ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 जून 2022

आषाढ आ गया

 


हर समय  मधुमास  नहीं रहता

आतप संताप जगत है सहता

पत्ते वृक्ष से जब दूर चले जाते

दरख़्त उष्मिता से सूख जाते


पथिक  जरा आराम नहीं पाते

पंछी  ठूंठ पर बैठने से कतराते

अंशुमान चहुँओर है आ जाता

आषाढ़ वसुन्धरा पर छा जाता


वारिद अभी दूर दूर तक नहीं है 

अवनि की प्यास व्यापक बडी है

नदी ताल मे जलाभाव छा जाता

आषाढ धरातल  पर  छा जाता




शरद कुमार श्रीवास्तव 



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