मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020







लालबिहारी  को  अपनी माँ का घर से बाहर का काम  करना पसंद  नहीं  है  । उसकी  माँ  रोज सबेरे लालू  को उसकी  दादी के पास  छोड़कर  अपने पति के  साथ  मजदूरी  करने  के  लिए  चली जाती है ।   लालू  अपनी  दादी  के  साथ  दिन भर  खेलता रहता  है  परन्तु सरे शाम  अपनी  माँ  के काम  से  वापस  आने  के  समय  से  कुछ पहले  से  ही  झोपड़ी  के  दरवाजे  पर छुपकर  खड़ा  हो  जाता है  ।   जैसे ही  उसके  माता पिता घर  वापस  आते  तो लालू  उनसे  चिपक जाता है  ।


लाल बहादुर  के  माता पिता   काम से  लौटते समय  लालू के लिये कुछ न कुछ,  खाने  के  लिए  लेकर  आते हैं ।  वह उसे बहुत  चाव से खाता है और उसका कुछ  हिस्सा उसके  घर के बाहर  खडे टामी कुत्ते  को  भी  देता है ।   टामी से लालू की बहुत  दोस्ती  है ।   टामी को भी लालू के माता पिता के  आने की  प्रतीक्षा  रहती है। वह  उन लोगों  के  आते ही दुम हिलाकर  अपनी खुशी प्रदर्शित करता है ।   लाल बहादुर की दादी  को लेकिन  लालू की टामी से दोस्ती  अच्छी  नही लगती है ।   उन्हें  लगता  है  कि  कही टामी  छोटे  बच्चे  को  काट न ले। वह इसलिए   एक छड़ी लेकर   टामी को भगाया  करती  हैं  ।   लाल बहादुर  को टामी के साथ  मिलकर  खेलना बहुत  अच्छा  लगता  है   ।  वह   टामी के साथ  सड़क पर दौड़ता  रहता  है  और   किनारे  बने पार्क तक भाग कर  पहुंच  जाता है    ।


उस दिन रोज  की  तरह  सड़क पर लाल बहादुर  खेल रहा था  कि  सड़क  पर  एक  पतंग  कही से कट कर  आ गई ।    रंग  बिरंगी  पतंग  को पकड़ने  के लिए  लालू दौड़  पड़ा  ।   इस भाग  दौड़  में  वह सड़क  के  किनारे  खड़ी  एक गाडी से टकरा  कर  गिर  पड़ा  ।   लालू को  चोट  आ गई   ।  उसके हाथ और पांव के घुटने से खून  बह रहा  था  और वह  चल नहीं  पाया रहा था  ।  टामी भौंकते  हुए  लालू  के  घर गया और वहां जाकर  वहाँ   से  उसकी दादी  को कपड़े  से  पकड़  कर अपने  साथ   ले आया ।     दादी लाल बहादुर  को गोद  में  लेकर  घर ले आयीं ।   दादी ने टामी को धन्यवाद दिया।. दादी को अब समझ  में  आ  गया कि कुत्ते बहुत वफादार  होते हैं ।



शरद कुमार श्रीवास्तव 

नवरात्रि" (कुण्डलियाँ)






सजता सुंदर द्वार है , स्वागत करते लोग।

माता रानी आती है , सभी लगाते भोग।।

सभी लगाते भोग , भक्त जन करते सेवा।

लेते आशीर्वाद , सभी पाते हैं मेवा।।

सभी जलाते दीप , द्वार सुंदर है लगता ।

आती माता रोज , घरों में दीपक सजता।। 


आई सबके द्वार में , माता रानी आज।

शीश झुकाते लोग हैं , बनते बिगड़े काज।।

बनते बिगड़े काज , कामना पूरा करती।

खुश होते हैं लोग , खुशी जीवन मेंभरती।।

दीप जलाते लोग , दिलों में खुशियाँ छाई।

सभी भक्त के साथ , द्वार में माता आई।।



"माटी पुत्री" - प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


ज्योति : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की लघुकथा






सुबह-सुबह घूमने निकले कुछ लोग यकायक बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर ठिठके और कुछ पल रुक कर रोती हुई आवाज़ का सच जानने के प्रयास में उस ओर दौड़े जहां से आवाज़ आ रही थी।उन्होंने देखा कि एक जालीदार टोकरी में एक नवजात बच्ची रोए जा रही है।अरे कोई लड़की लोक लाज के डर से इस बच्ची को यहाँ छोड़कर चली गई है।सबने बारी-बारी से अपनी प्रतिक्रिया तो व्यक्त की परंतु उस बच्ची को उठाकर उसके जीवन को बचाने की कोशिश नहीं की।
     किसी ने कहा लड़का होता तो हम ही रख लेते, किसी ने कहा क्या पता किस धर्म जाति की है।किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया और अपनी राह हो लिए।वह बच्ची इसी प्रकार भूखी-प्यासी रोती रही ज्यादा भूख लगती तो अपने हाथ की उंगलियों को ही चूसकर शांत हो जाती।
      दिन चढ़ते चढ़ते काफी लोग इकट्ठा हो गए लेकिन उसे किसी ने प्यार से गोदी में नहीं उठाया।बात फैली तो एक बड़े घर की महिला वहां आई और उसने उस बच्ची को गोदी में उठाकर उसके ऊपर लगे कूड़े कचरे को हटाया और एक साफ तौलिया में लपेटकर उसे पहले बाल चिकित्सालय ले गई।वहाँ उसका पूरा स्वास्थ्य परीक्षण कराने के बाद उसे पास के थाने लेजाकर उसे अपने साथ रखने की प्रक्रिया की जानकारी की।अंततः अनाथालय के माद्यम से बच्ची को घर ले जाने में सफलता हासिल की। 
       जब काफी समय बीतने पर भी उसे लेने कोई नहीं आया तो महिला ने उसकी अच्छी परवरिश में दिन-रात एक कर दिए।बच्ची का नामकारण भी बड़ी धूम-धाम से किया गया।सभी उसे ज्योति कहकर पुकारते।बच्ची धीरे -धीरे बड़ी होती गई।खूब पढ़ लिखकर योग्य चिकित्सक बनी।
      वह अपनी मां का बहुत ध्यान रखती।एक दिन मां ने उसे सत्य से अवगत कराते हुए कहा बेटी यह संसार बड़ा विचित्र है।यहां लोग सिर्फ अपने फायदे के बारे में ही सोचते हैं।तू अगर लड़का होती तो मुझे कैसे मिलती।लड़के के ऊपर किए गए खर्चे की तो पाई पाई वसूल कर लेते।तेरे ऊपर लगाए पैसे तो उनके लिए व्यर्थ ही जाते।
       तू मेरी आँखों की ज्योति है और मेरी हारी-बीमारी में मेरी चिकित्साक भी। ईश्वर तुझे शतायु करे।यह सुनकर बिटिया मां से लिपट कर बोली तुम तो ईश्वर की साक्षात प्रतिमा हो माँ।
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                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                    मुरादाबाद/उ,प्र,
        मो0- 9719275453
         

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता लल्लू चाचा







  अभी पूर्व से मुर्गा ऊगा ,
  सूरज ने दे दी है बांग |
  लल्लूजी कवितायें लिखते ,
  ऐसी ही कुछ ऊँट पटांग |

  कौआ भोंक रहा है भों- भों ,
  शेर बोलता म्याऊँ- म्याऊँ |
  चूहा हाथी से बोला है ,
  जल्दी आजा तुझको खाऊँ |

  बकरी चढ़ी पेड़ पर उलटी,
  लाई तोड़कर मीठे आम |
  चींटी ने झाड़ू पोंछा कर ,
  कर डाले घर के सब काम |

  ऐसी कविता लल्लूजी का ,
  लिखने का उद्देश्य विशेष |
  उन्हें देखना था  बच्चों में,
  कितना ज्ञान आज है शेष |

  शोर मचाकर बच्चे बोले,
  यह कविता बिलकुल बकवास |
  लगता है कि लल्लू चाचा ,
  रोज सुबह कहते हैं घास |
 



प्रभूदयाल श्रीवास्तव 

सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

प्रतिमा और प्रति- माँ" : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






नवरात्रि लगते ही सब भक्त माँ अम्बे के प्रतिमा का नव रूपो का  अलग अलग दिन विधि विधान से अपने सामर्थ्य के अनुसार पूजा पाठ  और माँ को मिठाई , फल का भोग लगाते हैं।

पर उस प्रति माँ का क्या ?  जो आज अपने ही घर में बेबस और लाचार पड़ी है ।आज भी कई माँ  वृद्धाश्रम में है। जो आज भी अपने बहू -बेटो अपने पोता -पोती का राह ताक रही है और इस आस में बैठी है की मेरा बेटा मुझे  लेने आयेगा। नवरात्री में जितनी सेवा , पूजा माँ के प्रतिमा का करते है , अगर उसका आधा सेवा भी अपने माँ के लिये करते , तो आज घर एक मंदिर बन जाता।

माँ अम्बे की प्रतिमा में माँ अम्बे विराजती है लेकिन दुनिया के प्रति माँ में  पूरा ब्रम्हाण्ड विराज मान है।

सिर्फ मंदिर जा कर दान - दक्षिणा देने से ही माँ अम्बे खुश नहीं रहती है। अगर माता रानी को खुश करना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी माँ को खुश रखना सीखो। अगर आप घर की माँ को खुश रखोगे तभी मंदिर की माँ खुश होगी। और अपना आशीर्वाद देगी।

माँ अम्बे यह नही चाहती कि भक्त नव दिन तक मेरे द्वार आये। नारियल , फल और मेवा चढ़ाये। माँ फल और मेवा की भूखी नही होती है। माँ तो केवल सच्ची सेवा , सच्ची भक्ति चाहती है। अगर आज  सब मिलकर अपनी - अपनी माँ को खुश करते ,  माँ की सेवा करते तो आज शायद पृथ्वी पर यह संकट नही आता। 
आज इस जगत में कितनी सारी माँ वृद्धाश्रम में रहती है। रोते बिलखते अपने बेटे - बेटियों को याद करती है। 
उस माँ को कभी ना तड़पाओ जो माँ आपका पालन पोषण की है । आपको आपने हाथों से भोजन खिलाई है । माँ को भी अपने बेटो से यही आशा रहती है कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो ऐसे ही हमारे बच्चे हमारी सेवा करेंगे।माँ तो माँ होती है । अपने बच्चे के बारे में कभी गलत नही सोंच सकती है। लेकिन आज माँ को क्या पता कि माँ - बाप बूढ़े होते ही बोझ हो जाएंगे।

आज माँ को क्या पता कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमारे बेटे - बहू हमें वृद्धाश्रम में छोड़ आएंगे।
अरे मानव कुछ तो समझो , कुछ तो दया दिखाओ अपने माँ - बाप के ऊपर जिस माँ ने तुम्हे ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया आज उसी माँ को तुम बेसहारा बना दिये। बहुत खुश नसीब वाले होते हैं वो इंसान जिसके माँ - बाप उनके साथ हमेशा रहते हैं। अनाथ आश्रम के बच्चे अपने माता - पिता को देखने के लिए तड़पते है और एक तरफ ये इंसान हैं जो माँ - बाप होते हुए भी उन्हें छोड़ आते है। माता - पिता की कीमत उस गरीब  अनाथ बच्चों से पूछो की माता - पिता क्या होते हैं। 

बड़ा - बड़ा घर , गाड़ी , बंगला और पैसे रखने वाले ही अमीर नही होते। जिस घर में बूढ़े माँ - बाप की सेवा होती  है वही इंसान दुनिया की सबसे अमीर इंसान होते हैं। 

अगर सेवा करना चाहते हो तो अपने माता - पिता की करो , मंदिर जा कर दिखावा करने से माँ नही आएगी। आज अगर संसार मे माता - पिता को बोझ नही समझते , माँ अम्बे की तरह उनकी पूजा सेवा करते तो कही भी वृद्धाश्रमों की जरूरत नही पड़ती।

आज आप ऐसा करोगे तो कल आपके बच्चे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे तब आप उस पर ऊँगली नही उठा पाओगे। 
आने वाले कल के बारे में सोचो जैसा व्यवहार आप अपने माता - पिता के साथ करोगे वैसा ही व्यवहार कल आपके बच्चे आपके साथ करेंगे।

अगर प्रतिमा को खुश रखना है तो  अपने प्रति माँ को पहले खुश करो ।अच्छे से भोजन खिलाओ , माँ की सेवा करो । तभी मंदिर वाली माँ अम्बे आपके घर बिना बुलाये आएगी और अपना आशीर्वाद देगी।

               "जय माता दी"



माटी पुत्री -प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

बीसतीस साल बाद कम्प्यूटर की दुनिया में




प्रिंसेज डॉल सुबह सुबह ही अपनी मम्मी के लैपटॉप को खोलकर बैठ गयी।  मम्मी घर से बाहर किसी काम से निकल  गई थी। अच्छा मौका था और कोई दूसरा रोक टोक करने वाला नहीं था पापा जी तो पहले ही टूर पर थे।

उसने मम्मी को लैपटॉप पर www टाइप करते देखा था अतः उसने भी वैसा ही किया लेकिन तीन बार w की की दबाने के स्थान पर उसने पांच बार w की को दबा दिया। फिर क्या था कि स्क्रीन पर दो मटकती हुई आंखें झांकने लगी। प्रिंसेज डॉल ने डरते हुए पूछा कि आप कौन हैं।  तभी लैपटॉप से आवाज आई मै wwwww से हूँ यानी world wide Web with wonders और आपने ही मुझे बुलाया है।.


प्रिंसेज डॉल ने पूछा कि आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं।   इसपर उसने कहा कि मै अपनी साइट से आपको कहीं भी ले जा सकता हूँ अगर आप के पास उसका ईमेल अथवा वाट्सअप नंबर हो और  वापस भी छोड़ सकता हूँ।   प्रिंसेज ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और अपनी नानी का वाट्सअप नम्बर टाइप कर दिया।. लैपटॉप ने जल्दी से उसे कम्प्यूटर मे एक तरंग माध्यम मे खींच लिया और वह तुरंत अपनी नानी के कम्प्यूटर पर पहुंच गई।  नानी जी का लैपटॉप बन्द था इसलिए वह बाहर नहीं निकल सकती थी।

उसने wwwww को फिर रोकर कहा कि मुझे अपनी मम्मी के पास जाना है।  वो तरंगें  जो उसे नानी के साइट पर ले गईं थीं उन्होंने प्रिंसेज से उसकी मम्मी का ईमेल या वाट्सअप नंबर पूछा जो उसे रटा हुआ था बता दिया और वह फिर से मम्मी के लैपटॉप पर आ गई और बाहर आ गई।  तब तक उसकी मम्मी बाहर से लौट कर नहीं आई थीं।  प्रिंसेज डॉल को अच्छा सबक मिल गया था कि वह आगे से मम्मी का लैपटॉप नहीं छुएगी।  इसी बहाने प्रिंसेज डॉल ने अबसे बीस तीस साल बाद की कम्प्यूटर की दुनिया का मज़ा ले लिया था।

शरद कुमार श्रीवास्तव 



नवरात्रि : प्रिया देवांगन प्रियू की प्रार्थना

 




माँ दुर्गा के चरणों में मैं ,

अपना शीश झुकाती हूँ ।

करती हूँ मैं रोज सेवा ,

चरणों मैं शीश नवाती हूँ ।।

 माँ दुर्गा के चरणों में मैं ,

अपना शीश झुकाती हूँ ।

करती हूँ मैं रोज सेवा ,

चरणों मैं शीश नवाती हूँ ।।


आशीर्वाद दे दो माता ,

मैं छोटी सी बालिका ।

रक्षा करो माँ मेरी तुम , 

बनकर के तुम कालिका।।


तुम ही दुर्गा तुम ही काली ,

तुम ही हो गौरी माता ।

मैं अज्ञानी बाला हूँ,  

पूजा पाठ न मुझे आता ।


खड़े हुए हैं हाथ जोड़कर, 

भक्त तुम्हारे दरबार में ।

आशीर्वाद दे दो माता ,

आये हैं तेरे द्वार में ।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"

     पंडरिया 

जिला -कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

 priyadewangan1997@gmail.Com


उगता सूरज ढलता सूरज" ( सार छंद) स्व महेन्द्र देवांगन माटी








उगता सूरज बोल रहा है, जागो मेरे प्यारे ।

आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।।


कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना।

सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।।


ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई।

करता है जो काम गलत तो, शामत उसकी आई।।


कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ।

होगा नया सवेरा फिर से, गीत खुशी के गाओ ।।


उगता सूरज ढलता सूरज, बतलाती है नानी ।।

ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।।


रचनाकार - 

महेन्द्र देवांगन "माटी"

(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")

पंडरिया 

छत्तीसगढ़ 

Mahendradewanganmati@ail.com

बिल्ली बोली चूहे राजा,,(बाल गीत) : वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की रचना -








बिल्ली  बोली   चूहे   राजा,

क्यों  मौसी   से  डरते   हो,

निर्भय   होकर  घर-भर  में,

क्यों नहीं कुलांचें भरते  हो।

        -------------------

छोड़ा मांसाहार  कभी  का,

छोड़   दिया  अंडा   खाना,

अब तो मुझे बहुत भाता है,

दाल - भात   ठंडा    खाना,

मेरी  सच्ची बातों  पर क्यों,

नहीं   भरोसा    करते   हो।

बिल्ली बोली ----------------


मेरा  मन  करता है  मैं  भी,

साथ   तुम्हारे   नृत्य   करूं,

साज उठाकरखुदको भी मैं,

सरगम   में  अभ्यस्त  करूं,

फिरभी प्यारी मौसी से क्यों,

डर    के    मारे   मरते  हो।

बिल्ली बोली--------------


देखो   मेरी   कंठी  - माला,

देखो    राम    दुपट्टा    भी,

याद  नहीं  मैंने   मारा   हो,

तुम पर  कभी  झपट्टा  भी,

मेरे  सम्मुख   खीर  मलाई,

लाकर  क्यों  ना  धरते  हो।

बिल्ली बोली-------------


अब तो आँख मीच ली मैंने,

फिर   काहे   की   शंका  है,

धमा चौकड़ी  खूब मचाओ,

बजा   प्यार   का   डंका  है,

मेरी   गोदी   में    आने   से,

तुम  किसलिए  मुकरते  हो।

बिल्ली बोली---------------


सौ-सौ चूहे  खाकर  बिल्ली,

कितनी   भोली   बनती   है,

एक आँख  कर बंद, गौर से,

सबकी    बोली   सुनती   है,

सुनो,  शर्तिया  मर  जाओगे,

यदि तुम  आज बिखरते हो।

बिल्ली बोली---------------


   ---------   💐💐 --------



             वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

       मो0-    9719275453

       दि0-     06/10/2020

नीरज त्यागी की बालकथा - बापू की सीख







          राजू एक नवी कक्षा का छात्र है और अपने घर के पास ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है।राजू बचपन से ही पढ़ने बहुत होशियार विद्यार्थी है।लेकिन उसके दिमाग की सारी अच्छाइयां उसके गणित के अध्यापक के सामने खत्म हो जाती हैं। वह लगातार अपने गणित के अध्यापक के हाथों डांट खाता रहता है और कक्षा से बाहर किया जाता रहता है।राजू इस बात से बहुत ही दुखी था।क्योंकि अपनी तरफ से तो वह सभी सवालों का सही जवाब देता है।लेकिन ना जाने क्यों गुरुजी लगातार उसे डांटते रहते है और कक्षा से बाहर निकालते रहते हैं।


          गाजियाबाद के सरकारी स्कूल मैं पढ़ रहा राजू बड़ी ही मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहा था।क्योंकि उसे पता था कि वह अपने गरीब मां-बाप का भविष्य पढ़कर ही सुधार सकता है।2 अक्टूबर आने वाली थी यानी कि हमारे *प्यारे बापू ( महात्मा गाँधी )*जी का जन्म जिस दिन हुआ था।आज रात राजू कुछ ज्यादा ही परेशान था।रात को परेशान होते-होते राजू ने महात्मा गांधी जी की तस्वीर, जो कि उसके घर की दीवार पर टंगी हुई थी।उसने बापू के हाथ जोड़े और प्रार्थना की,बापू मुझे अपने गणित के अध्यापक की डाट खाने से बचा लो।उसके बाद वो सो गया।


          राजू को अभी नींद नही आयी थी कि उसने देखा,अचानक तस्वीर से निकलकर बापू,राजू के सामने खड़े हो गए।उन्होंने राजू की समस्या का बड़े ही ध्यान से सुना और राजू से पूछा कि आखिर क्या वजह है,वह अध्यापक उसी को इतना डांटते है।राजू ने बताया कि वह सारे सवालों का सही जवाब देता है।किंतु उसके गणित के अध्यापक सबके सामने उसका मजाक उड़ाकर कक्षा से निकाल देते है और सभी छात्र भी उसका मजाक उड़ाते है।


         सब बातों को सुनकर गांधी जी ने उसे एक उपाय बताया।बेटा राजू,तुम रोज अपने अध्यापक के पास जाओ और उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करके,बिना उनसे डांट खाए,अपनी गणित की कॉपी उन्हें देकर खुद ही मुस्कुराते हुए कक्षा के बाहर आकर खड़े हो जाओ और उन्हें ये जरूर बता देना कि आप तो मुझे कुछ देर बाद निकाल ही दोगे।देखना इस बात से उनके ऊपर बहुत असर पड़ेगा और वह तुम्हें कक्षा के अंदर लेकर सही तरीके से पढ़ाने लगेंगे और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।


          राजू को उनका ये उपाय बहुत अच्छा लगा।अगले ही दिन वह कक्षा में पहुँचा और जैसे ही गणित के अध्यापक आए।उसने उनसे हाथ जोड़कर नमस्ते की और कहा सर थोड़ी देर में तो आप मुझे डांट कर कक्षा से निकालने वाले हैं।मैं खुद ही कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो जाता हूँ और वह कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो गया।यह घटनाक्रम लगातार पांच दिन चलता रहे लेकिन गणित के अध्यापक पर कोई भी असर नहीं पड़ा।बल्कि वह हंसते हुए उसके सामने से रोज निकल जाते हैं।राजू बहुत ही परेशान था।


          कल 2 अक्टूबर है।उसने एक बार फिर बापू से पूछा,बापू-अध्यापक के ऊपर तो कोई भी असर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूं,तब बाबू ने कहा बेटा कल तुम मेरी फोटो को लेकर जाना और यह घटना दोबारा से दोहराना।उन्हें गणित की कॉपी के साथ मेरी तस्वीर भी जरूर दे देना।अगले दिन राजू ने फिर उसी घटना को दोहरा दिया।इस बार गणित के अध्यापक को हाथ जोड़कर नमस्ते कर,उसने बापू की तस्वीर भी उनको दे दी और कक्षा से बाहर आकर खड़ा हो गया।


          लेकिन आज गणित की कक्षा समाप्त होने के बाद गणित के अध्यापक ने राजू को निराश नहीं होने दिया।उन्होंने राजू को दो 500 रुपये के नोट दिखाये।जिस पर महात्मा गांधी जी का फोटो छपा हुआ था। उन्होंने राजू को बताया बेटा कक्षा के लगभग सभी विद्यार्थी मुझसे ट्यूशन लेते हैं जिससे कि वह पास होकर अगली कक्षा में पहुंच जाएंगे।एक तुम ही हो,जो मुझसे ट्यूशन नहीं पढ़ते। बेटा मेरी बात समझने की कोशिश करना,बापू की बात तो आज भी सारी सही है।लेकिन जो तस्वीर तुम्हारे हाथ में है और जो तस्वीर मेरे हाथ में इस नोट पर है।उस तस्वीर वाले रुपयों से मुझसे ट्यूशन लो और देखना तुम्हे मैं फिर कभी कक्षा से नही निकलूंगा।


          राजू खुशी-खुशी अपने घर पहुँचा।शाम को फिर बापू की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर बापू से बोला, आखिर आपकी तस्वीर ने मुझे आज बचा ही लिया।अब मैं समझ गया हूँ कि मुझे आगे क्या करना है।बापू ने कहाँ,देखा मैंने तो कहाँ ही था सब कुछ ठीक हो जाएगा।फिर महात्मा गांधी जी ने भी अचंभित होकर सारी घटना को सुना।


          *बापू ने सारी घटना सुनकर यही निष्कर्ष निकाला,कि शायद आज उनकी बातों को और उन्हें लोगो ने इसीलिए नही भुलाया,क्योंकि उनकी तस्वीर एक ऐसे कागज पर मौजूद है।जिसकी जरूरत जीवन की दिनचर्या चलाने के लिए बार-बार पड़ती है।वरना लोग शायद उन्हें कब का भूल जाते।बापू निराश होकर भारी मन के साथ वापस तस्वीर में चले गए।*







नीरज त्यागी `राज`

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

मोबाइल ‪09582488698‬

65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001


* संपादक की ओर से - गांधी जी का मन इस लिए भी क्षोभ से भर गया कि  समाज इस तरह से बुराईयों में लिप्त है कि अब राजू के कमजोर हाथ समाज को इस कमजोरी से बचा नहीं सकते हैं 


संपादक 


चीता की समझदारी : अंजू जैन गुप्ता जी बालकथा







अफ्रीका के घने जंगलों में बहुत सारे जानवर रहते थे।उसी जंगल में शेर,टाइगर और चीता भी रहते थे।शेर  उस जंगल का राजा था और सभी जानवर उस से  डरते थे।

      एक दिन यूहीं बातो-बातो में उन तीनों के बीच जंग छिड़ जाती है कि ,"सबसे तेज कौन दौड़ता है "? शेर कहता है कि,"मैं सबसे तेज दौड़ता हूँ ",तभी टाइगर कहता है," नहीं-नहीं मैं सबसे तेज दौड़ता हूँ "।  अब इन दोनों की बाते सुन चीता ठहाके मार मुस्करा ने लगता है और कहता है तुम दोनों भी ना कैसी बातें करते हो, "तुम्हे इतना भी नही पता कि सबसे तेज तो मैं ही दौड़ता हूँ " ।शेर कहता है कि," जंगल का राजा तो मैं हूँ और मैं ही सबसे तेज दौड़ता हूँ "। तब चीता कहता है कि चलो हम तीनों दौड़ लगाते है और जो इस दौड़ प्रतियोगिता  में  जीतेगा वही इस जंगल में रहेगा और बाकी दोनों को ये जंगल छोड कर कही दूर  जाना पड़ेगा।चीता की ये शर्त दोनों मान  जाते है और प्रतियोगिता की तैयारियों में लग जाते है और टाइगर कहता है कि चलो," हम ये दौड़ प्रतियोगिता आरंभ करते है,अब शेर महाराज जी आप जल्दी से किसी को बुला  लीजिए जो इस दौड़ प्रतियोगिता को करवा सके और सही निर्णय भी दे पाए"। शेर कहता है हाँ, हाँ  रुको मै अभी किसी को बुलाता हूँ,तभी वहाँ से एक खरगोश गुजर रहा होता है किन्तु जैसे ही ,  शेर आवाज लगाता है खरगोश -खरगोश इधर आओ, वह  डर जाता है और उल्टे पैर ही लौट जाता हैं।अब वहाँ से चीटी गुजरती है शेर उसे भी आवाज़ लगाता है वह भी शेर की आवाज़ सुनकर डर जाती है और "कहने लगती है नहीं नहीं महाराज मुझे नहीं खाना मैं तो छोटी सी हूँ मुझे नहीं खाना", और यह कहते ही वहाँ से चली जाती है। 





       कुछ देर बाद उन्हे  सामने से लोमड़ी चाची आती हुई दिखाई देती है  और शेर उसे आवाज़ लगाते हुए कहता है, कि चाची- चाची डरो नहीं; इधर आओ मैं  तुम्हें खाऊँगा नही एक जरूरी काम है। यह सुनते ही चाची डरती -डरती उनके पास आती है और कहती हैं हाँ महाराज बोलिए क्या बात है?

शेर कहता है कि चाची हम तीनों के बीच एक दौड़ प्रतियोगिता करवानी है और देखना है कि सबसे तेज गति से कौन दौड़ता है  आप हमारे बीच यह प्रतियोगिता करवा दीजिए। चाची कहती है ,जी महाराज अवश्य। 

चाची प्रतियोगिता का स्थान व समय निश्चित तय कर देती है और वे तीनों निश्चित किए गए समय पर पहुँच जाते है। अब चाची कहती है ,कि आप सबको सामने दूर जो पेड़ दिखाई दे रहा है उसे छू कर वापिस आना है जो सबसे पहले आएगा वही विजेता होगा। फिर चाची प्रतियोगिता को आरंभ करती है और चाची के one,two ,three go कहते ही वे तीनों दौड़ शुरू कर देते है और तीनों ही बड़ी तेज गति से दौडना आरंभ करते है,परन्तु चीता के दौड़ने की (speed)गति तो सबसे तेज होती है इसलिए वह ही सबसे पहले पहुँच कर इस प्रतियोगिता का विजेता बन जाता है। 

अब चाची शेर और टाइगर से कहती है कि कुछ समझे !तुम दोनों, "धरा पर चीता ही सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर होता है और इस दौड़ प्रतियोगिता का विजेता भी यही है"।


जीतने पर चीता बहुत खुश होता है और ज़ोरो से कहता है wow!!मैं जीत गया अब शर्त के अनुसार आप दोनों  इस जंगल  को छोड़कर कहीं दूर चले जाइए। शेर और टाइगर चीता की बात मान जाते है और वे दोनों इस जंगल को छोड़ कर कहीं दूर चले जाते हैं। यह देखकर जंगल के सभी जानवर बहुत खुश हो जाते हैंऔर चीता का शुक्रिया अदा कर कहते है, चीता जी,चीता  जी आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने हमें बचा लिया वरना शेर महाराज तो हमें एक एक कर खा ही जाते अब हम सब इस जंगल में आराम से रहेंगा। 




अंजू जैन गुप्ता

गुडग़ांव 

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता पिकनिक




लालू, कालू मोहन,सोहन,

चलो वलें अब पिकनिक में|

लीला, शीला, कविता, रोशन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

 

ले जाएंगे आलू बेसन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

वहीं तलेंगे भजिये छुन-छुन,

चलो चलें अब पिकनिक में |


चलकर सीखेंगे योगासन,

चलो चलें अब पिकनिक‌ में|

योगासन पर होगा भाषण,

चलो चलें अब पिकनिक में|

 

प्रिंसिपल होंगे मंचासन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

रखना है पूरा अनुशासन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

गाएंगे सब बच्चे गायन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

लाओ अपने अपने वाहन,

चलो चलें अब पिकनिक में|

 

मनमोहन मनभावन है दिन,

चलो चलें अब पिकनिक में |   

नदी किनारा लोक लुभावन ,

चलो चलें अब पिकनिक में 




प्रभूदयाल श्रीवास्तव 

१२ शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र



गीदड़ को मिल गई बाँसुरी वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल रचना ,





गीदड़ को मिल गई बांसुरी,

लगा छेड़ने तानें,

मैं ही संगीतज्ञ बड़ा हूँ,

जानवर जानें।

          -----------------


जो संगीत सीखना चाहे,

पास मेरे आ जाए,

ढोलक, ढपली और मंजीरा,

दिनभर खूब बजाए,

पैसा नहीं रोज़ मुर्गा ही,

फीस मेरी है जानें।

गीदड़ को-----------------


कान खोलकर सुन लो मेरी,

फीस नियम से आए,

दुबला -पतला नहीं चलेगा,

मोटा मुर्गा लाए,

गद्दारी करने की मन में,

तनिक न कोई ठानें।

गीदड़ को------------------


मैंने अपने गुरु "गधे" से,

कभी न की मनमानी,

ढेंचू - ढेंचू की तानों से,

सीखी बीन बजानी,

गुरु गुरु होता है उसकी,

महिमा को पहचानें।

गीदड़ को-------------------


सुबह दुपहरी से संध्या तक, 

सबको लगा सिखाने,

मुर्गा, बत्तख, खरहा, कबूतर,

खुलकर लगा चबाने,

कहा शेर ने शोर कहाँ से

आया हम भी जानें।

गीदड़ को--------------------


पहुंच गया जंगल का राजा,

सूंघ सूंघकर राहें,

उड़ा रहा था दावत गीदड़,

सान सानकर बांहें,

देख शेर को थर-थर काँपा,

भूल गया सब तानें।   

गीदड़ को---------------------


         --------💐--------


                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

         मो0- 9719275453

         

बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

संस्कृति का जन्मदिन






बहुत दुलारी बहुत प्यारी 

नाना जी की प्राणअधारी

आज घर मे सब थी तैयारी

पकवानों की फेरिस्ट भारी



आशी आई चीकू भी आए

क्लास के सारे बच्चे आए

नाना मम्मी पापा घर ही थे 

बाकी सब आनलाईन आए


नये रंग में चेहरे खिले सारे 

खुशी मनाईं हिलमिल सारे

करोना को  मजा चखाया

 बेबी ने जन्मदिन  मनाया 


शरद कुमार श्रीवास्तव 


Poem on parents : by Naavya Kumar




I love my parents and they love me,

I was born in my mother's tummy.


My father is always cheerful and kind and he always takes me for a ride. 


Whatever I want they just agree ,

Thanks to my parents for bringing me glee.


My mother is sweet ,nice and good ,

She always cooks delicious food.


Whenever I am in danger they come to rescue me and When I look at them they smile at me. 


Whenever I am sad my parents cheer me and now I am always happy because I have my parents with me.


Thank you God for giving me good parents, 

I love them and they love me 


By - Naavya Kumar

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020

मुर्गा बाँग लगाता है प्रिया देवांगन प्रियू की रचना





उठो प्यारे आँखे खोलो ।

सूरज दादा आये है।।

लाल लाल किरणों के सँग में।

सब में आश जगाये है।।



मेरा मुर्गा है अलबेला।

जल्दी से उठ जाता है।।

कुड़कूँ कूँ आवाज लगा कर।

नया सन्देश लाता है।।



सुबह सुबह छत में चढ़ कर वह।

कुकडू कूँ चिल्लाता है।।

मुर्गी देखे मुर्गा राजा।

गीत नया वह गाता है।।


मुर्गियों का होता राजा।

सैर रोज वह करता है।।

चारे चुगता रहता दिनभर।

फिर आहे वह भरता है।।


सिर के ऊपर कलगी रखता।

दिन भर वह इठलाता है।।

कूड़े कचरे में जा कर के।

दाना खा कर आता है।।


चूजों को अपने सँग लेकर।

बड़े मजे से आता है।।

सुबह सुबह जल्दी उठ कर के।

मुर्गा बाँग लगाता है।।




प्रिया देवांगन *प्रियू*

पंडरिया

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

पुरानी ऐनक रचना :कृष्ण कुमार वर्मा






पुरानी ऐनक [ 👓 ]

अनुभवों की खान होती है ।

ना जाने कितने ही रहस्यों की 

जान होती है ।

खामोशी से ही मगर , गुजरे वक्त की 

पहचान होती है ।

पुरानी ऐनक !

जिंदगी में हासिल किये पड़ावों

का सुखद मील- निशान होती है ....



✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर 







मेरे भी कई ख़्वाब थे ,

पर परिस्थितियों ने तोड़कर रख दिया ।

पर हिम्मत को कभी टूटने नही दिया मैंने ...

पहले बेहतर शिक्षा , फिर बेहतर काम पाने 

हर कदम पर निरन्तर जूझता रहा ...

सुविधाविहीन गांव से शुरू हुआ सफर , 

मेट्रो शहर दिखा गया ...

जो देखा ख़्वाब था , वो पूरा तो ना हुआ 

पर जीने का दूसरा मकसद सीखा गया ...

हालाँकि अभी भी प्रयास को , जारी रखा है मैंने

उम्मीद का परिंदा हूँ , उड़ने की ज़िद को 

जिंदा रखा है मैंने ...




✍ कृष्ण कुमार वर्मा , चंदखुरी , रायपुर 


प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना : महिने में पंद्रह इतवार







                    महिने में कम से कम आएं

                    हे भगवन पंद्रह इतवार |


                    पता नहीं क्यों सात दिनों में ,  

                    बस इतवार एक आता |

                    छ: दिन का बहुमूल्य समय तो ,

                    शाळा में ही धुल| जाता |

                    ऐसे में कैसे चल पाये ,

                    खेल कूद का कारोबार |


                   शाळा एक दिवस लग जाए ,

                   दिवस दूसरे छुट्टी हो|

                   रोज रोज पढ़ने लिखने से,

                   कैसे भी हो कुट्टी हो |

                   एक -एक दिन छोड़ हमेशा ,

                   हम छुट्टी से हों दो चार |


                   पढ़ना लिखना बहुत जरूरी ,

                   बात सभी ने मानी है |

                   खेल कूद भी है आवश्यक ,

                   कहते ज्ञानी ध्यानी हैं |

                   खेल कूद से ही तो बनता ,

                   सच में स्वस्थ सुखी परिवार |


                  पढ़ें एक दिन ,खेल एक दिन,

                  यह विचार कितना अच्छा ,

                  इस विचार से झूम उठेगा ,

                  इस दुनियां का हर बच्चा |

                  बात मान लो बच्चों की अब ,

                  बच्चों का ही तो संसार |




               प्रभूदयाल श्रीवास्तव 

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020

बापू के बन्दर (रोला छंद) : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना






बापू बन्दर तीन , बहुत ही धूम मचाते।

उछले कूदे रोज , नाच को सभी नचाते।।


बुरा न देखो आप , सदा सबको बतलाते।

कैसे बढ़े समाज , हमें वे राह दिखाते।।


सुन लो बच्चों बात , झूठ तुम कभी न कहना।

बुरा कभी ना सोंच , सभी से मिलकर रहना।।


बुरा न बोलो आप , सभी को यही सिखाते।

बापू बन्दर तीन , सदा ही राह दिखाते।।


बुरा कभी ना बोल , हमेशा यही सिखाते।

मानो मिलकर बात , सभी को बात बताते।।


बाढ़े अत्याचार , देश को कौन बचाये।

बेटी हुई निराश , कौन अब इसे मनाये।।


बापू बन्दर मौन , रोज चलती अब आँधी।

बुरे यहाँ हालात , सिसक कर रोये गाँधी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com