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गुरुवार, 26 जनवरी 2023

“ गणतंत्र दिवस ” श्रीमती मिथिलेश शर्मा की रचना

 यादों के झरोखों से श्रीमती मिथिलेश शर्मा जी की एक सुन्दर  रचना




हे राष्ट्रपर्व गणतंत्र दिवस 

युग-युग तक तेरा अभिनंदन है ।

भारत का जन मन हर्षित है, 

स्वातत्रंत्य भाव से पुल्कित है,

भारत मां के शुभ चरणों में 

अर्पित सबका तन-मन-धन है । 

हे राष्ट्रपर्व गणतंत्र दिवस 

युग-युग तक तेरा अभिनंदन है ।


तुम आये तो मधु ऋतु आयी, 

कलियों में फूटी अरुणायी,

भंवरों का गुंजन गूंज उठा, 

खगकुल हर्षित मन झूम उठा,

आल्हादित हैं हिम शिखर सभी, 

पुलकित धरती का कण-कण है । 

हे राष्ट्रपर्व गणतंत्र दिवस 

युग-युग तक तेरा अभिनंदन है ।


मास जनवरी की तिथि छब्बिस 

का शुभ प्रभात जब आया है, 

दिग-दिगंत में भारत के

गौरव ने प्रकाश फैलाया है, 

भारत के कोने-कोने में

तव उत्सव का आयोजन है,

हे राष्ट्रपर्व गणतंत्र दिवस 

युग-युग तक तेरा अभिनंदन है ।






रचना-

श्रीमति मिथिलेश शर्मा

एम.ए., साहित्यरत्न. 

भूतपूर्व अध्यापिका, लखनऊ.  

  

मुर्गे की बांग : शरद कुमार श्रीवास्तव

 




मुर्गी बोली चूजों से जल्दी सब सो जाओ

ठन्ड बड़ी कड़ाके की दड़बे मे हो जाओ

झांके बाहर बच्चे सर्दी मे सुड़कें- छींकें

बोली मुर्गी मुर्गे से ठन्ड मे सब रस फींके

देर तक है सोना कल नहीं चाय बनवानी

दड़बे से बाहर निकलते ही मर जाती नानी

मै जल्दी उठू॔गा तब सुबह  मिलेगी चाय

सबको मै जगाऊंगा तभी दूध देगी गाय



शरद कुमार श्रीवास्तव 







हैप्पी बर्थडे प्रेरणा//प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना

 




          प्रेरणा के लिये आज का दिन बहुत खास था, और होगा भी क्यों नहीं; आखिर आज उसका जन्मदिन जो था। सुबह उठ कर उसने सबसे पहले मम्मी का आशीर्वाद लिया।  भैया बड़ी दूर जगह नौकरी करते थे। वे भी आये हुए थे; साथ में  मामा जी थे।
        
              प्रेरणा के पापा जी दुनिया में नहीं थे। उनकी बहुत याद आ रही थी उसे। मन बड़ा उदास था। पापा के साथ बिताये लम्हें खुशियों में धुँधलापन ले आते। ऐसा लगने लगता, मानो प्रभात का खिला कँवल रवि के अस्तांचल से धुमिल होने लगा हो। आज तो प्रेरणा के दिलो-दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी-"काश ! आज पापा जी होते।"                

           मम्मी ने आज सब के लिये मीठा पकवान बनाया। भला वह कैसे भूलती, अपनी प्यारी बिटिया का जन्मदिन। प्रेरणा भी सुबह जल्दी उठी। नहा भी लिया। पूजा-पाठ भी हो गया। सुबह से ही उसका ध्यान बार-बार मोबाइल की तरफ जा रहा था कि अब किसी का कॉल आने वाला है। बड़ी प्रतीक्षा थी कि कौन उसे सबसे पहले जन्मदिन की बधाई देता है।   

पास जो रहता है न, वही तो ही वो दे सकते हैं न।"


           मम्मी की बातें सुन प्रेरणा बिफर गयी- "कुछ न होगा इन सबसे। जैसे के साथ तैसा ही होना चाहिए।" नन्ही प्रेरणा की आवाज तेज होने लगी। तभी मम्मी गहरी साँस लेते हुए बोली- "कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि उन सब के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाय। नहीं... नहीं....। हमेशा याद रखना बिटिया, हम अपने व्यवहार व संस्कार का ध्यान रखें। आज तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है; यह मुझे पता है, लेकिन कभी यह मत सोचना कि कल तुम भी उनके साथ ऐसा ही करोगी। इससे फिर तुम में और उन लोगों में कोई अंतर नहीं रह जायेगा। तुम्हें हम से जो संस्कार मिला है, उसका सदुपयोग करो। तुम क्यों निर्रथक सोच कर परेशान हो रही हो। मैं हूँ न। जिनकी जैसी मर्जी, उन्हें करने दें। हमें फर्क नहीं पड़ता। हमेशा खुश रहना सीखो। मन से प्रफुल्लित रहो, और बदले की भावना भी मत रखो। भगवान सब देख रहे हैं। तुम्हारे साथ तुम्हारे पापा जी भी हैं; और पापा हैं तो भगवान हैं। तुम्हारी हर मनोकामना पूरी होगी। याद रखना, मनुष्य को अपना संस्कार नहीं भूलना चाहिए।" प्रेरणा मम्मी की बातें कान लगाकर सुन रही थी। धारा प्रवाह बोलती हुई मम्मी का गला भर आया। वहाँ से उठ कर चली गयी। प्रेरणा को आज जीवन की महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिली। भीगी पलकें लिए मम्मी के पास गयी। मम्मी के आँसू पोंछते हुए उनसे लिपट गयी; बोली- "मम्मी, मुझे बोलो न.... हैप्पी बर्थडे टू यू...! हैप्पी बर्थडे प्रेरणा....! हैप्पी बर्थडे माय डियर ! अँई बोलो न....!"           

            



लेखिका

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"हम बच्चों का तिरंगा"





मातृभूमि की आन तिरंगा।
हम सब का अभिमान तिरंगा।।

देखो अंबर पर लहराते।
जन गण मन सब मिलकर गाते।।

नन्हें नन्हें बच्चे सारे।
हम भारत के चाँद सितारे।।

हम ही सब को बतलायेंगे।
आज तिरंगा फहरायेंगे।।

भोर काल की प्रभात फेरी।
तनिक नहीं करते हैं देरी।।

कदम मिलाकर बढ़ते आगे।
देखो अब हम बच्चे जागे।।

सुंदर सुंदर गीत कहानी।
खुश होकर है हमें सुनानी।।

बूंदी लड्डू और मिठाई।
बाँट-बाँट कर खाते भाई।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

गणतंत्र दिवस : रचना अंजू जैन गुप्ता


 



मंगलवार, 17 जनवरी 2023

बरी (बड़ी) बनाने के तरीके

   




(छत्तीसगढ़ी भाषा मे)

 बरी, रखिया, कुम्हड़ा, पपीता जेखर-जेखर बरी बनाना हे, तेखर करी ला पीठी मा मिला के फेंटे से ओखर बरी बन जाथे। अउ सिर्फ अदौरी बरी ला पीठी भर के बनाथे । अदौरी बरी बर कुछू जिनिस नइ लागे। उरिद दार के पीठी ला पर्रा मा गोल-गोल,नान-नान बनाये जाथे। ताहन फेर सुपा या पर्रा मा कपड़ा बाँध के हाथ मा थोकिन पानी छू-छू के गोल-गोल मढ़ावत जाथे। अउ सुपा-पर्रा ला उठा के छानही मा टांग देय जाथे। खटिया या जमीन मा जुन्ना लुगरा ला लम्बा बिछा के बरी बनाय जाथे।

आजकल विज्ञान बने तरक्की करत हे ; तेखर फायदा माईलोगन मन उठावत हे। मोबाइल मा गूगल ला सर्च कर के पता लगा लेथे कि कोन दिन बादर आही, अउ कोन दिन बने घाम उगही। ये तो मौसम के बात होगे। घाम म सुखाय बरी ल कउँवा, कुकुर-बिलई,  गरुवा ले बचाय ला परथे। बरी ला अच्छा सुखाय बर कम से कम दू दिन बनेच घाम चाही। बरी जतका अच्छा सुखाही, वोतका अच्छा बनथे। येला उलट-पुलट के सुखाये ले बने होथे। सरलग हफ्ता भर म पूरा सुखा जाथे।

          सुखाये के बाद माईलोगन के एक नियम हे एक-दूसर घर पहुंँचाए के। माँ हर बेटी बर, सास हर बहू बर, बहिनी-बहिनी बर जोरथे-बाँटथें। येखर ले मया-पिरीत बाढ़थे। दिगर ला लेय-देय गुण बाढ़थे। हमर छत्तीसगढ़ मा सब ले सुग्घर नियम हे कि बेटी-बिहाव के बिदाई के जोरन मा जोरे जाथे। ससुरार मा बहू हर अपन मइके के बरी ल आलू-भाँटा अउ मुनगा संग राँधथे। अपने हर परोसथे। बरी साग ल बने रसा वाले उतारे जाथे, काबर कि बरी ह रसा ल सोंखथे। रसा ह बरी म भींग थे, ता बड़ा गजब के लागथे। अइसना छट्ठी-बरही मा घलो मुनगा अउ रखिया नहीं ते पोंगा बरी ला राँधे जाथे। मुनगा मा विटामिन अउ प्रोटीन जइसे पोषक तत्त्व रहिथें, जेखर से लइकोरी ला ताकत मिलथे। आज घलो हमर गाँव-देहात मा ये परम्परा देखे ला मिलथे।


 सँगवारी हो ! हमर छत्तीसगढ़ के सब ले पुराना खान-पान आय बरी बनई अउ रँधई-गढ़ई हा। पहिली जमाना मा हर घर बरी बनय। अब तो दुकान मा घलो बेंचे के शुरू कर दे हे त लोगन मन आलसी घलो होवत जावत हे। कोन जनी अवइया पीढ़ी मन येखर बारे मा जानही के नहीं ? येखर नाम ला तो जानबेच करही; फेर बनाये बर समय नइ रइही; अउ स्वाद ला घलो भूला जाहीं। धीरे-धीरे यहू हर नंदावत जात हे, लेकिन येला बचा के रखना हे।

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लेखिका
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

भैया की साइकिल : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


लाए भैया  नई  साइकिल,

बोले    टन   - टन  -  टन,

करती  रोज़ हवा से  बातें, 

चलती   सन-  सन - सन।


कोमल सी गद्दी है उसकी,

प्यारे          से       पैडल,

थोड़ी  सी  दूरी  को  भैया,

चले        कौन       पैदल।


एक इशारे  से  लग  जाते,

साइकिल       के      ब्रेक,

हटो-हटो  चिल्लाने लगती,

घंटी         शब्द    अनेक।


शानदार  हैं  हेंडल  उसके

चक्के      गोल      मटोल

कहे कैरियर  बैठो मुझपर

करो      न     टालमटोल।


आगे लगी  कंडिया इसकी

बढ़ा      रही     है     शान 

फल,मेवा,मिष्ठान सब्ज़ियां,

लाती       सब      सामान।


दांतों  फंसी  चेन  को भैया,

जब         तेज़        घुमाते,

जितना  तेज  चाहते  उतना,

वह      साइकिल     दौड़ाते

    


      वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

          9719275453

                 --😊--

वर्ष 2023 की शुभ कामनाएं : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 



नया वर्ष शुभ हो! 

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नए वर्ष  की  नूतन  किरणें

सबके      पथ     चमकाएं

सिर्फ  उजालों  की  चर्चाएं

सबके       मन      हर्शाएं।


बाधाओं को तोड़ हमसभी

आगे        बढ़ते       जाएं

जीवन  की  सारी  इच्छाएं

पूरी         करते      जाएं।


सबके होठों  की  मुस्काने

देख    -    देख      हर्षाएं

खुशियों के उपहार संजोए

आंगन   -  आंगन    जाएं।


ऋतुएं सबपर मेहरबान हों

नूतन       रस       बरसाएं

गए साल  को टाटा  करके

नए     साल     को    पाएं।


नए वर्ष के पलपल  सबको

खुशियों       से     नहलाएं

सकल धराका कोना-कोना

सुगंध      से     भर   जाएं।




    ------💐💐💐-------

    नव वर्ष मंगलमय हो।

        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

           9719275453

              -----💐-----

नववर्ष हाइकु श्रंखला मे बद्ध कविता : रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


शुभ दिवस
मन में हर्षोल्लास
नई उमंग।।

शुभकामना
उन्नति सदमार्ग
बढ़ते रहें।।

प्रेम बाँटते
भूल जाएँ वेदना
प्रेम ही प्रेम।।

है नव वर्ष
तारीख बदलतीं
रूटीन नहीं

अंग्रेजी माह
बधाई ही बधाई
हिन्दू मनाते।।






रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com


मैले कपड़े संकलन सुनील कुमार सिंहा

 



 

एक दिन की बात है। एक मास्टर जी अपने शिष्य के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर जी मुस्कुराते हुए चलते रहे। 


मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर जी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। 


मास्टर जी पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।


उस व्यक्ति के जाते ही शिष्य ने आश्चर्य से पूछा, “मास्टर जी आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुँचा?”


मास्टर जी कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।


कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर जी के कक्ष तक पहुँच गए। मास्टर जी बोले, “तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया।”


मास्टर जी कुछ देर बाद एक मैले कपड़े को लेकर बाहर आये और उसे शिष्य को थमाते हुए बोले, “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो ?”


कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।


मास्टर जी बोले, “क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।


जीवन में याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।


संकलन 

सुनील कुमार  सिंहा

कालपी

चुटकुले




1  रामू  ट्रेन  में  पिछले डिब्बे  में  सफर कर रहा था कि  उस ट्रेन  को  पीछे  से  एक इंजन  ने  टक्कर मार दी ।  राजू ने शिकायत  पुस्तिका  में  लिखा  कि ट्रेन  में  कोई  आखिरी  डिब्बा  नहीं  होना  चाहिये  । अगर  आवश्यक  हो तो इसे बीच  में  होना चाहिये ।
2  एक डाक्टर  एक  आदमी  के  पीछे भाग  रहे  थे ।  लोगों ने  रोक  कर पूछा  तो डाक्टर  बोला यह आदमी  दिमाग़  का  ऑपरेशन  कराने  के लिए  आया  था  ।  बाल कटवाने के  बाद  भाग रहा है ।
3  शिक्षक  : बच्चो   दूध  न फटे इसके  लिए  क्या  करना चाहिए
एक  बच्चा   : सर उसे  पी लेना चाहिये ।
4  शिक्षक  छात्र  से : तूने  मेरा  दिमाग  खराब  कर दिया  है । अपने पिता  को  बुलाकर  लाना   मै तेरे  पिता  जी  से  मिलूंगा
छात्र  :  पिता  जी को नहीं  ताऊ को  लाऊंगा दिमाग  के  डाक्टर  ताऊ है पिताजी  नहीं

प्रस्तुति

शरद कुमार श्रीवास्तव