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गुरुवार, 26 जनवरी 2017

डॉ प्रभास्क पाठक का बालगीत : ठंड






ठंड 

 कुनमुन करती सर्दी जाती
सूरज ने ओढ़ लिया रजाई,
शाम_सुबह की ठंडी ने भी
हालत पतली कर दी भाई ।




इस बसंत ने पहन रखे हैं
झूले फूलों से सजी सजाई,
दूबों ने मोती के मुकुट हैं धारे
ओस कणों ने दरबार लगाई ।

 रंग बिरंगी धरती पर अब
 गणतंत्र भर रही है अंगड़ाई, 
उधर भारती कर में लेकर
ज्ञान किरण की बीन बजाई ।


लुब्ध, बुद्ध औ' शुद्ध हो रही
जीव ,जड़ ,माया संग सींच,
लता,गुल्म, तृण-तृण में
सृष्टि ने अद्भूत रास रचाई ।


                            डॉ प्रभास्क पाठक  
                           राँची 
                           झारखंड 

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