एक समय की बात है , एक गाँव में एक बहुत ही बुद्धिमान राजा रहता था। उसकी प्रशंसा गांव के हर छोटे - बड़े आदमी करते थे।राजा को अपना राजा होने का कभी घमण्ड नही हुआ । वह गरीबो को दान में कुछ न कुछ जरूरत की चीज देते रहते थे तथा बच्चो से भी राजा बहुत अच्छे से व्यवहार करते थे। बच्चे भी राजा से खुश रहते थे। राजा की कोई संतान नही थी राजा को इसी बात का दुख होता था कि मेरे जाने के बाद मेरा राज्य कौन सम्भालेगा ।
बहुत दिनों बाद राजा का एक बेटा हुआ। राजा बहुत प्रसन्न हुये । राजा ने अपने बेटे का नाम वीर प्रताप रखा। अपने पूरे गाँव और गाँव के आस पास के लोगो को भोजन खिलाया । अब राजा का बेटा बड़ा हो गया लेकिन राजा का बेटा राजा के बिल्कुल विपरीत था । राजा वीर प्रताप को खूब पढ़ाना- लखाना चाहता था।लेकिन वीर प्रताप का पढ़ने का बिल्कुल भी मन न करता था ।उसको बुरी लत लग चुकी थी ,उसको घमण्ड था कि मेरे पिता जी के बाद मै राजा बनूँगा।राजा ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि वह पढ़ लिख के आगे बढ़े और बुरी आदतें छोड़ दे लेकिन वीर नही माना । एक बार अचानक वीर गिर पड़ा । आँखों के आगे अंधेरा छा गया ।राजा तुरन्त हॉस्पिटल ले के गए । डॉक्टर के इलाज के द्वारा पता चला कि वीर को कैंसर है ।राजा बहुत दुखी हुये।वीर को जब पता चला कि अब ज्यादा दिन नही बचा है उसके बाद वीर बहुत रोने लगा ।और पछताने लगा कि मैं यदि समय के रहते पिता जी का बात मान लेता तो ऐसा नही होता।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
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