माँ है परी सुनहरी सी |
सोचें रखती गहरी सी ||
मिट्टी की सौंधी खुशबू |
चहरे से कुछ शहरी सी ||
कम खाती गम खाती है |
बातें करती ठहरी सी ||
मोटापे से डरती है ।
दिखती सदा इकहरी सी ।।
डांट लगाती गलती पर |
थाना और कचहरी सी ||
ध्यान रखे पूरे घर का |
सीमाओं के प्रहरी सी ||
मानस मन की चौपाई |
पूजाघर की दहरी सी ||
घर के सारे काम करे |
खुद को कहती महरी सी ||
हम सबकी बीमारी में |
तकिया और मसहरी सी ||
ऊँची नील गगन से कुछ |
सागर से कुछ गहरी सी ।।
गर्मी में ठंडी छाया ।
जाड़ों में दोपहरी सी ।।
शत शत नमन तुझे माता ।
माँ तो आखिर माँ ठहरी ।।
ब्रह्मदेव शर्मा
स्वतंत्रता सेनानी एन्क्लेव
नेब सराय इग्नू रोड
नई दिल्ली 110068
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