उठो प्यारे आँखे खोलो ।
सूरज दादा आये है।।
लाल लाल किरणों के सँग में।
सब में आश जगाये है।।
मेरा मुर्गा है अलबेला।
जल्दी से उठ जाता है।।
कुड़कूँ कूँ आवाज लगा कर।
नया सन्देश लाता है।।
सुबह सुबह छत में चढ़ कर वह।
कुकडू कूँ चिल्लाता है।।
मुर्गी देखे मुर्गा राजा।
गीत नया वह गाता है।।
मुर्गियों का होता राजा।
सैर रोज वह करता है।।
चारे चुगता रहता दिनभर।
फिर आहे वह भरता है।।
सिर के ऊपर कलगी रखता।
दिन भर वह इठलाता है।।
कूड़े कचरे में जा कर के।
दाना खा कर आता है।।
चूजों को अपने सँग लेकर।
बड़े मजे से आता है।।
सुबह सुबह जल्दी उठ कर के।
मुर्गा बाँग लगाता है।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
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