शहरों की अब हवा लग गई
दौड़ धूप की जिंदगी हो गई
चैन कहां अब मेरा गाँव ।
पढ़ लिखकर होशियार हो गये
निरक्षर नहीं है मेरा गाँव ।
गली गली में नेता हो गए
पार्टी बन गया है मेरा गाँव ।
भूल रहे सब रिश्ते नाते
संस्कार खो रहा मेरा गाँव ।
अपने काम से काम लगे है
मतलबी हो गया है मेरा गाँव ।
हल बैल अब छूट गया है
ट्रेक्टर आ गया है मेरा गाँव ।
जहाँ जहाँ तक नजरें जाती
मशीन बन गया है मेरा गाँव ।
नहीं लगती चौपाल यहां अब
कट गया है पीपल मेरा गाँव ।
बूढ़े बरगद ठूंठ पड़ा है
कहानी बन गया है मेरा गाँव ।
बिक रहा है खेती हर रोज
महल बन गया है मेरा गाँव ।
झोपड़ी कही दिखाई न देगा
शहर बन गया है मेरा गाँव ।
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महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम (छ ग )
पिन - 491559
मो नं -- 8602407353
Email - mahendradewanganmati@gmail.com
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