ब्लॉग आर्काइव
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2020
(216)
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अक्टूबर
(21)
- लालबिहारी को अपनी माँ का घर से बाहर का काम करना...
- नवरात्रि" (कुण्डलियाँ)
- ज्योति : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की लघुकथा
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता लल्लू चाचा
- प्रतिमा और प्रति- माँ" : प्रिया देवांगन प्रियू की...
- बीसतीस साल बाद कम्प्यूटर की दुनिया में
- नवरात्रि : प्रिया देवांगन प्रियू की प्रार्थना
- उगता सूरज ढलता सूरज" ( सार छंद) स्व महेन्द्र देव...
- बिल्ली बोली चूहे राजा,,(बाल गीत) : वीरेन्द्र सिंह ...
- नीरज त्यागी की बालकथा - बापू की सीख
- चीता की समझदारी : अंजू जैन गुप्ता जी बालकथा
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता पिकनिक
- गीदड़ को मिल गई बाँसुरी वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की...
- संस्कृति का जन्मदिन
- Poem on parents : by Naavya Kumar
- मुर्गा बाँग लगाता है प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
- कुमारी आराम अली खान के द्वारा बनाया गया चित्र
- पुरानी ऐनक रचना :कृष्ण कुमार वर्मा
- मेरे भी कई ख़्वाब थे ,पर परिस्थितियों ने तोड़कर रख द...
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना : महिने में पंद्रह इतवार
- बापू के बन्दर (रोला छंद) : प्रिया देवांगन प्रिय...
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अक्टूबर
(21)
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020
नवरात्रि" (कुण्डलियाँ)
सजता सुंदर द्वार है , स्वागत करते लोग।
माता रानी आती है , सभी लगाते भोग।।
सभी लगाते भोग , भक्त जन करते सेवा।
लेते आशीर्वाद , सभी पाते हैं मेवा।।
सभी जलाते दीप , द्वार सुंदर है लगता ।
आती माता रोज , घरों में दीपक सजता।।
आई सबके द्वार में , माता रानी आज।
शीश झुकाते लोग हैं , बनते बिगड़े काज।।
बनते बिगड़े काज , कामना पूरा करती।
खुश होते हैं लोग , खुशी जीवन मेंभरती।।
दीप जलाते लोग , दिलों में खुशियाँ छाई।
सभी भक्त के साथ , द्वार में माता आई।।
"माटी पुत्री" - प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
ज्योति : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की लघुकथा
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता लल्लू चाचा
सोमवार, 26 अक्टूबर 2020
प्रतिमा और प्रति- माँ" : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020
बीसतीस साल बाद कम्प्यूटर की दुनिया में
प्रिंसेज डॉल सुबह सुबह ही अपनी मम्मी के लैपटॉप को खोलकर बैठ गयी। मम्मी घर से बाहर किसी काम से निकल गई थी। अच्छा मौका था और कोई दूसरा रोक टोक करने वाला नहीं था पापा जी तो पहले ही टूर पर थे।
उसने मम्मी को लैपटॉप पर www टाइप करते देखा था अतः उसने भी वैसा ही किया लेकिन तीन बार w की की दबाने के स्थान पर उसने पांच बार w की को दबा दिया। फिर क्या था कि स्क्रीन पर दो मटकती हुई आंखें झांकने लगी। प्रिंसेज डॉल ने डरते हुए पूछा कि आप कौन हैं। तभी लैपटॉप से आवाज आई मै wwwww से हूँ यानी world wide Web with wonders और आपने ही मुझे बुलाया है।.
प्रिंसेज डॉल ने पूछा कि आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं। इसपर उसने कहा कि मै अपनी साइट से आपको कहीं भी ले जा सकता हूँ अगर आप के पास उसका ईमेल अथवा वाट्सअप नंबर हो और वापस भी छोड़ सकता हूँ। प्रिंसेज ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और अपनी नानी का वाट्सअप नम्बर टाइप कर दिया।. लैपटॉप ने जल्दी से उसे कम्प्यूटर मे एक तरंग माध्यम मे खींच लिया और वह तुरंत अपनी नानी के कम्प्यूटर पर पहुंच गई। नानी जी का लैपटॉप बन्द था इसलिए वह बाहर नहीं निकल सकती थी।
उसने wwwww को फिर रोकर कहा कि मुझे अपनी मम्मी के पास जाना है। वो तरंगें जो उसे नानी के साइट पर ले गईं थीं उन्होंने प्रिंसेज से उसकी मम्मी का ईमेल या वाट्सअप नंबर पूछा जो उसे रटा हुआ था बता दिया और वह फिर से मम्मी के लैपटॉप पर आ गई और बाहर आ गई। तब तक उसकी मम्मी बाहर से लौट कर नहीं आई थीं। प्रिंसेज डॉल को अच्छा सबक मिल गया था कि वह आगे से मम्मी का लैपटॉप नहीं छुएगी। इसी बहाने प्रिंसेज डॉल ने अबसे बीस तीस साल बाद की कम्प्यूटर की दुनिया का मज़ा ले लिया था।
शरद कुमार श्रीवास्तव
नवरात्रि : प्रिया देवांगन प्रियू की प्रार्थना
माँ दुर्गा के चरणों में मैं ,
अपना शीश झुकाती हूँ ।
करती हूँ मैं रोज सेवा ,
चरणों मैं शीश नवाती हूँ ।।
माँ दुर्गा के चरणों में मैं ,
अपना शीश झुकाती हूँ ।
करती हूँ मैं रोज सेवा ,
चरणों मैं शीश नवाती हूँ ।।
आशीर्वाद दे दो माता ,
मैं छोटी सी बालिका ।
रक्षा करो माँ मेरी तुम ,
बनकर के तुम कालिका।।
तुम ही दुर्गा तुम ही काली ,
तुम ही हो गौरी माता ।
मैं अज्ञानी बाला हूँ,
पूजा पाठ न मुझे आता ।
खड़े हुए हैं हाथ जोड़कर,
भक्त तुम्हारे दरबार में ।
आशीर्वाद दे दो माता ,
आये हैं तेरे द्वार में ।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला -कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
priyadewangan1997@gmail.Com
उगता सूरज ढलता सूरज" ( सार छंद) स्व महेन्द्र देवांगन माटी
उगता सूरज बोल रहा है, जागो मेरे प्यारे ।
आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।।
कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना।
सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।।
ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई।
करता है जो काम गलत तो, शामत उसकी आई।।
कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ।
होगा नया सवेरा फिर से, गीत खुशी के गाओ ।।
उगता सूरज ढलता सूरज, बतलाती है नानी ।।
ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।।
रचनाकार -
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Mahendradewanganmati@ail.com
बिल्ली बोली चूहे राजा,,(बाल गीत) : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना -
बिल्ली बोली चूहे राजा,
क्यों मौसी से डरते हो,
निर्भय होकर घर-भर में,
क्यों नहीं कुलांचें भरते हो।
-------------------
छोड़ा मांसाहार कभी का,
छोड़ दिया अंडा खाना,
अब तो मुझे बहुत भाता है,
दाल - भात ठंडा खाना,
मेरी सच्ची बातों पर क्यों,
नहीं भरोसा करते हो।
बिल्ली बोली ----------------
मेरा मन करता है मैं भी,
साथ तुम्हारे नृत्य करूं,
साज उठाकरखुदको भी मैं,
सरगम में अभ्यस्त करूं,
फिरभी प्यारी मौसी से क्यों,
डर के मारे मरते हो।
बिल्ली बोली--------------
देखो मेरी कंठी - माला,
देखो राम दुपट्टा भी,
याद नहीं मैंने मारा हो,
तुम पर कभी झपट्टा भी,
मेरे सम्मुख खीर मलाई,
लाकर क्यों ना धरते हो।
बिल्ली बोली-------------
अब तो आँख मीच ली मैंने,
फिर काहे की शंका है,
धमा चौकड़ी खूब मचाओ,
बजा प्यार का डंका है,
मेरी गोदी में आने से,
तुम किसलिए मुकरते हो।
बिल्ली बोली---------------
सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली,
कितनी भोली बनती है,
एक आँख कर बंद, गौर से,
सबकी बोली सुनती है,
सुनो, शर्तिया मर जाओगे,
यदि तुम आज बिखरते हो।
बिल्ली बोली---------------
--------- 💐💐 --------
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
दि0- 06/10/2020
नीरज त्यागी की बालकथा - बापू की सीख
राजू एक नवी कक्षा का छात्र है और अपने घर के पास ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है।राजू बचपन से ही पढ़ने बहुत होशियार विद्यार्थी है।लेकिन उसके दिमाग की सारी अच्छाइयां उसके गणित के अध्यापक के सामने खत्म हो जाती हैं। वह लगातार अपने गणित के अध्यापक के हाथों डांट खाता रहता है और कक्षा से बाहर किया जाता रहता है।राजू इस बात से बहुत ही दुखी था।क्योंकि अपनी तरफ से तो वह सभी सवालों का सही जवाब देता है।लेकिन ना जाने क्यों गुरुजी लगातार उसे डांटते रहते है और कक्षा से बाहर निकालते रहते हैं।
गाजियाबाद के सरकारी स्कूल मैं पढ़ रहा राजू बड़ी ही मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहा था।क्योंकि उसे पता था कि वह अपने गरीब मां-बाप का भविष्य पढ़कर ही सुधार सकता है।2 अक्टूबर आने वाली थी यानी कि हमारे *प्यारे बापू ( महात्मा गाँधी )*जी का जन्म जिस दिन हुआ था।आज रात राजू कुछ ज्यादा ही परेशान था।रात को परेशान होते-होते राजू ने महात्मा गांधी जी की तस्वीर, जो कि उसके घर की दीवार पर टंगी हुई थी।उसने बापू के हाथ जोड़े और प्रार्थना की,बापू मुझे अपने गणित के अध्यापक की डाट खाने से बचा लो।उसके बाद वो सो गया।
राजू को अभी नींद नही आयी थी कि उसने देखा,अचानक तस्वीर से निकलकर बापू,राजू के सामने खड़े हो गए।उन्होंने राजू की समस्या का बड़े ही ध्यान से सुना और राजू से पूछा कि आखिर क्या वजह है,वह अध्यापक उसी को इतना डांटते है।राजू ने बताया कि वह सारे सवालों का सही जवाब देता है।किंतु उसके गणित के अध्यापक सबके सामने उसका मजाक उड़ाकर कक्षा से निकाल देते है और सभी छात्र भी उसका मजाक उड़ाते है।
सब बातों को सुनकर गांधी जी ने उसे एक उपाय बताया।बेटा राजू,तुम रोज अपने अध्यापक के पास जाओ और उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करके,बिना उनसे डांट खाए,अपनी गणित की कॉपी उन्हें देकर खुद ही मुस्कुराते हुए कक्षा के बाहर आकर खड़े हो जाओ और उन्हें ये जरूर बता देना कि आप तो मुझे कुछ देर बाद निकाल ही दोगे।देखना इस बात से उनके ऊपर बहुत असर पड़ेगा और वह तुम्हें कक्षा के अंदर लेकर सही तरीके से पढ़ाने लगेंगे और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।
राजू को उनका ये उपाय बहुत अच्छा लगा।अगले ही दिन वह कक्षा में पहुँचा और जैसे ही गणित के अध्यापक आए।उसने उनसे हाथ जोड़कर नमस्ते की और कहा सर थोड़ी देर में तो आप मुझे डांट कर कक्षा से निकालने वाले हैं।मैं खुद ही कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो जाता हूँ और वह कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो गया।यह घटनाक्रम लगातार पांच दिन चलता रहे लेकिन गणित के अध्यापक पर कोई भी असर नहीं पड़ा।बल्कि वह हंसते हुए उसके सामने से रोज निकल जाते हैं।राजू बहुत ही परेशान था।
कल 2 अक्टूबर है।उसने एक बार फिर बापू से पूछा,बापू-अध्यापक के ऊपर तो कोई भी असर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूं,तब बाबू ने कहा बेटा कल तुम मेरी फोटो को लेकर जाना और यह घटना दोबारा से दोहराना।उन्हें गणित की कॉपी के साथ मेरी तस्वीर भी जरूर दे देना।अगले दिन राजू ने फिर उसी घटना को दोहरा दिया।इस बार गणित के अध्यापक को हाथ जोड़कर नमस्ते कर,उसने बापू की तस्वीर भी उनको दे दी और कक्षा से बाहर आकर खड़ा हो गया।
लेकिन आज गणित की कक्षा समाप्त होने के बाद गणित के अध्यापक ने राजू को निराश नहीं होने दिया।उन्होंने राजू को दो 500 रुपये के नोट दिखाये।जिस पर महात्मा गांधी जी का फोटो छपा हुआ था। उन्होंने राजू को बताया बेटा कक्षा के लगभग सभी विद्यार्थी मुझसे ट्यूशन लेते हैं जिससे कि वह पास होकर अगली कक्षा में पहुंच जाएंगे।एक तुम ही हो,जो मुझसे ट्यूशन नहीं पढ़ते। बेटा मेरी बात समझने की कोशिश करना,बापू की बात तो आज भी सारी सही है।लेकिन जो तस्वीर तुम्हारे हाथ में है और जो तस्वीर मेरे हाथ में इस नोट पर है।उस तस्वीर वाले रुपयों से मुझसे ट्यूशन लो और देखना तुम्हे मैं फिर कभी कक्षा से नही निकलूंगा।
राजू खुशी-खुशी अपने घर पहुँचा।शाम को फिर बापू की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर बापू से बोला, आखिर आपकी तस्वीर ने मुझे आज बचा ही लिया।अब मैं समझ गया हूँ कि मुझे आगे क्या करना है।बापू ने कहाँ,देखा मैंने तो कहाँ ही था सब कुछ ठीक हो जाएगा।फिर महात्मा गांधी जी ने भी अचंभित होकर सारी घटना को सुना।
*बापू ने सारी घटना सुनकर यही निष्कर्ष निकाला,कि शायद आज उनकी बातों को और उन्हें लोगो ने इसीलिए नही भुलाया,क्योंकि उनकी तस्वीर एक ऐसे कागज पर मौजूद है।जिसकी जरूरत जीवन की दिनचर्या चलाने के लिए बार-बार पड़ती है।वरना लोग शायद उन्हें कब का भूल जाते।बापू निराश होकर भारी मन के साथ वापस तस्वीर में चले गए।*
नीरज त्यागी `राज`
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
* संपादक की ओर से - गांधी जी का मन इस लिए भी क्षोभ से भर गया कि समाज इस तरह से बुराईयों में लिप्त है कि अब राजू के कमजोर हाथ समाज को इस कमजोरी से बचा नहीं सकते हैं
संपादक
चीता की समझदारी : अंजू जैन गुप्ता जी बालकथा
अफ्रीका के घने जंगलों में बहुत सारे जानवर रहते थे।उसी जंगल में शेर,टाइगर और चीता भी रहते थे।शेर उस जंगल का राजा था और सभी जानवर उस से डरते थे।
एक दिन यूहीं बातो-बातो में उन तीनों के बीच जंग छिड़ जाती है कि ,"सबसे तेज कौन दौड़ता है "? शेर कहता है कि,"मैं सबसे तेज दौड़ता हूँ ",तभी टाइगर कहता है," नहीं-नहीं मैं सबसे तेज दौड़ता हूँ "। अब इन दोनों की बाते सुन चीता ठहाके मार मुस्करा ने लगता है और कहता है तुम दोनों भी ना कैसी बातें करते हो, "तुम्हे इतना भी नही पता कि सबसे तेज तो मैं ही दौड़ता हूँ " ।शेर कहता है कि," जंगल का राजा तो मैं हूँ और मैं ही सबसे तेज दौड़ता हूँ "। तब चीता कहता है कि चलो हम तीनों दौड़ लगाते है और जो इस दौड़ प्रतियोगिता में जीतेगा वही इस जंगल में रहेगा और बाकी दोनों को ये जंगल छोड कर कही दूर जाना पड़ेगा।चीता की ये शर्त दोनों मान जाते है और प्रतियोगिता की तैयारियों में लग जाते है और टाइगर कहता है कि चलो," हम ये दौड़ प्रतियोगिता आरंभ करते है,अब शेर महाराज जी आप जल्दी से किसी को बुला लीजिए जो इस दौड़ प्रतियोगिता को करवा सके और सही निर्णय भी दे पाए"। शेर कहता है हाँ, हाँ रुको मै अभी किसी को बुलाता हूँ,तभी वहाँ से एक खरगोश गुजर रहा होता है किन्तु जैसे ही , शेर आवाज लगाता है खरगोश -खरगोश इधर आओ, वह डर जाता है और उल्टे पैर ही लौट जाता हैं।अब वहाँ से चीटी गुजरती है शेर उसे भी आवाज़ लगाता है वह भी शेर की आवाज़ सुनकर डर जाती है और "कहने लगती है नहीं नहीं महाराज मुझे नहीं खाना मैं तो छोटी सी हूँ मुझे नहीं खाना", और यह कहते ही वहाँ से चली जाती है।
कुछ देर बाद उन्हे सामने से लोमड़ी चाची आती हुई दिखाई देती है और शेर उसे आवाज़ लगाते हुए कहता है, कि चाची- चाची डरो नहीं; इधर आओ मैं तुम्हें खाऊँगा नही एक जरूरी काम है। यह सुनते ही चाची डरती -डरती उनके पास आती है और कहती हैं हाँ महाराज बोलिए क्या बात है?
शेर कहता है कि चाची हम तीनों के बीच एक दौड़ प्रतियोगिता करवानी है और देखना है कि सबसे तेज गति से कौन दौड़ता है आप हमारे बीच यह प्रतियोगिता करवा दीजिए। चाची कहती है ,जी महाराज अवश्य।
चाची प्रतियोगिता का स्थान व समय निश्चित तय कर देती है और वे तीनों निश्चित किए गए समय पर पहुँच जाते है। अब चाची कहती है ,कि आप सबको सामने दूर जो पेड़ दिखाई दे रहा है उसे छू कर वापिस आना है जो सबसे पहले आएगा वही विजेता होगा। फिर चाची प्रतियोगिता को आरंभ करती है और चाची के one,two ,three go कहते ही वे तीनों दौड़ शुरू कर देते है और तीनों ही बड़ी तेज गति से दौडना आरंभ करते है,परन्तु चीता के दौड़ने की (speed)गति तो सबसे तेज होती है इसलिए वह ही सबसे पहले पहुँच कर इस प्रतियोगिता का विजेता बन जाता है।
अब चाची शेर और टाइगर से कहती है कि कुछ समझे !तुम दोनों, "धरा पर चीता ही सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर होता है और इस दौड़ प्रतियोगिता का विजेता भी यही है"।
जीतने पर चीता बहुत खुश होता है और ज़ोरो से कहता है wow!!मैं जीत गया अब शर्त के अनुसार आप दोनों इस जंगल को छोड़कर कहीं दूर चले जाइए। शेर और टाइगर चीता की बात मान जाते है और वे दोनों इस जंगल को छोड़ कर कहीं दूर चले जाते हैं। यह देखकर जंगल के सभी जानवर बहुत खुश हो जाते हैंऔर चीता का शुक्रिया अदा कर कहते है, चीता जी,चीता जी आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने हमें बचा लिया वरना शेर महाराज तो हमें एक एक कर खा ही जाते अब हम सब इस जंगल में आराम से रहेंगा।
अंजू जैन गुप्ता
गुडग़ांव
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता पिकनिक
लालू, कालू मोहन,सोहन,
चलो वलें अब पिकनिक में|
लीला, शीला, कविता, रोशन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
ले जाएंगे आलू बेसन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
वहीं तलेंगे भजिये छुन-छुन,
चलो चलें अब पिकनिक में |
चलकर सीखेंगे योगासन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
योगासन पर होगा भाषण,
चलो चलें अब पिकनिक में|
प्रिंसिपल होंगे मंचासन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
रखना है पूरा अनुशासन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
गाएंगे सब बच्चे गायन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
लाओ अपने अपने वाहन,
चलो चलें अब पिकनिक में|
मनमोहन मनभावन है दिन,
चलो चलें अब पिकनिक में |
नदी किनारा लोक लुभावन ,
चलो चलें अब पिकनिक में
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र
गीदड़ को मिल गई बाँसुरी वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल रचना ,
गीदड़ को मिल गई बांसुरी,
लगा छेड़ने तानें,
मैं ही संगीतज्ञ बड़ा हूँ,
जानवर जानें।
-----------------
जो संगीत सीखना चाहे,
पास मेरे आ जाए,
ढोलक, ढपली और मंजीरा,
दिनभर खूब बजाए,
पैसा नहीं रोज़ मुर्गा ही,
फीस मेरी है जानें।
गीदड़ को-----------------
कान खोलकर सुन लो मेरी,
फीस नियम से आए,
दुबला -पतला नहीं चलेगा,
मोटा मुर्गा लाए,
गद्दारी करने की मन में,
तनिक न कोई ठानें।
गीदड़ को------------------
मैंने अपने गुरु "गधे" से,
कभी न की मनमानी,
ढेंचू - ढेंचू की तानों से,
सीखी बीन बजानी,
गुरु गुरु होता है उसकी,
महिमा को पहचानें।
गीदड़ को-------------------
सुबह दुपहरी से संध्या तक,
सबको लगा सिखाने,
मुर्गा, बत्तख, खरहा, कबूतर,
खुलकर लगा चबाने,
कहा शेर ने शोर कहाँ से
आया हम भी जानें।
गीदड़ को--------------------
पहुंच गया जंगल का राजा,
सूंघ सूंघकर राहें,
उड़ा रहा था दावत गीदड़,
सान सानकर बांहें,
देख शेर को थर-थर काँपा,
भूल गया सब तानें।
गीदड़ को---------------------
--------💐--------
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
बुधवार, 7 अक्टूबर 2020
संस्कृति का जन्मदिन
आशी आई चीकू भी आए
क्लास के सारे बच्चे आए
नाना मम्मी पापा घर ही थे
बाकी सब आनलाईन आए
नये रंग में चेहरे खिले सारे
खुशी मनाईं हिलमिल सारे
करोना को मजा चखाया
बेबी ने जन्मदिन मनाया
शरद कुमार श्रीवास्तव
Poem on parents : by Naavya Kumar
I love my parents and they love me,
I was born in my mother's tummy.
My father is always cheerful and kind and he always takes me for a ride.
Whatever I want they just agree ,
Thanks to my parents for bringing me glee.
My mother is sweet ,nice and good ,
She always cooks delicious food.
Whenever I am in danger they come to rescue me and When I look at them they smile at me.
Whenever I am sad my parents cheer me and now I am always happy because I have my parents with me.
Thank you God for giving me good parents,
I love them and they love me
By - Naavya Kumar
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020
मुर्गा बाँग लगाता है प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
उठो प्यारे आँखे खोलो ।
सूरज दादा आये है।।
लाल लाल किरणों के सँग में।
सब में आश जगाये है।।
मेरा मुर्गा है अलबेला।
जल्दी से उठ जाता है।।
कुड़कूँ कूँ आवाज लगा कर।
नया सन्देश लाता है।।
सुबह सुबह छत में चढ़ कर वह।
कुकडू कूँ चिल्लाता है।।
मुर्गी देखे मुर्गा राजा।
गीत नया वह गाता है।।
मुर्गियों का होता राजा।
सैर रोज वह करता है।।
चारे चुगता रहता दिनभर।
फिर आहे वह भरता है।।
सिर के ऊपर कलगी रखता।
दिन भर वह इठलाता है।।
कूड़े कचरे में जा कर के।
दाना खा कर आता है।।
चूजों को अपने सँग लेकर।
बड़े मजे से आता है।।
सुबह सुबह जल्दी उठ कर के।
मुर्गा बाँग लगाता है।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
सोमवार, 5 अक्टूबर 2020
पुरानी ऐनक रचना :कृष्ण कुमार वर्मा
पुरानी ऐनक [ 👓 ]
अनुभवों की खान होती है ।
ना जाने कितने ही रहस्यों की
जान होती है ।
खामोशी से ही मगर , गुजरे वक्त की
पहचान होती है ।
पुरानी ऐनक !
जिंदगी में हासिल किये पड़ावों
का सुखद मील- निशान होती है ....
✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर
मेरे भी कई ख़्वाब थे ,
पर परिस्थितियों ने तोड़कर रख दिया ।
पर हिम्मत को कभी टूटने नही दिया मैंने ...
पहले बेहतर शिक्षा , फिर बेहतर काम पाने
हर कदम पर निरन्तर जूझता रहा ...
सुविधाविहीन गांव से शुरू हुआ सफर ,
मेट्रो शहर दिखा गया ...
जो देखा ख़्वाब था , वो पूरा तो ना हुआ
पर जीने का दूसरा मकसद सीखा गया ...
हालाँकि अभी भी प्रयास को , जारी रखा है मैंने
उम्मीद का परिंदा हूँ , उड़ने की ज़िद को
जिंदा रखा है मैंने ...
✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना : महिने में पंद्रह इतवार
महिने में कम से कम आएं
हे भगवन पंद्रह इतवार |
पता नहीं क्यों सात दिनों में ,
बस इतवार एक आता |
छ: दिन का बहुमूल्य समय तो ,
शाळा में ही धुल| जाता |
ऐसे में कैसे चल पाये ,
खेल कूद का कारोबार |
शाळा एक दिवस लग जाए ,
दिवस दूसरे छुट्टी हो|
रोज रोज पढ़ने लिखने से,
कैसे भी हो कुट्टी हो |
एक -एक दिन छोड़ हमेशा ,
हम छुट्टी से हों दो चार |
पढ़ना लिखना बहुत जरूरी ,
बात सभी ने मानी है |
खेल कूद भी है आवश्यक ,
कहते ज्ञानी ध्यानी हैं |
खेल कूद से ही तो बनता ,
सच में स्वस्थ सुखी परिवार |
पढ़ें एक दिन ,खेल एक दिन,
यह विचार कितना अच्छा ,
इस विचार से झूम उठेगा ,
इस दुनियां का हर बच्चा |
बात मान लो बच्चों की अब ,
बच्चों का ही तो संसार |
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020
बापू के बन्दर (रोला छंद) : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
बापू बन्दर तीन , बहुत ही धूम मचाते।
उछले कूदे रोज , नाच को सभी नचाते।।
बुरा न देखो आप , सदा सबको बतलाते।
कैसे बढ़े समाज , हमें वे राह दिखाते।।
सुन लो बच्चों बात , झूठ तुम कभी न कहना।
बुरा कभी ना सोंच , सभी से मिलकर रहना।।
बुरा न बोलो आप , सभी को यही सिखाते।
बापू बन्दर तीन , सदा ही राह दिखाते।।
बुरा कभी ना बोल , हमेशा यही सिखाते।
मानो मिलकर बात , सभी को बात बताते।।
बाढ़े अत्याचार , देश को कौन बचाये।
बेटी हुई निराश , कौन अब इसे मनाये।।
बापू बन्दर मौन , रोज चलती अब आँधी।
बुरे यहाँ हालात , सिसक कर रोये गाँधी।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com