चुन्नू , मुन्नू , गुड्डा, गुड़िया
जा बैठे गाड़ी के अंदर
दरवाजे कर बंद लगाए
लॉक सभी बच्चोंने मिलकर।
घुटन बढ़ी आ गया पसीना
हुआ सांस लेना भी दूभर
भूले घबराहट में सारी
करनी थी जो मस्ती जी भर।
चीख-चीख पीटे सब सीसे
बाहर कुछ आवाज न आई
देखा इधर-उधर बहुतेरा
दिया न कोई भी दिखलाई।
हाथ-पैरभी शिथिल पड़ रहे
छाने लगी अजब बेहोशी
मंद हुईं सारी आवाज़े
पसर गई केवल खामोशी।
दफ्तर जाने को पापा ने
गाड़ी का दरवाज़ा खोला
देख मूर्छित सब बच्चों को
ऊंचे स्वर में सबको बोला।
सारे घर वालों ने मिलकर
उनको बाहर तुरत निकाला
शीघ्र होश में लाने सबके
मुख पर ठंडा पानी डाला।
धीरे - धीरे तब बच्चों ने
अपनी-अपनी आंखें खोलीं
लिपट स्वयं मम्मी-पापा से
गुड़िया रानी जी भर रो लीं।
खेल-खेल में प्यारे बच्चो
नहीं बैठना तुम गाड़ी में
सदा बड़ों के साथ बैठकर
खुशी-खुशी जाना गाड़ी में।
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वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
9719275453
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