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शनिवार, 27 नवंबर 2021

शामू 8 एक धारावाहिक कथा

 



अभी तक :- शामू एक  भिखारी का बेटा है  और वह अपनी  दादी के साथ  रहता है ।  दूसरे बच्चो के साथ   कचड़ा प्लास्टिक,  प्लास्टिक  बैग कूड़े  से बीनता था ।  उसका  पिता  उसको पढाना चाहता था । लेकिन उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिला दादी  उसे फिर  आगे  बढ़ने  के  रास्ते  सुझाती  है ।    साथ  के  बच्चों के साथ   पुरानी  प्लास्टिक  पन्नी  लोहा  खोजते बीनते हुए वह एकदिन एक  गैरेज  के  बाहर  पहुँचता है और गैरेज के मालिक इशरत मियाँ ने उसे अपने गैराज मे काम पर रख लिया।

 इशरत भाई उसकी मेहनत लगन और ईमानदारी से बहुत खुश रहते थे। इशरत का बेटा नुसरत सिद्दीकी कालेज से लौटने के बाद कुछ समय के लिए अपने पिता को घर खाना खाने के लिये भेजने के लिये गैरेज जाता था वहाँ शामू को पढ़ाई में मदद कर देता था । शामू के पिता अपनी माँ को जो पैसे दे जाता था घर मे रुपये कीड़े से नष्ट हो रहे थे इशरत मियाँ की वजह से बैंक मे खाता भी खुल गया था जिसमें शामू हर महीने पैसे जमा करता ।
नुसरत ने इंजीनियरिंग करने के बाद बंगलुरु में नौकरी कर ली थी वह कुछ दिनों के बाद अपने माता-पिता को बंगलुरु ले गया ।  उस समय गैरेज का प्रबंधन शामू के पास था। इशरत मियाँ शाम के गैरेज प्रबंधन से बहुत खुश थे ।
उस दिन इशरत मियाँ बाजार गये थे . गर्मियों के दिन थे, बाजार मे प्यास बुझाने के लिये उन्होने दो गिलास शिकंजी पी ली थी . लू चल रही थी जिससे हीट स्ट्रोक लग गया या शिकंजी उन्हे नुकसान कर गयी थी पता नहीं चला . उन्हे उल्टियाँ होने लगीं . वे किसी तरह अॉटो से घर आए . शामू जल्दी से डॉक्टर को बुला लाया और फिर डॉक्टर के कहने पर अस्पताल मे भर्ती करा दिया. डिहाइड्रेशन हो जाने से इशरत भाई काफी कमजोर हो गये थे . नुसरत भी बंगलोर से आये थे पर काफी दिन रुक नहीं पाये थे शामू इशरत भाई के लिये हनुमानजी की तरह हमेशा सेवा मे तत्पर रहता था.
इशरत मियाँ ठीक हो जाने के बाद भी गैरेज नहीं जाते थे. शामू अकेले ही गैरेज देखता था और रुपये पैसे लाकर देता था .  इशरत मियाँ ने गैरेज का सारा सामान और टूल्स शामू को बहुत कम दाम मे बेच कर अपन बेटे के पास सपरिवार बंगलोर चले गये. शामू ने अपने घर पास एक किराए की दुकान मे अपना गैरेज खोल लिया . उसके अच्छे हुनर और अच्छे व्यवहार की वजह से गैरेज चल निकला और अब वह अपने गैरेज का मालिक है.

शामू का गैरेज  छोटा था लेकिन  उसकी लगन अच्छे काम  मिलनसारिता और अच्छे व्यवहार  के कारण  आसपास  के गैरेजों मे लोकप्रिय  हो गया था। वे ग्राहक  जो पहले इशरत  मियाँ  के गैराज  से जुड़े  थे  वे  आ  रहे थे  औरों को भी अपने साथ  ला रहे थे।   गैरेज  दिनोंदिन  तरक्की कर  रहा था ।

शामू के पिता बिहारी शारीरिक  रूप  से काफी कमजोर  हो चले थे ।   दूसरी जगह रहने से उनके खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी  ।  शामू अब सक्षम  हो चला था अत: वह जाकर अपने पिता को लेकर  आ गया।   बिहारी निराशा और कमजोरी से अधिक  परेशान  था ।  अपनी याददाश्त  पर भी उसका कम बस था ।   दादी काफी बूढ़ी होने के बाद  भी अपने काम  स्वयं कर लेती थी और अपनी बीमार  बेटे को भी सहारा देती थी ।    शामू गैरेज जाने से पहले खाना बनाकर  जाता था  ।   

शामू के घर के पास के झोपडी मे  रहने वाली  मोहनी की माँ शामू की तरक्की  से बहुत  प्रभावित  थी।  वह कोठियों मे नौकरानी का काम करने जाती थी  पर मोहनी  मा के दुलार के कारण काम पर  नहीं जाती थी दिन  भर घर मे  रहती थी ।   पड़ोस की झोपड़ी  शामू की होने के कारण  उनकी अवस्था से अपरिचित नहीं थी।  एक दिन मोहनी ने देखा कि शामू की दादी बिस्तर  से नीचे लुढ़क कर नीचे गिर पड़ी हैं और  बिहारी काका उन्हे उठाने की असफल कोशिश  कर रहे है तब मोहनी ने शामू की झोपडी  मे जाकर  दादी को उठाकर वापस बिस्तर  पर लिटाया ।  दादी और बिहारी मोहनी से खुश  हुए ।  मोहनी अब शामू के गैरेज जाने के बाद  प्रायः शामू के पिता और  दादी तथा घर को व्यवस्थित  कर आती थी।   मोहनी की माँ को खराब  नही लगता था उसे अपनी बेटी के लिए  एक  अच्छे वर की तलाश  थी वह शामू से अच्छा वर वह कहाँ से लाती ।   वह चाहती थी कि मोहनी धीरे इसी घर का हिस्सा बन  जाये । 

शामू जब गैराज  से लौट कर  आता तो घर व्यवस्थित  देखकर  उसे खुशी होती थी।  दादी से उसने पूछा तो पता चला कि मोहनी  उसके पिता और  दादी का ख्याल  रखती है । 





  

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