवाज  लगाई  लेकिन  दर्जी के  बेटे  ने  इस बार  भी  कोई  उत्तर  नहीं  दिया ।  
हाथी ने उत्सुकता  वश अपनी  सूंड  दर्जी  की  दुकान  के  ऊपर से दुकान  के  अंदर  डाल  दिया ।    इस पर दर्जी के  बेटे ने  शैतानी मे  हाथी की सूंड  में   सुई चुभो दिया ।   अब हाथी दर्द  से तिलमिला  उठा  और क्रोधित  हो  गया  ।    वह गया और तालाब  से अपनी  सूंड  में  पानी  भरकर  ले  आया  और  दर्जी की  दुकान  में  नये और पुराने सभी  कपड़े  भिगोकर  खराब  कर दिया तथा  वह गांव  छोड़कर  कहीं  चला  गया  और कभी वापस  नहीं  आया।






शरद कुमार  श्रीवास्तव


चुटकुले


चुटकुले

राजू अपनी मम्मी के साथ दवा की दूकान पे गया , वहाँ मम्मी ने मच्छर से बचने की दवा मांगी।    दुकानदार ने एक तेल की शीशी  दी।
राजू ने दुकानदार से पूछा  कि इसे  मच्छर को कैसे लगाएंगे

2 .   आंटी दूधवाले से  - आज इतनी देर से दूध क्यों लाये ?
       दूधवाला -  क्या करूँ  बीबी जी ! आज नल बहुत देर से।                आया।

3.   अध्यापक - मिठाई खराब नहीं हो इसकेलिए  हमें क्या करना।        चाहिए
        मयंक  -  हमें सब खा लेना चाहिए।
4 .   आकाश, टीवी देखते हुए  पापा से - पापा  जापान कहाँ है
        पापा  झल्लाकर - हमें नहीं मालूम  जा कर अपनी मम्मी से।           पूछो वही सामान इधर -उधर रख देती हैं।
 
5 .    नरेश अपनी माँ से - मम्मी आप ज्योतिषी   हैं ?
        माँ - नहीं पर क्यों  क्या हुआ ?    
        नरेश - पिछले महीने  आपने कह दिया था कि  तुम फेल हो             जाओगे

संकलन

                             शरद  कुमार  श्रीवास्तव



रविवार, 15 जनवरी 2017

संपादक की ङेस्क से


आप सभी  को  नववर्ष  की  शुभकामनाएं,
नयी साइट 'ब्लॉगर्स'  पर हम आपका स्वाग़त करते हैं।   आने वाली 4  फरवरी को आपकी पत्रिका ' नाना की पिटारी ' के अंतर्जाल  पर प्रकाशित  होते हुए 3 वर्ष पूरे हो रहे हैं।      इन तीन वर्षो की  यात्रा     में नाना की पिटारी  ने, लगभग  525 , पठन सामग्री प्रकाशित  किया ।   इनमे  बालगीत, बालकथाएँ ,चुटकुले ,पहेलियों के अलावा ज्ञानवर्धक और मनोरंजक अन्य सामग्रियां  भी सम्मिलित    रहीं हैं।    हिन्दीब्लोग्स.नेट  पर कुछ तकनीकी समस्याओं  के चलते   पूरा ब्लॉग अदृश्य हो गया था  और वे डाटा रिकवरी में अक्षम थे अतः   हमें  नए सिरे से दूसरे  ब्लॉगर के साथ जुड़ना पड़ा। पिछले  ब्लॉग का काफी बैक-अप हमने ऐतिहात के  तौर  पर पहले से  ही   ले रखा था।    अब उसका  उपयोग  समय समय  पर हम  अच्छी  रचनाओं को इस    ब्लॉग में  पुनर्प्रकाशित   करने मे  करेंगे   ।  शीघ्र ही हम उन रचनाओ को  एक पुस्तक " नाना जी के बालगीत और बॉल कथायें "  के रूप में भी  प्रकाशित  कर रहे है ।   प्रकाशित होने पर इसकीसूचना   हम आपको देंगे।
हमे आपको  यह बताते  हुए  खुशी  हो रही  है   बाल साहित्य  लेखन  में  राष्ट्रीय  स्तर  के  ख्याति  प्राप्त  रचनाकार   सर्वश्री  प्रभु दयाल श्रीवास्तव,  डॉ  प्रदीप  शुक्ला  भाई शादाब  आलम जी तथा उपासना  बेहार जी की रचनाएँ  हम लगातार  प्रकाशित  करते  रहे हैं  वही नये रचनाकारों की  रचनाओं  ने   नाना  की  पिटारी को सुशोभित  किया है हम सभी  रचना  कारो को   धन्यवाद ज्ञापित  करते  हैं  ।

हिन्दी लेखन की और हम संकल्पित हैं परन्तु  मुख्या धारा में जुड़ने के लिए  हमे साथ में अंग्रेजी को भी साथ में लेकर चलना  होगा ।   आजकल  बहुत  बच्चे  अंग्रेजी   माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं उनकी  रचनात्मक  प्रतिभा  को  निखारने  के  लिए  उन्हें  भी  सुयोग  प्रदान  करना  है।
अंत मे सभी पाठकों  और  शुभेक्षकों से निवेदन  है  कि  इस  पत्रिका  को ईमेल  , फेसबुक  और वाट्सएप  में  शेयर  करके  अधिक  से अधिक  लोगों  तक  पहुंचाएं।
धन्यवाद

                               शरद  कुमार  श्रीवास्तव
                              संपादक        

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

चींटी की छींक

नदी किनारे मुंह धोने जब
पहुंची चींटी रानी
मुंह पर पानी डाला जैसे
घुसा नाक में पानी ।

लगातार दो छींके आईं
संभल नहीं वह पाई
गिरी हुई बेहोश, होश में
हफ्ते भर ना आई।

शादाब आलम











रचयिता का संक्षिप्त परिचय :     नाम : राजपाल सिंह गुलिया    जन्म   :27 दिसम्बर 1964    शिक्षा : स्नातक ,शिक्षण में डिप्लोमा    संप्रति  : सरकारी स्कूल में अध्यापक  प्रकाशन  : हरिगंधा , बालवाटिका , बालप्रहरी , अभिनव बालमन , लल्लू जगधर , टाबरटोली , देवपुत्र व स्तरीय पत्रिकाओं के बालविशेषांकों में बालगीत व बाल कविताओं का निरन्तर प्रकाशन  संपर्क सूत्र :-        राजपाल सिंह गुलिया राजकीय प्राथमिक पाठशाला भटेड़ा  तहसील व जिला - झज्जर ( हरियाणा )         पिन -124108 मोबाइल #9416272973

गोल - गोल











चूड़ी गोल बिंदी गोल
दीदी की बाली है गोल
तवा गोल रोटी गोल
मम्मी बोले मीठे बोल |
 तबला गोल ढोलक गोल
ढोल के अंदर पोल है गोल
झांझ गोल मंजीरा गोल
कोयल बोले मीठे बोल |














चक्का गोल टायर गोल
मोटर की पहिया है गोल
बेलन गोल बर्तन गोल
दादी बोले मीठे बोल |
 आम गोल जाम गोल
नीबू और संतरा है गोल
तरबूज गोल खरबूज गोल
नानी बोले मीठे बोल |













पेड़ा गोल जलेबी गोल
रसगुल्ला और लड्डू गोल
चांद गोल तारे गोल
दादा बोले पृथ्वी गोल |










महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा
पंडरिया
 जिला -- कबीरधाम (छ ग )
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सुयश की बदली आदत
सुयश एक प्यारा लड़का था,रोज स्कूल जाता था और ध्यान लगा कर पढ़ता था लेकिन उसकी एक ही बुरी आदत थी, वह झूठ बहुत बोलता था. इस आदत से उसके माँ-पापा और दोस्त परेशान रहते थे. उसे हमेशा समझाते थे कि इस आदत के कारण किसी दिन तुम बहुत मुसीबत में पड़ जाओगे लेकिन सुयश इस सलाह पर कभी ध्यान नहीं देता था और कहता ‘अभी तक कुछ नहीं हुआ है तो आगे भी नहीं होगा.’ एक दिन सुयश के दोस्त मनु ने कहा “मैं तैराकी सीखने जाता हूं, तुम भी चलो वहाँ बहुत मजा आता है.” सुयश ने आदत के मुताबिक तुरंत झूठ बोला “मनु मुझे तो तैराकी आती है और मैंने तो तैराकी की कई प्रतियोगितायें जीती है.” कुछ दिनों बाद सुयश नए साल में अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने हलाली डेम गया. डेम में पहले से ही चहल पहल थी, इतवार होने के कारण लोग अपने परिवार के साथ वहाँ आये हुए थे. डेम के चारों तरफ पार्क था जिसमें फिसलपट्टी,सीसा झूला लगे थे. डेम के केयर टेकर ने इन बच्चों को अकेले आते हुए देखा तो कहा “बच्चों तुम लोगों के परिवार से कोई बड़ा व्यक्ति नही आया है.” “नहीं अंकल ”. “तुम लोग पार्क में ही खेलना पानी की तरफ मत जाना, डेम बहुत गहरा है डूबने का खतरा है”. ये चेतावनी देकर केयर टेकर चला गया. पार्क में सब ने बहुत मजे किये. सुयश के दोस्त पंकज ने लोगों को पानी के पास जाते देख कर कहा “देखो सभी लोग तो पानी के पास जा रहे हैं, चलो न हम भी चलते हैं.” सभी बच्चे पानी के पास चले गए. वहाँ एक नाव रखी थी, सभी बच्चे उस पर चढ़ कर खेलने लगे. तभी नाव जिस रस्सी से बंधा था वो खुल जाता है और नाव तेजी से पानी की तरफ बहने लगती है. बच्चे घबरा गए और जोर जोर से बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगे. तब मनु सुयश से कहता है “तुम तो तैराकी के चैम्पियन हो, जल्दी से तैर कर किनारे जाओ और लोगों से मदद लेकर हमें बचाओ.” तब सुयश घबरा जाता है और उसके आंख से आंसू बहने लगते हैं. वो मनु से कहता है  “मुझे माफ़ कर दो दोस्त, मुझे तो तैरना नहीं आता है, उस दिन मैंने तुमसे झूठ बोला था. मैं कान पकड़ता हूँ कि आगे से कभी झूठ नहीं बोलुगां.” तभी नाव डगमगाने लगती है, डर के मारे बच्चे रोने लगते हैं और किनारे पर खड़े लोगों को जोर से आवाज देने लगते हैं. किनारे पर खड़े लोगों ने बच्चों को चिल्लाते और नाव को डगमगाते देखा, 3-4 लोग तुरंत उन्हें बचाने पानी में कूद पड़ते हैं और नाव की रस्सी को खीचते हुए उसे किनारे ले आते हैं. सभी बच्चे सदमे में होते हैं. तब तक डेम के केयर टेकर भी आ जाते हैं. वो कहते हैं “मैंने तुम लोगों पानी के पास जाने को मना किया था.” बच्चों ने केयर टेकर से माफ़ी मांगी. सुयश को भी झूठ बोलने का सबक मिल गया था.











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गुरुवार, 5 जनवरी 2017


आन्या : गुरु भी पुत्री भी ।
किसी ने सही कहा है जब हम अपने बच्चों को जीवन के बारे में सब कुछ बताने की कोशिश कर रहे होते है तब हमारे बच्चे हमें बता देते है कि जीवन असल में है क्या । ” ज़रूरत है सिर्फ महसूस करने की, गौर से आकलन करने की । हमारे बच्चे दरअसल जीवन जीने का मंत्र जानते है जिसको वो बयाँ नहीं कर पाते है, पर अपने क्रियाकलापों से दिखा देते हैं, जिसको समझ कर हम प्यार, दया, ख़ुशी, नाचना, झूमना जैसे न जाने कितनी कलाओं को सिख सकते हैं । ऐसा ही एक अध्याय आज मैंने अपनी 5 वर्ष की पुत्री से सीखा। उसने मुझे क्रोध पर नियंत्रण और क्षमा का पाठ पढ़ाया। दरअसल आज जब मैं उसको (आन्या आनंद ) पढ़ा रही थी तो किसी कारणवश उसकी पिटाई कर दी। जबकि उसने मुझसे वादा लिया है नहीं पीटने की। फिर भी उसे नज़रअंदाज़ करके अच्छी खासी पिटाई हो गई । आन्या की एक आदत है कि पिटाई के वक़्त वो ख़ुद का बचाव नहीं कर पाती है, बल्कि अपने पीठ को झुका कर समर्पित कर देती है। अफ़सोस इस बात का है कि उसका ये समर्पण भी मुझे लज़्ज़ित नहीं कर पाया। थोड़ी देर बाद जब मैंने उसे अपने पास बुलाया और खुद को लाचा“बेटा! मैंने ऐसा क्यों किया ? अपना आँसू पोछते हुए उसने कहा “मम्मा … आप अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाए । आप अपने हाथ को नहीं रोक पाए । कोई बात नहीं मम्मा (…….. क्षमा भाव )। फिर मैंने पूछा “अन्नी ! मुझे गुस्से पर कैसे कन्ट्रोल करना चाहिए “। तब उसने मुझे कुछ ऐसा सुझाव दे दिया जिसे मैं नतमस्तक होकर सुनती रह गई । उसने कहा आपको जब भी गुस्सा आये और पीटने के लिए हाथ उठे तो अपनी आँखें बंद कर लो और अपने हाथ को बुद्ध भगवान् जी की तरह रख लो (आशीर्वाद मुद्रा में ) और सोचो कि मेरी बेटी तो अभी बहुत छोटी है, मेरी जैसी स्ट्राँग(मजबूत) भी नहीं है । क्या मुझे उसे पीटना चाहिए ? आप ये सोचो की शायद वो नहीं समझ पा रही होगी। फिर आप अपनी आँखें खोल लो । इतना कहते ही वो मुझसे लिपट कर रोने लगी और कहने लगी …….. मम्मा ! मैं आपसे और पापा से तो बहुत छोटी हूँ । पहले तो मैं ABC भी नहीं जानती थी , क, ख, ग भी नहीं जानती थी । अब तो मैं लिख लेती हूँ न । जब मैं 6 इयर्स की हो जाउंगी न तब सब सीख जाऊँगी । मम्मा मुझे गुस्सा अच्छा नहीं लगता है । उसके इन टूटे फूटे शब्दों से बने अनमोल बातों को सुनकर मैं शब्दहीन हो गई और मेरे भी आँखों से आँसू बहने लगे । उस वक़्त मेरी 5 वर्ष की पुत्री में भगवान् कृष्ण की छवि दिखाई दे दी । ऐसा लगा की मेरा गुरु मुझे जीवन सिखा दिया । ये बात सच है की बच्चे के आत्मा में छुपे दया, प्यार और सहानुभूति की गहराई का अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता है
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