नन्हा बीज आलसी था,
था सबसे छिपकर सोया
साफ हवा, धूप, बारिश के
सपनों मे था खोया
मिट्टी ने उसको दुलराया -
उठो बीज अब प्यारे
पानी पी कर चलो, हवा में
खेलो राजदुलारे
नींद खुली, आँखों को मलता
जब वह बाहर आया
धूल, धुआँ, चिड़चिड़ी हवा को
पाकर वह घबराया
लगा छींकने, खाँसा फिर
बीमार हो गया गोया
नन्हा बीज बना जब पौधा
बहुत दिनों तक रोया
डॉक्टर प्रदीप कुमार शुक्ल
लखनऊ
(फेसबुक से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें