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गुरुवार, 16 मई 2019

महेन्द्र देवांगन द्वारा रचित कविता मेरा गाँव



शहरों की अब हवा लग गई

कहां खो गया मेरा गाँव ।
दौड़ धूप की जिंदगी हो गई 
चैन कहां अब मेरा गाँव ।

पढ़ लिखकर होशियार हो गये 
निरक्षर नहीं है मेरा गाँव ।

गली गली में नेता हो गए
पार्टी बन गया है मेरा गाँव ।

भूल रहे सब रिश्ते नाते 
संस्कार खो रहा मेरा गाँव ।

अपने काम से काम लगे है 
मतलबी हो गया है मेरा गाँव ।

हल बैल अब छूट गया है 
ट्रेक्टर आ गया है मेरा गाँव ।

जहाँ जहाँ तक नजरें जाती
मशीन बन गया है मेरा गाँव ।

नहीं लगती चौपाल यहां अब
कट गया है पीपल मेरा गाँव ।

बूढ़े बरगद ठूंठ पड़ा है 
कहानी बन गया है मेरा गाँव ।

बिक रहा है खेती हर रोज 
महल बन गया है मेरा गाँव ।

झोपड़ी कही दिखाई न देगा 
शहर बन गया है मेरा गाँव ।
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                        महेन्द्र देवांगन "माटी"
                       गोपीबंद पारा पंडरिया 
                       जिला -- कबीरधाम  (छ ग )
                        पिन - 491559
                       मो नं -- 8602407353
                       Email - mahendradewanganmati@gmail.com

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