ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

प्रतिमा और प्रति- माँ" : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






नवरात्रि लगते ही सब भक्त माँ अम्बे के प्रतिमा का नव रूपो का  अलग अलग दिन विधि विधान से अपने सामर्थ्य के अनुसार पूजा पाठ  और माँ को मिठाई , फल का भोग लगाते हैं।

पर उस प्रति माँ का क्या ?  जो आज अपने ही घर में बेबस और लाचार पड़ी है ।आज भी कई माँ  वृद्धाश्रम में है। जो आज भी अपने बहू -बेटो अपने पोता -पोती का राह ताक रही है और इस आस में बैठी है की मेरा बेटा मुझे  लेने आयेगा। नवरात्री में जितनी सेवा , पूजा माँ के प्रतिमा का करते है , अगर उसका आधा सेवा भी अपने माँ के लिये करते , तो आज घर एक मंदिर बन जाता।

माँ अम्बे की प्रतिमा में माँ अम्बे विराजती है लेकिन दुनिया के प्रति माँ में  पूरा ब्रम्हाण्ड विराज मान है।

सिर्फ मंदिर जा कर दान - दक्षिणा देने से ही माँ अम्बे खुश नहीं रहती है। अगर माता रानी को खुश करना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी माँ को खुश रखना सीखो। अगर आप घर की माँ को खुश रखोगे तभी मंदिर की माँ खुश होगी। और अपना आशीर्वाद देगी।

माँ अम्बे यह नही चाहती कि भक्त नव दिन तक मेरे द्वार आये। नारियल , फल और मेवा चढ़ाये। माँ फल और मेवा की भूखी नही होती है। माँ तो केवल सच्ची सेवा , सच्ची भक्ति चाहती है। अगर आज  सब मिलकर अपनी - अपनी माँ को खुश करते ,  माँ की सेवा करते तो आज शायद पृथ्वी पर यह संकट नही आता। 
आज इस जगत में कितनी सारी माँ वृद्धाश्रम में रहती है। रोते बिलखते अपने बेटे - बेटियों को याद करती है। 
उस माँ को कभी ना तड़पाओ जो माँ आपका पालन पोषण की है । आपको आपने हाथों से भोजन खिलाई है । माँ को भी अपने बेटो से यही आशा रहती है कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो ऐसे ही हमारे बच्चे हमारी सेवा करेंगे।माँ तो माँ होती है । अपने बच्चे के बारे में कभी गलत नही सोंच सकती है। लेकिन आज माँ को क्या पता कि माँ - बाप बूढ़े होते ही बोझ हो जाएंगे।

आज माँ को क्या पता कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमारे बेटे - बहू हमें वृद्धाश्रम में छोड़ आएंगे।
अरे मानव कुछ तो समझो , कुछ तो दया दिखाओ अपने माँ - बाप के ऊपर जिस माँ ने तुम्हे ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया आज उसी माँ को तुम बेसहारा बना दिये। बहुत खुश नसीब वाले होते हैं वो इंसान जिसके माँ - बाप उनके साथ हमेशा रहते हैं। अनाथ आश्रम के बच्चे अपने माता - पिता को देखने के लिए तड़पते है और एक तरफ ये इंसान हैं जो माँ - बाप होते हुए भी उन्हें छोड़ आते है। माता - पिता की कीमत उस गरीब  अनाथ बच्चों से पूछो की माता - पिता क्या होते हैं। 

बड़ा - बड़ा घर , गाड़ी , बंगला और पैसे रखने वाले ही अमीर नही होते। जिस घर में बूढ़े माँ - बाप की सेवा होती  है वही इंसान दुनिया की सबसे अमीर इंसान होते हैं। 

अगर सेवा करना चाहते हो तो अपने माता - पिता की करो , मंदिर जा कर दिखावा करने से माँ नही आएगी। आज अगर संसार मे माता - पिता को बोझ नही समझते , माँ अम्बे की तरह उनकी पूजा सेवा करते तो कही भी वृद्धाश्रमों की जरूरत नही पड़ती।

आज आप ऐसा करोगे तो कल आपके बच्चे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे तब आप उस पर ऊँगली नही उठा पाओगे। 
आने वाले कल के बारे में सोचो जैसा व्यवहार आप अपने माता - पिता के साथ करोगे वैसा ही व्यवहार कल आपके बच्चे आपके साथ करेंगे।

अगर प्रतिमा को खुश रखना है तो  अपने प्रति माँ को पहले खुश करो ।अच्छे से भोजन खिलाओ , माँ की सेवा करो । तभी मंदिर वाली माँ अम्बे आपके घर बिना बुलाये आएगी और अपना आशीर्वाद देगी।

               "जय माता दी"



माटी पुत्री -प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें