अचकन पहन बांधकर पगड़ी
बंदर मामा आए
बैठ गए घोड़ी पर जाकर
मुख में पान दबाए।
सबने मिलकर किया भांगड़ा
खूब ढोल बजवाए
नाच - नाचकर थके बराती
बहुत पसीने आए।
लेकर जब बारात अनोखी
बंदर मामा धाए
सूंघ - सूंघकर सारी झालर
तोड़ - तोड़ बिखराए।
हाथी, घोड़ा, ऊंट सभी ने
बढ़कर हाथ मिलाए
सजा सजाकर तश्तरियों में
स्वयं नाश्ता लाए।
हलवा पूड़ी दूध जलेबी
मिलकर सबने पाए
दूल्हे राजा ने बढ़चढ़ कर
भांग पकौड़े खाए।
देख बंदरिया को बन्दर जी
मन ही मन हर्षाए
माला डलवाने गर्दन को
बार -- बार उचकाए।
बंदर मामा तनिक देर भी
खड़े नहीं रह पाए
जयमाला की पावन रस्में
पूर्ण नहीं कर पाए।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
12/12/2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें