ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 26 जनवरी 2022

एक शुरुआत शरद कुमार श्रीवास्तव

  :- 




आज लालबत्ती क्रोसिंग पर हमेशा की तरह रुकना पडा़ । अभी मैं 26 जनवरी के झंडारोहण समारोह के बाद लौट ही रहा था कि इस क्रासिंग पर लालबत्ती जली हुई थी इसलिए मुझे अपनी गाड़ी रोकनी पडी । मेरी गाड़ी की खिड़की के सामने एक दस- ग्यारह साल का बच्चा कई सारे झंडों के साथ खड़ा हो गया । इस तरह के बच्चे अक्सर ही इन चौराहों पर दिखाई देते हैं।  उनपर हमेशा कोई विशेष ध्यान नही जाता है । पता नही आज गणतंत्र दिवस के दिन मैं क्यों विचलित हो गया । मैं कार में अकेला ही था । खिड़की खोलकर मैंने उन झंडों के दाम पूछे और उसके सारे , लगभग, पंद्रह बीस झंडे, उससे ले लिए । उस बालक को कौतूहल हुआ । उसने पूछा कि अंकल आप इतने सारे झंडों का क्या करेंगे? मैंने उसके प्रश्न का जवाब न देकर उससे पूछा कि तुम्हारे सारे झंडे बिक चुके हैं तो अब तुम क्या करोगे । उसने कहा कि बस अपने घर जाऊँगा । मैंने उस बच्चे से पूछा कि वह कहाँ रहता है । इसपर उसने पुल के नीचे एक स्थान दिखाकर कहा कि यही पास मे ही रहता हूँ । मैने कहा मै भी तुम्हारे घर चलूँगा । यह कहकर मैंने अपनी गाड़ी को पुल के नीचे ही एक साइड में खड़ी की और गाड़ी से झंडे लेकर उस बच्चे के साथ उसके घर की तरफ़ गया । उसका घर टाट की पुरानी बोरियों पालिथिन इत्यादि से बना छोटा टेन्टनुमा घर था । उस बच्चे ने मुझे बताया कि यही उसका घर है । बहुत दिनों से मैं चाहता था कि मै समाज के इन लोगों के जीवन को पास से देखूं और कुछ करूँ । आज का समय ठीक था । इन बच्चों को आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन बच्चों को गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी दूंगा और झंडा और टाफी के लिए पैसे बाँटूंगा ।  मैंने समय का सदुपयोग करने के बारे मे सोंचा । उस बच्चे के साथ चलते हुए मैंने उससे उसका नाम पूछा । उसने मुझे नाम अपना नाम गुड्डू बताया । गुड्डू के साथ मुझे वहाँ  आया देखकर वहां आसपास के कई बच्चे आ गए थे । । सभी बच्चों को मैंने एक अर्धचक्र में खड़ा किया । फिर मैंने उनसे पूछा कि आप जानते हैं कि आज 26 जनवरी है । सब बच्चे एक ही सुर में बोल उठे कि जी हाँ आज 26 जनवरी है । मैंने सब बच्चों को वे झंडे बांट दिया और फिर पूछा कि 26 जनवरी मे हम क्या करते हैं तथा यह क्यों मनाया जाता है । मेरे यह पूछने पर एक छोटी लड़की बोल पडी कि आज के दिन हम झंडा फहराते है । दिल्ली में राजपथ पर झंडा हमारे राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, फिर वहाँ सेना की परेड होती है और अलग अलग राज्यों की  झांकियां निकलती हैं । यह सुनकर मुझे अचम्भा हुआ कि इतना सब इस बच्चे को कैसे मालूम हुआ । कपड़ों और  रहने के परिवेश से तो नहीं लगता है कि ये बच्चे स्कूल जाते होंगे । मैंने उससे पूछा कि आप को यह सब कैसे पता  चला । उसी समय वहीं खड़ी एक स्त्री ने बताया कि सप्ताह  मे दो तीन दिन  शाम को एक भैया अपनी मोटरसाइकिल से आते हैं वही इन बच्चों को बैठाकर पढाई कराते हैं । उन्होंने ने ही इन्हे सब बताया है । मगर पूछा कि उनको आप लोग कुछ पैसे देते होगे ? यह सुनकर वह बोली कि नहीं बाबू वे बहुत भले आदमी है । उन्होंने ही सभी बच्चों को कापियां पेंसिल किताबें भी लाकर दिया है । अब मैं अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था कि इन बच्चों को महज एक झंडा पकड़ा कर और टाफी के लिए पैसे बाटकर मैं गौरांवित अनुभव कर रहा था कि मैं इन बच्चों की छोटी सी खुशी का हिस्सा बन रहा हूँ । लेकिन वह एक अंजान लड़का अपनी पढ़ाई से समय और पैसा निकाल कर इन बच्चों के सामाजिक उत्थान के लिए प्रयास रत है । यह एक छोटी सी शुरुआत ही सही पर बहुमूल्य प्रयास है और वह भी भी बिना किसी शोरशराबे के । निश्चय ही वह, इन गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल कराने के लिये सराहनीय योगदान देरहा है । उस स्त्री ने आगे बताया कि रविवार को उन बाबू के कुछ दोस्त लोग भी आते हैं जो इन्हें गाना बजाना भी सिखाते हैं । यह सुनकर मेरा सिर उन लोगों के लिए श्रद्धा से झुक गया कि हम सोचते ही रह गए और नई पीढ़ी के इन बच्चों ने इस नेक काम की शुरुआत भी कर दी है ।



 शरद कुमार श्रीवास्तव




"आओ तिरंगा फहराएँ" अर्चना सिंह जया का राष्ट्रगीत





 तन-मन केसरिया में रंगकर राष्ट्र प्रेम को अपनाएं, 


भगत,आजाद,सुखदेव,राजगुरु सा कर्तव्य निभाए।


 देशभक्ति गीत गाकर चल केसरिया फिर लहराएं।


नील गगन तले फिर से हम,आओ तिरंगा फहराएं।




सच्चाई, साहस,बलिदान,शांति  संदेश जग में पहुँचाएं,


तिरंगा थाम हाथ में डगर शहर,गाँव,विश्व में लहराएं।


"परोपकार ही परम धर्म है" मानवता का पाठ पढ़ाएँ।


 सद्कर्म कर वीर पथ पर चल,आओ तिरंगा फहराएं।




नीली चुनरिया-धानी चादर ओढ़ कृषक जन मुस्काएं, 


विभिन्नता में एकता का मशाल ले हिय में प्रेम जगाएँ, 


सूर्य चॉंद ही नहीं मात्र यहाँ पशु पक्षी भी पूजे जाएँ,


हर्ष उल्लास-उमंग विश्वास भर, आओ तिरंगा फहराएँ।






* अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद

गरम समोसा वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बालरचना



चुहिया रानी बना रही तब

गरमा   -   गरम   समोसा

चाय- नाश्ता   करने आए

जब    चुहिया   के  मौसा।


चूहे  राजा  ने  धनिये  की

चटनी      स्वयं      बनाई

गरम चायके साथ समोसे

चुहिया      लेकर    आई।


खाकर गर्म  समोसे मौसा

मन    ही    मन   मुस्काए

चुहिया को शाबाशी देकर

रुपए        बीस    थमाए।


चुहिया बोली मौसा इतना

क्यों   खर्चा    करते    हो

आशीषों की जगह हाथमें

पैसा     क्यों    धरते   हो।


सरपे हाथ फिराकर बोले

तब   चुहिया   के   मौसा

याद  रहेगा  मुझको  तेरा

गरमागरम        समोसा।


चूहे  राजा  बोले  चुहिया

बचा   न   एक   समोसा

मेरी चटनी मुफ्त खागए

तेरे        प्यारे      मौसा।

          


         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

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"सूरज दादा आओ ना" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 




सूरज दादा सूरज दादा, जल्दी से तुम आओ ना।
बहुत बढ़ा हैं जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।

गाय बैल अरु कुत्ता बिल्ली, ठंडी में वो भी रोते।
थर थर थर थर काँपे सारे, नहीं रात में वो सोते।।

लुका छुपी का खेल खत्म कर, अब आगे तुम आओ ना।
बहुत बढ़ा है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।

आग तापते हम तो सारे, घर अंदर घुस जाते हैं।
स्वेटर मफलर साल ओढ़ कर, गर्म हवा भी पाते हैं।।

कुत्ता बिल्ली सहमे बैठे, जाये कहाँ बताओ ना।
बहुत बढ़ा है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।

बेजुबान ये जीव जन्तु सब, ठंडी में मर जाते हैं।
किसे बताये अपनी हालत, रातों को चिल्लाते हैं।।

देखो हालत इनकी दादा, थोड़ा तरस दिखाओ ना।
बहुत बढ़ा है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"बादल" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना



बादल आये देखने, जंगल की हालात।
गिरते आँसू मेघ से, करते हैं फिर बात।।
करते हैं फिर बात, पेड़ सब ठूँठ पड़े हैं।
पौधे सारे नष्ट, सभी अब रूठ खड़े हैं।।
सुन जंगल की बात, मेघ फैलाये आँचल।
झूम उठे सब पेड़, धन्य वो करते बादल।।

भारी वर्षा हैं कहीं, कहीं तरसते लोग।
मानवता के कर्म का, करते सारे भोग।।
करते सारे भोग, काट जंगल अरु झाड़ी।
नहीं दिखे अब पेड़, सभी घर बनते बाड़ी।।
सुन धरती की बात, घिरे देखो जलधारी।
नहीं दिखे अब फूल, होय पीड़ा अब भारी।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बेबीलोन के झूलते बाग

 


ईराक के बगदाद  शहर  के पास विश्व  की विरासत  बेबीलोनिया स्थित  है यह प्राचीन काल  की सात विरासत मे से एक अपने झूलते बागो के लिए  मशहूर  है।   बेबीलोन इतिहास मे प्रसिद्ध वह स्थान है, जहाँ विश्व विजेता सिकन्दर की मृत्यु हुई थी। हम्मूराबी यहाँ का महानतम शासक था, जिसने विश्व प्रसिद्ध क़ानून संहिता का निर्माण किया, जो 'हम्मूराबी संहिता' के नाम से जानी जाती है। बेबीलोन के झूलते बाग़, जिन्हें 'सेमीरामीस के बाग़' भी कहा जाता है, वह विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है।


विभिन्न प्रकार के वृक्षों, झाड़ियों और लताओं के साथ सीढ़ीनुमा  बगीचों की एक चढ़ाई श्रृंखला के साथ इंजीनियरिंग की एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में वर्णित है यह मिट्टी ईंटों के बने एक बड़े हरे पहाड़ जैसा दिखता है, यह आज के इराकी नगर अल-हिल्लह के निकट स्थित था। इस उद्यान का निर्माण नबूचड्नेजार (अंग्रेजी : Nebuchadnezzar) द्वितीय ने ईसा से ६०० वर्ष पूर्व अपनी रानी के लिए  भव्य महल पैलेस ऑफ मैनकाइंड के साथ करवाया था।  कहा जाता है कि यह बगीचे जमीन पर नहीं थे बल्कि महल की छतों पर थे 75 फिट ऊ ईसा से २ शताब्दी पूर्व एक भूकंप मे यह महल और उद्यान पूर्ण रूप से नष्ट हो गया था।


(स्रोत अंतर्जाल) 

शरद कुमार श्रीवास्तव 

रविवार, 16 जनवरी 2022

"ठंडी का मौसम" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना



ठंडी का मौसम जब आये।
स्वेटर मफलर सब को भाये।।
भीनी-भीनी आग सुहाये।
ठंडी का मौसम जब आये।।

एक जगह पर सभी इकट्ठे।
मिलकर लाते लकड़ी लट्ठे।।
बच्चे बूढ़े बैठे सारे।
आग तापते लगते प्यारे।।

सरसर सरसर चली हवायें।
तन मन को ठंडी कर जाये।।
धूप बड़ी लगती है प्यारी।
देह सेंकते नर अरु नारी।।

शीत बूँद मोती बन आये।
बैठ धरा को वह हर्षाये।।
धुँधली सी बादल पर छाये।।
जब - जब मौसम ठंडी आये।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"यात्रा" "छन्न पकैया" : प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना




छन्न पकैया छन्न पकैया, यात्रा करने जाते।

मिलकर सारे बच्चे बूढ़े, खुलकर के मुस्काते।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, मन्दिर दर्शन पाते।

मनोकामना पूरे होते, जीवन खुशियाँ लाते।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, यात्रा सफल बनाते।

माँ के दर पर जा कर सारे, झोली को फैलाते।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, है जीवन की यात्रा।

गिनती की साँसे है चलती, होती इसकी मात्रा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, फँसते है सब माया।

यात्रा कर लो मन से साथी, माटी होती काया।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़


Priyadewangan1997@gmail.com



तितली वन में जाने दो : प्रभुदयाल श्रीवास्तव की  बा ल कविता

 





उनको दो पूरी आज़ादी, 


तितली वन में जाने दो।


पीली नीली हरी गुलाबी 


तितली वन में जाने दो।



      मत मारो मत पकड़ो इनको ,


      इनको भी तो जीना है।


      बढ़ने दो इनकी आबादी,


      तितली वन में जाने दो।



छेड़ छाड़ तितली से करना,


अब यह बड़ा जुर्म होगा,


बाबा ने करवाई मुनादी,


तितली वन में जाने दो।



      वरमाला लेकर आई है,


      दुल्हन बनकर सजी धजी,


      फूलों से होने दो शादी,


      तितली वन में जाने दो।



फूलों ने भी सत्य अहिंसा,


कोमलता का पाठ पढ़ा,


पहिनेगे गांधी की खादी,


तितली वन में जाने दो









प्रभुदयाल श्रीवास्तव 



१२ शिवम् सुंदरम नगर 



   छिंदवाड़ा  मध्य प्रदेश 



गुरुवार, 6 जनवरी 2022

नन्ही चुनमुन और यूनीकार्न

 




मम्मी  ने  देखा  कि  चुनमुन स्कूल से  आकर उससे बगैर  मिले या प्यार  किये त कमरे मे चली गई  है  ।   मम्मी  को  आश्चर्य  हुआ  कि  ऐसा  तो  कभी  नहीं होता था   ।   चुनमुन स्कूल  से घर  आकर  सबसे  पहले  वह  अपनी  मां  से  अवश्य  मिलती  है ।   मम्मी  कौतुहल-वश चुनमुन के  कमरे  में  गई।  मम्मी  को  वहाँ आया  देखकर चुनमुन  बोलने लगी  कि  मम्मी  मेरा यूनीकार्न  कहीं  मिल नहीं  रहा  है  ।   आज  पीहू के पास वैसा ही यूनीकार्न वाला पेन्सिल  बाक्स   था । मम्मी  कल ही  तो  मैं उससे खेली  थी और  उसके  बाद   वह  कहाँ चला  गया  पता  नहीं चल रहा  है इसीलिए  मै अपने  कमरे में उसे  तलाश  कर  रही  हूँ ।   यह  सुनकर  मम्मी  बोली कि  कितनी  बार  तुम्हें  समझाया  है  कि  अपना सब सामान खिलौने  संभाल  कर रखो और  खेलने या  इस्तेमाल  करने  के बाद  उसे  फिर  अपनी  जगह  पर  रख  दो   लेकिन  तुम  सुनती कहाँ हो।     यूनीकार्न  भी एलियन  की तरह ही होते है लगता है   तुम्हारा यूनीकार्न  पीहू का पेंसिल  बाक्स बन गया है ।   चुनमुन  इतना तो समझती थी  कि  खिलौने आला  यूनीकार्न  पेन्सिल वाला यूनीकार्न  नहीं बन सकता है 

 चुनमुन बोली मम्मी मै यह बात  नहीं कह रही हूँ बस उस पेन्सिल  बाक्स  को देखकर  मुझे मेरा यूनीकार्न  याद  आ गया था इसलिए  मै स्कूल  से आकर  उसे खोज रही हूँ । परेशान होकर अब मै  समझ गई  हूँ कि सब सामान  सही जगह रखना चाहिये ।   मै अब अपना सब सामान  इस्तेमाल करने  के  बाद  फिर  उसे  फिर  सही  जगह  पर  रखूँगी  ।   मैं  आपसे  प्रामिस करती हूँ ।   

 नन्ही  चुनमुन की यह बात   सुनकर  मम्मी  मुस्करायी ।  वह बोली,  यह लो तुम्हारा यूनीकार्न  !  अब  सब  सामान  ठीक  से  रखना ।   सबेरे  तुम्हारे  स्कूल  जाने  के  बाद   काम वाली  आन्टी  ने धोने वाले कपडों   में  से निकाल  कर  यह  मुझे  दिया था।    चुनमुन  खुश  हो  गई  और  मम्मी  के  गले  से  लग गई ।  



शरद  कुमार श्रीवास्तव 



बाल रचना/कुकडू कूँ! वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 


  मुर्गी यूं बोली मुर्गे से,

  चलते हैं बाजार,

  बच्चों के कपड़े लाने हैं,

  अपने लिए अचार।


  जोड़ रखे हैं मैंने देखो,

  रुपए चार हज़ार,

  कर दें चुकता पाई-पाई,

  चलकर सभी उधार।


  बड़ी सुहानी धूपखिली है,

  शीतल बही बयार,

  पहनो सारे कपड़े जानम,

  हो जाओ तैयार।


  नहीं चलेगा आज बहाना,

  कहती हूँ सौ बार,

  दाना-दुनका फिर चुगलेंगे,

  है, कल को रविवार।


  खेल खिलौने पा चूजों को,

  होगी खुशी अपार,

  उन्हें देखकर चहक उठेगा,

  अपना यह संसार। 


  अपने लिए कोट ले लेना,

  मुझे दिलाना हार,

  जिसे पहन कर हम बोलेंगे,

  कुकड़ू कूँ दिलदार।

         ------😊😊------



         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

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नया वर्ष! ----------------वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की रचना

 


नया वर्ष  लाए खुशियों के,

अनगिन     भरे      पिटारे,

शुभ संदेश  मिलें  रोजाना,

चमकें     भाग्य     सितारे।


रूठी खुशियां वापस लौटें,

लौटें        सभी      सहारे,

बीती बातें भूल  दिलों  के,

खोलें       नूतन        द्वारे।


हरपल हीआशीष बड़ों का,

आकर      तुम्हें       दुलारे,

रिद्धि,सिद्धि,समृद्धि सर्वदा,

होवे         साथ      तुम्हारे।

    --  💐💐💐💐--

  नव वर्ष 2022 की मंगल कामना के साथ।,,,,,,

        


             वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

              मुरादाबाद/उ.प्र.

   ठ           9719275453

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शामू 9

 


अभी तक :- 

शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।   उसका भिखारी  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिलने के कारण  वह साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा इत्यादि  कूड़े से बीनता है जिसको खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पहुँचता है गैरेज मे पहले उसे एक  चोर समझा जाता है परन्तु  उस बच्चे की दलील  और  अपनी आवश्यकता देखते हुए गैरेज  के मालिक इशरत मियाँ  उसे अपने गैराज मे काम पर रख लेते हैं

 इशरत उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश हो जाते हैं और शामू की पढ़ाई की इच्छा देखकर इशरत का  बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था ।  शामू बहुत  शीघ्र  जरूरत  भर की पढ़ाई लिखाई  सीख लेता है ।
नुसरत भी इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी करने चला गया और वह कुछ दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु घुमाने ले गया ।  उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ जब बंगलोर  से वापस आये तो शामू के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।  कुछ दिनो बाद एक  बीमारी से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे  शामू  हमेशा उनकी सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था .  इशरत मियाँ को बंगलोर  जाकर रहना  अपरिहार्य  लग रहा था अतः वे गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर अपन बेटे के पास सपरिवार बंगलोर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से उसका गैरेज चल निकला और अब वह अपने गैरेज का मालिक है.

शामू का गैरेज  छोटा था लेकिन  उसकी लगन अच्छे काम  मिलनसारिता और अच्छे व्यवहार  के कारण  आसपास  के गैरेजों मे लोकप्रिय  हो गया था। वे ग्राहक  जो पहले इशरत  मियाँ  के गैराज  से जुड़े  थे  वे  आ  रहे थे  औरों को भी अपने साथ  ला रहे थे।   गैरेज  दिनोंदिन  तरक्की कर  रहा था ।

शामू के पिता बिहारी शारीरिक  रूप  से काफी कमजोर  हो चले था ।   दूसरी जगह रहने से उसके खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी  ।  शामू अब सक्षम  हो चला था अत: वह जाकर अपने पिता को लेकर घर  आ गया।   बिहारी निराशा और कमजोरी से अधिक  परेशान  था ।  अपनी याददाश्त  पर भी उसका कम बस था ।   दादी काफी बूढ़ी होने के बाद  भी अपने काम  स्वयं कर लेती थी और अपनी बीमार  बेटे को भी सहारा देती थी ।    शामू गैरेज जाने से पहले खाना बनाकर  जाता था  ।   

शामू की झोपड़ी के पास के झोपडी मे  रहने वाली  मोहनी शामू के घर से अपरिचित नहीं थी।   बचपन  से ही मोहनी  शामू के साथ  खेलती थी और दादी के पास आती जाती रहती थी ।    एक दिन मोहनी ने देखा कि शामू की दादी बिस्तर  से नीचे लुढ़क कर  गिर पड़ी हैं और  बिहारी काका उन्हे उठाने की असफल कोशिश  कर रहे है तब मोहनी ने शामू की झोपडी  मे जाकर  दादी को उठाकर वापस बिस्तर  पर लिटाया ।  दादी और बिहारी मोहनी से खुश  हुए ।  मोहनी  शामू के गैरेज जाने के बाद  प्रायः शामू के पिता और  दादी को देखने आ जाती तथा घर को व्यवस्थित  कर आती थी।   मोहनी की माँ को यह  मालूम  था  और उसे खराब भी  नही लगता था उसे अपनी बेटी के लिए  एक  अच्छे वर की तलाश  थी वह शामू से अच्छा वर वह कहाँ से लाती ।   वह चाहती थी कि मोहनी धीरे इसी घर का हिस्सा बन  जाये । 

शामू जब गैराज  से लौट कर  आता तो घर व्यवस्थित  देखकर  उसे खुशी होती थी।  दादी से उसने पूछा तो पता चला कि मोहनी  उसके पिता और  दादी का ख्याल  रखती है ।   एक दिन  मोहनी को शामू कः पिता बिहारी ने बताया कि जहाँ रहता था वहाँ एक दुकानदार  के पास  वह अलग से कुछ पैसे जमा कर  देता था  शामू को उसके बारे मे कुछ  नहीं बता पाया है।  इतना बताने के बाद  वह बेहोश  हो गया।

आगे अगले अंक मे

शरद कुमार श्रीवास्तव 




नव वर्ष 2022

 




नव वर्ष आगंतुक का कर स्वागत बाहें फैला 


गत वर्ष के गिलेशिकवे से न रखना कोई सिला।


 कल तो हो गया स्वप्न, नव कल को कर शीश नमन 


उम्मीदों-विश्वास,उल्लास-उमंग से चल भर ले दामन।


 संयम,संकल्प और नव विचार का कर समर्पण 


तिमिर चीरता नव प्रभात से सजा ले धरती-गगन। 


पल पल गुज़रते लम्हों में, खोज ले मुस्कुराता जीवन 


गीत संगीत से सजाकर, ले जीवन का भरपूर आनंद।


सुख-दुःख से परे मधुरिम रस भरता चल आजीवन 


चहकता महकता उपवन से सजता रहे जीवन प्रांगण।


🙏😊🙏

* अर्चना सिंह जया,    

गाजियाबाद।

"नया वर्ष 2022



नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे।
हुये गिले शिकवे है जो भी, उनको दूर भगायेंगे।।

है इंसाने एक बराबर, फिर क्यों पीछे जाते हो।
जाति धर्म का भेद बताकर, छोटी सोंच बनाते हो।।

पढ़ी लिखी यह सारी पीढ़ी, इक पहचान बनायेंगे।
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे।।

बैठे रहते सड़क किनारे, वो भी तो भूखे होते।
वर्ष नया उनका भी आता, लेकिन क्यों वह है रोते।।

आओ साथी सारे मिलकर, हम भी आज हंँसायेंगे।
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे।।

देखो मानव की आजादी, पार्टी भी सभी मनाते।
पी कर दारू खा कर मुर्गा, यहाँ गंदगी फैलाते।।

आज नया हम प्रण लेते हैं, मिलकर इसे मिटायेंगे।
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे।।


प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com