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- क्यों तोते को कैद किया है : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवास...
- गुल्लक : प्रभूदयाल श्रीवास्तव की रचना
- वार्षिक परीक्षा की फीस : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी क...
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- तिरंगा झंडा
- तीन रंगो का प्यारा झंडा **. महेन्द्र देवांगन माटी ...
- संयुक्त परिवार : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
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- स्वच्छता अभियान : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
- रक्षाबंधन ( सरसी छंद) : महेन्द्र देवांगन माटी की...
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अगस्त
(15)
बुधवार, 26 अगस्त 2020
नमन और गाजर का रहस्य " अंजू जैन गुप्ता की बालकथा
नमन इस बार गरमी की छुट्टियों में अपने नाना नानी के घर पालनघर गया ।वहाँ पर उसकी नानी के बड़े बड़े खेत थे। नमन भागकर नानी की गोद में जाकर बैठ जाता है और कहता है ,"कि नानी नानी मैं आ गया।" नानी उसे देख कर खुश हो जाती है और पूछती है कि अरे !नमन बेटा तुम क्या अकेले आए हो ? तभी पीछे से नमन की माँ कहती है ,"नहीं, माँ ये तो मेरे साथ आया है।" नमन के नाना- नानी उन दोनों को देख कर खुश हो जाते है।
और तभी अंदर से नमन की मामी उनके लिए कुछ नाश्ता लेकर आती है। अब नमन नाश्ता करते ही नानी के पीछे पड़ जाता है और कहता है," कि नानी नानी मुझे भी खेत दिखाओ न खेत कैसे होते हैं?"तब नानी कहती है कि अच्छा चलो बेटा।
नमन खेत में फल और सब्जियाँ लगी देख कर बहुत खुश हो जाता है। तभी नानी कहती है," कि बेटा मैं तो थक गई हूँ अब तुम जाओ और कुछ गाजर, टमाटर और बैंगन तोड़ कर ले आओ, शाम को तुम्हारी मामी पका लेगी।"नमन नानी की बात सुनते ही दौड़ पड़ता है और कुछ देर बाद आकर कहता है ,"नानी ये लो टमाटर और बैंगन "।तभी नानी
पूछती है," कि बेटा गाजर कहाँ हैं?",गाजर तो तुम लाए ही नहीं तभी नमन बोल पडता है ,"कि नानी आप भी न कैसी बात करते हो? ,गाजर का पेड़ तो आपने लगाया ही नहीं है और मुझे कह रहे हो कि गाजर लाओ।नानी कहाँ से लाऊँ?"
नानी हँसते हुए कहती है ,"कि बेटा गाजर का पेड़ नही होता है वह तो जमीन के नीचे जड़ों में लगती है, चलो मैं तुम्हें दिखाती हूँ।" नानी जमीन की मिटटी खोदती है और नीचे जड़ों से गाजर निकल आती है ,ये देखकर नमन चिल्लाता है ,
"नानी ये तो जादू है। वाह! कितनी अच्छी है गाजर लाओ, मुझे दे -दो मैं इसे खा लेता हूँ।" नानी कहती है ,"कि नहीं बेटा घर जाकर इसे धोएँगे और फिर खाएंगे।"
नानी कहती है," कि बेटा इसमें तो विटामिन-A सबसे अधिक होता है, जिससे हमारी आँखों की रोशनी बढती है और आँखे स्वस्थ रहतीं हैं "।और फिर दोनों घर के लिये चल पड़ते हैं।
अंजू जैन गुप्ता
गणपति विसर्जन. बाल कविता - नीरज त्यागी की रचना
प्यारे दादू , प्यारे दादू , जरा मुझको ये समझाओ।
क्यों करते है , गणपति पूजा मुझको ये बतलाओ।
क्यों विसर्जन करते गणपति,मुझको ये बतलाओ।
ये क्या रहस्य है दादू , जरा मुझको ये समझाओ।
पास मेरे तुम आओ बाबू , तुमको मैं समझाता हूँ।
क्या होता गणपति विसर्जन तुमको ये बतलाता हूँ।
देखो बाबू , गणेश विसर्जन हमको ये समझाता है।
मिट्टी से जन्मे है हम सब,फिर मिट्टी में मिल जाते है।
मिट्टी से गणपति मूर्ति बनाकर,उनको पूजा जाता है।
प्रकृति से बनी मूरत को फिर प्रकृति को सौंपा जाता है।
जीवन चक्र मनुष्य का भी कुछ यूँही चलता जाता है।
अपने कर्मो को पूरा कर इंसान मिट्टी में मिल जाता है।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
क्यों तोते को कैद किया है : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल रचना
क्यों तोते को कैद किया है?
बोलो - बोलो बुआ जी,
क्योंइसको ये सजा मिली है?
बोलो - बोलो बुआ जी।
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तार पकड़ कर ऊपर नींचे,
गिरता चढ़ता रहता है,
कब इससे बाहर निकलूंगा,
यही सोचता रहता है,
कब इसको आज़ाद करोगी,
बोलो - बोलो बुआ जी।
बिखर गया है रोटी दाना,
पानी नहीं कटोरी में,
हरी मिर्च भी सूख चुकी है,
भूखा है मजबूरी में,
किसने पूछा भूख लगी है,
बोलो - बोलो बुआ जी।
उड़ते सब तोतों से कहता,
मैं हूँ बेबस बंद पड़ा,
तुम ही आकर के बतलाओ,
कैसे काटूं फंद बड़ा,
बुरा नहीं लगता क्या तुमको?
बोलो - बोलो बुआ जी।
आज़ादी सबको भाती है,
तुमको भी भाती होगी,
क्या तोते को ही आजीवन,
सजा रास आती होगी,
कब इसपर उपकार करोगी,
बोलो - बोलो बुआ जी।
बढ़ करके दरवाजा खोला,
पिंजड़े से आजाद करो,
खुशी - खुशी अम्बर में उड़ने,
जीवन को आबाद करो,
फिर कब अत्याचार करोगी,
बोलो - बोलो बुआ जी।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-9719275453
दिनांक- 18/08/2020
गुल्लक : प्रभूदयाल श्रीवास्तव की रचना
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे
पॉकेट खर्च मुझे पापा,
हर दिन देते हैं।
कुछ पैसे बचते हम,
उसमें रख लेते हैं।
पूरी गुल्लक महीने छ:,
में भरी हमारी।
उसे तोड़ने की दादा,
जी है तैयारी।
आज देखना नोट भरे,
उसमें हैं कैसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।
अम्मू ने तो खा डाले,
अपने सब पैसे।
खर्च किए मनमाने ढंग,
से जैसे-तैसे।
खाई चाट पकौड़ी,
खाए आलू छोले।
खाई बरफी खूब चले,
लड्डू के गोले।
गप-गप खाए वहीं जहां,
पर दिखे समोसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।
इन पैसों से दादी को,
साड़ी लाऊंगी।
जूते फटे तुम्हारे हैं,
नए दिलाऊंगी।
चश्मे की डंडी टूटी,
है अरे आपकी।
दादाजी दिलवाऊंगी,
मैं उसी नाप की।
आप हमारे छत्र सदा,
से रक्षक जैसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
रविवार, 16 अगस्त 2020
वार्षिक परीक्षा की फीस : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की लघुकथा
कक्षा अध्यापक ने आवाज़ लगाकर कहा अरे मोहन तुमने हाई स्कूल की वार्षिक परीक्षा फीस 11/-रु0 अभी तक जमा नहीं की, क्या तुम्हें परीक्षा नहीं देनी।सोच लो कल तक का समय ही शेष है।
मोहन उदास मन से खड़ा होकर अध्यापक महोदय की तरफ देखकर कुछ कहने से पहले ही आंखों में आंसू भर लाया और रुंधे गले से बोलते-बोलते यकायक फफक कर रो दिया।. अध्यापक अपनी कुर्सी से उठे और मोहन के पास जाकर उसे चुप करते हुए उससे वास्तविकता जानने का प्रयास करने लगे।उन्होंने कहा कि तुम अपनी विवशता खुलकर बताओ हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा।
मोहन ने कहा सर मैं परीक्षा किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता हूँ परंतु घर के हालात ऐसे नहीं हैं।मैं अपनी विधवा माँ के साथ रहता हूँ।हमारी देख-रेख करने वाला भी कोई नहीं है।मेरी माँ ही छोटे-मोटे काम करके मुझे पढ़ाने की चाहत में लगी रहती है।
अब काफी समय से उसकी तबियत भी बहुत खराब चल रही है।घर में जो कुछ पैसे- धेले थे वह भी माँ के इलाज में उठ गए लेकिन हालत सुधरने की जगह और बिगड़ती जा रही है।मुझे हर समय उनकी है चिंता रहती है।ऐसे में मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि मैं परीक्षा दूँ या छोड़ दूं
परीक्षा तो फिर भी दे दूँगा परंतु माँ तो दोबारा नहीं मिल सकती।यह कहकर वह मौन होकर वहीं बैठ गया।
अध्यापक महोदय का दिल भर आया उन्होंने कहा कि मेरी कक्षा के तुम सबसे होनहार विद्यार्थी हो मुझे यह भी भरोसा है कि तुम इस विद्यालय का नाम रौशन करोगे।
परेशानियां तो आती जाती रहती हैं परंतु परीक्षा छोड़ने का तुम्हारा निर्णय तो तुम्हारी माँ की बीमारी को और बढ़ा देगा।इसलिये हिम्मत से काम लो ईस्वर सब अच्छा करेंगे।
गुरुजी ने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाल कर मोहन के हाथ पर रखते हुए कहा लो बेटे इनसे तुम अपनी माँ का सही इलाज कराओ।उनके खाने पीने का उचित प्रबंध करो।फीस की चिंता मुझपर छोड़ दो।
मोहन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कभी स्वयं को तो कभी पूज्य गुरुवर को देखता और यह सोचता कि भगवान कहीं और नहीं बसता मेरे सहृदय गुरु के रूप में इस संसार मे विद्यमान रहकर असहाय लोगों की सहायता करके अपने होने को प्रमाणित करता है।
मोहन ने गुरु जी की आज्ञा को सर्वोपरि रखते हुए माँ का इलाज कराया और पूरे मनोयोग से परीक्षा देकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा अपनी माँ और पूज्य गुरुवर के चरण स्पर्श करके उनका परम आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐रचना श्रीमती अर्चना सिंह
जयबोलो घनश्याम की।
जय बृजमोहन, जय यशोदा नंदन
जय बोलो राधे श्याम की।
हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।
जय मधुसूदन, जय देवकी नंदन
जय बोलो वासुदेवाय की।
जय मन मोहन,जय मुरलीधर
जय बोलो कन्हैयालाल की।
हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।
जय मुरारी, जय चक्रधारी
जय बोलो जगन्नाथ की।
जय केशव, जय गिरिधारी
जय बोलो वैकुंठनाथ की।
हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।
जय गोविंदा, जय जगद्गुरु
जय बोलो मनोहर लाल की।
जय सनातन, जय निरंजन
जय बोलो सुदर्शन लाल की।
हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।
----अर्चना सिंह जया
तिरंगा झंडा
खूब सलोना न्यारा है अपने देश का झंडा
बहुत सुन्दर प्यारा सा अपने देश का झंडा
रंग केसरिया बतलाए हममें कितना बल है
श्वेत रंग दर्शाता भारत शांत सत्य सरल है
बीच मे चक्र है बना हुआ चौबीस तीली वाला
गतिशील, धर्म और जीवन को है दर्शाने वाला
इसमे हरे रंग की पट्टी सबसे नीचे लगी भाई
मेरे देश की मिट्टी की ये सोंधी महक है लाई
पावन है ये धरती अपनी सुन्दर नील गगन है
तिरंगा जब लहराता है तब हर्षित होता मन है
खूब सलोना न्यारा है अपने देश का झंडा
बहुत सुन्दर प्यारा सा अपने देश का झंडा
शरद कुमार श्रीवास्तव
तीन रंगो का प्यारा झंडा **. महेन्द्र देवांगन माटी की रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (छत्तीसगढ़ )
8602407353
आजादी का पर्व मनाने, गाँव गली तक जायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।
नहीं भूलेंगे उन वीरों को , देश को जो आजाद किया ।
भारत मां की रक्षा खातिर, जान अपनी कुर्बान किया ।।
आज उसी की याद में हम सब , नये तराने गायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।
चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह, भारत के ये शेर हुए ।
इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए ।।
बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।
मिली आजादी कुर्बानी से, अब तो नही जाने देंगे ।
चाहे कुछ हो जाये फिर भी, आंच नहीं आने देंगे ।।
संभल जाओ ओ चाटुकार तुम, अब तो शोर मचायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, सबको आगे आना होगा ।
स्कूल हो या मदरसा सब पर , तिरंगा फहराना होगा ।।
देशभक्ति का जज्बा है ये , मिलकर साथ मनायेंगे ।
तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे ।।
संयुक्त परिवार : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
चूस चूस कर फूलों का रस , मधुमक्खी शहद बनाते हैं।
दादा दादी उसी तरह , संयुक्त परिवार बनातें हैं।।
बच्चों की किलकारी , दादा दादी का प्यार।
ऐसे ही मधुर है , मेरा सँयुक्त परिवार।।
ताऊ जी की कहानी , चाचा जी का दुलार।
मीठे मीठे शहद की तरह , हैं हमारा परिवार।।
सब मिलकर साथ रहते , करते हँसी ठिठोली।
छोटे छोटे बच्चों की , मीठी लगती है बोली।।
एकांकी जीवन मे रह कर , बच्चे आज कल भूल रहे।
अपने धुन में मगन हो गये , किसी की नही सुन रहें।।
संयुक्त परिवार कहां है पाते , नही मिलता सब का साथ।
जिंदगी जीने की चाह में , भूल गयें है बढ़ाना हाथ।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़
शनिवार, 15 अगस्त 2020
सृष्टि नियंता राम
आज जुडा़ इतिहास में,नूतन स्वर्णिम सर्ग।
तीर्थ अयोध्या घाम में,जैसे उतरा स्वर्ग।
शिलान्यास की शुभ घड़ी,भक्तों में उल्लास।
अद्भुद,अनुपम,भव्यतम,होगा राम निवास।
भजन,कीर्तन,शंख ध्वनि,घर-घर मंगल दीप।
नयन बसी छवि राम-सिय,हिय में प्रेम प्रदीप।
राम-जानकी लक्ष्मण,पवन तनय हनुमान।
अवध नगर पुनि आइये,कृपा सिंधु भगवान।
चरण-कमल हैं धो रहे,सेवक हनुमत वीर।
राम-जानकी के चरण,पावन सरयू नीर।
द्वार-द्वार मंगल कलश,दीप आरती थाल।
तोरण,वंदन वार नव,स्वागत द्वार विशाल।
शांति,सुमंगल,मोक्ष प्रद,अवध पुरी शुभ धाम।
जहाँ विराजीं जानकी,सृष्टि नियंता राम।
👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
रावगंज,कालपी,जालौन(उ०प्र०)
बुधवार, 5 अगस्त 2020
स्वच्छता अभियान : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना
चल पड़ी है टोली आज ,
नया कर दिखाने की ।
छोटे बच्चों की कोशिश है ,
बड़ो को समझाने की।।
चिंटू मिंटू झाड़ू लाये ,
रिंकू लाये कूड़ा दान।
साफ सफाई करे सभी ,
जैसे आने वाले है भगवान।।
बच्चे देख कर बड़े भी आये ,
अपने हाथ बँटाने को।।
सभी लोगो ने कोशिश किये ,
भारत को स्वच्छ बनाने को।।
हाथों में झाड़ू लेकर ,
मीरा काकी भी आयी।
कचरे को इकट्टा करके ,
गड्ढे में वह दफनायी।।
पूरे मोहल्ले हो गये साफ ,
शहर में खबर छाई।
सभी बच्चों को बधाई देने ,
राधा दीदी भी आई।।
साथ में सन्देश लिये ,
खड़े हैं बच्चें आज।
स्वच्छता को अपनाओ सब ,
पूरा कर लो काज।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997
रक्षाबंधन ( सरसी छंद) : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना
आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।
है अटूट नाता य से दे अनुपम उपहार ।।
राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर।
खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।।
सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार।
है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।।
हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार ।
रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।।
राखी के इस शुभ अवसर पर, सजे हुए हैं द्वार ।
है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।।
तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान ।
वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।।
आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार।
है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।।
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़
वाटसप -- 8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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