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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : गर्मी आई







आई गर्मी भाईआई गर्मी
लू उड़ाती भाई आई गर्मी
ऐ सी कूलर चलते जाते
पंखे कभी न रुकने पाते
हर पल यहाँ पसीना आता
गरमी से है दिल घबराता
कैसा कहर मचाती आई
बड़ी भयानक गर्मी आई

नानू आप बेकार डरवाते
गर्मी का लुत्फ नहीं उठाते
कुल्फी हमे गर्मी मे मिलती
आइस क्रीम गर्मी मे मिलती
खरबूजा आम गर्मी मे आता
तरबूज लीची हमे लुभाता
किताबों से छुटकारा पाते
स्कूल भी तो बन्द हो जाते


                             शरद कुमार  श्रीवास्तव 

मेरा सपना :बेबी संस्कृति की रचना




मै सोचती हूँ  कि अगर  कोई  जलपरी सच मे होती  तो मैं  उसे  अपना दोस्त  बनाती और उसके  साथ  समुद्र  में  खेलती और मेरे पास भी  उनके  जैसी पतवार नुमा  पूँछ होती   ।   मुझे  जलपरी के  महल को देखने  का  बहुत  मन होता है ।  मैं  जानती  नही  हूँ  कि  कैसे  पता करूं कि वास्तव  में  जलपरी होती है  कि नही ।    मैने अपने  सभी  साथियो  से  पूछा ! क्लास  टीचर  से  भी  पूछा ! लेकिन  वे सब मेरी बात का  मजाक  बना देते है ।

कल रात को  सचमुच  मै जलपरी के  महल मे अचानक  ही  पहुँच  गई ।  गई तो मै अपनी  बुआ जी  के  घर  के  पास बने स्वीमिंग पूल मे  थी लेकिन कैसे मै जलपरी के  महल में  पहुंच  गई  मुझे खुद  भी  नहीं  मालूम  पडा ।  खूब सुन्दर  कोरल का बना जलपरी  का महल था।  सुन्दर सुन्दर  मछलियाँ  महल के  आसपास घूम रही थीं शायद वे महल की  सुरक्षा  या महल से जुडे अनेक काम कर रही थी ।   जलपरी  मेरा  हाथ पकड कर  जलपरी- लोक घुमा रही थी।   जल सेवार  का  पार्क था ।  बड़ी  सी शार्क  जलपरी की कार थी ।   मेरा हाथ  पकड़ कर  जलपरी ने  मुझे  शार्क की  पीठ   पर बैठाकर   समुद्र की  खूब सैर करायी  ।   समुद्री  घोड़ा,  ऑक्टोपस  स्टार  फिश आदि  मुझे  दिखाया ।  तबतक  मुझे  थकान लगने लगी  थी ।  ऑक्सीजन  की कमी महसूस  हो रही थी ।   जलपरी समझ गई थी  वह मुझे  अपने ऑक्सीजन  के   प्लान्ट में  ले गई।   उसी जगह पर  बहुत सी सीप  मोती बनाने का काम  कर रही थी ।   इन मोतियों  का  वह  व्यापार  करती थी ।     मै अभी  और जलपरी के  साथ बिताना चाह रही थी  कि  मम्मी  ने  प्यार से  मुझे  उठाया  बोलीं कि कितनी  देर तक सोती रहोगी , बहुत  दिन निकल आया है।


                         संस्कृति  श्रीवास्तव
                          कक्षा  3
                          सुपुत्री स्तुति  एवं  संजीव  श्रीवास्तव


गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

प्रिया दिवांगन की रचना।:मौसम में बहार आई







ऐसा दिन आया है 

गर्मी में भी पानी लाया है।

जब उगना था धूप ,

तब बरसात आया है ।

कुदरत का करिश्मा तो देखो ,

कुलर पंखा चलाने के दिनों में 

साल स्वेटर निकलवाया है।

ऐसा दिन आया है।

सूखे के दिनो मे हरियाली है छाई ।

गरज गरज कर बादल पानी है लाई ।

सोंधी सोंधी माटी की खुशबू ,

सबके दिलों को महकाई ।

किसान खुश हुआ ,

मौसम में बहार है आई।

बाग  बगीचे है हरा भरा ,

सब तरफ हरियाली है छाई ।

मौसम में बहार है आयी।

पेड़ पौधे हो गये हरा भरा ,

पेड़ोें में  पत्ती है आयी ।

हरा भरा सब देखकर 

मन मे खुशियाँ समाई ।

पानी की बूँदें देखो ,

मिट्टी की खुशबू है आयी ।

मौसम में बहार है आयी।

ओले  गिरा धरती पर ,

मोती जैसे चमक रही ।

अंधियारी के दिनों में 

अपनी रौशनी बिखेर रही।

सब जगा बर्फ बारी हो रही

कुदरत अपनी करिश्मा दिखा रही ।

सुखी सुखी धरती पर 

मोतिया है आयी ।

मौसम में बहार है आई।

बिजली चमक रही है

मौसम अंगड़ाई ले रही है ।

मेंढक की आवाज 

खेतों मेंआयी ।

मौसम में बहार है आई।








                           प्रिया देवांगन "प्रियू"

                           पंडरिया  (कवर्धा )

                            छत्तीसगढ़ 

priyadewangan1997@gmail.com






मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : रामू की लगन




नीलम अपने बेटे रामू के साथ एक छोटे से घर मे रहते थे |   नीलम सब्जी बेचकर अपने घर का खर्चा चलाती थी |
रामू स्कूल जाता था और शाम को स्कूल से वापस आकर मां के काम मे मदद करता था |
रामू कुशाग्र बुद्धि का बालक था |   एक बार जो पढ़ लेता याद हो जाता था |   मां ने भी उसकी पढ़ाई के लिये सब सुविधायें जुटा दी थीं |
     समय बीतता गया |   अब वो समय आ गया जब १२वीं की बोर्ड परीक्षा आरम्भ होने वाली थी |    रामू जी जान से पढाई मे जुटा हुआ था |
      धीरे धीरे वो दिन भी आ गया जब परिणाम घोषित होनेवाला था |
रामू सुबह से ही internet खोल के बैठा था |परिणाम आते ही वह खुशी से उछल पड़ा |९५ प्रतिशत नं आये थे | सबसे पहले उसने मां के पैर छूकर  आशीर्वाद लिया |
       स्कूल मे भी सब अध्यापकों ने उसे ढेरों आशीर्वाद दिये |
      स्कूल की तरफ से उसे छात्रवृत्ति दी गई |
     अब उसका लक्ष्य था IAS बन  कर देश की सेवा करना |
    अतः वह सारी दुनिया से बेखबर होकर अपनी पढ़ाई मे जुट गया |
    मेहनत रंग लाई और उसने बहुत अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण की |
      आज वह एक ऑफिसर बन चुका था |
      दूसरे दिन समाचार पत्रों मे बड़े अक्षरों मे लिखा था " एक सब्जी बेचने वाली के बेटे ने IAS परीक्षा उत्तीर्ण करके देश का नाम रोशन किया |"
      रामू की ज़िन्दगी ही बदल गई |

     सबसे पहला काम उसने अपनी मां को वह सारी सुविधायें प्रदान की जिसकी वह हकदार थीं |
     

बच्चों, अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे सच्ची लगन का होना बहुत जरूरी है |     सफलता अमीर, गरीब नहीं देखती, जो मेहनत करेगा वही सफल होगा |



                            मंजू श्रीवास्तव, हरिद्वार

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

संकलित चुटकुले : शरद कुमार श्रीवास्तव




चुटकुले
1  एक छोटा  बच्चा  अपनी  मां  और  नवजात  भाई के   साथ अस्पताल  गया ।  माँ  ने नवजात शिशु  को  डाक्टर  को  दिखाया  तब डाक्टर  बोले दो टेस्ट होंगे ।  इसपर छोटा  बच्चा  रोने  लगा और बोला कि बेबी  तो अभी बोल भी नहीं  पाता है टेस्ट कैसे देगा।
2    टीचर — किशोरी इस का अनुवाद करो ” उसने अपना काम किया और करता  ही गया
किशोरी — ही डन हिज वर्क डन डना ड़न ड़न..
3   अंग्रेज़ —  हमारे यहाँ लड़के ईमेल से शादी करते हैं।
मन्तू —   लेकिन हमारे यहाँ लड़के तो फीमेल से  शादी करते हैं।
4   टीचर —  कुशल , बताओ एक फील्ड को 8 आदमी 2 दिनों में तैयार करते हैं।   उसी फील्ड  को  4 आदमी       कितने दिनों में तैयार करेंगे।
कुशल — क्यों मज़ाक कर रहे हैं सर , तैयार फील्ड को फिर क्यों तैयार करेंगे।
5     टीचर —  राधे तुम्हारे पापा 5000 रुपये को 10 % ब्याज की दर से 500 रुपया प्रतिमाह के हिसाब  से        कितने दिनों में वापस करेंगे।
      राधे —    जी कभी नहीं।
      टीचर —  तुम साधारण सा सवाल नहीं जानते।
     राधे —  सर आप मेरे पापा को नहीं जानते



                       शरद कुमार  श्रीवास्तव

शरद कुमार श्रीवास्तव की बाल कथा : वफादार





लालबिहारी  को  अपनी माँ का बाहर का काम  करना पसंद  नहीं  है  । उसकी  माँ  रोज सबेरे लालू  को उसकी  दादी के पास  छोड़कर  अपने पति के  साथ  मजदूरी  करने  के  लिए  चली जाती है ।   लालू  अपनी  दादी  के  साथ  दिन भर  खेलता रहता  है  परन्तु सरे शाम  अपनी  माँ  के काम  से  वापस  आने  के  समय  से  कुछ पहले  से  ही  झोपड़ी  के  दरवाजे  पर छुपकर  खड़ा  हो  जाता है  ।   जैसे ही  उसके  माता पिता घर  वापस  आते  तो लालू  उनसे  चिपक जाता है  ।


लाल बहादुर  के  माता पिता   काम से  लौटते समय  लालू के लिये कुछ न कुछ,  खाने  के  लिए  लेकर  आते हैं ।  वह बहुत  चाव से खाता है , लेकिन  उसका कुछ  हिस्सा उसके  घर के बाहर  खडे टामी कुत्ते  को  भी  देता है ।   टामी से लालू की बहुत  दोस्ती  है ।   टामी को भी लालू के माता पिता के  आने की  प्रतीक्षा  रहती है  और वह  उन लोगों  के  आते ही दुम हिलाकर  अपनी खुशी प्रदर्शित करता है ।   लाल बहादुर की दादी  को लेकिन  लालू की टामी से दोस्ती  अच्छी  नही लगती है ।   उन्हें  लगता  है  कि  कही टामी  छोटे  बच्चे  को  काट न ले। वह इसलिए   एक छड़ी लेकर   टामी को भगाया  करती  हैं  ।   लाल बहादुर  लेकिन टामी के साथ  मिलकर  खेलना बहुत  अच्छा  लगता  है   ।  वह   टामी के साथ  सड़क पर दौड़ता  रहता  है  और   किनारे  बने पार्क तक भाग कर  पहुंच  जाता है    ।


एक दिन रोज  की  तरह  सड़क पर लाल बहादुर  खेल रहा था  कि  सड़क  पर  एक  पतंग  कही से कट कर  आ गई ।    रंग  बिरंगी  पतंग  को पकड़ने  के लिए  लालू दौड़  पड़ा  ।   इस भाग  दौड़  में  वह सड़क  के  किनारे  खड़ी  एक गाडी से टकरा  कर  गिर  पड़ा  ।   लालू को  चोट  आ गई   ।  उसके  खून  बह रहा  था  और वह  चल नहीं  पाया रहा था  ।  टामी भौंकते  हुए  लालू  के  घर जाकर  वहाँ   से  उसकी दादी  को कपड़े  से  पकड़  कर अपने  साथ   ले आया ।     दादी लाल बहादुर  को गोद  में  लेकर  घर ले आयीं ।  अब दादी  को समझ  में  आ  गया कि कुत्ते अकसर  वफादार  होते हैं ।






                                   शरद  कुमार  श्रीवास्तव

महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना। : बैर भाव को छोड़ो



बैर भाव को छोड़ो प्यारे, हाथ से हाथ मिलाओ ।

चार दिन की जिन्दगी में, दुश्मनी मत निभाओ ।

क्या रखा है इस जीवन में, खुशियों से जीना सीखो ।

बनो सहारा एक दूजे का, तुम नया इतिहास लिखो ।

न होना निराश कभी तुम, मंजिल तुम्हे जरूर मिलेगी ।

अगर इरादा पक्का है तो, जरूर नया कोई गुल खिलेगी ।

माटी के इस जीवन को , सार्थक तुम करना सीखो ।

ऐसा कोई काम करो तुम, भीड़ भाड़ से हटकर दिखो ।




                      महेन्द्र देवांगन "माटी"

                     पंडरिया (कवर्धा )

                     छत्तीसगढ़ 

वाटसप नंबर 8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com



मंजू श्रीवास्तव की कहानी : सफलता का मूल मंत्र.... कड़ी मेहनत




रीमा गोपाल की इकलौती बेटी थी | बचपन से ही काफी होशियार थीI. पढ़ाई से ज्यादा उसकी खेल मे रूचि थी |   बैडमिन्टन का खेल उसे बहुत पसन्द था |
एक दिन पापा से बोली, पापा, मुझे भी बैडमिन्टन सेट चाहिये | दूसरे दिन ही बैडमिन्टन सेट आ गया | गोपाल रीमा की हर इच्छा पूरी करना चाहता था|  उसे किसी प्रकार का अभाव न होने पाये |    बैबैडमिंटन  का सेट पाकर रीमा बहुत खुश  हुई |  वह रोज शाम को अपनी सखियों के साथ खेलने निकल जाती |
    हाथ मे बैडमिन्टन का  रैकेट लेकर, अब वो बड़े बड़े सपने देखने लगी कि बड़ी होकर मैं भी साइना  नेहवाल, पी.वी सिन्धु बनूँगी|   धीरे धीरे उसके खेल मे निखार आने लगा | स्कूल मे भी खेल शिक्षिका उसकी बहुत तारीफ करतीं थीं  |
     दिन बीतते गये | अब रीमा नवी कक्षा की छात्रा थी | गोपाल की आर्थिक स्थिति देखते हुए  और स्कूल में भी प्रधानाध्यापिका जी ने रीमा का बैडमिन्टन की तरफ अत्यधिक रूझान देखते हुए  रीमा को एक अनुभवी कोच की देख रेख मे प्रशिक्षण दिलवाना आरम्भ कर दिया | कोच की देख रेख में रीमा के खेल मे दिन पर दिन निखार आने लगा |
अब उसने राजकीय स्तर की प्रतिस्पर्धा मे भी भाग लेना शुरू कर दिया |   उसने बैडमिंटन  की कई स्पर्धाओं मे पुरस्कार भी जीते | इससे रीमा का मनोबल बढ़ता गया |
  उसने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया कि हर हाल में उसे olympic में स्वर्ण पदक जीतना ही है |
रीमा अपने सपने को साकार करने के लिये जी जान से जुट गई |
  कोच ने भी रीमा का समर्पित भाव देखकर उसे शिक्षित करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी |
     दिन बीत रहे थे और olympic आरम्भ होने में सिर्फ चार दिन शेष थे |
    रीमा का जोश बुलंदियों को छू रहा था |
   आखिर वो दिन भी आ गया |स्वर्ण पदक जीतने के लिये उसने पूरी ताकत झोंक दी थी |
    कई सीढ़ियां चढ़कर रीमा आखिर फाइनल तक पहुँच गई | दर्शक सांस रोके देख रहे थे | क्या होने वाला है?
  मैच आरम्भ हुआ |  पहला सेट जीता, फिर दुसरा जीतकर फाइनल मैच जीत लिया रीमा ने | तालियों की गड़गड़ाहट से सारा माहौल गूँज उठा |
   रीमा नेolympic मे स्वर्ण पदक जीता था |
   गोपाल ( एक ऑटो चालक )खुशी से फूला नहीं समा रहा था | आज उसकी बेटी ने देश का नाम जो रौशन किया था |
रीमा ने अपनी कड़ी मेहनत से अपने सपने साकार किये थे |
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बच्चों अपने लक्ष्य को पाने के लिये 
कड़ी मेहनत जरूरी है | सफलता का कोई short cut नहीं होता है  |


                               मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

राम नवमी : शरद कुमार श्रीवास्तव कक्षा







रामनवमी का त्योहार देश भर मे बड़ी धूमधाम से मनाया गया . इस दिन भगवान रामचन्द्र का जन्म दिन के बाारह बजे हुआ था..
गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस मे श्री रामचन्द्र जी के जन्म को कुछ इस प्रकार से वर्णित किया है.
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता .

अर्थात   चारो हाथो मे शंख चक्र गदा धनु लेकर भगवान रााम काजन्म हुआ माता की प्रथनाा पर वह शिशु बनकर रोने लगे.  भगवान राम को भगवान विश्नू का अवतार मानते है जो धरती पर रीवण और उस जैसी तमाम आसुरी शकक्तियों के नाश के लिये हुआ था.   मानव जन्म लेकर. भगवान मानव की मर्यादा का प्रतीकरूप बनकरमर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाऐ.
भगवान राम का जन्म हर वर्ष के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को नवरात्रि के तुरंत बाद मे मनाते हैं  श्री राम, अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ और उनकी बड़ी रानी कौशल्या के पुत्र थे ।  दशरथ की बाकी दो रानियों केकयी और सुमित्रा से तीन पुत्र क्मशः लक्षमण भरत शत्रुघन थे. भगवान राम इन सबमे सबसे बड़े थे . राजा दशरथ की छोटी रानी केकई स्वयं बहुत बहादुर थी एक बार राजा के रथ का पहिया का धुरा निकल गया उसी समय रानी ने धुरे की जगह उंगली डाल कर राजा के रथको संभाल लिया था राजा ने उनसे कुछ वरदान ( गिफ्ट) माँगने को कहा तब रानी ने कहा समय आने पर माँग  लूंगी।    बाद मे जब राजा दशरथ ने राम को अपने उत्तराधिकारी के रूप में राम को राज्य सौंपना चाहा तो महारानी कैकेई ने अपनी दासी मन्थरा के कहने पर राजा से अपने पुत्र भरत के लिये सिहासन और राम चन्द्र जी के लिये चौदह वर्षों का बनवास माँग लिया ।  उसके बाद पुत्र बिछोह में राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए और राम को बनवास जाना पड़ा जहां उन्होंने  असुर रावण का वध किया  ।
यह सब दैव रचित था ताकि राम आसुरी शक्तियों का नाश कर सकें।।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

डॉ प्रदीप शुक्ला की बालकविता :आदमघर










झाँक रही नन्ही सी चिड़िया 

घर के अन्दर ऐसे 

चिड़ियाघर में झांकें हम 

नन्ही चिड़ियों को जैसे 



बड़े जानवर मगर भला 

क्यों धीरे धीरे चलते 

चलते क्या बस हौले हौले 

यहाँ से वहाँ सरकते 



छोटे से दड़बे में जाने 

कैसे ये रह लेते  

साँस छोड़कर वही साँस 

वापस फिर से ले लेते  



मन चाहा आकाश नापने 

का सुख ये क्या जानें 

इतना बड़ा शरीर भला 

ये कैसे उड़ें उड़ानें 



धन्यवाद भगवान तुम्हारा 

मुझको पंख लगाया  

इस दड़बे के बंधन से 

मुझको आज़ाद कराया 



पर इनके संग तुमने जाने 

क्यों की नाइंसाफ़ी

बड़े जानवर छोटे घर में 

जगह नहीं है काफ़ी 



' आदम घर ' को देख के मेरा 

मन अजीब सा भैय्या 

ऐसा ही कुछ मन में बोले 

बैठी हुई चिरैय्या.



                                  डॉ. प्रदीप शुक्ल 

  

मंजू श्रीवास्तव का बालगीत:  गर्मी आई, गर्मी आई


गर्मी आई, गर्मी आई,

तेज धूप और पसीना लाई |

सर पे सूरज चढ़ता जाता,

और आसमान से,

आग के गोले बरसाता |

टप टप टप टप पसीना बहता,

पल भर को भी चैन न मिलता |

फिर चल जाते पंखे ए. सी

गर्मी की हो जाती ऐसी की तैसी |

आओ बच्चों हम सब मिलकर कुल्फी खायें,.

और आइसक्रीम का भी आनन्द उठायें |

ठंडा पानी और ठंडाई पीकर,

हम सब अपनी प्यास बुझायें |

और गर्मी रानी को दूर भगायें |



                             मंजू श्रीवास्तव 
                             हरिद्वार

प्रिया देवांगन प्रियू का छत्तीसगढ़ी बाल गीत : गरमी आगे








आमा टोरे ल जाबो संगी ,

गरमी के दिन आये ।

 गरम गरम हावा चलत ,

कइसे दिन पहाये ।

नान नान लइका के ,

 होगे जी परीक्षा ।

मंझनिया भर घूमत हे ,

चड्डी पहिर के दुच्छा ।

ए डारा से ओ डारा मे ,

बेंदरा सही कूदथे ।

अब्बड़ मजा करथे लइका ,

पेड़ में अब्बड़ झूलथे ।

आइसक्रीम वाला आथे ,

अऊ पोप पोप बजाथे ।

लइका मन ल देख देख के 

अब्बड़ गाना गाथे ।


                             प्रिया देवांगन " प्रियू "

                             पंडरिया , छत्तीसगढ़ 

अब्बड़= बहुत
मंझधार = दोपहर