ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 26 मार्च 2019

चुटकुले





1 रामू भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि एक बहुत बड़ा मकान हो । उस मकान में खूब रुपये पैसे हो। वहाँ बड़ी बड़ी गाड़ियों हों और उस घर में मैं नौकरी करूँ।
2 सरल रोहित को मोटरसाइकिल अब नहीं चलाने दूँगा । सामने नाले में जाते जाते बची।
अमन एक और मौका तो दे सकते हो बन्दे को ।
3 एक भिखारी दूसरे भिखारी से अरे यह नई कमीज़ कितने में ली है ।
भिखारी यह वाली खरीदी नहीं है दूसरी कमीज के साथ फ्री में आयी है । e
4 दरोगा : कल तुमने शराब के नशे में धुत होकर गाड़ी पेड़ मे ठोक दी थी ।
राजू : साहब गलत संगत का नतीजा है बोतल एक थी और साथी तीन और उन लोगों ने नहीं पी । मुझे गाड़ी में छोड़कर सभी चले गए थे ।

5  बेटा  —  पापा मुझे  बाँसुरी  खरीद  दीजिए ।
पापा —  नही बेटा  तुम  दिन भर कान फाडोगे ।
बेटा — नही  पापा  रात मे जब सब सो जाऐंगे  तब बजाऊँगा
6    चीकू — आशी बताओ मेरे पाकेट  में  कितनी टाफी  हैं  अगर सही  बताया  तो दोनो तुम्हे  दे दूंगा ।
आशी — भैय्या  मुझे  मूर्ख  नहीं  बनाओ  तुम्हारे पास  पांच  टाफी  है
7   शौर्य : (साईकिल का हैंडल छोड़ कर हाँथ पीछे छुपाते हुए ) संपत देखो  मेरे हाथ नहीं हैं।
उसी समय सौर्य गिर पड़ा तब संपत बोला  अब तो दांत भी नहीं हैं।
8    राजू :  माँ परेशान क्यों हो
माँ :    बटा दूध फट गया है
राजू :  इसमें परशान होने की क्या बात है सुई धागे से सल लो।
9       माँ :  लल्ली हम तुम्हारी शादी बहुत बड़े घर में करेंगे।
लल्ली :  नहीं माँ छोटे से घर में करना, सफाई का कामकाज तो मुझे ही करना  पडेगा।

होली आई (बाल कविता): सुशील शर्मा



होली आई होली आई।
रंग बिरंगी टोली आई।

मुन्नी ने ली है पिचकारी
संजू को चढ़ गई खुमारी।

ज्योति पहने फटी कमीज।
नेहा की रंग गई समीज।

सब बच्चे हुड़दंग मचायें।
जोर जोर से वो चिल्लायें।

लाल रंग टब में है घोला।
चाचा पियें भांग का गोला।

पापा घर में छिप कर सोये
मम्मी ने भी बाल भिगोये।

सब बच्चों का मुँह है काला।
मम्मी पापा को रंग डाला।

मम्मी ने गुझिया खिलवाईं।
सबने फिर फोटो खिंचवाईं।

दादाजी का रंगा है कुरता।
सबने खाया बाटी भुर्ता।

दिन भर चलती रंग रंगाई
होली आई होली आई।

                     सुशील शर्मा 

बाल कविता (बुन्देली ) : सुशील शर्मा





        होली



मैया मैं राधा सङ्गं होरी खेलन जेहों
गोरी गोरी राधा को खूबई रंग लगेहों।

माखन दे दे मैया मुझको ,
भूख बहुत लग रई है।
होली खेलन मोहे जाने ,
ढोलक जा बज रई  है।

तिनिक तिनिक धिन धा धा करके
खूबई नाच नचे हों।
मैया मैं राधा सङ्गं होरी खेलन जेहों।

ग्वाल बाल सब रंग रंगें हैं
उड़ रयो लाल गुलाल।
कुई कुई को मो कारो कारो
कुई कुई को है लाल।

बलदाऊ बच कर है भागो
बाहे ढूंढ रंगेहों।
मैया मैं राधा सङ्गं होरी खेलन जेहों।

आज बिरज में होली रे भैया
रंगें हैं लोग लुगाई।
लाल गुलाल उड़े गलियों में ,
हो रई गीत गवाई।

राधा गोरी के गालों पर
नेह को रंग लगेहों।
मैया मैं राधा सङ्गं होरी खेलन जेहों।


                     सुशील शर्मा

कविता - " दादी मां " : कृष्ण कुमार वर्मा







बच्चो को करे , प्यार - दुलार
कहानियां सुनाये जो बार - बार ...
ऐसी होती है घर पर 
प्यारी दादी मां का व्यवहार ...

करे हमेशा ख़ूब देखभाल ,
खिलाये रोजाना रोटी और दाल ...
अगर पड़े जो हम , थोड़ा बीमार ,
जल्दी ही करती घरेलू उपचार ...

ख़ूब खिलाती , ख़ूब घुमाती 
जीवन परख की हर बात बताती ...
नये- नये प्यारी सी लोरियां गाती ,
हमारे बचपन की सच्ची साथी ,
मेरी प्यारी , प्यारी दादी ....


                                 कृष्ण कुमार वर्मा 

आजा तितली : सुशील शर्मा




आजा तितली पास हमारे
हम बच्चे हैं प्यारे प्यारे।


कितने सुंदर रंग रंगीले
लाल हरे और सुंदर पीले
पंख तुम्हारे बहुत सजीले
खिले खिले से हैं चटकीले

कभी आंगन में कभी दुआरे
आजा तितली पास हमारे


कभी फूल पर कभी पत्तों पर
कभी बांस पर कभी बत्तों पर
कभी ऊँचे कभी नीचे आतीं
तितली तुम मन को क्यों भातीं?

क्यों उड़ती हो पंख पसारे ?
आजा तितली पास हमारे।

दूर दूर से मत ललचाओ।
हम बच्चों के पास तो आओ।
हम से कुछ बातें कर जाओ।
 संग खेल कर मन भर जाओ।

साथ उड़ें हम सभी तुम्हारे।
आजा तितली पास हमारे।


                    सुशील शर्मा


परीक्षा की तैयारी ( सार छंद) : महेन्द्र देवांगन






प्रश्न सभी तुम हल कर डालो , अच्छे नंबर पाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी  , अव्वल नंबर  आओ ।।

पढ़कर जाओ प्रश्न सभी को , लिखकर पूरा आओ ।
कर लो अब उपयोग समय का , व्यर्थ नहीं गंवाओ ।।

उठ जाओ जल्दी सोकर के , आलस को अब त्यागो ।
लक्ष्य अगर हासिल करना है,  झटपट जल्दी जागो ।।

अर्जुन जैसा लक्ष्य रखो तुम,  अचुक निशान लगाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी  , अव्वल नंबर आओ ।।

घबराना मत प्रश्न देखकर,  शांति पूर्वक विचारो।
समाधान चुटकी में होगा,  जीवन फिर सँवारों ।।

तांक झांक मत करना बच्चों,  अपने आप बनाओ ।
मिल जायेगी मंजिल तुमको , जग में नाम कमाओ ।।

नाम करो सब मातु पिता का , सच्चे पूत कहाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी  , अव्वल नंबर आओ ।।

देखो मत मुड़कर पीछे अब , आगे बढ़ते जाओ ।
नाम परीक्षा का लेकर के , कभी नहीं घबराओ ।।

कंटक पथ पर आगे बढ़कर  , तुम पद चिन्ह बनाओ ।
इस माटी का कण कण पावन,  माथे तिलक लगाओ ।।

भूलो मत संस्कार कभी भी , चरणों शीश झुकाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी  , अव्वल नंबर आओ ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कबीरधाम) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353

मेरे दोस्त : कृष्ण कुमार वर्मा



गिनती के है , मेरे दोस्त
पर सबके सब है , बड़े ही खास ...
भले ही उलझे है अपनी - अपनी 
दुनियां में हर पल ,
पर दूर होकर भी , रहते है हमेशा पास ...


कभी छोटी बात पर लड़ना , कभी थोड़ा 
सा झगड़ना ,
पर सब भूलकर , फिर से हाथ पकड़ना ...
हो सके इस सफ़र में सब ,
बिछड़ जाए ,
हो सकता है , ये लम्हे फिर
लौट के ना आये ...
पर जब तक है , साथ-साथ है ,
जीवन मे हर्ष और है उल्लास  ।

जिंदगी में निराशा , तनाव और
उलझनों के बीच ,
हां !
ये दोस्त मेरे #
दवाईयों के रूप में
बसते हैं ,
सकारात्मकता की एक अलग ही
दुनियां रचते है ....

गिनती के है , मेरे दोस्त 
पर सबके सब है , बड़े ही ख़ास !
























कृष्ण कुमार वर्मा
चंदखुरी फार्म , रायपुर 
9009091950

रविवार, 17 मार्च 2019

अच्छे बच्चे : सुशील शर्मा






सुबह सबेरे हम उठ जाएँ
मुंह धोकर प्रभु के गुण गायें।
मात पिता को शीश झुकाएं।
गुरु वंदन की रीत निभायें।

उठा पुस्तकें पढ़ने बैठें।
बड़े बुजुर्गों से न ऐंठे।
ध्यान लगा कर करें पढ़ाई।
माँ फिर देगी दूध मलाई।


रगड़ रगड़ कर खूब नहाएं।
सादा भोजन छक कर खाएं।
स्वच्छ साफ पोशाक पहनकर
खूब पढ़ें विद्यालय जा कर।

पेड़ों से हम देना सीखें।
नदियों से हम बहना सीखें।
आओ श्रम को हम अपनायें।
आलस को हम दूर भगाएं।

                      सुशील शर्मा

शनिवार, 16 मार्च 2019

जँगल में होली : शरद कुमार श्रीवास्तव




जब से बसन्त ऋतु आई है , जंगल  में  मस्ती छा गई थी   चिंटू बन्दर इस डाल से उस डाल  पर कूदकर  खेल  कूद  कर  रहा  है  ।  कोयल के मीठे गीतों से जंगल संगीतमय हो गया है ।  पेडों  पर नये पत्ते  आ गये हैं ।  इसी संगीतमय वातावरण  में  कौवे राम ने  अपना संगीत  घोलना प्रारंभ  कर  दिया ।   होली भी तो आ रही है, होली में  तो सब चलता है  ।  किसी  ने  भी   कौवे के कर्कश  गाने  का बुरा  नही माना  ।    किसी  बात की परवाह  किये  बगैर,  बिना  किसी  रोक टोक के,   शेर महाराज  के मांद के  ठीक  ऊपर वाले  पेड़  पर ही, शेर के  सोने के समय,  कौवे ने  अपना बेसुरा  गाना  शुरू  कर  दिया   ।   शेर  के  महासचिव  गीदड़  लाल ने  जब  कौवे को डाँट  लगाई , तो  कौवे ने ढिठाई से  कहा " होली है  भाई  होली है  बुरा न मानो  होली  है  " ।   यह कह कर गीदड  के  सिर पर कौवे ने  बीट कर दिया  ।    गीदड़  ने नाराज होकर,  महाराजा  शेर सिंह  को  एक बात की  चार बात लगाकर कौवे  की  शिकायत  कर दी ।    महाराजा शेर सिंह आग बबूला  हो गए ।   उन्होंने   एक बार  जोर से  गर्जना  की  कि यह कैसी गन्दी सन्दी होली  खेली  जा  रही  है  ।   अब  से इस जंगल मे कोई  होली नहीं  खेलेगा ।

 बन्नी खरगोश अपनी  पिचकारी  में  रंग  भरकर  हिरन के  ऊपर रंग  डालने वाला  था  ।   भेड़िया  और भालू  गुलाल लेकर   एक दूसरे के  मुँह  पर मलने  वाले  थे उसी समय महाराजा शेर सिंह ने  होली नहीं  खेलने  का  आदेश  जारी  कर  दिया ।अब  क्या  था  जंगल  में  खलबली  मच गई  थी  ।   साल भर के त्यौहार  मनाना  भी  मुश्किल हो गया था
 ।   सब लोगों  ने  जब कौवे  को भला  बुरा  कहा  तब उसे  समझ  में  आया कि  उसने  क्या  गलती  की  है ।   उसने  सब जानवरों  से  माफी  मांगी  ।  जंगल  के  जानवरों  की  एक  बैठक हुई  ।   बैठक  में  निर्णय  लिया  गया  कि  पहले कौवा,  महासचिव  गीदड़  लाल से   क्षमा मांगे फिर गीदड़    से ही   महाराजा  शेर सिंह  के  कोप को  कम करने  का  उपाय  भी  पूछा  जाए  ।    जानवरो  की  एक टीम  महासचिव  गीदड़  लाल के पास कौवे को  अपने साथ  लेकर  गई ।   वहाँ  जाते ही कौवे ने पहले अपनी  भूल  स्वीकार  की और महासचिव  गीदड़  लाल जी  से  माफी मांगी ।   गीदड़ लाल  ने कहा कि  कौवे की  टांय  टांय  के  कारण  महाराज  सो नहीं  पाया रहे  हैं  ।  आपलोग कुछ ऐसा  करो कि महाराज  को नींद  आ  जाय तब महाराज  खुशीखुशी  सब लोगों  को  होली  खेलने  की  इजाजत दे देगें, एक  बात और है  कि  किसी  को  भी  गन्दी  तरह  होली  नही  खेलने  दी जाएगी  ।   फिर  क्या  था  सब जानवर खुश  हो  गए ।  कोयल  ने खूब  सुरीला  राग छेडा ,  धीरे  धीरे मतवाली  हवा  चलने  लगी  कि  महाराज  शेर सिंह  को  नींद  आ गई  ।     सोकर  उठते ही  उन्होंने  खुशी  खुशी  सब जानवरों  को  होली  खेलने  की  अनुमति  दे दी और जंगल  में  फिर  खुशियाँ  वापस आ  गई

शरद कुमार श्रीवास्तव

शरद कुमार श्रीवास्तव

गुड़िया की होली ( सार छंद ): प्रिया देवांगन "प्रियू"



























छमछम करती गुड़िया रानी ,
घर आँगन मे आई ।
अपने हाथो रंगे लेकर ,
सबको खूब लगाई ।।
हाथो मे पिचकारी लेकर ,
दादी को  भिगाई ।
दौड़ दौड़ कर गुड़िया रानी ,
सब को रंग लगाई ।।
मम्मी ने पकवान बनाई ,
पापा भांग मिलाये ।
बच्चे बूढ़े सभी जनों ने ,
झूम झूम कर  गाये ।।













प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

होली आई : श्रीमती मंजू श्रीवास्तव



























रंग बिरंगा होली का त्योहार,
खुशियां लाया बेशुमार|
नीले पीले,लाल, गुलाबी,
रंगों की हो रही बौछार|
शोर मचाती बच्चों की टोलीने
रंग बरसाये पिचकारी से,
होली है भई होली है,
बुरा न मानो होली है,
मन के  भेद भाव मिटाकर,
अच्छाइयों का दीप जलाकर
प्यार से सबको गले लगाकर,
बुज़ुर्गों का सम्मान करके,
छोटों पर स्नेह लुटाकर
होली का त्योहार मनाओ,
खुशियां बांटो, खुशियां पाओ |

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 मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार |

होली का हुड़दंग शरद कुमार श्रीवास्तव





 आयुष  घर मे जैसे ही  घुसा, सारा घर हँस  पड़ा।   वह बाहर से एकदम काले मुहँ वाला बन्दर बन कर आया  था       बाहर  रोड  पर   किसी ने  उसके  चेहरे  पर  काला रंग लगा दिया  था ।   सबको हंसता हुआ देख कर आयुष  के  पापा बोले  आप सब क्यों  हँस  रहे  हैं  ।   मनीष  बोल पड़ा  कि किसी  बच्चे  ने आयुष के  चेहरे पर  काला रंग पोत  दिया  है जिसको देखकर हम सबको हंसी आ गई । 


मनीष फिर बोला, हमारी  कालोनी  में  तो सब लोग  सफाई  से होली खेलते हैं कोई  गन्दे रंगों  से नही खेलता  है ।  पापा   आयुष से पूछो यह मेन  रोड की तरफ होली  खेलने  गया  ही क्यों  था ।   पापा  ने कहा कि हाँ  ठीक ही तो   है  कि  होली के  हुड़दंग  मे छोटे  बच्चों  को  बहुत  एहतियात  के  साथ  होली  खेलना चाहिए  ।  बच्चों  की  त्वचा  बहुत  कोमल होती है  और  हुडदंग  में  लोग खराब  रंगों  का  भी  इस्तेमाल करते हैं  जिससे त्वचा में इंफेक्शन  होने  का  डर रहता  है  ।   इसीलिए  मैंने  तुम सब  लोगों  को हाथ   और मुंह  मे  मास्चराइजर  तथा  बालों  में जैतून का तेल  लगवाया था

मनीष  बोला  कि   पापा होली  तो मेल मिलाप और प्रेम - सौहार्द  का त्योहार  है।   हमे सूखे  अबीर गुलाल  से  होली खेलना  चाहिए  ।    पापा आगे  बोले, हमे प्राकृतिक  रंग  भी उपलब्ध  हैं  जैसे  टेसू के  फूल इत्यादि जो  गांवों  में पेड़ों पर ताजे मिल  जाते हैं  और शहरों में  पंसारी की  दुकानों  पर  भी  मिल  जाते उनका गीला रंग  बना  कर  होली खेलने  का  मजा ही   कुछ  और है  ।
मम्मी  ने, तबतक, पकवानों  के  साथ  खाना  भी  लगा  दिया  ।   आज के  दिन  तरह  तरह के  पकवान  बनते हैं  और घरों मे होली मिलने के लिए जाने पर सब जगह   थोड़ा  बहुत  तो खाना  ही  पड़ता  है  इसलिए  मम्मी  ने  खाने  की  टेबल पर  कहा  कि  बच्चों  बाहर अधिक   खाना खाने  से  बचना  अगर  खाना  ही  पडे तो बिल्कुल  नाममात्र  ही  खाना  चाहिए ।
  शाम  को  घर के  सब लोग  दादी  बाबा  के  घर  पर  गये दादी  बाबा  ने सब बच्चों  को  गले लगाया  और होली का  उपहार  दिया। 



          शरद कुमार श्रीवास्तव


बुधवार, 6 मार्च 2019

nana ki  pitari नाना की पिटारी  ब्लॉगर  डाॅट काम पर


प्रभुदयाल श्रीवास्तव का बालगीत

           

       रेल यात्रा 


    यदि रेल से बच्चों तुमको ,
    किसी जगह पर जाना हो|
    आधा घंटे पहले घर से ,
     होकर तैयार रवाना हो |


     स्टेशन पर जाकर तुमको ,
     रेल टिकेट लेना होगी,
     मांगो  खिड़की पर बाबू से,
      तुम्हें जिस जगह जाना हो|

    पैसों और टिकिट को रखना,
     किन्हीं सुरक्षित जेबों में,
     ध्यान सदा जेबों पर रखना,
    जेबें अगर बचाना हो |


    भीड़ बहुत होती रेलों में,
    कम से कम  सामान  रखो,
   ताकि जल्दी से डिब्बे में,
    किसी तरह चढ़ जाना हो |
  हो सकता है तुरत फुरत ही,
   तुमको जगह न मिल पाए |
   हो सकता है जाना तुमको,
   खड़े खड़े  पड़ जाना  हो |


   अगर कहीं गुंजाइश दिखती,
   की तुम जाकर बैठ सको,
   हो सकता कोई मिल जाए,
    जो जाना पहचाना हो |


    प्राय:नम्र निवेदन से तो,
   लोग जगह दे देते हैं,
   किन्तु  याद  रखना होगा ,
   व्यवहार सदा दोस्ताना हो |


   यदि राह में कोई मुसाफिर ,
   कुछ खाने को देता है,
   मत खाना यदि देने वाला ,
  बिलकुल ही अनजाना हो |
   चलती गाडी में से बच्चो,
    मत कभी उतारना जल्दी में |
    भले सामने तुमको दिखता, 
   अपना ठौर ठिकाना   हो |


     स्टेशन की चाट पकौड़ी,
     कभी भूल से खाना मत,
     लेना भोजन बिलकुल सादा ,
     यदि भूख लगे कुछ खाना हो |













प्रभु दयाल श्रीवास्तव



जीवन इसका नाम ( सरसी छंद) : महेन्द्र देवांगन



जीवन को तुम जीना सीखो , किस्मत को मत कोस ।
खुद बढकर तुम आगे आओ , और दिलाओ जोश ।।
सुख दुख दोनों रहते जीवन ,  हिम्मत कभी न हार ।
आगे आओ अपने दम पर , होगी जय जयकार ।।
सिक्के के दो पहलू होते , सुख दुख दोनों साथ ।
कभी गमों के आँसू बहते , कभी खुशी हैं हाथ ।।
राह कठिन पर आगे बढ़ जा , मंजिल मिले जरूर ।
वापस कभी न होना साथी , होकर के मजबूर ।।
अर्जुन जैसे लक्ष्य साध लो  , बन जायेगा काम ।
हार न मानो कभी राह में  , जीवन इसका नाम ।।
जीवन एक गणित है प्यारे , आड़े तिरछे खेल ।
गुणा भाग से काम निकलता , होता है तब मेल ।।
हँसकर के अब जीना सीखो , छोड़ो रहना मौन ।
माटी का जीवन है प्यारे ,  यहाँ रहेगा कौन ?

महेन्द्र देवांगन माटी 
पंडरिया (कवर्धा) 
छत्तीसगढ़ 
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com







खेल दिखाते  बंदर मामा।
पहने कुरती और पजामा।

चढ़े मदारी के वो हाथ।
छोड़ा मामी ने भी साथ।
उन्हें मदारी रोज नचाता।
नए नए करतब करवाता।

भूखे पेट उन्हें है रखता।
और साथ में गाली बकता।
रस्सी पर वो उन्हें चलाता।
आग भरे गोले फिकवाता।

बंदर मामा रोते रहते।
अपना दर्द कौन से कहते।
रोज मदारी उन्हें सताता।
बना बंदरिया उन्हें नचाता।

आज मुझे भी गुस्सा आई।
तुरत पुलिस में रपट लिखाई।
देख पुलिस को भगा मदारी।
बंदर मामा खुश थे भारी।

सुशील शर्मा 

प्रिया देवांगन " प्रियू" की रचना : योग करो




योग करो
************
योग करो सब योग करो।
सुबह शाम योग करो।।
योग करो सेहत बनाओ ।
ताजा ताजा फल को खाओ।।
योग करो सब योग करो।
सुबह उठ कर दौड़ लगाओ।।
शुद्ध ताजा हवा को पाओ।।
जूस पीओ और फल फूल खाओ।
शरीर को सब स्वस्थ बनाओ।।
योग करो सब योग करो।
सुबह शाम सब योग करो।।

प्रिया देवांगन " प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

बुद्धिमान नमन : बालकथा : रचना श्रीमती मंजू श्रीवास्तव



नमन बचपन से ही बहुत होशियार था| उसके माता पिता ने उसे गुरुकुल भेज दिया था पढ़ाई करने के लिये |
  गुरुकुल मे नमन  गुरुओं की देखरेख मे बहुत कुशल छात्र बन रहा था|
  एक दिन गुरु जी ने सभी छात्रों की परीक्षा लेने का विचार किया |
   सभी छात्रों को एक़ एक घड़ा देरर तालाब से पीने का साफ पानी लाने को कहा|
सभी छात्र तालाब से पानी भरकर ले आये | लेकिन नमन अभी तक नहीं आया था|
कुछ देर प्रतीक्षा के बाद नमन भी आ गया | गुरु जी ने सब घड़ों का पानी देखा , बहुत गंदा था | लेकिन नमन के घड़े मे पानी बहुत साफ था |
गुरुजी ने छात्रों से पूछा  एक बात बताओ कि नमन को छोड़कर सब
के घड़े का पानी इतना गंदा क्यों है?
सभी लोग तो उसी तालाब से पानी लाये हो |
सब छात्रों ने कहा हम जल्दी से अपने अपने घड़े भरकर ले आये|
नमन ने कहा गुरुजी, मै थोड़ी देर वहाँ बैठा रहा कि पानी की गंदगी नीचे बैठ जाय, तब मै घड़ा भरूँ |
इसलिये मेरे घड़े का पानी साफ है |
गुरुजी बहुत खुश हुए| नमन को बहुत आशीर्वाद दिया और कहाआगे चलकर तुम बहुत बड़े ज्ञानी बनोगे|
तुमने अपनी बुद्ध से काम लिया|
गुरुजी ने आगे छात्रों से कहा, कोई भी काम करो धीरज के साथ करो | जल्दी बाजी मे कोई भी काम नहीं करना चाहिये | जो धैर्यपूर्वक काम करता है वही सफल होता है |



                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार