ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 6 मई 2020

नटखट मदन लाल : शरद कुमार श्रीवास्तव






बचपन के वह क्या दिन थे. मित्रों के साथ उठना बैठना उनके साथ किस्से कहानियाँ सुनना और सुनाने मे एक विशेष आनन्द मिलता था हमारे मित्रों मे एक मित्र राजीव लाल थे उन्होने एक घटना सुनाई जिसको वह सत्य घटना बताते थे. राजीव लाल के रिश्ते के एक चाचा मदन लाल कालेज कीफुटबाल टीम मे सेन्टर हाफ से खेलते थे. एक बार कालेज की टीम को पडोस के शहर से खेलने बुलावा मिला. कालेज से किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं मिली. बच्चे बहुत कठिनाई महसूस कर रहे थे. जाना जरूरी था. इज्जत की बात थी. मदन लाल ने सुझाया कि आधे आधे टिकट का पैसा मुझे देदो मै तुम सब को हाफ टिकट मे ही ले चलूँगा. एक ही स्टेशन की दूरी थी बच्चे गाते बजाते गंतव्य स्टेशन तक पहुँच गये. स्टेशन के गेट पर टी.टी साहब खड़े थे. मदन लाल ने टी टी से भीड़ के बीच कहा मै लडकों को गिनता जाता हूँ फिर एक लड़के की पीठ को गेट से बाहर निकाला और बोला एक फिर दूसरे फिर तीसरे और इस तरह से हर एक बच्चे को बाहर निकाल दिया. मदनलाल कुछ देर खड़े रहे जब तक बच्चे दूर निकल नहीं गये. उन्होने बाद मे अपना टिकट पकड़ाया तब टीटी ने पूछा और ११ टिकट ? इस पर मदन लाल बोले मै तो गिन रहा था मै तो अपना टिकट जानता हूँ.
हम सबने राजीव लाल से कहा इसका मतलब है कि तुम्हारे चाचा जी ने टीटी को बेवकूफ बनाकर रेलवे को ठग लिया इसपर राजीव लाल बोले अरे कहाँ भाई टीटी ने सिपाही की मदद से मदन लाल चाचा को पकड़ लिया फिर हमारे बाबा जी जाकर भारी जुर्माना भर कर मदनलाल चाचा को छुडा कर ले आए। 


                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें