करे परिश्रम खेतों में वह , तब रोटी मिल पाती है ।
माथ पसीना टप टप टपके , वह मोती बन जाती है ।।
करे नहीं परवाह धूप का , बैलों को ले जाता है ।
हल को लेकर चले खेत में , माटी अन्न उगाता है ।।
देख किसानों की पूजा को , धरती खुश हो जाती है ।
ओढ चुनरिया हरियाली की , मस्ती में वह गाती है ।।
हरी भरी धरती को देखे , बादल खुश हो जाता है ।
गड़गड़ करके मेघ गरजता , फिर पानी बरसाता है ।।
नमन करें हम श्रमिक जनों को , नदियाँ पर्वत घाटी को ।
नमन करें हम मातृभूमि को , इसके कण कण माटी को ।।
महेन्द्र देवांगन "माटी " (शिक्षक)
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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