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रविवार, 26 दिसंबर 2021

*सच्ची मेहनत* : विद्यालय स्तर पर अनुभव की एक छोटी सी कहानी : शिल्प -कृष्ण कुमार वर्मा

   




राहुल और आकाश दो बचपन के सच्चे मित्र थे । साथ मे पढ़ते , खेलते और घूमते । दोनो एक ही साथ माध्यमिक परीक्षा पास कर गांव से 8 किलोमीटर दूर हाईस्कूल में प्रवेश लिए ।  राहुल पढ़ाई में तेज था जबकि आकाश एक औसत छात्र था । 

दोनो साथ - साथ विद्यालय जाते और घर आते । धीरे - धीरे कक्षा में राहुल की दोस्ती बढ़ने लगी क्योंकि वह होशियार लड़का था । वही आकाश से भी राहुल का रुझान कम होते जा रहा था । इस संदर्भ में आकाश कई बार समझाता था कि साथ बैठकर पढ़ेंगे तो ज्यादा आसानी होगा और मेरा भी दिक्कत दूर हो जाएगा । आकाश बहुत ही मेहनती लड़का था भले ही औसत छात्र था । वह प्रतिदिन घर के काम से समय निकाल कर पढ़ाई में ध्यान देता था । प्रतिदिन सुबह से उठकर पढ़ता था । वही राहुल की दोस्ती दिनोदिन बढ़ते जा रहा था और उसे आकाश को पढ़ाई में मदद करने में कोई रुचि नही रह गया था । वह हमेशा आकाश को पढ़ाई में ध्यान देने को कहता था कि वह कमजोर है , अच्छे से पढ़े ताकि बोर्ड परीक्षा पास कर सके । 

राहुल ने कक्षा नवमी तक विद्यालय में टॉप किया था और दसवीं की अर्धवार्षिक परीक्षा में भी सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किया । उसे गणित विषय बहुत अधिक प्रिय था इसलिए उसी को ज्यादा ध्यान देता था ।  अर्धवार्षिक परीक्षा के बाद दोनों का एक साथ पढ़ना लिखना लगभग बन्द हो गया था और अपनी अपनी तैयारी में ब्यस्त हो गए । राहुल पढ़ाई के साथ साथ घूमने और क्रिकेट खेलने का भी शौकीन था । बीच- बीच मे खेलने चला जाता था । 

आकाश के लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी तो वो गणित विषय ही था । और वह इतना सक्षम भी नही था कि ट्यूशन कर सके । बड़ा परेशान था कि वह कैसे अच्छे अंक प्राप्त कर पायेगा । 

एक दिन शाला में अंग्रेजी विषय के सर ने उसे परेशान देखा तो पूछा ? तब उसने सारी समस्या उस सर को बता दिया । तब सर ने उसे समझाया कि बेटा सभी विषय महत्वपूर्ण होते है और सबको बराबर ध्यान तो अगर अच्छे अंक से पास होना चाहते हो तो । क्योंकि सभी विषय के अंक मिलकर पूरा परिणाम निर्धारित करते है । इसलिए सभी विषयो को समय सारणी के आधार पर निर्धारित कर पढ़ाई करो । और गणित तथा अंग्रेजी से सम्बंधित दुविधाओं को लंच के समय मुझसे दूर कर लेना । वर्मा सर का जवाब सुनकर आकाश के मन मे एक नया संचार और आत्मविश्वास भर गया और वह मन लगाकर वह जुट गया । वही राहुल को विश्वास था कि शाला में टॉप तो वही करेगा क्योंकि वह सबसे कठिन विषय गणित का मेघावी छात्र था । 

वार्षिक परीक्षा शुरू हुई और दोनो दोस्तो के पर्चे अच्छे गए । आकाश की मेहनत इस बार शानदार थी क्योंकि उसने अपने कमजोरी को ही अपना ताकत बना लिया था और दृढ़ संकल्पित था कि बोर्ड परीक्षा अच्छे से पास करेगा । 

महीने बाद परिणाम आया और बड़ा परिवर्तनकारी रहा । राहुल ने अच्छे अंक प्राप्त किये । उसे उम्मीद के अनुसार गणित में 95 अंक प्राप्त हुए जबकि सामाजिक विज्ञान की अनदेखी से मात्र 70 अंक ही प्राप्त कर पाया । कुल 600 अंको में 510 अंक प्राप्त किया । लेकिन उस परिणाम से ज्यादा आश्चर्य उसे आकाश के परिणाम से था । आकाश में 600 में 536 अंक लाकर पूरे विद्यालय में टॉप किया था । उसे गणित में 76 अंक प्राप्त हुए थे लेकिन उसने अन्य सभी विषयों में 90 से अधिक अंक प्राप्त किये जिसमे अंग्रेजी विषय मे 96 अंक काफी आश्चर्य करने वाली बात थी ।

पूरे विद्यालय में हलचल हो गई थी कि इस बार टॉपर एक औसत छात्र बना । जब दोनों आपस मे मिले तो राहुल ने बड़े आश्चर्य से पूछा तो उसने वर्मा सर वाली मार्गदर्शन बाली बात उसे पूरी बता दी । यह सुन राहुल को बहुत निराशा हुई कि क्यों उसने मार्गदर्शन नही लिया और एक गणित विषय के अतिआत्मविश्वास के कारण अन्य विषयों पर ध्यान दे नही पाया कि बाकी तो ऐसे ही बन जायेगा ।

राहुल और आकाश दौड़ते वर्मा सर के पास गए और आशीर्वाद लिए और आकाश ने सर से कहा - सर ये सब आपके कारण हुआ है ।

तब सर मुस्कुराये और बोले - नही बेटा ! ये तो तुम्हारी सच्ची मेहनत थी जो तुमने ईमानदारी से की थी । जीवन मे आत्मविश्वास जरूरी है लेकिन अतिआत्मविश्वास से बचना चाहिए और हमेशा अपने से बड़ो का मार्गदर्शन लेते रहने चाहिये ।

अब तक राहुल बहुत कुछ समझ चुका था ।

✍ 

*कृष्ण कुमार वर्मा*

  ब्याख्याता [ LB ]

  शासकीय हाई स्कूल भड़हा , तिल्दा 

  जिला - रायपुर

हम भारतवासी : डाक्टर प्रभास्क पाठक

 


राम अयोध्या,कृष्ण वृंदावन,और सदाशिव काशी,

गंगा,यमुना,सरस्वती,सतलुज,सिंधु के हम वासी।

वेद,बुद्ध,गांधी मेरे जीवन में 

बसते हैं,

ज्ञान-विज्ञान की खरी शिला पर 

दुनिया को रचते हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम संदेश हमारा आओ ,मिलजुल कर रहते हैं।

सदा हमारे हाथ कर्मरत

सबका अभिनंदन करते हैं

हम सब हैं भारतवासी,

जो अविनाशी रचते हैं।


डाॅ प्रभास्क  पाठक 

राँची  झारखंड 


मानवता का कल्याण करो : श्रीमती मिथिलेश शर्मा की रचना

 



पथ तो अनेक मिल जायेंगे

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो,

जो बीत गया सो व्यर्थ गया

बस आगत का सम्मान करो.

                                              

जो हैं भूले भटके-पिछड़े

उनको जागृति का सम्बल दो,

ये हीन शक्ति का द्योतक हैं

इनको केवल अवलंबन दो.

इतिहास स्वयं बन जायेगा

कुछ त्याग और बलिदान करो,

पथ तो अनेक मिल जायेंगे

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो.

 

सुख को ही मत समेट लो तुम

दुखों को भी स्वीकार करो,

जो हैं शोषित, शापित, ताड़ित

उनको भी अंगीकार करो.

अज्ञान मिटाकर धरती के

कण-कण से नव उत्थान करो,

मानव हो बस मानव रह कर

मानवता का कल्याण करो.

 

रचना-

श्रीमति मिथिलेश शर्मा

एम.ए., साहित्यरत्न.

भूतपूर्व अध्यापिका, लखनऊ. 

  

  

"संयम" प्रिया देवांगन प्रियू की (लघु कथा)

 



वर्षा बचपन से बहुत होशियार लड़की थी।वह 10वीं कक्षा की छात्रा थी। उसका मन हमेशा पढ़ाई की तरफ ही रहता था। खेलने -कूदने में भी अच्छी थी। अचानक उसकी तबियत खराब हो जाने के कारण वह 1-2 महीने स्कूल नहीं गयी और उसके क्लास के सभी बच्चें उससे आगे हो गए। वर्षा चाहकर भी बिस्तर से उठ नहीं पाती थी। बुखार के कारण वह कमजोर हो चुकी थी।वर्षा को इस बात का डर था कि कहीं वह बोर्ड क्लास में फैल न हो जाय। धीरे - धीरे ठीक होने लगी और स्कूल भी जाने लगी। वर्षा के सारे सहपाठी कहने लगे कि वर्षा तुम तो बहुत पीछे हो गयी हो। तुम इस साल  कैसे पास हो पाओगी। उसके सारे सहपाठियों ने यह बात बार - बार कह कर उसके दिमाग में यही भर दिए थे कि वर्षा अनुत्तीर्ण हो जाएगी। वर्षा घर जा कर जोर - जोर से रोने लगी।
वर्षा ने सोचा कि दूसरे दिन स्कूल जा कर सब को जवाब दूँगी।दूसरे दिन जब वर्षा स्कूल गयी तो फिर एक-दो लोग सुनाने लगे। जैसे ही वर्षा कुछ बोलने वाली थी कि उसके मन में एक आवाज आई,  जवाब देने से बात और बिगड़ जाएगी। क्या पता, अगर मैं सब को जवाब दूँगी और कहीं मेरा अंक कम हो जाये तो सारे सहपाठी मेरा बहुत मजाक उड़ायेंगे।
रिजल्ट आने के बाद ही पता चलेगा---।
वर्षा चुपचाप वहाँ से चली गयी।
वर्षा ने बहुत ही *संयम* से काम लिया और घर में खूब मेहनत करने लगी।वर्षा को क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। किसी को जवाब नहीं देना पड़ा, सब को उसका जवाब मिल चुका था।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

 



 छोटे से पप्पी  बूजो के साथ नन्ही  चुनमुन खेल रही थी ।   सामने  सुयश भैया अपने मित्रों के साथ साइकिल चला रहे थे ।  सुयश भैया के साथ साथ बूजो को जैसे मालूम है कि साइकिलिंग  एक अच्छी बात है उससे एक्सर्साइज  हो जाती है और आनंद  भी आता है।  बूजो सुयश  को साइकिल  चलाता देखकर  खुश हो गया और उसकी साइकिल  के आगे पीछे भागने लगा ।   सुयश  को भी बूजो  के साथ  खेलने मे मजा आ रहा  था ।   

इसी दौड़म-भाग  मे बूजो छुपकर  पास की एक  झाड़ी मे चला गया ।   सुयश  ने सोचा कि लगता है कि बूजो  घर चला गया है अतः वह और चुनमुन  घर चले गए।   इधर झाड़ी मे जाने के बाद थका होने के कारण बूजो को नींद  आ गई ।   सपने मे उसे लगा कि वह उडने वाला एक यूनीकार्न  बन गया है और उसके पंख निकल आए हैं ।

सपने ही घोड़े  की शक्ल का यूनीकार्न  बना  बूजो हवा मे उड़ान भरता हुआ नदी नाले पहाड़ पार  कर  बहुत दूर निकल  आया था ।  सामने विशाल  समुद्र  था  ।   समुद्र  पर उड़ते उसे बहुत  मज़ा आ रहा था।  उसके पंख  जो उसे उड़ान भरने मे मदद  कर  रहे थे ।  अब थकने लगा थे।   वह अब डरने लगा था वह ठीक  से चिल्ला भी नहीं पा रहा था बस कुइंकुई कर रहा था।   नन्ही चुनमुन  उसे फिर  से खोजने पाक मे आई थी  बूजो को कुइंकुई करता देख झट से  झाड़ी  से निकाल  कर  चुनमुन  उसे घर ले आई।    




शरद कुमार श्रीवास्तव 

पहेलियाँ : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव



1 निम्नलिखित  में  कौन सा  अंक  क्रम  से   बाहर  का  है   और सही  संख्या  क्या  होगी

अ)  2, 6, 19, 54, 162
ब)  19, 11,  16, 10, 13, 8
स) 1, 3, 9, 27, 83
द ) 4, 8, 16, 31, 64


2 एक खेल के  मैदान  में  6  बच्चों  की  औसत  आयु  15 वर्ष  है,  तब किसी  एक बच्चे  की  अधिकतम  आयु कितनी  हो सकती  है  जबकि  न्यूनतम  आयु 12 वर्ष  है ?

3  दो  किलो रुई और दो किलो के  बटखरे में  कौन  भारी है

4  माँ की आयु बेटी से  दुगुनी है  , बेटे की  उम्र  पिता की  आधी  है  ।  माता पिता  की  आयु  का अनुपात  3:4 है  तो बेटे और बेटी की  आयु में  क्या  अनुपात  है ।

5  काला हाथी उड़ता  जाता
    किसी  के वो हाथ न आता 

संकलन  
शरद कुमार श्रीवास्तव 

"सुंदर पुष्प" प्रिया देवांगन "प्रियू" का गीतिका छ॔द



लाल नीले बैगनी सब, आज मन को भा गये।
पुष्प सुंदर लग रहे हैं, बाग में सब छा गये।।
देख के इस पुष्प को जी, राग भौंरे गा रहे।
मंद सी मुस्कान लेकर, बाग में सब आ रहे।।

शीत बरसे मेघ से जब, मोतियाँ बन जा रही।
फूल से खुशबू निकल कर, बाग को महका रही।।
रंग इसका प्रेम का है, ईश को मोहित करे।
हाथ जिसके आय जब वो, प्रेम से मन को भरे।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


चल रे मेरी गाडी चल. ( लखनऊ पर एक बालगीत ) शरद कुमार श्रीवास्तव

 



चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर है बागों की नगरी


बागों की नगरी नवाबों की नगरी


लालबाग, यहां सुन्दर बाग है


डाली बाग, यहां आलम बाग है


चार् बाग, वहीं बादशाह बाग है


गूंगे नवाब, यहाँ लजीज कबाब हैं


दूर से ही मुँह मे आयेगा जल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


पहले  तू चल ऐयर्-पोर्ट अमौसी


मसकट से आयेगीं पीहू की मौसी


मौसी जी आयेगीं मौसा भी आयेंगे


चीकू भैया और आशी  भी आयेगी


बेबी  के लिये, खेलौने भी लायेगीं


सब को लेकर घर आना निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर बडे  शराफत की नगरी


रस्मों- रिवाजो के विरासत की नगरी


नजाकत कि नगरी नफासत की नगरी


पहलेआप- आप मे ट्रेन जाए न निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


गावों मे खास हो या आम हो शहरी


सबकी पसन्द यहाँ का आम दशहरी


आमो का राजा यहीँ का आम दशहरी


बराबर नहीं इसके और कोई भी फल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


 शरद कुमार श्रीवास्तव

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

आत्मविश्वास के धनी राजेन्द्र बाबू : 3 दिसम्बर/जन्म-दिवस के अवसर पर आलेख डाक्टर पशुपति पाण्डेय

 



बिहार के एक विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के बाद कक्षाध्यापक महोदय सबको परीक्षाफल सुना रहे थे। उनमें एक प्रतिभाशाली छात्र राजेन्द्र भी था। उसका नाम जब उत्तीर्ण हुए छात्रों की सूची में नहीं आया, तो वह अध्यापक से बोला - गुरुजी, आपने मेरा नाम तो पढ़ा ही नहीं।


अध्यापक ने हँसकर कहा - तुम्हारा नाम नहीं है, इसका साफ अर्थ है तुम इस वर्ष फेल हो गये हो। ऐसे में मैं तुम्हारा नाम कैसे पढ़ता ? अध्यापक को मालूम था कि वह छात्र कई महीने मलेरिया बुखार के कारण बीमार रहा था। इस कारण वह लम्बे समय तक विद्यालय भी नहीं आ पाया था। ऐसे में छात्र का अनुत्तीर्ण हो जाना स्वाभाविक ही था।


लेकिन वह छात्र हिम्मत से बोला - नहीं गुरुजी, कृपया आप सूची को दुबारा देख लें। मेरा नाम इसमें अवश्य होगा।


अध्यापक ने कहा - नहीं राजेन्द्र, तुम्हारा नाम सूची में नहीं है। तुम इस बार उत्तीर्ण नहीं हो सके हो। 


राजेन्द्र ने खड़े होकर ऊँचे स्वर में कहा - ऐसा नहीं हो सकता कि मैं उत्तीर्ण न होऊँ।


अब अध्यापक को भी क्रोध आ गया। वे बोले - बको मत, नीचे बैठ जाओ। अगले वर्ष और परिश्रम करो।


पर राजेन्द्र चुप नहीं हुआ - नहीं गुरुजी, आप अपनी सूची एक बार और जाँच लें। मेरा नाम अवश्य होगा।


अध्यापक ने झुंझलाकर कहा - यदि तुम नीचे नहीं बैठे तो मैं तुम पर जुर्माना कर दूँगा।


पर वह छात्र भी अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं था। अतः अध्यापक ने उस पर एक रु. जुर्माना कर दिया। लेकिन राजेन्द्र बार-बार यही कहता रहा - मैं अनुत्तीर्ण नहीं हो सकता। 


अध्यापक ने अब जुर्माना दो रु. कर दिया। बात बढ़ती गयी। धीरे-धीरे जुर्माने की राशि पाँच रु. तक पहुँच गयी। उन दिनों पाँच रु. की कीमत बहुत थी। सरकारी अध्यापकों के वेतन भी 15-20 रु. से अधिक नहीं होते थे; लेकिन आत्मविश्वास का धनी वह छात्र किसी भी तरह दबने का नाम नहीं ले रहा था। 


तभी एक चपरासी दौड़ता हुआ प्राचार्य जी के पास से कोई कागज लेकर आया। जब वह कागज अध्यापक ने देखा, तो वे चकित रह गये। परीक्षा में सर्वाधिक अंक उस छात्र ने ही पाये थे। उसका अंकपत्र फाइल में सबसे ऊपर रखा था; पर भूल से वह प्राचार्य जी के कमरे में ही रह गया। 


अब तो अध्यापक ने उस छात्र की पीठ थपथपाई। सब छात्रों ने भी ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया। यही बालक आगे चलकर भारत का पहला राष्ट्रपति बना। उनका जन्म ग्राम जीरादेई( जिला छपरा, बिहार) में 3 दिसम्बर, 1884 को श्री महादेव सहाय के घर में हुआ था। छात्र जीवन से ही मेधावी राजेन्द्र बाबू ने कानून की परीक्षा उत्तीर्णकर कुछ समय वकालत की; पर 33 वर्ष की अवस्था में गांधी जी के आह्वान पर वे वकालत छोड़कर देश की स्वतन्त्रता के लिए हो रहे चम्पारण आन्दोलन में कूद पड़े।


सादा जीवन, उच्च विचार के धनी डा. राजेन्द्र प्रसाद को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद वे दिल्ली के सरकारी आवास की बजाय पटना में अपने निजी आवास ‘सदाकत आश्रम’ में ही जाकर रहे। 28 फरवरी, 1963 को वहीं उनका देहान्त हुआ। उनके जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश में अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपति के रूप में वे प्रधानमन्त्री नेहरू जी के विरोध के बाद भी सोमनाथ मन्दिर की पुनर्प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए।



डॉक्टर पशुपति पाण्डेय

सहायक महाप्रबंधक (सेवानिवृत्त )

भारतीय स्टेट बैंक 

लखनऊ 



               🙏

"किसान" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



सुबह-सुबह हर रोज, खेत में मैं हूँ जाता।
करता दिनभर काम, शाम को वापस आता।।
खातू कचरा फेंक, और फिर साफ सफाई।
लेकर फसलें बीज, धान की भी बोवाई।।

अच्छी मिट्टी देख, सभी फसलें मुस्काते।
नये-नये से धान, निकल कर उसमें आते।।
गर्मी सर्दी धूप, पसीना माथ बहाता।
करता मेहनत रोज, बैठ कर तब हूँ खाता।।

नागर बख्खर साथ, हाथ में उसको पकड़ूँ।
साधारण इंसान, किसी से मैं नही  झगड़ूँ।।
पालन पोषण आज, घरों की कर रखवाली।
मैं हूँ एक किसान, और अपना ही माली




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"शरद आगमन" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"




शरद आगमन से सभी, थर थर काँपे देह।
कपड़े पहने गर्म है, बढ़ता सब का नेह।।

सूरज निकले देर से, चले पवन भी तेज।
शीत बूँद सजती धरा, लगती जैसे सेज।।

ओस बूँद है छा गयी, जैसे मोती हार।
झूमे नाचे है धरा, करे सभी से प्यार।।

धुंँधला-धुँधला सा दिखे, देखे चारो ओर।
ढ़ँक जाता है मेघ भी, होता है जब भोर।।

हरी-भरी धरती दिखे, गाते पक्षी गीत।
पड़ती किरणें सूर्य की, बढ़ जाता है मीत।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

हमारे बुजुर्ग आलेख शरद कुमार श्रीवास्तव




दादा दादी, नाना नानी परिवार की शान है । अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुगों का प्रत्येक घर में विशेष स्थान है । अपने बच्चों की खातिर अपना जीवन दाँव पर लगा चुके  बुजुर्ग अब भी परिवार की जरूरत हैं यह बात हममे से बहुत कम लोग ही समझ पाते है।   कहीं जाना आना हो तो इनके भरोसे निश्चिंत होकर जाइये।  काम वाली, प्रेस वाला, सब्जी भाजी, दूध का काम सुचारू रूप से चलता रहता है।. बच्चे स्कूल से लौटने पर उनकी देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित रहती है।  दादी नानी तो घर के काफी काम कर देती हैं अचार चटनी बनाना फल सब्जी काटना प्रायः इनके ही जिम्मे रहता है।  दादा या नाना की घर मे उपस्थिति ही यथेष्ट है ।

दिलचस्प  बात  यह  भी है कि बच्चो से इनकी मित्रता होती है ।    बच्चो के साथ  ये स्वयं भी बच्चे बन जाते हैं।   छोटे बच्चो के स्कूलों मे दादी बाबा, नानी  नाना को बच्चों के साथ  अपने जीवन  काल  के अनुभवों से मिलने वाली सीख  को साझा करने और बच्चों को अच्छी अच्छी बाते बताने के लिए  आमंत्रित  भी किया जाता है


शरद कुमार श्रीवास्तव 


शनिवार, 27 नवंबर 2021

राम नाम का जाप : रचनाकार प्रिया देवांगन प्रियू

 


राम नाम का जाप, आज से कर ले प्यारे।
रखना मन को शांत, यही है एक सहारे।।
देना सब को दान, कर्म तुम अपना करना।
सुख की झोली प्रेम, दया करुणा से भरना।।

जाते खाली हाथ, राम के गुण को गा ले।
भजन साधना नृत्य, पुण्य धरती पर पा ले।।य
राम नाम है सत्य, अंत में नाम पुकारे।
करते हैं गुणगान, सभी का बने सहारे।।

है जीवन का सत्य, साथ कोई नहिँ देते।
थक जाता जब देह, सहारा उन से लेते।।
कर लो अच्छे कर्म, ईश से यही मिलाते।
माटी पुतला देह, राम से मिलन कराते।।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शामू 8 एक धारावाहिक कथा

 



अभी तक :- शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पहुँचता है और गैरेज के मालिक इशरत मियाँ ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।

 इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था घर मे रुपये कीड़े से नष्ट हो रहे थे इशरत मियाँ की वजह से बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता ।
नुसरत ने इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी कर ली थी वह कुछ दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु ले गया ।  उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ शाम के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।
उस दिन इशरत मियाँ बाजार गये थे . गर्मियों के दिन थे, बाजार मे प्यास बुझाने के लिये उन्होने दो गिलास शिकंजी पी ली थी . लू चल रही थी जिससे हीट स्ट्रोक लग गया या शिकंजी उन्हे नुकसान कर गयी थी पता नहीं चला . उन्हे उल्टियाँ होने लगीं . वे किसी तरह अॉटो से घर आए . शामू जल्दी से डॉक्टर को बुला लाया और फिर डॉक्टर के कहने पर अस्पताल मे भर्ती करा दिया. डिहाइड्रेशन हो जाने से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे . नुसरत भी बंगलोर से आये थे पर काफी दिन रुक नहीं पाये थे शामू इशरत भाई के लिये हनुमानजी की तरह हमेशा सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था .  इशरत मियाँ ने गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर अपन बेटे के पास सपरिवार बंगलोर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से गैरेज चल निकला और अब वह अपने गैरेज का मालिक है.

शामू का गैरेज  छोटा था लेकिन  उसकी लगन अच्छे काम  मिलनसारिता और अच्छे व्यवहार  के कारण  आसपास  के गैरेजों मे लोकप्रिय  हो गया था। वे ग्राहक  जो पहले इशरत  मियाँ  के गैराज  से जुड़े  थे  वे  आ  रहे थे  औरों को भी अपने साथ  ला रहे थे।   गैरेज  दिनोंदिन  तरक्की कर  रहा था ।

शामू के पिता बिहारी शारीरिक  रूप  से काफी कमजोर  हो चले थे ।   दूसरी जगह रहने से उनके खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी  ।  शामू अब सक्षम  हो चला था अत: वह जाकर अपने पिता को लेकर  आ गया।   बिहारी निराशा और कमजोरी से अधिक  परेशान  था ।  अपनी याददाश्त  पर भी उसका कम बस था ।   दादी काफी बूढ़ी होने के बाद  भी अपने काम  स्वयं कर लेती थी और अपनी बीमार  बेटे को भी सहारा देती थी ।    शामू गैरेज जाने से पहले खाना बनाकर  जाता था  ।   

शामू के घर के पास के झोपडी मे  रहने वाली  मोहनी की माँ शामू की तरक्की  से बहुत  प्रभावित  थी।  वह कोठियों मे नौकरानी का काम करने जाती थी  पर मोहनी  मा के दुलार के कारण काम पर  नहीं जाती थी दिन  भर घर मे  रहती थी ।   पड़ोस की झोपड़ी  शामू की होने के कारण  उनकी अवस्था से अपरिचित नहीं थी।  एक दिन मोहनी ने देखा कि शामू की दादी बिस्तर  से नीचे लुढ़क कर नीचे गिर पड़ी हैं और  बिहारी काका उन्हे उठाने की असफल कोशिश  कर रहे है तब मोहनी ने शामू की झोपडी  मे जाकर  दादी को उठाकर वापस बिस्तर  पर लिटाया ।  दादी और बिहारी मोहनी से खुश  हुए ।  मोहनी अब शामू के गैरेज जाने के बाद  प्रायः शामू के पिता और  दादी तथा घर को व्यवस्थित  कर आती थी।   मोहनी की माँ को खराब  नही लगता था उसे अपनी बेटी के लिए  एक  अच्छे वर की तलाश  थी वह शामू से अच्छा वर वह कहाँ से लाती ।   वह चाहती थी कि मोहनी धीरे इसी घर का हिस्सा बन  जाये । 

शामू जब गैराज  से लौट कर  आता तो घर व्यवस्थित  देखकर  उसे खुशी होती थी।  दादी से उसने पूछा तो पता चला कि मोहनी  उसके पिता और  दादी का ख्याल  रखती है । 





  

बेबी का प्रॉमिस रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 


मेरी प्यारी प्यारी माँ मुझे एक खिलौना ले दो
छोटी सी यह कार निराली सर सर चलनेवाली
अथवा फिर बुलेट ट्रेन रिमोट से चलने वाली
गुड़िया दीदी को दिलाई तो मुझे भी एक ले दो
मेरी प्यारी प्यारी माँ मुझे एक खिलौना ले दो

रोबोट भी कितना प्यारा माँ बन्दूक चलाने वाला
बेबी कम्पयूटर ही ठीक रहेगा लिखने पढ़ने वाला
बेब्लेड कितना प्यारा चार चार स्पिन हैं इसमे
या फिर हवाई जहाज ले लो रिमोट है जिसमे

लेकर दो पिस्तौल बन्दूक पटाखे से चलने वाली
फिर कोई प्यारी सुन्दर बॉल रंग बिरगी निराली
हरे हरे पिंजड़े मे मिट्ठू, बापू के बन्दर ले दो
मेरी प्यारी प्यारी माँ मुझे एक खिलौना ले दो

काम नहीं है पूरा कम्पेलेन्ट स्कूल से है आयी
मम्मी ने तब बेबी को स्कूल की डायरी दिखाई
बोला बेबी अपनी मम्मी से आज खिलौना लूंगा
प्रोमिस करता हूँ दो दिनों मे होमवर्क कर दूंगा 



शरद कुमार श्रीवास्तव 

चुटकुले

 


1 मोहन — राम चन्द्र जी, ईसा मसीह, गुरुनानक और गांधी जी में क्या समानता है?
सोहन — वेरी सिम्पल ये सब छुट्टी के दिन ही पैदा हुए थे । 😁😁😁

2 शौर्य — कल्पना करो कि तुम चौथी मंजिल पर हो और एक चील तुम पर झपटने वाली है । तुम पहले क्या करोगे ।
आयुष — सबसे पहले मैं कल्पना करना बंद कर दूँगा । 😅😅😅😅😅

3 रमेश — यार लन्दन में सभी पढ़े लिखे हैं
महेश्री — वह कैसे?
रमेश — वहाँ मजदूर भी अंग्रेजी में बात करते हैं  😇😇😇😇😇

4 राकेश — कोई टीचर ठीक से नहीं बताता है बायो के सर कहते हैं कि सेल के माने कोशिका, हिस्ट्री के सर सेल माने जेल , फिजिक्स के सर सेल के माने बैट्री होती है ।
मुकेश — जबकि सबको पता है कि सेल माने मोबाइल होता है । है ना? 😭😭😭😭😭

एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: “भारतीय स्त्रियाँ हाथ क्यों नहीं मिलाती हैं .
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया: “क्या आपके देश में कोई साधारण व्यक्ति आपकी महारानी से हाथ मिला सकता है???”
अंग्रेज: “नहीं”
स्वामी विवेकानंद: “हमारे देश में हर स्त्री एक महारानी होती है
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शरद कुमार श्रीवास्तव 

"गुनगुनी भोर" : रचना : प्रिया देवांगन प्रियू

 



हुई गुनगुनी भोर, शीत धरती पर आयी।
खुली सबेरे आँख, ठंड देखो मुस्कायी।।
सुंदर लगते मेघ, पंख पक्षी फैलाते।
करते सारे शोर, भोर जल्दी उठ जाते।।

लगी गुनगुनी भोर, धरा मोती बन जाती।
पौधे पत्ती फूल, खुशी से वह इठलाती।।
पुरवाई की शोर, सभी कानों में आती।
धीमी-धीमी ठंड, हमें छू कर है जाती।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़


मंगलवार, 16 नवंबर 2021

बाल कविता" "प्यारी नानी" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"

 


नानी करती प्यार है, बैठ सभी के साथ।
खेल-खेलती है सदा, और पकड़ती हाथ।।
और पकड़ती, हाथ हमारे, हँसती गाती।
बच्चे के संँग, बच्ची बन कर, खुश हो जाती।।
खेल-खेल में, हम सब की वह, बनती रानी।
बचपन की वो, बात बताती, प्यारी नानी।।

टोली लेकर साथ में, जाते नानी गांँव।
बड़े मजे से खेलते, बैठ पेड़ की छाँव।।
बैठ पेड़ की, छाँव सभी जी, सुने कहानी।
पंच तन्त्र की, बात बताती, प्यारी नानी।।
चुन्नू मुन्नू, खुश हो कर के, करे ठिठोली।
बच्चे-बच्चे, बैठा करते, बनकर टोली।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

झिलमिल दीप जलें : रचनाकार वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी


 


तिमिर दूर  करने  धरती से,

मिलकर      साथ       चलें,

कोना - कोना  रोशन करने,

झिलमिल     दीप      जलें।

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सतत रश्मियां घर में सबसे,

खुलकर       गले       मिलें,

अंधकार  को  दूर  भगाकर,

 फूलें        और         फलें।      

झिलमिल दीप-------------


रखी  मुडेरों  पर  बतियाती,

जैसी       ज्योति        हिलें,

धीमी  तेज कभी  होकर के,

सारी         रात          जलें।

झिलमिल दीप-------------


रंग  - बिरंगे   कंदीलों    की,

बनकर       आस        फलें,

रोशन   करते   कंदीलों   के,

ही          अनुरूप        ढलें।

झिलमिल दीप-------------


तेल  और  बाती  आपस  में,

जब     भी     साथ      मिलें,

दीपक  तब   प्रकाश   बांटने,

दुनियाँ         में        निकलें।

झिलमिल दीप-------------


दीपावली    मुबारक    करने,

सबके          दिल       मचलें,

देख  अनार  फुलझड़ी  बच्चे,  

खुशियों       से          उछलें।

झिलमिल दीप--------------

        



           वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

               मुरादाबाद/उ.प्र.

               9719275453

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बाल दिवस यानि बच्चों के प्यारे चाचा नेहरु का जन्मदिन उत्सव

 



अभी दो दिन  पहले, अर्थात,  14 नवम्बर  को भारत के प्रथम प्रधान  मंत्री स्व पं जवाहरलाल नेहरू यानि बच्चों के प्यारे चाचा  नेहरू  का जन्मदिन  था  भारतवर्ष के स्कूलों  मे नेहरू जी  का जन्मदिन  बहुत जोरशोर  से बाल दिवस  के रूप मे मनाया जाता है ।



पं जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज)  मे हुआ था उनके माता श्रीमती  स्वरूप  रानी और पिता  प॔ मोतीलाल  नेहरू थे।   पिता पं मोतीलाल  इलाहाबाद  के प्रतिष्ठित  वकील थे ।   इंग्लैंड  से समुचित  शिक्षा प्राप्त कर जवाहरलाल  भी प्रयाग  मे वकालत  करने लगे, फिर गाँधी जी से प्रभावित  होकर सक्रिय  राजनीति मे आ गये और स्वतन्त्रता संग्राम  का नेतृत्व  किया तथा बाद  मे वे भारत  के प्रथम प्रधान  मंत्री बने। 

जवाहरलाल जी को बच्चे हमेशा प्यारे लगते थे ।  इसीलिए  उन्होने अपना जन्मदिन  बच्चों को समर्पित  किया।   बच्चो  को वे बहुत प्यार करते थे ।   बच्चो मे हिलमिल  जाना उन्हे बहुत  प्उरिय था।  उनके संस्मरण मे अनेक उदाहरण मौजूद  है जिनमे से दो दृष्टांत यहाँ प्रस्तुत  है । 

 एक बार वे अपने कार्यालय  के बगीचे से जा रहे थे कि उन्होने एक  पेड़ के नीचे एक छोटे से बच्चे को रोते हुए देखा ।  इधर-उधर  देखने पर कोई  उस बच्चे को देखने वाला नही  दिखा और नन्हा शिशु बस रोये जा रहा था । यह देख नेहरू जी वहाँ गए  और उस बच्चे को गोद  मे उठा लिया।  वे  तब तक उसे खिलाते रहे जब तक उस बच्चे की माँ वहाँ नही आ गई।  इसी प्रकार मद्रास  मे एक गुब्बारे  वाला सडक के किनारे बहुत  सारे बैलून लिये खड़ा था पास मे बच्चों के खेलने का एक  पार्क था  नेहरू जी ने गाड़ी  रुकवा कर ड्राइवर  से गुब्बारे  वाले को बुलाकर  सारे गुब्बारे खरीदकर पार्क मे बच्चों मे बटवा  दिया।   बच्चे भी उन्हे बहुत चाहते थे ।   जवाहरलाल ने अपना जन्मदिन  बच्चो को समर्पित कर  दिया जो बाल दिवस  के रूप मे मनाया जाता है

 बाल दिवस स्कूलो मे बहुत  धूमधाम  से मनाया जाता है ।  इस अवसर  बहुत  सी बालसुलभ  गतिविधियाँ  जैसे वादविवाद  प्रतियोगिता काव्यपाठ,  निबन्ध लेखन  , चित्रकारी तथा विभिन्न  खेल प्रतियोगिताएं आयोजित  होती हैं।  स्कूलो मे पूरे दिन हर्षोल्लास  का वातावरण  बना रहता है।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

जाड़े की प्यारी धूप :रचनाकार शरद कुमार श्रीवास्तव

 


जाड़े की प्यारी प्यारी धूप
सब मौसम से न्यारी धूप
मै कमरे मे काँप रही थी
मम्मी रजाई ढाँप रही थी

तभी निकली प्यारी धूप
जाड़े की वह प्यारी धूप
हम निकले छोड़ रजाई
मै पीहू और चीकू भाई

सब मिलके दौड़ लगाते
जाड़े का आनन्द उठाते
पापा मम्मी कह न पाते
बैठ वहीं मूंगफली खाते

जाड़ा आया जाड़ा आया
दबे पाँव चुपके से आया
घर मे सबने शोर मचाया
हीटर आग फिर जलाया
जाड़ा आया जाड़ा आया

छोटे बच्चे हैं नाक बहाते
खेलने से वे बाज न आते
मम्मी ने कितना धमकाया
जाड़ा आया जाड़ा आया

कितनी चाय पीते पापा
रजाई मे हर बूढ़ा काँपा
गजक पट्टी सबने खाया
जाड़ा आया जाड़ा आया

शरद कुमार श्रीवास्तव 

"छठ पूजा" रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


व्रत करती है मिलकर नारी।
लगती है सब प्यारी प्यारी।।
सूर्य देव की पूजा करती।
आस्था श्रद्धा मन में भरती।।

सूर्योदय नदियों पर जाती।
कलशा में वह जल को लाती।।
फल मिष्ठाने भोग लगाती।
छठ मैया की आशिष पाती।।

सुंदर-सुंदर सूप सजाती।
गन्ने फल को भर कर लाती।।
दीप दान नदियों  में करती।
छठ मैया सब दुख को हरती।।

सदा सुखी तुम रखना माता।
तुम ही हो जीवन की दाता।।
मातायें सब आस लगाती।
रोग दोष को दूर भगाती।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शनिवार, 6 नवंबर 2021

भाई दूज लघु कयानी रचयिता वीरेन्द्र सिंह बृजवासी





आज भाई दूज है। मेरी प्यारी बहना सोना कब से तैयार होकर मेरे आने की प्रतीक्षा में बैठी होगी। उसने अभी तक पानी का एक घूँट भी नहीं पिया होगा। प्रदीप ने अपनी पत्नी  कंचन को बोला चलो साइकिल से चलते हैं। कुछ भी नहीं तो दस कोस की दूरी तो होगी ही। चलो फटाफट निकलते हैं। 

    दोनों चलने के लिए घर से निकलते हैं। तभी पत्नी कंचन ने कहा, अरे तुम्हारी कमीज़ तो कॉलर से फट रही है। और तुम्हारी पेंट की मोहरी भी घिसकर खराब हो चुकी है। कपड़े तो और भी हैं। कोई से पहन लो। 

     अरे यार, तुम भी कमाल  करती हो।  मेरी  बहन  सोना है सोना, कोई ऐसी-वैसी नहीं। मेरे ऊपर जान छिड़कती है। तुम देखना जब हम उसके घर पेहुंचेंगे तो तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। 

       थोड़ी मशक्कत के बाद दोनों पति-पत्नी सोना के घर पहुंच गए। साइकिल एक तरफ खड़ी करके घर के अंदर गए। तो देखा बहन थाली में दीपक,रोली,चावल और मिठाई रखकर मेरे आने की प्रतीक्षा कर रही है। मुझे देखते ही खुशी से पागल हो गई। और मुझ से आकर लता सरीखी चिपक गई। आंखों में प्यार के आँसू छलक आए। 

   मेरी पत्नी कंचन ने भी सोना को अंक में भरकर ढेर सारा प्यार किया। 

    कुशलक्षेम के बाद भाई दूज की रस्म अदा की गई। सोना ने हम दोनों का तिलक कर आरती उतारी। मैंने भी सोना के हाथ में सकुचाते हुए सौ रुपए का नोट रखते हुए कहा बहना तेरा भाई गरीब जरूर है, मगर तुझे देखकर अमीर हो जाता है। सोना बोली अरे भैया तुम भी कैसी बात करते हो।  और मिठाई खिलाते हुए बातों में खो गई।  

      तभी कंचन ने मेरी गरीबी  को छुपाते हुए कहा दीदी इनके पास कपड़े तो बहुत हैं। लेकिन आप के पास आने की खुशी में फटे कपड़ों को बदलने का भी ध्यान ही नहीं रहा।

      मेरी प्यारी भाभी मन अमीर होना चाहिए। कपड़ों,पैसों की अमीरी कोई।अमीरी में नहीं गिनी जाती। यह तो हर वर्ष बनते फटते हैं। लेकिन प्यार और विश्वास वह भी ,भाई-बहन, का  जिसे परमात्मा भी कम नहीं कर सकता।

        दोनों बहन-भाई पुनः एक दूसरे से लिपट गए।

        


         वीरेन्द्र सिंह ,ब्रजवासी,

              मुरादाबाद/उ.प्र.

              9719275453

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*सोलह संस्कार* रचना डा. पशुपति पाण्डेय

 

  


सनातन हिन्दू धर्म एक शाश्वत और प्राचीन धर्म है। यह एक वैज्ञानिक और विज्ञान आधारित धर्म होने के कारण निरंतर विकास कर रहा है। माना जाता है कि इसकी स्थापना ऋषियों और मुनियों ने की है। इसका मूल पूर्णत: वैज्ञानिक होने के कारण सदियां बीत जाने के बाद भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है।  


प्रारम्भिक काल में हिन्दू समाज में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अनुसार शिक्षा दी जाती थी, जो वैज्ञानिक होने के कारण विकासोन्मुख थी। सोलह संस्कारों को हिन्दू धर्म की जड़ कहें तो गलत नहीं होगा। इन्हीं सोलह संस्कारों में इस धर्म की संस्कृति और परम्पराएं निहित हैं जो निम्न हैं-


(1). गर्भाधान संस्कार,

(2). पुंसवन संस्कार,

(3). सीमन्तोन्नयन संस्कार, 

(4). जातकर्म संस्कार, 

(5). नामकरण संस्कार, 

(6). निष्क्रमण संस्कार, 

(7). अन्नप्राशन संस्कार, 

(8). चूड़ाकर्म संस्कार, 

(9). विद्यारम्भ संस्कार, 

(10). कर्णवेध संस्कार, 

(11). यज्ञोपवीत संस्कार, 

(12). वेदारम्भ संस्कार, 

(13). केशान्त संस्कार, 

(14). समावर्तन संस्कार,

 (15). विवाह संस्कार, 

(16). अंत्येष्टि संस्कार।

      डा. पशुपति पाण्डेय

1.*गर्भाधान संस्कार* : गर्भाधान संस्कार के माध्यम से हिन्दू धर्म सन्देश देता है कि स्त्री-पुरुष संबंध पशुवत न होकर केवल वंशवृद्धि के लिए होना चाहिए। मानसिक और शारीरिक  रूप से स्वस्थ होने, मन प्रसन्न होने पर गर्भधारण करने से संतति स्वस्थ और बुद्धिमान होती है।


2.*पुंसवन संस्कार* : गर्भ धारण के तीन माह बाद गर्भ में जीव के संरक्षण और विकास के लिए यह आवश्यक है कि स्त्री अपने भोजन और जीवन शैली को नियम अनुसार करे। इस संस्कार का उद्देश्य स्वस्थ और उत्तम संतान की प्राप्ति है। यह तभी संभव है जब गर्भधारण विशेष तिथि और ग्रहों के आधार पर किया जाए।  


3.*सीमन्तोनयन संस्कार* : सीमन्तोनयन संस्कार गर्भधारण करने के बाद छठे या आठवें मास में किया जाता है। इस मास में गर्भपात होने की सबसे अधिक संभावनाएं होती हैं या इन्हीं महीनों में प्री-मेच्योर डिलीवरी होने की सर्वाधिक सम्भावना होती है। गर्भवती स्त्री के स्वभाव में परिवर्तन लाने, स्त्री के उठने-बैठने, चलने, सोने आदि की विधि आती है। मैडीकल साइंस भी इन महीनों में स्त्री को विशेष सावधानी रखने की सलाह देता है। भ्रूण के विकास और स्वस्थ बालक के लिए यह आवश्यक है। गर्भस्थ शिशु और माता की रक्षा करना इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। स्त्री का मन प्रसन्न करने के लिए यह संस्कार किया जाता है।


4.*जातकर्म संस्कार* : यह  बालक के जन्म के बाद किया जाता है। इसमें बालक को शहद और घी चटाया जाता है। इससे बालक की बुद्धि का विकास तीव्र होता है। इसके बाद से माता बालक को बालक को स्तनपान कराना शुरू करती है। इस संस्कार की वैज्ञानिकता है कि बालक के लिए माता का दूध ही श्रेष्ठ भोजन है।  


5.*नामकरण संस्कार* : इस संस्कार का बहुत अधिक महत्व है। जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए शुभ नक्षत्र में बालक को नाम दिया जाता है। नाम वर्ण की शुभता का प्रभाव बालक पर सम्पूर्ण जीवन रहता है। यह बालक के व्यक्तित्व का विकास करता है।  


6.*निष्क्रमण संस्कार* : इस संस्कार में बालक को सूर्य-चंद्र की ज्योति के दर्शन कराए जाते हैं। जन्म के चौथे मास में यह संस्कार किया जाता है।  इस दिन से  बालक को बाहरी वातावरण के संपर्क में लाया जाता है। शिशु को आस-पास के वातावरण से अवगत कराया जाता है।  


7.*अन्नप्राशन संस्कार* : इस संस्कार के बाद से बालक को माता के दूध के अतिरिक्त अन्य खाद्य पदार्थ देने शुरू किए जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान भी यही कहता है कि एक समय सीमा के बाद बालक का पोषण केवल दूध से नहीं हो सकता। उसे अन्य पदार्थों की भी जरूरत होती है।  इस संस्कार का उद्देश्य खाद्य पदार्थों से बालक का शारीरिक और मानसिक विकास करना है। यही इसकी वैज्ञानिकता है।   


8.*चूड़ाकर्म संस्कार* : इसे *मुंडन संस्कार* के नाम से भी जाना जाता है। इसके लिए शिशु के जन्म के बाद के पहले, तीसरे और पांचवें वर्ष का चयन किया जाता है। शारीरिक स्वच्छता और बौद्धिक विकास इस संस्कार का उद्देश्य है। माता के गर्भ में रहने के समय और जन्म के बाद दूषित कीटाणुओं से मुक्त करने के लिए यह संस्कार किया जाता है। स्वच्छता से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास अधिक तीव्र गति से होता है। यह विज्ञान भी मानता है।  

  

9.*विद्यारम्भ संस्कार* : विद्यारम्भ का अभिप्राय: बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिए भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। मां-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथाओं आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शिक्षा विज्ञान की ओर  प्रथम कदम है।  यही यह संस्कार बताता है।


10.*कर्णभेद संस्कार* : इस संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इसका मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है।


11.*यज्ञोपवीत संस्कार* : बच्चे की धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह संस्कार किया जाता है।  इसमें जनेऊ धारण कराया जाता है। इस संस्कार का सम्बन्ध लघु या दीर्घ शंका के बाद स्वच्छता से है। इसे कान में लपेटने से एक्यूप्रैशर विन्दु पर दबाव पड़ता है, जिससे लघु या दीर्घ शंका से बिना किसी कष्ट के निदान हो जाता है।


12.*विद्यारम्भ संस्कार* : इस संस्कार के द्वारा यह यत्न किया गया है कि इस धर्म के हर व्यक्ति को अपने धर्म का वैज्ञानिक ज्ञान होना चाहिए। यह जीवन के चतुर्मुखी विकास के लिए बहुत उपयोगी है।


13.*केशांत संस्कार* : इस संस्कार का उद्देश्य बालक को शिक्षा क्षेत्र से निकाल कर सामाजिक क्षेत्र से जोडऩा है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश का यह प्रथम चरण है। बालक  का आत्मविश्वास बढ़ाने, समाज और कर्म क्षेत्र की परेशानियों से अवगत कराने का कार्य यह संस्कार करता है।  


14.*समावर्तन संस्कार* : गुरुकुल से विदाई के पूर्व यह संस्कार किया जाता है। आज गुरुकुल परम्परा समाप्त हो गई है, इसलिए यह संस्कार अब नहीं  किया जाता है। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था।  


15.*विवाह संस्कार* : विवाह संस्कार अपने बाद अपनी पीढ़ी का अंश इस दुनिया को दिए जाने का मार्ग है। परिपक्व आयु में विवाह संस्कार प्राचीन काल से मान्य रहा है। समाजिक बन्धनों में बांधने और अपने कर्मों से न भागने देने के लिए बच्चों को विवाह संस्कार करके एक अदृश्य डोर में बांध दिया जाता है।  


16.*अंत्येष्टि संस्कार* : जब मनुष्य का शरीर इस संसार के कर्म करने योग्य नहीं रह जाता है, मन की उमंग भी समाप्त हो जाती है, तब इस शरीर का जीव उड़ जाता है। पंचतत्वों से बने इस नश्वर शरीर के दाह संस्कार का विधान है जिससे शरीर के वायरस और बैक्टीरिया समाप्त हो जाएं। क्योंकि जैसे ही इस शरीर का जीव निकलता है, शरीर पर वायरस और बैक्टीरिया का जबरदस्त हमला होता है। इस प्रकार यह भी एक वैज्ञानिक  संस्कार है।

  डा. पशुपति पाण्डेय

गोमती नगर लखनऊ 

"प्रकृति रचना



झरने की आवाज से, होता जग में शोर।
पक्षी गाते गीत है, होता हैं जब भोर।।

सुंदर सी साड़ी पहन, बैठी गोरी आज।
मन उसका क्यों शांत है, करे नहीं कुछ काज।।

खनकती चूड़ी हाथ में, दिखे होठ भी लाल।
नयनों में काजल लगे, लम्बे उनके बाल।।

हरियाली चहुँओर है, बहते झरने धार।
कितना सुंदर दृश्य है, गोरी करती प्यार।।

पैरों में घुँघरू सजे, नाचे मन में मोर।
छम छम की आवाज से, जियरा लेत हिलोर।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

दीपावली पर कुछ दोहे रचनाकार वीरेन्द्र सिंह बृजवासी





धनतेरस,दीपावली,गोधन, भैया दूज,

नत मस्तक हो पूजिए,होवे पावन सूझ।


बनें सहायक सभी के,लक्ष्मी और कुवेर,

यश वैभव के दान में, करें न तनिक अवेर।


दीप मालिका से करें, घर भर का श्रृंगार,

मन अंधियारा दूर कर, भरो सकल उजियार।


फल,मेवा, मिष्ठान संग रखो खिलोने खीर,

खुशी-खुशी हो बांटिए,खुश होंगे रघुवीर।


जहरीला वातावरण,देता सबको पीर,

प्राण वायु निर्मल रखो, हो करके गंभीर।

     



वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

   सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

दीपावली त्यौहार में" रचना प्रिया देवांगन प्रियू



आओ साथी हम सभी, देंगे सब का साथ।
दीवाली त्यौहार में, सभी बंँटाये हाथ।।
सभी बंँटाये हाथ, और अब साफ सफाई।
चादर कम्बल खोल, करे हम आज धुलाई।।
चमकाओ घर द्वार, खुशी से झूमो गाओ।
मिलकर सारे लोग, काम सब के तुम आओ।।

दीपक मिट्टी का जले, ऐसा रखना सोच।
झालर मालर फेंक दो, करो नहीं संकोच।।
करो नहीं संकोच, तभी होगा उजियारा।
टिमटिम जलते दीप, लगेगा कितना प्यारा।।
यही हमारी रीत, इसी में अपना है हक।
होगा रौशन देश, जलाओ मिट्टी दीपक।।

आतिशबाजी में सभी, करते पैसा खर्च।
नये पटाखे क्या बने, करते गूगल सर्च।।
करते गूगल सर्च, सभी बाजारे जाते।
रंग बिरंगे देख, पटाखे घर पर लाते।।
वातावरण अशुद्ध, प्रदूषण यह फैलाती।
है बीमारी पास, बंद हो आतिशबाजी।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

भैया चलो पटाखे फोडें : बालगीत : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी



भैया  चलो   पटाखे   फोड़ें,

महताबी फुलझड़ियां छोड़ें,

सुतली बम मेंआग लगाकर,

जल्दी  घर  के  अंदर  दौड़ें।


देखो  सुंदर  चरखी  चलती,

घूम-घूमकर  आग  उगलती,

जो  भी  इसे पकड़ना  चाहे,

उसकी तुरत हथेली जलती।


सोनू  इतना  क्यों  डरते हो,

कानों पर  उंगली धरते   हो,

इतना भी क्या  डरना  भाई,

चीख-चीखकर घरभरते हो।


रोना छोड़ो  खुशी  मनाओ,

मिलकर लड्डू पूरी खाओ,

बोतल में  रॉकेट  खड़ाकर,

दुममे उसकी आग लगाओ।


ऊपर  जाकर  दिखे नज़ारे,

बिखरे हों ज्यों  लाखों तारे,

सबने मन में खुशी  जताई,

मिलकर दीपावली  मनाई।



        

        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            मुरादाबाद/उ.प्र.

           9719275453

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दीपावली रचना शरद कुमार श्रीवास्तव

 



दीपमालाएं हमारे घरों को रौशन करें

लक्ष्मी की कृपा बरसे हर्षित मन करें

हो प्रसन्न, सब ओर खुशियाँ व्याप्त हो

हर दिशाओं से धनधान्य की प्राप्ति हो

जहाँ नजर तेरी पड़े हो वहाँ रंगीनियाँ

कहीं से कभी झांके नहीं गम गीनियाँ

झाँक लेना अट्टालिका से नीचे अहो

पास मंे तेरे कोई भी भूखा सोया न हो

उसे होली, दीवाली से लेना है क्या भला

दीवाली मनी है गर दो वक्त चूल्हा जला

रौशन भी हो रौशनी, ऐसा उजाला करें

सम्पन्न होएं राष्ट्र स्वदेशी का प्रण घरे

मिलेगा रोजगार कोई भूखा होगा नहीं

ऐसा स्वदेशी, नव-राष्ट्र निर्मित हम करें


विदेशी झालरें हम प्रथम तिरस्कृत करें

माटी के बने दीप से घर को रोशन करें

 



शरद कुमार श्रीवास्तव


मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

बीते बचपन की यादें प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 



कितना सुंदर होता बचपन।
खिल जाता था पूरा तन मन।।
कुत्ते बिल्ली घर पर आते।
चुन्नू मुन्नू उन्हे खिलाते।।

पेड़ो की होती हरियाली।
चढ़ते उस पर डाली-डाली।।
सुंदर दिखते बाग बगीचे।
बैठ खेलते बच्चें नीचे।।

बैलो की गाड़ी में चढ़ते।
आगे-आगे सब है बढ़ते।।
खुला-खुला सा होता आंगन।
कितना सुंदर होता बचपन।।

माँ आँगन चूल्हा सुलगाती।
भोजन उसमें रोज पकाती।।
साथ-साथ मिलकर है रहते।
कभी किसी से कुछ ना कहते।।

रंग-बिरंगी चिड़िया आती।
चींव-चींव की गीत सुनाती।।
दौड़-दौड़ भौंरा भी आते।
पुष्प रसों को वह पी जाते।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़