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शनिवार, 16 मई 2020

शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा : दादी मां के लड्डू





नन्ही चुनमुन को उसकी मम्मी से पता चला कि कल उसकी दादी मां आने वाली हैं।  दादी मां से मिलने की बात से वह बहुत उत्साहित थी।   अपने पढ़ने वाले कमरे में सारी कापी किताबों को ठीक से सेल्फ मे लगाया कपड़ों की रैक भी ठीक से लगाके बार बार अपनी मम्मी से पूछ रही थी कि दादीजी कब आयेगीं और अपने हाथ से बनाए बेसन के लड्डू लाएंगी।

उस दिन देर रात तक सुबह के इन्तजार मे नन्ही चुनमुन जगती रही और सुबह होते ही उसनें अपने पापा से कहा पापा दादीजी को स्टेशन से लाने के लिये मै भी चलूँगी।  पापा जब स्टेशन जाने लगे तब उन्होंने नन्ही चुनमुन को भी साथ में ले लिया। स्टेशन पर थोड़ी देर में गाड़ी आ गई और दादी मां भी आ गईं थीं  चुनमुन ने दादीजी जी के हाथों से उनका बैग ले लिया।   रास्ते में पापा की गाड़ी में ही वह दादीजी के बैग को चुपके से टटोलती रही और अनुमान लगाती रही कि दादीजी उस के लिए ढेर सारी चाकलेट लाई है।. घर पहुंच कर उसने बिना समय गंवाये दादी मां से पूछ लिया कि वह उसके  ( चुनमुन) लिए क्या लाई हैं।  दादी मां को कोई जवाब नहीं दिया  दरअसल वे अपनी बीमारी के इलाज के लिए अपने बेटे के घर आयीं थीं और इसीलिए वे नन्ही चुनमुन के लिए कुछ नहीं ला पायीं थीं। 
दादीजी  ने प्यार से चुनमुन से खाली हाथ आने की यह वजह शेयर की।  परन्तु नन्ही चुनमुन को दादी की बात कहाँ समझ में आने वाली थी क्योंकि वह पहले जब कभी आतीं थीं तब उसके लिये कुछ न कुछ लेकर आतीं थीं।   दादी मां को भी अच्छा नहीं लग रहा था।. दिन मे ही वह चुनमुन के पापा के साथ जाकर डॉक्टर को दिखाकर लौटीं तो डॉक्टर ने बताया कि वे पूरी तरह से ठीक हैं।. दादीजी अब खुश हो गईं थीं   घर लौटने के बाद बहू से उन्होंने बेसन थोड़ा घी और चीनी लेकर चुनमुन के लिए उसकी पसंद के जब लड्डू बनाये तब चुनमुन और दादीजी  दोनों खुश हो गए और फिर आपस में दोस्त बन गये।


         शरद कुमार श्रीवास्तव

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