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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

श्रीमती वीना श्रीवास्तव (बैकुण्ठ वासी) जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धानमन

 

विगत  27 अगस्त को "नाना की पिटारी " पत्रिका के  अस्तित्व  को अपनी सोंच मे लानेवाली (प्रणेता )श्रीमती वीना श्रीवास्तव  जी की 15वीं पुण्यतिथि थी।   इस  संदर्भ  मे  यह पत्रिका दिवंगत  वीना श्रीवास्तव जी को श्रद्धापुष्प अर्पित  करती है


नाना की पिटारी
  




चुटकुले : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


1 शौर्य — सतीश तू हाथ में बर्फ का टुकडा लिए इतनी देर से क्या देख रहा है
सतीश — भाई मैं देख रहा हूँ कि यह लीक कहाँ से हो रहा है।

2 अजय : यार जय कार धीरे चलाओ मुझे डर लग रहा है
जय : डरने की कोई बात नहीं है तू भी आँख बंद कर ले जैसे मैं बंद किये हूँ

3 अध्यापक : रमेश पानीपत , प्लासी या और किसी लड़ाई के बारे में तुम्हे क्या मालूम है

रमेश -पानीपत , प्लासी के बारे में मैं जानता नहीं मैं वहाँ नहीं था मम्मी पापा की लड़ाई के बारे में बाहर बताने मना किया है

4  मोहन — राम चन्द्र जी, ईसा मसीह, गुरुनानक और गांधी जी में क्या समानता है?
सोहन — वेरी सिम्पल ये सब छुट्टी के दिन ही पैदा हुए थे । 😁😁😁

2 शौर्य — कल्पना करो कि तुम चौथी मंजिल पर हो और एक चील तुम पर झपटने वाली है । तुम पहले क्या करोगे ।
आयुष — सबसे पहले मैं कल्पना करना बंद कर दूँगा । 😅😅😅😅😅

3 रमेश — यार लन्दन में सभी पढ़े लिखे हैं
महेश्री — वह कैसे?
रमेश — वहाँ मजदूर भी अंग्रेजी में बात करते हैं  😇😇😇😇😇

4 राकेश — कोई टीचर ठीक से नहीं बताता है बायो के सर कहते हैं कि सेल के माने कोशिका, हिस्ट्री के सर सेल माने जेल , फिजिक्स के सर सेल के माने बैट्री होती है ।
मुकेश — जबकि सबको पता है कि सेल माने मोबाइल होता है । है ना? 😭😭😭😭😭






शरद कुमार  श्रीवास्तव 

"पद और पैसा" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना





पद पैसा अब बड़ा हुआ है, दिखा रहे हैं रिश्तों में।
अहम भरा मानव के अंदर, टूट रहे हैं किस्तों में।।

क्या लेकर आये हो जग में, क्या लेकर तुम जाओगे।
समय निकलते देर नहीं है, पीछे तो पछताओगे।।


ज्ञात सभी अच्छे से सब कुछ, फिर भी देते हैं धोखा।
बाहर कितना उछल रहे हैं, अंदर से रहते खोखा।।

बड़े आदमी बनकर बैठे, मुँह में रखते जो ताला।
मानवता का पाठ पढ़ाते, ढोंगी जपते हैं माला।।
छुआछूत अरु भेदभाव का, पैदावार बढ़ाते हैं।
तुच्छ समझते हैं लोगों को, पैरों तले दबाते हैं।

कालचक्र भी घूम रहा है, ये तो वापस आता है।
जैसी करनी वैसी भरनी, जन जन को बतलाता है।।
नीमबीज तुम खुद हो डाले, आम कहाँ से पाओगे।
समय निकलते देर नहीं है, पीछे तो पछताओगे।।

पद पैसे का लालच छोड़ो, धरती पर रह जायेगा।
अच्छा कर्म सभी कर डालो, शिव से यही मिलायेगा।।
प्राण देह में जब तक है जी, तब तक ठोकर खाओगे।
अंत समय में मिले न पानी, तड़प तड़प मर जाओगे।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


दो गदहों की कथा : शरद कुमार श्रीवास्तव




एक धोबी के पास दो गदहे थे। एक गदहे का रंग गोरा था और दूसरे गदहे का रंग काला था। गोरा गदहा घमंड मे चूर रहता था और काला गदहा अपना काम चुपचाप करता रहता था। धोबी के लिये दोनो गदहे एक जैसे थे । दोनों गदहों को भरपूर बोझा ढोने का काम करना पड़ता था ।

एक बार धोबी ने अपने घर में इस्तेमाल करने घाट से लेकर काफी सिरी मिट्टी काले रंग के गधे की पीठ पर लाद दिया और सफेद बालो वाले गधे पर सूखे कपडों का बड़ा गट्ठर लाद दिया । रास्ते में एक नाले के ऊपर काले गधे का पैर फिसल गया और वह नाले में जा गिरा । जब तक धोबी काले वाले गधे को निकालता तब तक आधी मिट्टी पानी मे चली गई थीं और गधे की पीठ का बोझ कम हो गया ।  अब काले रंग वाला गधा प्रसन्न होकर सफेद रंग के बालों वाले गधे को देखने लगा ।

 यह देखकर दूसरे गदहे ने  भी नाले में छलांग लगा दी । लेकिन  दूसरे गदहे की पीठ पर लदे  सूखे कपडे गीले हो गये और गीले होकर  काफी अधिक भारी हो गये। अब उसे अधिक बोझ उठाना पड़ा । चूंकि सूखे कपड़े फिर गीले हो गये थे इसलिए सफेद रंग  के गधे को  धोबी से  मार भी अलग पड़ी । अतः हमे बिना सोचे समझे नकल भी नहीं करनी चाहिए वर्ना बिना सोचे समझे नकल करने से सफेद बालो वाले गधे की तरह परिणाम भुगतना पड़ सकता है ।।





शरद कुमार  श्रीवास्तव 

गाड़ी के अंदर ! बालरचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 





चुन्नू ,   मुन्नू ,   गुड्डा,  गुड़िया

जा   बैठे   गाड़ी    के  अंदर

दरवाजे   कर    बंद   लगाए

लॉक सभी बच्चोंने मिलकर।


घुटन बढ़ी  आ  गया पसीना

हुआ  सांस  लेना  भी  दूभर

भूले   घबराहट    में    सारी

करनी थी जो मस्ती जी भर।


चीख-चीख  पीटे  सब सीसे

बाहर कुछ आवाज  न आई

देखा    इधर-उधर   बहुतेरा

दिया न कोई भी  दिखलाई।


हाथ-पैरभी शिथिल पड़ रहे

छाने  लगी   अजब  बेहोशी

मंद    हुईं    सारी   आवाज़े

पसर   गई  केवल खामोशी।


दफ्तर   जाने  को   पापा  ने

गाड़ी  का   दरवाज़ा  खोला

देख मूर्छित  सब  बच्चों  को

ऊंचे  स्वर  में  सबको बोला।


सारे  घर वालों  ने  मिलकर

उनको बाहर तुरत  निकाला

शीघ्र  होश  में  लाने  सबके

मुख पर  ठंडा  पानी डाला।


धीरे - धीरे   तब   बच्चों   ने

अपनी-अपनी आंखें खोलीं

लिपट स्वयं  मम्मी-पापा से

गुड़िया रानी जी भर रो लीं।


खेल-खेल  में  प्यारे  बच्चो

नहीं  बैठना  तुम  गाड़ी  में

सदा बड़ों के साथ  बैठकर

खुशी-खुशी जाना गाड़ी में।

      -------😢😊-------

         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

                  ----☺️----

महाकवि कालीदास अंतर्जाल से साभार

 


महाकवि कालिदास  तीसरी- चौथी शताब्दी मेे गुप्त साम्राज्य के संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे।  उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। (स्रोत विकीपीडिया)

महाकवि कालिदास  के संबंध  मे यह प्रसंग बहुत  मशहूर  है अंतर्जाल  से संकलित कर यह हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर  रहे हैं। 

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालीदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

.

(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

.

स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

.

स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

.

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।




संकलन  

शरद कुमार  श्रीवास्तव 




मंगलवार, 16 अगस्त 2022

घर घर फहरे आज तिरंगा (अमृत महोत्सव पर गीत ) डाक्टर सुशील शर्मा की रचना

 


साल पचहत्तर की स्वतंत्रता

चलो प्रेम के दीप जलाएँ।

घर घर फहरे आज तिरंगा

अमृत महोत्सव चलो मनाएँ।  


आन बान निज शान तिरंगा

कोटि जनों की अभिलाषा है।

भारत का यह गौरव मस्तक

यह भारत की परिभाषा है।

केसरिया मस्तक है इसका

श्वेत हृदय अति सुखदायक है।

हरियाली की चरण पादुका

कोटि जनों का यह नायक है।


गाँधी तिलक सुभाष भगत सिंह

आओ इनके गीत सुनाएँ।


हर घर ऊपर रहे तिरंगा

फर फर फर फर यह फहराए।

हर दुकान हर गली मोहल्ला

लहर लहर नित यह लहराए।

हम सबके यह दिल की धड़कन

कभी न ये अब झुकने पाए।

उज्ज्वल अटल अनादि तिरंगा

जन गण मन का गीत सुनाए।


हम सब मिलकर भारतवासी

पार करेंगे सब बाधाएँ।


यह वंदन है भारत माँ का

यह इस माटी का चंदन है।

भारत माता का यह मस्तक

कोटि जनों का अभिनंदन है।

यह कुरान की आयत जैसा

यह वेदों का दिव्य मंत्र है।

सब धर्मों का संरक्षक यह

यह भारत का प्रजातंत्र है।


बच्चे बूढ़े और युवा सब

आओ मिल कर ध्वज फहराएँ।

साल पचहत्तर की स्वतंत्रता

चलो प्रेम के दीप जलाएँ।

घर घर फहरे आज तिरंगा

अमृत महोत्सव चलो मनाएँ।  




सुशील शर्मा

मेरा तिरंगा

 



भारत का है मान तिरंगा।

हम सबका अभिमान तिरंगा।

हम बच्चों की शान तिरंगा।

वेदों का गुणगान तिरंगा।

गीता का है ज्ञान तिरंगा।

है कलाम विज्ञान तिरंगा।

है सुभाष की आन तिरंगा।

भगतसिंह बलिदान तिरंगा।

गांधी का ईमान तिरंगा।

कोटि जनों की जान तिरंगा।



सुशील शर्मा


विनम्र श्रद्धांजलि

 





आज अटल  बिहारी बाजपेयी जी की पुण्यतिथी है ।  श्रद्धेय अटल जी हिन्दी के कवि ही नही  हिन्द भाषा  के प्रति पूर्ण  समर्पित  थे ।  उनका निधन आज के ही दिन वर्ष  2018 मे हो गया था ।  दिवंगत  आत्मा को हमारी विनम्र  श्रद्धांजली


आओ तिरंगा लहराएँ : अर्चना सिंह जया की रचना

 




चलो 75वाँ पंद्रह अगस्त धूम से मचाते हैं,


  तिरंगे को सर्वोच्च शिखर पर फहराकर,


 हम सब अमिट संकल्प एक जुट होकर खाते हैं ,


 राष्ट्र ध्वज का मान बढ़ा, एकता का पंचम लहराएँ।


 आओ इस अमृतमहोत्सव को सफल बनाएँ,


 हर गली, मोहल्ले, घर-आंगन तिरंगा लहराएँ।


अग्निपथ चल व सद्कर्म से विश्व में नाम कमाएँ,


देशभक्ति,शांति-संदेश, प्रेम परिमल चहुॅंदिशा फैलाएँ।


हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती,


हुनर की खासियत यहाँ, जहाँ कई धर्म व जाति।


बलिदान, शांति,खुशी-प्रेम तिरंगा देता है संदेश 


परोपकार ही परम धर्म मानवता का धर्म विशेष। 


      


 अर्चना सिंह जया

इंदिरापुरम  गाजियाबाद 


🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏

छत्तीसगढ के प्रबुद्ध साहित्यकार दिवंगत श्री महेन्द्र देवांगन जी "माटी" के द्वितीय पुण्यतिथि 16 अगस्त 2022 पर उनके छत्तीसगढ़ी लेख संग्रह "तीज-तिहार अऊ परम्परा" की समीक्षा-



// ब्रह्मलीन परमधाम प्राप्त साहित्यकार श्री महेन्द्र देवांगन जी "माटी" के द्वितीय पुण्यतिथि 16 अगस्त 2022 पर उनके छत्तीसगढ़ी लेख संग्रह "तीज-तिहार अऊ परम्परा" की समीक्षा- //






पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक : तीज-तिहार अऊ परम्परा
           (छत्तीसगढ़ी लेख संग्रह)
लेखक : महेन्द्र देवांगन "माटी"
समीक्षक : टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
प्रकाशक : वैभव प्रकाशन, रायपुर (छ. ग.)
मूल्य : पचास रुपए.

       // तीज-तिहार अऊ परम्परा //

          "मोर छत्तीसगढ़ के तिहार दीदी... मोला बड़ निक लगय ओ...." पंचराम मिर्झा अउ कुलवंतिन बाई मिर्झा के गाये गीत के बोल हर छत्तीसगढ़िया के अंतस के बोल आय। ये बोल ह गाँव-देहात के पारम्परिक लोकजीवन के दर्शन कराथै। हमर ग्राम्यलोकजीवन घात सुग्घर अउ बड़ नियारा हे। गाँव-देहात के लोकजीवन शैली ह ही लोकसंस्कृति म झलकथै। लोकजीवनशैली के अंतरगत लोक (लोगन) के बोली-भाषा, रहन-सहन, खानपान, पहनावा के संगे-संग उँखर बेवहार, आचार-विचार, रसम-रिवाज, काम-कारज सरलग चलथै; जेन लोकपरम्परा आय, याने लोकसंस्कृति ल लोकपरम्परा ही जिंदा रखथै, अरथात इही परम्परा ह संस्कृति ल पीढ़ी दर पीढ़ी लोक म ही स्थानांतरित करथै। अउ कहे जा सकथय कि लोकयथार्थ ह, जेन ह लोकसंस्कृति म समाय रथै, लोकपरम्परा ले आगू बढ़थै। लोकसांस्कृतिक साररूप म लोगन के हाँसी-खुशी, मया-पिरीत, भाईबंध के बड़ बढ़िया त्रिवेणी संगम आय हमर लोकपारम्परिक तीज-तिहार। लोकपरम्परा ले घला सामाजिक सरुप ह, जेन माध्यम ले दृष्टिगत होथय, वो आय-   लोकसाहित्य। इही लोकसाहित्य के परिप्रेक्ष्य म लोकपारम्परिक तीज-तिहार के सारथकता, महत्तव अउ उपयोगिता ल हमर छत्तीसगढ के एक ब्रह्मलीन परमधाम प्राप्त लोकसाहित्यकार श्री महेन्द्र देवांगन जी "माटी" ह अपन एक निबंधात्मक लेख संकलन "तीज-तिहार अऊ परम्परा" म करे हे। ये संग्रह बड़ सुग्घर आवरण ले सजे हे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग ले प्रकाशित होय हे‌। माता-पिता ल समरपित हे। भूमिका के रूप म एक शिक्षक अउ कवि मालिक ध्रुव जी के मंतव्य हे।
         हिंदी के जाने-माने निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के कथन- "गद्य रचना यदि कवियों की कसौटी है,तो निबंध गद्य की कसौटी है।" म महेन्द्र देवांगन जी "माटी" खरा उतरे हे। एक कवि अउ छंदकार के रूप म माटी जी ह साहित्य क्षेत्र म अपन पहचान बनाबे करिस; संगे-संग कहानी अउ निबंधात्मक लेखन करके वो छत्तीसगढ़ी साहित्य सेवा बर अबड़ सँहराय के लाइक काज करे हे। येकर पोठ सबूत उँखर "तीज-तिहार अऊ परम्परा" संग्रह आय; जेन म हमर छत्तीसगढ़ी पारम्परिक तिहार "मकर संक्रांति के पर्व" लेख ले मुँड़ा धराय हे। अपन ये सारगरभित निबंधात्मक लेख म मकर संक्रांति परब के अपन जानकारी ल नान-नान दू-ठन रूपरेखा- स्नान के महत्व अउ तिल दान के महिमा ले पूरा करे हे। हमर छत्तीसगढ के लोकपरब मनाये के अपन अलगे पहचान हे। हर छत्तीसगढ़िया प्रकृति के हर जड़-चेतन म घात आस-विश्वास रखथै। तभे तो पखरा म वो घलो मुँड़ नवाथै। माटी जी ह अपन लेख म "नाग पंचमी के तिहार" म ये तिहार के मनई के रसम अउ वोखर आध्यात्मिक महत्व के जिक्र करत कहिथे कि हमर खेती-किसानी म सर्प ह मददगार आय; वो "क्षेत्रपाल" याने खेत-रखवार आय। हमर खेती-किसानी के चौमासा के पहिली तिहार हरेली, जेला सावन महीना के अँधियारी पाख के अमावस म मनाय जाथै। येमा गो-धन ल लोंदी खवाय के, कृषि-यंत्र के पूजा, चीला चघाय, नीम-डारा खोंचई, गेड़ी बनई अउ गाँव के देव-धामी के पूजा-पाठ के बड़ अच्छा उल्लेख करे हे। आदरणीय माटी जी ले मोर प्रत्यक्ष भेंट तो नइ होय रिहिस; पर सोशल मीडिया ले साहित्यिक पहचान होय, साल भर होवत रिहिस कि अचानक वोखर परलोक गमन होगे। येखर ले छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नुकसान तो होबे करिस; संगे-संग मोर ले एक नेक साहित्यिक संगवारी के बिछुड़ई होगे। इही जान-पहचान अउ ये संकलन के पढ़े ले मोला लागथय कि माटी जी ह एक ठेठ गँवइहा रिहिन। धर्म अउ आध्यात्म नगरी राजिम के लट्ठा म बसे गाँव बोरसी म जन्म धरे, चीखला-धुर्रा-माटी म खेले-कूदे माटी जी के तन-मन म गँवइहापन अउ हर साँस म गाँव के माटी के खुशबू रिहिस; तभेच तो वोखर "माटी" जइसे उपनाम सारथक लागथै।
          माटी जी ल छत्तीसगढ़ भुइंयाँ ले अड़बड़ पिरीत रिहिस; निक जानकारी रिहिस। तीज-तिहार के नेंग-जोग ल अपन लेख मन म बनेच सरेखे हे। धरम अउ आध्यात्म के घलो के सहारा लेय हे अपन रचना मा। पौराणिक पात्र - राम, कृष्ण, बलराम, प्रहलाद जइसे जीवनचरित्र के उल्लेख माटी के लेख मन म हे। गाँव के डिही-डोंगरी के मान-गौन के तौर-तरीका उँखर लेख मन म देखे-पढ़े ला मिलथै। गाँव के धरती म ननपन बिताय हे माटी जी ह, तभे तो वो "तीजा-पोरा के तिहार" पृष्ठ क्र. 23 म लिखे - "लइका मन बर माटी के खिलौना वाला बइला ले जाथे ओमे चक्का "सिलि" लगाके दँउड़ाथे। नोनी मन बर "चुकी" ले जाथे।" जम्मो लेख म पार्श्व शीर्षक (साइड हैडिंग) के उपयोग करे ले लेख मन ह बड़ अच्छा निबंध के साररूप लेय लेहे। वइसे हमर छत्तीसगढ के तीज-तिहार मन ह धारमिक, आध्यात्म, वैदिक अउ पौराणिक तथ्य समाय हें। पहिली पूजा गणपति के, देवारी के तिहार,देवउठनी एकादशी अऊ तुलसी बिहाव,अगहन बिरस्पति के पूजा, अन्नदान के परब छेरछेरा बड़ बढ़िया निबंधात्मक लेख बने हे। "सच के रस्ता बतइया- गुरु घासीदास जी" म सत्य-अहिंसा, "बसंत पंचमी - खुशी अऊ उमंग के तिहार" म परम्परा निर्वहन, "होली के तिहार" म भगवान, भक्त अउ भक्ति के सारथकता के संदेश देय हे। "अक्ती के तिहार" म परशुराम अवतार, द्वापर युग के समापन, खेती-किसानी के शुरुआत, पुतरी-पुतरा के बिहाव की मुहुर्त, माता अन्नपूर्णा के जन्म, द्रौपदी चीरहरण, कुबेर ल खजाना पाय के बड़ बढ़िया जानकारी रखत संग्रह के समापन करे हे।
          महेंद्र देवांगन "माटी" जी के जम्मो लेख मन म लोकपारम्परिक तीज-तिहार के वर्णन के साररूप म हे। तिहार मन बर माटी जी के अपन विचार रखे ले लेख मन विचारात्मक बन गेहे। माटी जी के निबंधात्मक लेखनशैली बड़ गजब के हे। भाषा अभिव्यक्ति मस्त-बढ़िया अउ ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली रूप म हे। हिंदी अउ संस्कृत विषय म स्नातकोत्तर अउ अध्यापन कर्म ले जुड़े होय के कारण लेखन म हिंदी शब्द मन के बहुत अधिक प्रयोग होय हे; येखर बावजूद माटी जी के छत्तीसगढ़ी लेखन सामर्थ्य यथावत हे; छत्तीसगढ़ी शब्द-वाक्य विन्यास ह सज-सँवर गेहे। माटी जी के जम्मो लेख म तीज-तिहार के सारगरभित वर्णन हे। लेखन क्षमता बड़ सरल-सहज हे; जीवंत हे। येखर ले लेख मन म रोचकता बने हे। लेख मन म छत्तीसगढ़ी के एक ले बढ़के एक शब्द - झूपथे, अगोरा, छोल-छुली के, खुसर, बिरस्पति, निच्चट प्रयोग होय हे। येखर ले संग्रह पठनीय बन गेहे। 
          बड़ सौभाग्य के बात हे कि "तीज-तिहार अऊ परम्परा" जइसे लेख संग्रह महेंद्र देवांगन माटी जी ले छत्तीसगढ़ी साहित्य ल मिले हे; पर ये बड़ दुर्भाग्य हे कि हमर बीच आज वो प्रतिभाशाली लेखक माटी जी नइ हे। माटी जी म छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजनशीलता के सम्भावना रिहिस। एक बात मैं अउ रखना चाहत हँव कि आज माटी जी के सुपुत्री सुश्री प्रिया देवांगन जी "प्रियू" हर साहित्य सृजनशीलता म लगे हवै, जेन म मन-मयारू पिता माटी जी के साहित्य-छवि झलकथै।

                 


प्रेषक :
प्रिया देवांगन "प्रियू"
सुपुत्री श्री महेन्द्र देवांगन "माटी" 
राजिम-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

प्रिन्सेज डॉल की डॉल : शरद कुमार श्रीवास्तव

 



प्रिन्सेज घर मे दुखी बैठी उसकी प्यारी बिल्ली ने प्रिन्सेज से उसके भाई के बारे में पूछ लिया था ।  डॉल को मालूम नही कि उसका कौन भाई है।  उसका कोई भाई है भी कि नहीं उसे मालूम नहीं है।   उसकी मम्मी भी बस गोल मोंल जवाब देती हैं कभी वह कृष्ण भगवान को राखी बंधवा देती है ।   वैसे तो उसके मौसी बुआ मामा दादी के घर मे उसके भाई बहन सब हैं ।  परन्तु वे सब दूर रहते है काफी दूर दूर मे रहते हैं ।   वे लोग बहुत बहुत दिनो पर आते है तब प्राब्लम होती है कि प्रिन्सेज किसके साथ खेले ।  रूपम का भाई तो उसके पास रहता है और  वे दोनो साथ-साथ खेलते हैं ।  यह बात अलग है कि रूपम और उसके भाई मे कभी कभी झगड़ा भी होंता है।  जब उनकी मम्मी एक ही तरह की बॉल / खिलौने लाकर देती है।  रूपम को तो वही गुडिया चाहिये होती है जो रूपम का भाई खेल रहा होता हैं अथवा उसके भाई को वही बॉल चाहिये होंती है जो रूपम खेल रही होती है।  प्रिन्सेज ने सोचा कि उसका भी कोई भाई होता तो वह उससे रूपम डॉल की तरह झगड़ा नहीं करती दोनो लोग बहुत प्यार से खेलते।
प्रिन्सेज को उदास देख कर बिल्ली भी उदास हो गई वह बोली तुम्हारे पास भाई नहीं है तो क्या हुआ मै तो हूँ हम लोग साथ-साथ खेलते है ।  प्रिन्सेज बोली हाँ हाँ ठीक है पूसी जी । प्रिन्सेज पूसी के साथ वही पुराना, बाल थ्रो एन्ड पिक का खेल ,खेल रही थी. इतने मे किसी ने दरवाजा खटखटाया ।  प्रिन्सेज ने दरवाजा खोला तो देखा कि मम्मी आई है और उसके हाथ मे एक बोलने वाली सुन्दर सी डॉल है।   प्रिन्सेज को बहुत खुश हुई कि चलो भाई नही है तो क्या हुआ यह प्यारी सी डॉल उसके पास आ गयी है जिससे वह बात कर सकती है।   पूसी तो साथ मे खेलती है पर ठीक से बात नहीं कर सकती ।  यह डॉल तो बड़े मजे की है स्टोरी सुनाती है राइम भी सुनातीं है ।  अब वह नई डॉल के साथ व्यस्त रहने लगी।   एक दिन प्रिन्सेज की मम्मी पापा बाहर उसे घुमाने के लिये ले गये थे ।  उस दिन प्रिन्सेज का होमवर्क करना छूट गया ।  बिना होमवर्क किये प्रिन्सेज सो गयी थी।   उसे लगा कि वह बोलने वाली डॉल उसे उठा कर कह रही है कि प्रिन्लेज का कुछ खो गया है ।   प्रिन्सेज झटपट बिस्तर से उठ बैठी उसने डॉल की तरफ देखा तो वह मुस्करा कर स्कूल बैग की तरफ देख रही थी तब उसी समय प्रिन्सेज को अपना छूटा हुआ होमवर्क याद आया और उसने झटपट होमवर्क कर लिया ।  उस समय पूसी को प्रिन्सेज का लाइट जलांना अच्छा नहीं लगा उसने एक बार प्रिन्सेंज को आँख खोल कर देखा फिर मुँह फेर कर सो गयी।  प्रिन्सेज ने नई बोलने वाली डॉल जिस को वह प्यार से डॉल ही बुलाती थी को सोने से पहले थैन्क्स दिया ।  डॉल  की वजह से स्कूल मे अगले दिन काम नहीं करने के लिये टीचर से डांट नहीं सुननी पड़ी ।
डॉल तो वैसे एक गुड़िया थी लेकिन प्रिन्सेज को वह बहुत अच्छी लगती थी ।  वह इसलिये नहीं कि वह देखने मे बहुत खूबसूरत थी ऒंर बोलने वाली थी बल्कि इसलिये भी कि जब कोई जरुरी बात प्रिन्सेज करना भूल जाती थी तब डॉल को देखते ही याद आ जाती थी ।  इसलिये प्रिन्सेज बाहर जाते समय डॉल को बाई बाई कहना नहीं भूलती थी।।




शरद कुमार श्रीवास्तव 

"संघर्ष" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना












समय नहीं है अब सोने का, उठकर आगे आना है।
संघर्षों से लड़ कर हमको, जीवन सफल बनाना है।।

राह हजारों होते हैं जी, जो हमको भटकाते हैं।
पाँव पकड़ कर पीछे खींचे, समझ नहीं हम पाते हैं।।
बहरे मेंढक बन कर हमको, चोटी में चढ़ जाना है।
संघर्षों से लड़ कर हमको, जीवन सफल बनाना है।।

दुनिया वाले कहते सारे, तुम से ना हो पायेगा।
राह कठिन है देखो आगे, दलदल में फँस जायेगा।।
कहते हैं तो कहने देना, कर के हमें दिखाना है।
संघर्षों से लड़ कर हमको, जीवन सफल बनाना है।।

लक्ष्य साध कर चलते हैं जो, वही सफल हो पाते हैं।
चुभे पाँव में काँटे फिर भी, दर्द सहन कर जाते हैं।।
दृढ़ निश्चय कर आगे बढ़ना, करना नहीं बहाना है।
संघर्षों से लड़ कर हमको, जीवन सफल बनाना है।।

मंजिल अपनी मिल जाती है, मात पिता खुश होते हैं।
देख सफल अपने बच्चों को, नींद चैन की सोते हैं।।
यही रीत है दुनिया की तो, हँसना और हंँसाना हैं।
संघर्षों से लड़ कर हमको, जीवन सफल बनाना है।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

श्रीमती अंजू गुप्ता की एक रचना

आओ

 


शनिवार, 6 अगस्त 2022

कुण्डलिया छंद नागपंचमी रचना डॉक्टर सुशील शर्मा

 



लेझम लाठी कुश्तियाँ, वो मल्लों का युद्ध।

खुशियों का त्यौहार है, नागपंचमी शुद्ध।

नागपंचमी शुद्ध,करें सब खूब ठिठोली।

बजते प्यारे ढोल,नचे मस्तों की टोली।

कुश्ती लड़े सुशील,ताल ठोकें सहपाठी।

लड़ें अखाड़े मल्ल,चलायें लेझम लाठी।


भारत श्रेष्ठ सुराष्ट्र में,सब जीवों का मान।

जैव वनस्पति लोग सब,पाते हैं सम्मान।

पाते हैं सम्मान,सभी को अपना जानें।

पंथ धर्म सब नेक,सभी मानवता मानें।

नागपंचमी पर्व,कुश्तियाँ मल्ल महारत।

पूजे जाते नाग,यही है मेरा भारत।




सुशील शर्मा

खरगोश की अक्लमंदी शरद कुमार श्रीवास्तव



 

बहुत दिन पुरानी बात है कि एक जंगल मे एक झील के किनारे कुछ खरगोश अपने अपने घरों मे रहते थे । उसी जंगल मे कहीं दूर दराज से एक हाथी का झुन्ड आया ।  उन हाथियों को वह जंगल बहुत अच्छा लगा  ।   खूब छाये दार पेड़ खूब फल हाथी पूरी मस्ती मे आ गये ।   उन्होने उस जंगल को मस्ती मे नहस करके खूब नुकसान पहुँचाया ।   उन हाथियों को जब प्यास लगी तब उनके मुखिया ने उन्हे बताया कि वह इस जंगल का सरोवर  जानता है जहाँ का पानी बहुत मीठा है । फिर क्या था उसके साथ सारे हाथी उस झील पर पहँचे और उन्होने मजे से खूब पानी पिया और लौट गये ।  इन लापरवाह हाथियों के पैरो के नीचे कई खरगोश आ गये और उन्होने अपने प्राण गंवाए।   यह सिलसिला कुछ दिन चला और हर रोज एक न एक खरगोश उनकी लापरवाही का शिकार होते था।
आखिरकार उंन खरगोशो ने एक सभा कर अपने ऊपर आयी इस आकस्मिक आपदा का निदान खोजने का प्रयास किया ।   उन खरगोश के बुजुर्ग खरगोश को एक तरकीब सूझी ।  उसने बाकी खरगोशों से शान्ति बनाए रखने को कहा ।   उसने अपने साथियों से कहा कि किसी आपदा का सामना शान्ति से किया जाता है विचलित नहीं हुआ जाता है।  आप सब शान्ति से बैठिये मैं कुछ न कुछ करता हूँ ।   थोड़ी देर बाद जब हाथियों के झुन्ड के आने का समय हो चला था ।  तब वह पास के टीले पर चढ़ गया और जब हाथी उधर से गुजरने लगे तब वह चिल्लाकर बोला कि " मै देव दूत हूँ । पृथ्वी के देवता! चन्द्रमा ने मुझे भेजा है . आप लोग नहीं जानते हैं कि सारे खरगोश जिन्हे  शशांक भी कहते हैं।  वे भगवान चन्द्रमा के ही दूत हैं और चन्द्रमा से पास से ही आये है ।  आपने जाने अन्जाने मे खरगोशों को बहुत नुकसान पहुँचाया है उससे चन्द्रमा देवता आप लोगो से नाराज हैं ।   वे गुस्से से काँप रहे है ।  वे हमारे पास आये हुए हैं ।   इसलिये अच्छा यही होगा कि आप लोग इस जंगल को तुरंत ही छोड़ कर किसी दूसरी ज॒गह चले जाएं नहीं तो चन्द्रमा देवता के गुस्से का सामना करना पड़ जायगा ।  सब हाथी एक दूसरे की तरफ संशय और भय से देखने लगे । तभी उस बूढ़े खरगोश ने कहा इसमे कोई संशय करने की बात नहीं है ।   शाम को आपमे से कोई, इसी झील पर आ जाये और अपनी आखों से प्रत्यक्ष देख ले ।
जंगल जाकर हाथियों की बैठक मे निर्णय लिया गया और उनका मुखिया हाथी दबे पांव बिना किसी खरगोश को नुकसान पहुंचाए आया ।   उस समय शीतल मन्द हवा चल रही थी. झील मे पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की काँपती परछाईं देखकर वह हाथी चन्द्रमा को गुस्से मे काँपता समझ कर भयभीत हो गया और लौटकर बिना कोई समय खोये बाकी हाथियों के साथ जंगल छोड़ दिया ।   इस प्रकार संयंम और बुद्धि के प्रयोग से खरगोशों को विजय मिली।।

शरद कुमार श्रीवास्तव 

मुंशी प्रेमचंद : डाक्टर सुशील शर्मा कृत दोहे

31 जुलाई 1880  को जन्मे मुंशी प्रेमचंद को सादर नमन



धनपत मुंशी प्रेम थे,सब उनके ही नाम।

सूर्य सत्य साहित्य के,लमही उनका धाम।


ईदगाह का बाल मन,होरी का संसार।

गबन कफ़न सोजे वतन,हैं समाज आधार।


पंच सदा निष्पक्ष हो, परमेश्वर के रूप।

बूढ़ी काकी में लिखा,सामाजिक विद्रूप।


प्रेमचंद की लेखनी,दर्पण सत्य समाज।

प्रासंगिक थी उस समय,प्रासंगिक है आज।


कालजयी लिखते कथा,उपन्यास सम्राट।

प्रेमचंद साहित्य के,बरगद विशद विराट।


देशप्रेम जनहित सरल,सास्वत सत्य सुरेख।

आम आदमी से जुड़े,उनके सारे लेख।


समय सारथी सत्य के,प्रेमचंद सदज्ञान।

कालजयी थी लेखनी,सरस्वती अवदान।



सुशील शर्मा

गडरवाड़ा


हाथी बाल रचना वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


थाली जैसें  पांव  जमाता

हाथी        आया         है

टहनी जैसी सूंड़  हिलाता

सबको      भाया         है।


छोटी-छोटी आँखें इसका

मस्तक        है        ऊँचा       

हैं सचमुच केदाँत बताओ

बच्चों         ने        पूछा।    


ढोलक जैसा पेट पूंछ भी

है        कितनी       मोटी       

गन्ने घास-पात खाकर ही

तबियत    खुश      होती।


चिंघाडों से  डरकर बच्चे

दूर        भाग         जाते

लाख बुलाने सेभी इसके

पास        नहीं       आते।


कहा महावत ने बच्चों से

बिल्कुल    मत      डरना

निर्भयहोकर रोज़ सवारी 

हाथी        की      करना।

   


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

           9719275453

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*लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक* समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी डाक्टर पशुपति पाण्डेय

1 अगस्त को लोकमान्य  बाल गंगाधर तिलक  की पुण्य तिथि थी इस उपलक्ष्य  मे  हम  भारत के इस महान वीर स्वतंत्रता सेनानी  को श्रद्धा नमन करते हैं




बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के चिक्कन गांव में 23 जुलाई 1856 को हुआ था। इनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे।


अपने परिश्रम के बल पर शाला के मेधावी छात्रों में बाल गंगाधर तिलक की गिनती होती थी। वे पढ़ने के साथ-साथ प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम भी करते थे, अतः उनका शरीर स्वस्थ और पुष्ट था। 1879 में उन्होंने बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। घरवाले और उनके मित्र संबंधी यह आशा कर रहे थे कि तिलक वकालत कर धन कमाएंगे और वंश के गौरव को बढ़ाएंगे, परंतु तिलक ने प्रारंभ से ही जनता की सेवा का व्रत धारण कर लिया था।

परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अपनी सेवाएं पूर्ण रूप से एक शिक्षण संस्था के निर्माण को दे दीं। सन्‌ 1880 में न्यू इंग्लिश स्कूल और कुछ साल बाद फर्ग्युसन कॉलेज की स्थापना की।


तिलक का यह कथन कि 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा' बहुत प्रसिद्ध हुआ। लोग उन्हें आदर से 'लोकमान्य' नाम से पुकार कर सम्मानित करते थे। उन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।


लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंगरेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया। तिलक के क्रांतिकारी कदमों से अंगरेज बौखला गए और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर छ: साल के लिए 'देश निकाला' का दंड दिया और बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया। इस अवधि में तिलक ने गीता का अध्ययन किया और गीता रहस्य नामक भाष्य भी लिखा। तिलक के जेल से छूटने के बाद जब उनका गीता रहस्य प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार-प्रसार आंधी-तूफान की तरह बढ़ा और जनमानस उससे अत्यधिक आंदोलित हुआ।

तिलक ने मराठी में 'मराठा दर्पण व केसरी' नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए जो जनता में काफी लोकप्रिय हुए। जिसमें तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीनभावना की बहुत आलोचना की।


उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारतीयों को तुरंत पूर्ण स्वराज देने की मांग की, जिसके फलस्वरूप और केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।


तिलक अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए भी जाने जाते थे। ऐसे भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ।





पशुपति पाण्डेय 

सेवानिवृत्त  भारतीय स्टेट बैंक 

लखनऊ