ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

संकलित चुटकुले 😅😅😅😅😅





1. रामू (मैथ के सर से)- सर इंगलिश के सर अंग्रजी मे बात करते हैं आप क्या मैैथ मे बात नही कर सकते हैं?
मैथ के सर- रामू ज्यादा तीन पाँच नहीं करो, फौरन नौ दो ग्यारह हो जाओ वरना कान के नीचे पाँच रसीद करूंगा कि छठी का दूध याद आ जायगा
2. कमरे मे मच्छर काट रहे थे मम्मी ने मच्छरदानी लगा कर लाइट बुझा दिया. एक जुगनू किसी तरह मच्छरदानी मे घुस आया तो आशी बोली मम्मी
 मच्छर यहाँ हमे टार्च लेकर ढूढने आया है़
3. बच्चो को पढाने के लिए रखे जाने वाले टीचरों का इन्टरव्यू चल रहा था एक प्रत्याशी से पूछा गया बच्चों के साथ का आपको क्या अनुभव है ?
प्रत्याशी बोला, जी अच्छा अनुभव है ,कल तक मै भी बच्चा था.

4.मोहन — राम चन्द्र जी, ईसा मसीह, गुरुनानक और गांधी जी में क्या समानता है?
सोहन — वेरी सिम्पल ये सब छुट्टी के दिन ही पैदा हुए थे । 😁😁😁

5.शौर्य — कल्पना करो कि तुम चौथी मंजिल पर हो और एक चील तुम पर झपटने वाली है । तुम पहले क्या करोगे ।
आयुष — सबसे पहले मैं कल्पना करना बंद कर दूँगा । 😅😅😅😅😅

                        संकलन  कर्ता

                      शरद  कुमार  श्रीवास्तव 


महेंद्र देवांगन की छत्तीसगढ़ी रचना: नवा साल मुबारक हो



बड़े मन ल नमस्कार, अऊ जहुंरिया से हाथ मिलावत हों ।

मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो ।

पढहैया के बुद्धि बाढहे , होवय हर साल पास ।

कर्मचारी के वेतन बाढहे , बने आदमी खास ।

नेता के नेतागिरी बाढहे , दादा के दादागिरी ।

मिलजुल के राहव संगी , झन होवव कीड़ी बीड़ी।

बैपारी के बैपार बाढहे , जादा ओकर आवक हो ।

मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो ।

किसान के किसानी बाढहे , राहय सदा सुख से।

मजदूर के मजदूरी बाढहे , कभू झन मरे भूख से ।

कवि के कविता बाढहे , लेखक के लेखनी ।

पत्रकार के पत्र बाढहे , संपादक के संपादकी ।

छोटे छोटे दुकानदार मन के, धन के सदा आवक हो ।

मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो ।

प्रेमी ल प्रेमिका मिले,  बेरोजगार ल रोजगार ।

रेंगइया ल रददा मिले , डुबत ल मददगार ।

बबा ल नाती मिले , छोकरा ल छोकरी ।

पढ़े लिखे जतका हाबे , सब ल मिले नौकरी ।

अच्छा अच्छा दिन गुजरे,  ये साल ह लाभदायक हो ।

मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो ।


                       महेन्द्र देवांगन माटी 

                     पंडरिया 

                     जिला -- कबीरधाम  (छत्तीसगढ़ )

                    8602407353

mahendradewanganmati@gmail.com



सपना मांगलिक का बालगीत आलू बैंगन




आलू अकड़ दिखा के बोला

गुण नहीं तुझमे बैंगन भाई

चिढ़ कर बैंगन भी गुर्राया

आलू ये तोंद कहाँ से पायी

चिकचिक सुनकर आई दादी

पकड़ कान आलू बेंगन के

काटा धोया सब्जी बना दी।




                      सपना  मांगलिक 
                     आगरा



मंजू श्रीवास्तव की रचना : सूरत से बड़ी सीरत



     सुनील एक मेधावी छात्र था। हर कक्षा मे अव्वल आता था
। लेकिन वह अपनी कक्षा मे हमेशा सबसे पीछे वाली सीट पर ही बैठता था।इसका कारण था कि वह गहरे सांवले रंग का था। अपनी हीन भावना को छुपाने के लिये वह सबसे पीछे ही बैठना पसन्द करता था।

कक्षा के सभी छात्र उसे last bencherया कालिया कहकर चिढ़ाया करते थे।पर वह इन सब बातों की तरफ ध्यान नहीं देता था बस अपनी पढ़ाई मे जुटा रहता था।

कक्षा मे बस उसका एक ही सहारा था। कक्षा की class teacher नीरजा  सुनील को बहुत प्यार करती थीं। नीरजा जी गणित की शिक्षिका थीं। गणित मे तो सुनील के शत प्रतिशत नम्बर आते थे। नीरजा जी का पूरा सहयोग उसे प्राप्त था

   धीरे धीरे समय बीतता चला गया। सुनील अब १२वीं कक्षा मे था।  अब वह बोर्ड की परीक्षा की तैयारी मे जुट गया। उसके हौसले बुलंद थे। नीरजा जी का पूरा सहयोग जो मिल रहा था उसे। चारों तरफ से ध्यान हटाकर पढ़ाई और सिर्फ पढाई। उसका लक्ष्य था कि हर हालत मे India मे top करना है।
       परीक्षा का दिन नज़दीक आ गया। सुनील  के पेपर्स अच्छे ही गये थे। वह बिल्कुल निश्चिन्त था। 
       आखिर वह दिन भी आ गया जब परीक्षा परिणाम घोषित होना थसे 
       सुनील सुबह  जल्दी उठ गया। 
Internet पर परीक्षा परिणाम देखा।
खुशी से उछल पड़ा।
       दौड़ता हुआ वह अपनी आंटी( नीरजा) के घर पहुँच गया।  दरवाजे की घंटी बजाई। आंटी ने दरवाजा खोला।दरवाजा खुलते ही सुनील नीरजा जी के पैरों से लिपट गया और आँखों से झर झर  आँसू बहते जा रहे थे।
नीरजा जी ने उसे उठाया  और गले से लगा लिया।
सुनील  बोला  ' आंटी यदि आपने मेरा हौसला नहीं बढ़ाया होता तो आज मै इस मुकाम पर नहीं पहुँच पाता। मुझमें हीन भावना घर करती जा रही थी।
नीरजा ने कहा "बेटे यह तो तुम्हारी मेहनत थी, लगन थी जो तुम्हें यहाँ तक लाई है।" मैने तो सिर्फ रास्ता दिखाया।
सुनील ने अपने मात पिता को नीरजा  जी से मिलवाया। नीरजा जी से मां ने कहा आपने मेरे बेटे की ज़िन्दगी बदल दी। ये तो  गुम सुम हो गया था। मेरे बेटे ने हमारा मस्तक गर्व से उँचा कर दिया है।
दूसरे दिन स्कूल के प्रधानाध्यापक जी ने प्रार्थना कार्यक्रम मे ही सुनील को  छात्रवृत्ति प्रदान की एवं सभी शिक्षकों ने आशीर्वाद दिये।

नीरजा जी ने  छात्रों से कहा   बच्चों
जीवन मे सफलता पाने के लिये अच्छी सूरत की जरूरत नहीं होती।
अच्छे गुण, अच्छा व्यवहार व सद्बुद्धि से महान बना जाता है।



                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

शनिवार, 16 दिसंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : दोस्ती



    विपुल और वीरू  आपस मे बहुत गहरे दोस्त थे।  दोनो एक ही होस्टल मे पर अलग अलग कक्षा मे पढ़ते थे। रूम भी अलग अलग थे।  एक दिन भी एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह सकते थे।
      दिन बीत रहे थे। एक दिन बड़ा हादसा हो गया। विपुल बाजार जा रहा था साइकिल से।पीछे से  तेज  रफ्तार से आती हुइ कार ने विपुल की साइकिल को जोरदार धक्का मारा। वह सड़क पर गिर पड़ा। सिर मे काफी चोट लगी थी। बहुत खून निकल गया था। तुरत अस्पताल पहुँचाया गया।
        वीरू को जैसे ही पता लगा दौड़ता हुआ अस्पताल पहुँचा। विपुल की हालत देखकर बहुत दुखी हो गया। डॉक्टर ने कहा घबराने की कोई बात नहीं।
       खून चढ़ाने की जरूरत थी। विपुल का blood group rare था। लेकिन वीरू ने डा. से कहा कि उसका खून विपुल के blood group से match करता है। उसका खून लेकर विपुल को चढ़ाया गया।
         धीरे धीरे विपुल की हालत सुधर रही थी। वीरू ने दिन रात एक करके विपुल की सेवा की।उसका हौसला भी बढ़ाता रहा।
         वीरू की सेवा की बदौलत विपुल शीघ्र स्वस्थ हो गया।
          स्वस्थ होने के बाद सबसे पहले वपुल ने वीरू को गले से लगाकर उसका शुक्रिया अदा किया। वीरू ने कहा ये सब क्या है। दोस्ती मे शुक्रिया, अहसान,धन्यवाद जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती । एक बात बता यदि मै तेरी जगह होता तो तू क्या मुझे यूं ही छोड़ देता ?
        दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खुशी के  आँसू बह निकले।
      दोस्ती हो तो ऐसी जो एक दूसरे के लिये मर मिटने को तैयार हों।


                             मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
  

तान्या सिंह की बालकथा ईमानदारी का पुरस्कार


तान्या सिंह  कक्षा 9 ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल, सैक्टर 46 की  बाल कथा जो 6 जून 2017 को प्रकाशित  की गई  थी  उसे  पुनः  प्रकाशित  किया  जा  रहा  है ।
संपादक 

                       


  शाम का समय था। मुंबई शहर की सड़कों पर बसों, टैक्सियों और लोगों की बहुत भीड़ थी। रघुराय सेठ अपने आॅफिस से निकलकर घर लौटने के लिए अपनी कार में बैठने लगे। उस समय उनका बटुआ जेब से गिर गया, किंतु उन्हें इसका पता न चला। वे कार में बैठकर चल दिए। उसी समय दिनेश नाम का एक गरीब विद्यार्थी स्कूल से अपने घर लौट रहा था। उसने वह बटुआ देखा ओैेर फौरन वह बटुआ उठा लिया। घर पहॅंचकर उसने बटुआ खोलकर देखा तो उसमें बीस हज़ार रुपये थे। पल भर के लिए टी.वी., साइकिल आदि खरीदने और मौज़- उड़ाने के विचार उसके मन में आ गए, पर उसका दिल न माना।
उधर सेठ ने घर पहॅंुचकर बटुआ ढूॅंढा पर उसे बटुआ नहीं मिला। दूसरे दिन दिनेष स्कूल में जाकर हैडमास्टर जी से मिला। उसने उन्हें सारी बात बताई और वह बटुआ हैडमास्टर जी को दिया। हैडमास्टर जी बहुत खुश हुए और अन्होंने बटुए के बारे में समाचार पत्रों में खबर छपवा दी। यह खबर पढ़कर सेठ जी स्कूल में आकर हैडमास्टर जी से मिले। उचित प्रमाण पाकर हैडमास्टर जी ने वहं बटुआ सेठ जी को दे दिया। दिनेश की ईमानदारी पर सेठ जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने पुरस्कार के रूप में दिनेश की उच्च शिक्षा पूरी करवाने की ज़िम्मेदारी ली। 
  दिनेश ने जब अपनी शिक्षा पूरी कर ली, तब सेठ जी ने उसे अपने घर बुलाया और सम्मान के साथ अपने आॅफिस में उसे मैनेजर के पद पर नियुक्त किया। दिनेष ने भी ईमानदारी और लगन से बहुत तरक्की की।

                         लेखिका - तान्या सिंह
                         कक्षा नौ
                         ऐमिटी इंटरनेशनल स्कूल, सैक्टर 46
                         गुड़गांव

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की पुस्तक प्रिन्सेज डॉल से एक कहानी


अर्चना सिंह जया की रचना



गीली मिट्टी चाक पर रख,
हाथों से आकार है देता।
आग में फिर उसे पकाकर,
सुंदर रंग से है सजाता।

बच्चों वो कुम्हार है कहलाता।


         जाड़े गरमी और बरसात,

        कठिन परिश्रम करता दिनरात।


        बारह मास खलिहान में जाता,

        अनाज से घर आॅंगन है भरता,

         बच्चों वो किसान है कहलाता।


सड़क किनारे बैठ सुबह-शाम,
सभी लोगों की मदद है करता।
भीख नहीं वह माॅंगा करता,
चप्पल,जूते व बस्ते है सिलता।
बच्चों वो मोची है कहलाता।

      

 नन्हें पौधों व बीजों को,
   बागों की क्यारी में डाल।
  अपने कोमल हाथें से वह,
  देखरेख सदा ही है करता।
 बच्चों वो माली है कहलाता।


 
लोगों के स्वास्थ्य की चिंता कर,
 मीठी वाणी से दर्द है हरता।
 समय-असमय तत्पर रहकर,
  समाज सेवा की भावनारखता।
बच्चो वो डाॅक्टर है कहलाता। 

      
   


                       गले में टेप,कान पर कलम
                       हाथ में कैची होती है उसके।
                       कपड़ों को आकार देकर,,
                      सुंदर-सुंदर पोशाक है गढ़ता।
                      बच्चों वो दर्जी है कहलाता।








बारह मास वह करता काम,

शहर गाॅंव व गलियाॅं तमाम।

सुख-दुःख को थैले में डाल,

संदेश सबके नाम का लाता।

       बच्चों वो डाकिया है कहलाता।




                                अर्चना सिंह जया
                                 गाजियाबाद 

सपना मांगलिक की रचना : काश अगर मैं चूहा होता


काश अगर मैं चूहा होता

पुस्तक कुतर कुतर सब खाता

टीचर मुझको आँख दिखाती

मैं झट से बिल में छुप जाता।


                                 सपना मांगलिक

मंजू श्रीवास्तव की रचना : चींटी रानी चली सैर को





चींटी रानी चली सैर को,

सखी सहेलियों के साथ।

घूमते फिरते पहुँच गईं एक पर्वत के पास

सबकी सब सोच मे पड़ गई,

कैसे करें पर्वत को पार।

रानी चीटीं सबसे बोली,

है न कोई डरने की बात।

हम सब मिलकर चढ़ेंगे इस पर्वत पर,
,
और उतरेंगे पर्वत के उस पार।

सबको बात समझ मे आई,

शुरू किया अपना अभियान ।

कुछ ही दूर चली थी चींटियाँ,

उनमें से कुछ गिर पड़ीं धरा पर।

फिर उठीं, फिर चलीं, फिर गिरीं

पर किसीने हार न मानी।

कोशिश करते करते आखिर,

पहुँच गई अपनी मंज़िल पर,

अपनी सफलता का जश्न मनाया,

एक दूसरे को गले लगाया।
****************************

बच्चों , असफलता से कभी निराश न हों, कोशिश करते रहिये जबतक  सफलता न मिले। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


                            मंजू श्रीवास्तव
                            हरिद्वार

रविवार, 26 नवंबर 2017

शरद कुमार का बालगीत : नानी की खीर




नानी जी ने  खीर बनाई
मुन्नी कटोरी लेकर आई
नानी मुझे खीर है खाना
बोली नानी रुक भी जाना

देखो खीर अभी गरम है
प्यारी खुश्बू खूब नरम है
ठाकुर को मैं भोग लगा दूँ
फिर तुमको खीर खिला दूँ


                                शरद  कुमार  श्रीवास्तव

सपना मांगलिक की बालकविता : घोड़ा












टिक टिक करता घोडा है 

सरपट देखो दौड़ा है

हिन् हिन् हिनहिनाता है 

जब जब उसको मोड़ा है।








                       सपना मांगलिक
                       f 659 kamla nagar Agra
                       282005 (up)
                      sapna8manglik@gmail.com

मंजू श्रीवास्तव की बाल कथा। खाना उतना ही लो जितनी भूख हो




रवि बचपन से ही होनहार व अनुशासन प्रिय छात्रथा। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह सभी जगह क्या स्कूल क्या घर  सभी लोगों के दिलों मे  अपनी जगह बना चुका था।
कक्षा १२ वीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। रवि के सभी मित्रों ने कहीं घूमने का प्लान बनाया।
दूसरे दिन रवि अपने मित्रों के साथ  लखनऊ के ऐतिहासिक स्थलों को देखने निकल पड़ा।
सबने खूब आनन्द उठाया। सब थक चुके थे दिन भर घूमने के बाद। रवि बोला अब कुछ पेट पूजा की जाय।

अपनी थकान मिटाने के लिये एक रेस्ट्रां मे गये। भीड़ बहुत थी। एक कोने मे खाली टेबल देखकर  वहीं सब बैठ गये।
सबने अपनी अपनी पसन्द की डिश का आर्डर दिया।इडली, डोसा, सांभर,बड़ा आदि। सबने खूब डटकर खाया पर मन नहीं भरा। दुबारा और खाने का आर्डर दिया।
थोड़ा खाया और बाकी छोड़ दिया। बिल अदा करने के बाद सब चलने को तैयार हुए।
इतने मे मैनेजर ने बड़ी नम्रता से कहा आप लोगों को इतना खाना ऐसे छोड़कर नहीं जाना चाहिये।
रवि ने कहा मैनेजर साहब ठीक ही तो कह रहे हैं। दूसरे दोस्त ने कहा हमने बिल दिया है, खायें चाहे छोड़ दें।
रवि बोला नहीं दोस्त! हमारे देश मे कितने लोगों को एक वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। इस तरह खाना बर्बाद करना उचित नहीं है। थाली मे उतना ही खाना लो जितनी  भूख हो। यह बात समझ मे आई  सबके।

सबने खाना पैक करवाया और गरीबों को ले जाकर बांट दिया । पेट भर के खाना खाकर सब बड़े खुश थे।

रवि की सोच से सब दोस्त बहुत प्रभावित हुए और संकल्प लिया कि आगे से
खाने का एक भी दाना बर्बाद नहीं करेंगे। एक संस्था से जुड़ गये जो 
बचे हुए  खाने को गरीबों  तक पहुँचाती है।
धीरे धीरे लोग इस काम मे जुटते गये  और खाना बर्बाद होने  के बजाय किसी भूखे का सहारा बना।

बच्चों तुम लोग भी संकल्प लो कि थाली मे खाना उतना ही लोगे जितनी भूख हो। ख़ाना बर्बाद नहीं होना चाहिये ।



                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार 

  

भुवन बिष्ट की वंदना : इतनी शक्ति देना दाता





इतनी दाता देना शक्ति,
कर्म करें मन में हो भक्ति,
        चले निरंतर जीवन धारा,
         समृद्ध शिक्षित भारत प्यारा,
राग द्वेष की बहे न धारा,
हिंसा मुक्त हो जगत हमारा,
          चहुं दिशा में खुशहाली फैले
          मानवता की किरणें भी फैले,
इतनी दाता देना शक्ति,
कर्म करें मन में हो भक्ति,

             .

...                        ..भुवन बिष्ट
.

अर्पिता अवस्थी की रचना : चढ्ढी वाला फूल


'जंगल जंगल बात चली है पता चला है. . . अरे चढ्ढी पहन के फूल खिला है', गाना सुन के चिंकु का मन मचल गया पाने को ऐसा अदभुत फूल जो चढ्ढी पहनता है.
सोच रहा था  मम्मी पापा की मैरिज एनीवर्सरी के दिन उपहार मे चढ्ढी पहना हुआ फूल ही देगा इसीलिये  अपने घर का पूरा बगीचा देख डाला पर कोई फूल ऐसा नही दिखा जिसने चढ्ढी पहनी हो  फिर वो  जल्दी- जल्दी तैयार होके स्कूल को निकल गया रास्ते भर
सारे फूल देखता रहा शायद कही चढ्ढी वाला फूल दिख जाये पर निराशा ही हाथ लगी. स्कूल मे  चिंकु टीचर से सवाल पूछ बैठा कि ' मैम ये चढढी वाला फूल कहां पाया जाता है? सवाल सुनते ही  टीचर का सिर चकरा गया  और  बोली कि ऐसा कोई फूल नही होता जो चढ्ढी पहना हुआ खिलता है? फिर भी चिंकु नही माना तो टीचर ने  चिंकु को डांट कर चुप करा कर बैठा दिया. चिंकु निराश होगया घर मे पूरा दिन किसी से बात नही की,  रात मे सपने मे चढ्ढी पहना फूल तलाशता रहा पर सपने मे भी ऐसा अदभुत फूल पाने मे नाकाम रहा. सुबह मम्मी ने उठाया और चिंकु को नहलाया धुलाया, चिंकु की स्कूल यूनीफॉर्म लेकर आई और उसे पहनाने ही वाली थी कि मम्मी का ध्यान चिंकु की रोनी सूरत पर गया तो मम्मी ने चिंकु की मायूसी का कारण पूछा तब चिंकु रोने लगा और बोला
"जंगल जंगल पता चला है चढ्ढी पहन के फूल खिला है. . . ., मम्मी  हमेशा गाते रहते हो पर ये तो बताओ ऐसा  फूल कहां उगता है? मुझे कही नही मिला."
तब मम्मी ने मुस्करा के कहा
" अरे ऐसा खास तरीके का फूल  तो मेरे पास है"
चिंकु ने बड़े उत्साह से खिलखिलाते हुये पूछा
"पर कहां?"
तब मम्मी ने एक जगह अंगुली से इशारा करके दिखलाया पर चिंकु को नजर नही आया, मम्मी ने फिर बताया कि वही है ध्यान से देखो. चिंकु को फिर भी नजर नही आया और  चिढ़ कर बोला
"यहां सिर्फ आईना है और उसमे मै दिख रहा हूं"
मम्मी मुस्कुराई
"अरे बाबू! तुम ही तो मेरा चढ्ढी वाला फूल"
आखिरकार मम्मी ने चिंकु  का माथा चूमते हुये समझाया कि इस दुनिया मे छोटे-छोटे बच्चे ही एकमात्र ऐसे फूल है जो चढ्ढी पहन के खिलते है. मम्मी के द्वारा अपने कठिन सवाल का अदभुत जवाब सुन कर चिंकु खुश होकर मम्मी के गले से लग गया।

अर्पिता अवस्थी
raressrare@gmail.com

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

सिया राम शर्मा की रचना : गुल्लू गुड्डा




       

                                    
मिष्टी सोच में डूबी 
क्या करूँ? 
बुआ लायीं 
डॉली डौल
चाचा लाये 
स्मार्ट कॉर!


गुल्लू गुड्डा 
टुकुर टुकुर
देखे तो देखे 
बहुत उदास 
नये नये 
खिलौने 
चमकते 
दमकते स्मार्ट 
अब उसकी 
क्या बिसात?  
सोच में  डूबा 
गुल्लू उदास!

मिष्टी 
इधर घूमे, 
उधर घूमे, 
क्या करूँ? 

नहीं, नहीं 
मेरा प्यारा 
गुल्लू!

बस 
एक वो ही 
हर पल का 
साथी!

सॉरी! 
मैं  कैसे 
उसे छोढ़ूँ!

नहीं, नहीं 
कभी नहीं 
बस और नहीं !

प्यार से  
गुल्लू को 
गोदी में ले 
नीचे कुर्सी  
पर बैठाया

गुड्डे का 
बहुत  लाड़  लडा़या 
गुल्लू का भी 
जी बहुत भर आया, 
मेरी प्यारी 
नन्हीं गुड़िया 
मिष्टी प्यारी रानी है! 


                            सिया राम  शर्मा 

 अर्चना सिंह‘जया का बालगीत : बारह माह




जनवरी,फरवरी,मार्च,

माह है ये सदाबहार।


अप्रैल,मई,जून,

ले जाते हमारा सुकून।



जुलाई,अगस्त,सितम्बर

भींग जाता धरती अंबर।


अक्टूबर,नवम्बर,दिसम्बर

ईद-दिवाली, क्रिसमस घर-घर।


‘बारह माह’ में आते कई पर्व,

गुजरने से मनाते हम नववर्ष।

  


                          अर्चना सिंह‘जया‘
                          गाजियाबाद 

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : बचपन






छोटे छोटे बच्चे हैं हम , मिलजुल कर सब रहते हैं ।

खेल खेल में भले झगड़ ले , भेदभाव नहीं करते हैं ।

पढ़ लिखकर विद्वान बनेंगे, नया इतिहास रचायेंगे ।

नये नये सृजन कर हम , भारत को स्वर्ग बनायेंगे ।

छोटे हैं तो क्या हुआ, हममें भी समझदारी है ।

भारत माता के प्रति, हममें भी जिम्मेदारी है ।

नहीं झुकने देंगे तिरंगा, चाहे जो कुछ हो जाये ।

अड़े रहेंगे अपनी जगह पर, चाहे तूफान आ जाये।




                            प्रिया देवांगन "प्रियू"

                           पंडरिया  (कवर्धा )

                           छत्तीसगढ़